tag:blogger.com,1999:blog-9140934681215730022024-03-25T06:57:42.564-07:00कानूनी ज्ञानएक ऐसा ब्लॉग जो बताएगा आपको आपके अधिकार और आपको मिलने वाली विधिक सहायता के बारे में....Shalini kaushikhttp://www.blogger.com/profile/10658173994055597441noreply@blogger.comBlogger196125tag:blogger.com,1999:blog-914093468121573002.post-42650618699385356652024-03-04T03:10:00.000-08:002024-03-04T03:10:07.234-08:00डी. जे. पर प्रतिबन्ध लगे <p> </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj86y32ngrpuv2yvUPSGY7aQEgn-r_R6-utQzgI4K56LqKJoxmWzzg4GKSeywdMf2NHRvTGwu60B8yhZOgKWBpjRdzD8GHFPL9C0c_MwjFVQIsJur2G4uxKLvGVP_f8kxZuE5fDJjasb7e5kONTuTrcwYzuWjg7QkRSYMropVryNyPbPQ5XzkpSy8ovAnds/s937/IMG_20240304_163950.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="918" data-original-width="937" height="314" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj86y32ngrpuv2yvUPSGY7aQEgn-r_R6-utQzgI4K56LqKJoxmWzzg4GKSeywdMf2NHRvTGwu60B8yhZOgKWBpjRdzD8GHFPL9C0c_MwjFVQIsJur2G4uxKLvGVP_f8kxZuE5fDJjasb7e5kONTuTrcwYzuWjg7QkRSYMropVryNyPbPQ5XzkpSy8ovAnds/s320/IMG_20240304_163950.jpg" width="320" /></a></div><br /><p></p><p><span style="font-family: Georgia, "Times New Roman", "Bitstream Charter", Times, serif;">आजकल शादी विवाह समारोह चल रहे हैं, आज घर के पीछे स्थित एक धर्मशाला में विवाह समारोह थाऔर जैसा कि आजकल का प्रचलन है वहाँ डी.जे. बज रहा था और शायद उच्चतम ध्वनि में बज रहा था और जैसा कि डी.जे. का प्रभाव होता है वही हो रहा था ,उथल-पुथल मचा रहा था ,मानसिक शांति भंग कर रहा था और आश्चर्य की बात है कि हमारे कमरों के किवाड़ भी हिले जा रहे थे ,हमारे कमरों के किवाड़ जो कि ऐसी दीवारों में लगे हैं जो लगभग दो फुट मोटी हैं और जब हमारे घर की ये हालत थी तो आजकल के डेढ़ ईंट के दीवार वाले घरों की हालत समझी जा सकती है .बहुत मन किया कि जाकर डी.जे. बंद करा दूँ किन्तु किसी की ख़ुशी में भंग डालना न हमारी संस्कृति है न स्वभाव इसलिए तब किसी तरह बर्दाश्त किया किन्तु आगे से ऐसा न हो इसके लिए कानून में हमें मिले अधिकारों की तरफ ध्यान गया .</span></p><div style="font-family: Georgia, "Times New Roman", "Bitstream Charter", Times, serif; line-height: 19px;">भारतीय दंड सहिंता का अध्याय 14 लोक स्वास्थ्य ,क्षेम ,सुविधा ,शिष्टता और सदाचार पर प्रभाव डालने वाले अपराधों के विषय में है और इस तरह से शोर मचाकर जो असुविधा जन सामान्य के लिए उत्पन्न की जाती है वह दंड सहिंता के इसी अध्याय के अंतर्गत अपराध मानी जायेगी और लोक न्यूसेंस के अंतर्गत आएगी .भारतीय दंड सहिंता की धारा 268 कहती है -<br />''वह व्यक्ति लोक न्यूसेंस का दोषी है जो कोई ऐसा कार्य करता है ,या किसी ऐसे अवैध लोप का दोषी है ,जिससे लोक को या जन साधारण को जो आस-पास रहते हों या आस-पास की संपत्ति पर अधिभोग रखते हों ,कोई सामान्य क्षति ,संकट या क्षोभ कारित हो या जिसमे उन व्यक्तियों का ,जिन्हें किसी लोक अधिकार को उपयोग में लाने का मौका पड़े ,क्षति ,बाधा ,संकट या क्षोभ कारित होना अवश्यम्भावी हो .''<br />कोई सामान्य न्यूसेंस इस आधार पर माफ़ी योग्य नहीं है कि उससे कुछ सुविधा या भलाई कारित होती है .<br />इस प्रकार न्यूसेंस या उपताप से आशय ऐसे काम से है जो किसी भी प्रकार की असुविधा ,परेशानी ,खतरा,क्षोभ [खीझ ]उत्पन्न करे या क्षति पहुंचाए .यह कोई काम करने या कोई कार्य न करने के द्वारा भी हो सकता है और धारा 290 भारतीय दंड सहिंता में इसके लिए दंड भी दिया जा सकता है .धारा 290 कहती है -<br />''जो कोई किसी ऐसे मामले में लोक न्यूसेंस करेगा जो इस सहिंता द्वारा अन्यथा दंडनीय नहीं है वह जुर्माने से जो दो सौ रूपये तक का हो सकेगा दण्डित किया जायेगा .''<br />और न केवल दाण्डिक कार्यवाही का विकल्प है बल्कि इसके लिए सिविल कार्यवाही भी हो सकती है क्योंकि यह एक अपकृत्य है और यह पीड़ित पक्ष पर निर्भर है कि वह दाण्डिक कार्यवाही संस्थित करे या क्षतिपूर्ति के लिए सिविल दावा दायर करे .<br />और चूँकि किसी विशिष्ट समय पर रेडियो .लाउडस्पीकर ,डीजे आदि को लोक न्यूसेंस नहीं माना जा सकता इसका मतलब यह नहीं कि इन्हें हमेशा ही इस श्रेणी में नहीं रखा जा सकता .वर्त्तमान में अनेक राज्यों ने अपने पुलिस अधिनियमों में इन यंत्रों से शोर मचाने को एक दंडनीय अपराध माना है क्योंकि यह लोक स्वास्थ्य को दुष्प्रभावित करता है तथा इससे जनसाधारण को क्षोभ या परेशानी उत्पन्न होती है [बम्बई पुलिस अधिनियम 1951 की धाराएं 33, 36 एवं 38 तथा कलकत्ता पुलिस अधिनियम 1866 की धारा 62 क [ड़]आदि ]<br />इसी तरह उ०प्र० पुलिस अधिनयम 1861 की धारा 30[4] में यह उल्लेख है कि वह त्यौहारों और समारोहों के अवसर पर मार्गों में कितना संगीत है उसको भी विनियमित कर सकेगा .<br /><br /></div><div style="font-family: Georgia, "Times New Roman", "Bitstream Charter", Times, serif; line-height: 19px;">''शंकर सिंह बनाम एम्परर ए.आई.आर. 1929 all .201 के अनुसार त्यौहारों और समारोहों के अवसर पर पुलिस को यह सुनिश्चित करने का अधिकार है कि वह संगीत के आवाज़ की तीव्रता को सुनिश्चित करे .त्यौहारों और समारोहों के अवसर पर लोक मार्गों पर गाये गए गाने एवं संगीत की सीमा सुनिश्चित करना पुलिस का अधिकार है .''<br /><br /></div><div style="font-family: Georgia, "Times New Roman", "Bitstream Charter", Times, serif; line-height: 19px;">और यहाँ मार्ग से तात्पर्य सार्वजनिक मार्ग व् स्थान से है जहाँ जनता का जमाव विधिपूर्ण रूप में होता है और इसलिए ऐसे में पुलिस भी इस तरह के समारोहों में इन यंत्रों की ध्वनि तीव्रता का विनियमन कर सकती है .<br /><br /></div><div style="font-family: Georgia, "Times New Roman", "Bitstream Charter", Times, serif; line-height: 19px;"> साथ ही कानून द्वारा मिले हुए इस अधिकार के रहते ऐसे स्थानों की प्रबंध समिति का भी यह दायित्व बन जाता है कि वह जन सुविधा व् स्वास्थ्य को देखते हुए ध्वनि तीव्रता के सम्बन्ध में नियम बनाये अन्यथा वह भी भारतीय दंड सहिंता के अंतर्गत दंड के भागी हो सकते हैं क्योंकि वे प्रबंधक की हैसियत से प्रतिनिधायी दायित्व के अधीन आते हैं .</div><div style="font-family: Georgia, "Times New Roman", "Bitstream Charter", Times, serif; line-height: 19px;"> <br />शालिनी कौशिक </div><div style="font-family: Georgia, "Times New Roman", "Bitstream Charter", Times, serif; line-height: 19px;">एडवोकेट </div><div style="font-family: Georgia, "Times New Roman", "Bitstream Charter", Times, serif; line-height: 19px;">कैराना (शामली) </div>Shalini kaushikhttp://www.blogger.com/profile/10658173994055597441noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-914093468121573002.post-82100204536860808752024-02-19T19:22:00.000-08:002024-02-19T19:23:14.023-08:00दहेज कुप्रथा से बेटी को बचाने में सरकार और कानून असफल <p> <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi4KKT9QRD6N2fN45M2alLGmECKlYjd12eHmKcYHX4IiaD6EinxSQTBEN4QIC6xLtcYTvdSBq_5uJixV6LAQhBT4Xt4jEwXm2VnNhBI7gPLbkSGq7APhPHe0znVkVKdH-0WpHAdQBAJ54pfbDR7qZn82Zj7S6gkqMv0_YRQtwlFBR6WFFYFQQuDhSU-cBN6/s1080/IMG_20240218_162945.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em; text-align: center;"><img border="0" data-original-height="736" data-original-width="1080" height="218" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi4KKT9QRD6N2fN45M2alLGmECKlYjd12eHmKcYHX4IiaD6EinxSQTBEN4QIC6xLtcYTvdSBq_5uJixV6LAQhBT4Xt4jEwXm2VnNhBI7gPLbkSGq7APhPHe0znVkVKdH-0WpHAdQBAJ54pfbDR7qZn82Zj7S6gkqMv0_YRQtwlFBR6WFFYFQQuDhSU-cBN6/s320/IMG_20240218_162945.jpg" width="320" /></a></p><br /><p>आजकल रोज समाचारपत्रों में महिलाओं की मौत के समाचार सुर्खियों में हैं जिनमे से 90 प्रतिशत समाचार दहेज हत्याओं के हैं. जहां एक ओर सरकार द्वारा महिला सशक्तिकरण के लिए गाँव और तहसील स्तर पर "मिशन शक्ति" कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा महिलाओं को उनके कानूनी अधिकारों की जानकारी न्यायाधीशों और अधिवक्ताओं द्वारा मुफ्त में उपलब्ध करायी जा रही है, सरकारी आदेशों के मुताबिक परिवार न्यायालयों में महिला के पक्ष को ही ज्यादा मह्त्व दिया जाता है वहीं सामाजिक रूप से महिला अभी भी कमजोर ही कही जाएगी क्योंकि बेटी के विवाह में दिए जाने वाली "दहेज की कुरीति" पर नियंत्रण लगाने में सरकार और कानून दोनों ही अक्षम रहे हैं. </p><p> एक ऐसा जीवन जिसमे निरंतर कंटीले पथ पर चलना और वो भी नंगे पैर सोचिये कितना कठिन होगा पर बेटी ऐसे ही जीवन के साथ इस धरती पर आती है .बहुत कम ही माँ-बाप के मुख ऐसे होते होंगे जो ''बेटी पैदा हुई है ,या लक्ष्मी घर आई है ''सुनकर खिल उठते हों .</p><p> 'पैदा हुई है बेटी खबर माँ-बाप ने सुनी ,</p><p> उम्मीदों का बवंडर उसी पल में थम गया .''</p><p>बचपन से लेकर बड़े हों तक बेटी को अपना घर शायद ही कभी अपना लगता हो क्योंकि बात बात में उसे ''पराया धन ''व् ''दूसरे घर जाएगी तो क्या ऐसे लच्छन [लक्षण ]लेकर जाएगी ''जैसी उक्तियों से संबोधित कर उसके उत्साह को ठंडा कर दिया जाता है .ऐसा नहीं है कि उसे माँ-बाप के घर में खुशियाँ नहीं मिलती ,मिलती हैं ,बहुत मिलती हैं किन्तु ''पराया धन '' या ''माँ-बाप पर बौझ '' ऐसे कटाक्ष हैं जो उसके कोमल मन को तार तार कर देते हैं .ऐसे में जिंदगी गुज़ारते गुज़ारते जब एक बेटी का ससुराल में पदार्पण होता है तब उसके जीवन में उस दौर की शुरुआत होती है जिसे हम अग्नि-परीक्षा कह सकते हैं</p><p> इस तरह माँ-बाप के घर नाजुक कली से फूल बनकर पली-बढ़ी बेटी को ससुराल में आकर घोर यातना को सहना पड़ता है. दहेज निषेध अधिनियम, 1961 के अनुसार दहेज लेने, देने या इसके लेन-देन में सहयोग करने पर 5 वर्ष की कैद और 15,000 रुपए के जुर्माने का प्रावधान है। दहेज के लिए उत्पीड़न करने पर भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए जो कि पति और उसके रिश्तेदारों द्वारा सम्पत्ति अथवा कीमती वस्तुओं के लिए अवैधानिक मांग के मामले से संबंधित है, के अन्तर्गत 3 साल की कैद और जुर्माना हो सकता है। धारा 406 के अन्तर्गत लड़की के पति और ससुराल वालों के लिए 3 साल की कैद अथवा जुर्माना या दोनों, यदि वे लड़की के स्त्रीधन को उसे सौंपने से मना करते हैं।</p><p> यदि किसी लड़की की विवाह के सात साल के भीतर असामान्य परिस्थितियों में मौत होती है और यह साबित कर दिया जाता है कि मौत से पहले उसे दहेज के लिए प्रताड़ित किया जाता था, तो भारतीय दंड संहिता की धारा 304-बी के अन्तर्गत लड़की के पति और रिश्तेदारों को कम से कम सात वर्ष से लेकर आजीवन कारावास की सजा हो सकती है।</p><p> दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961 की धारा-3 के अनुसार - </p><p> दहेज लेने या देने का अपराध करने वाले को कम से कम पाँच वर्ष के कारावास साथ में कम से कम पन्द्रह हजार रूपये या उतनी राशि जितनी कीमत उपहार की हो, इनमें से जो भी ज्यादा हो, के जुर्माने की सजा दी जा सकती है लेकिन शादी के समय वर या वधू को जो उपहार दिया जाएगा और उसे नियमानुसार सूची में अंकित किया जाएगा वह दहेज की परिभाषा से बाहर होगा।</p><p>धारा 4 के अनुसार - </p><p>दहेज की मांग के लिए जुर्माना-</p><p> यदि किसी पक्षकार के माता पिता, अभिभावक या रिश्तेदार प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से दहेज की मांग करते हैं तो उन्हें कम से कम छः मास और अधिकतम दो वर्षों के कारावास की सजा और दस हजार रूपये तक जुर्माना हो सकता है।</p><p> हमारा दहेज़ कानून दहेज़ के लेन-देन को अपराध घोषित करता है किन्तु न तो वह दहेज़ का लेना रोक सकता है न ही देना क्योंकि हमारी सामाजिक परम्पराएँ हमारे कानूनों पर आज भी हावी हैं .स्वयं की बेटी को दहेज़ की बलिवेदी पर चढाने वाले माँ-बाप भी अपने बेटे के विवाह में दहेज़ के लिए झोले लटकाए घूमते हैं, किन्तु जिस तरह दहेज़ के भूखे भेड़ियों की निंदा की जाती है उस तरह दहेज के दानी कर्णधारों की आलोचना क्यूँ नहीं की जाती है. </p><p> जब हमारे कानून ने दहेज के लेन और देन दोनों को अपराध घोषित किया है तो जब भी कोई दहेज हत्या का केस कोर्ट में दायर किया जाता है तो बेटी के सास ससुर के साथ साथ बेटी के माता पिता पर केस क्यूँ नहीं चलाया जाता है. हमारे समाज में बेटी की शादी किया जाना जरूरी है किन्तु क्या बेटी की शादी का मतलब उसे इस दुष्ट संसार में अकेले छोड़ देना है. बेटी के सास ससुर बहू को अपने बेटे के लिए ब्याह कर अपने घर लाते हैं वे उसे पैदा थोड़े ही करते हैं किन्तु जो माँ बाप उसे पैदा करते हैं वे उसे कैसे ससुराल में दुख सहन करने के लिए अकेला छोड़ देते हैं. आज तक कितने ही मामले ऐसे सामने आए हैं जिनमें दहेज के लोभी ससुराल वालों से तंग आकर बहू ने ससुराल में आत्महत्या कर ली और उस आत्महत्या की जिम्मेवारी भी ससुरालवालों पर डालकर केवल उन्हीं पर केस दर्ज किया गया और न्यायालयों द्वारा उन्हें ही सजा सुनाई गई जबकि ससुराल में बहुओं द्वारा आत्महत्या का एक पक्ष यह भी है कि जब मायके वालों ने भी साथ देने से हाथ खड़े कर दिए तो उस बहू /बेटी के आगे अपनी जिंदगी के ख़त्म करने के अलावा कोई रास्ता न बचने पर उसने आत्महत्या जैसे खौफनाक कदम को उठाने का फैसला किया और ऐसे में जितने दोषी ससुराल वाले होते हैं उतने ही दोषी बहू/बेटी के मायके वाले भी होते हैं किन्तु वे बेचारे ही बने रहते हैं. </p><p> बेटी को उसके ससुराल में खुश दिखाने का दिखावा स्वयं बेटी पर कितना भारी पड़ सकता है इसका अंदाजा हमारे समाज में निश दिन आने वाली दहेज हत्या या बहू द्वारा आत्महत्याओं की खबरें हैं. जिन पर रोक लगाने के लिए सरकार और कानून से भी आगे बेटी के माँ बाप को ही आना होगा और उन्हें यह समझना होगा कि बेटी की शादी जरूरी है किन्तु उसका साथ छोड़ना जरूरी नहीं है. यदि ससुराल वाले बेटी को दहेज के लिए प्रताडित करते हैं, तंग करते हैं तो अपनी बेटी को अपने घर वापस लाकर जिंदगी दीजिए और तब कानून की शरण में जाकर उसे न्याय दिलाईये, यह नहीं कि पहले ससुराल वालों की प्रताड़ना से बचाने के लिए उनकी गलत मांगों को पूरा करते रहें और फिर उनके द्वारा बेटी की हत्या कर दिए जाने पर उन्हें सजा दिलाएं और मृत पुत्री को न्याय क्योंकि मृत्यु के बाद जब शरीर से आत्मा मुक्त हो जाती है तो बेटी को दुख में अकेले छोड़ देना पुत्री के माता पिता के भी पाप में ही आता है और जब तक बेटी को अपने माता पिता का ऐसा मजबूत साथ नहीं मिल जाता है तब तक बेटी का जीवन बचाने में वास्तव में सरकार और कानून भी असफल ही नजर आता है. </p><p> शालिनी कौशिक</p><p> एडवोकेट </p><p> कैराना (शामली) </p><p> </p><p> </p><p> </p>Shalini kaushikhttp://www.blogger.com/profile/10658173994055597441noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-914093468121573002.post-75195992969354349882023-10-08T05:25:00.002-07:002023-10-08T05:25:55.984-07:00UP वालों को योगी सरकार द्वारा फ्री मिलेगी कानूनी सहायता<p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiDDBuNYCjKIQgNZs66ScDFXL9NxLdYBFOAPRm3KSDkvGgOhMEnI-jUXPorkAJK7965FVJgrhyrn1PuHFHaptWNCnjhVbNP7CGrx2xdP849N1pO1YsFdCDOd5JDCyKcJ7i8kBk306T-ZqlpmSKqJUjvuW_YG4m7GzWgtjNXr9LEF5Yw_Xeyc8sWOUv-xrPB/s1200/c5bb6e00d8f60e4b1f53a41282aa5665.webp" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="900" data-original-width="1200" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiDDBuNYCjKIQgNZs66ScDFXL9NxLdYBFOAPRm3KSDkvGgOhMEnI-jUXPorkAJK7965FVJgrhyrn1PuHFHaptWNCnjhVbNP7CGrx2xdP849N1pO1YsFdCDOd5JDCyKcJ7i8kBk306T-ZqlpmSKqJUjvuW_YG4m7GzWgtjNXr9LEF5Yw_Xeyc8sWOUv-xrPB/s320/c5bb6e00d8f60e4b1f53a41282aa5665.webp" width="320" /></a></div><span style="background-color: white; color: #212529; font-family: "Georgia Pro", Georgia, "Droid Serif", serif; font-size: 20px;"><p><span style="background-color: white; color: #212529; font-family: "Georgia Pro", Georgia, "Droid Serif", serif; font-size: 20px;"><br /></span></p>योगी सरकार ने प्रदेश की जनता को फ्री कानूनी सहायता देने और छोटे-छोटे विवादों को समझौते के आधार पर निपटाने के लिए उत्तर प्रदेश राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के तहत दो वर्ष के लिए कानूनी सहायता रक्षा परामर्श प्रणाली (एलएडीसीएस) को लागू किया है।</span><p></p><div class="article-summary" style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #212529; font-family: "Georgia Pro", Georgia, "Droid Serif", serif; font-size: 16px;"><span style="box-sizing: border-box; font-size: 20px;">योगी सरकार ने प्रदेश की जनता को इसका अधिक से अधिक लाभ उठाने की अपील की है ताकि आपराधिक मामलों में सार्वजनिक रक्षक प्रणाली की तर्ज पर आम जन को कानूनी सहायता प्रदान की जा सके। एलएडीसीएस प्रणाली में चीफ, डिप्टी एवं असिस्टेंट काउंसिल की सेवाओं के माध्यम से आम जन को कानूनी सहायता प्रदान की जाएगी।</span></div><div class="article-summary" style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #212529; font-family: "Georgia Pro", Georgia, "Droid Serif", serif; font-size: 16px;"><span style="box-sizing: border-box; font-size: 20px;">समाज के कमजोर वर्ग को मिलेगी फ्री कानूनी सेवाएं-</span></div><div class="article-summary" style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #212529; font-family: "Georgia Pro", Georgia, "Droid Serif", serif; font-size: 16px;"><span style="box-sizing: border-box; font-size: 20px;"><br /></span></div><div class="article-summary" style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #212529; font-family: "Georgia Pro", Georgia, "Droid Serif", serif; font-size: 16px;"><span style="box-sizing: border-box; font-size: 20px;">योगी सरकार का एलएडीसीएस का लागू करने का उद्देश्य समाज के कमजोर और निर्बल वर्गों को प्रभावी और कुशल कानूनी सेवाएं प्रदान करने के लिए न्यायालय आधारित कानूनी सेवाओं को मजबूत करना है।</span></div><div class="article-summary" style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #212529; font-family: "Georgia Pro", Georgia, "Droid Serif", serif; font-size: 16px;"><span style="box-sizing: border-box; font-size: 20px;">साथ ही पात्र व्यक्तियों को आपराधिक मामलों में गुणात्मक और सक्षम कानूनी सेवाएं प्रदान करेगा। इसका लाभ अनुसूचित जाति और जनजाति के सदस्य उठा सकते हैं। किसी व्यक्ति द्वारा किए जा रहे अवैध व्यापार से पीड़ित इसका सीधा लाभ ले सकेगा।</span></div><div class="article-summary" style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #212529; font-family: "Georgia Pro", Georgia, "Droid Serif", serif; font-size: 16px;"><span style="box-sizing: border-box; font-size: 20px;"><br /></span></div><div class="article-summary" style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #212529; font-family: "Georgia Pro", Georgia, "Droid Serif", serif; font-size: 16px;"><span style="box-sizing: border-box; font-size: 20px;">आपको बताते हैं कि किसको मिलेगा एलएडीसीएस का लाभ-</span></div><div class="article-summary" style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #212529; font-family: "Georgia Pro", Georgia, "Droid Serif", serif; font-size: 16px;"><span style="box-sizing: border-box; font-size: 20px;">प्रदेश की पीड़ित की महिलाओं, बेटियां और बच्चे।</span></div><div class="article-summary" style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #212529; font-family: "Georgia Pro", Georgia, "Droid Serif", serif; font-size: 16px;"><span style="box-sizing: border-box; font-size: 20px;"><br /></span></div><div class="article-summary" style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #212529; font-family: "Georgia Pro", Georgia, "Droid Serif", serif; font-size: 16px;"><span style="box-sizing: border-box; font-size: 20px;">दृष्टिहीनता, कुष्ठ रोग, बहरेपन, दिमागी कमजोरी आदि निर्योग्यता से ग्रस्त व्यक्ति एवं खानाबादोश व्यक्ति ।</span></div><div class="article-summary" style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #212529; font-family: "Georgia Pro", Georgia, "Droid Serif", serif; font-size: 16px;"><span style="box-sizing: border-box; font-size: 20px;"><br /></span></div><div class="article-summary" style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #212529; font-family: "Georgia Pro", Georgia, "Droid Serif", serif; font-size: 16px;"><span style="box-sizing: border-box; font-size: 20px;">सामूहिक आपदा, जातीय हिंसा, वर्गीय अत्याचार, बाढ़, अकाल, भूकम्प अथवा औद्योगिक आपदा से पीड़ित व्यक्ति।</span></div><div class="article-summary" style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #212529; font-family: "Georgia Pro", Georgia, "Droid Serif", serif; font-size: 16px;"><span style="box-sizing: border-box; font-size: 20px;"><br /></span></div><div class="article-summary" style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #212529; font-family: "Georgia Pro", Georgia, "Droid Serif", serif; font-size: 16px;"><span style="box-sizing: border-box; font-size: 20px;">औद्योगिक कामगार।</span></div><div class="article-summary" style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #212529; font-family: "Georgia Pro", Georgia, "Droid Serif", serif; font-size: 16px;"><span style="box-sizing: border-box; font-size: 20px;">किशोर अपचारी अर्थात 18 वर्ष तक की आयु के बालक।</span></div><div class="article-summary" style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #212529; font-family: "Georgia Pro", Georgia, "Droid Serif", serif; font-size: 16px;"><span style="box-sizing: border-box; font-size: 20px;"><br /></span></div><div class="article-summary" style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #212529; font-family: "Georgia Pro", Georgia, "Droid Serif", serif; font-size: 16px;"><span style="box-sizing: border-box; font-size: 20px;">अभिरक्षा में निरुद्ध व्यक्ति।</span></div><div class="article-summary" style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #212529; font-family: "Georgia Pro", Georgia, "Droid Serif", serif; font-size: 16px;"><span style="box-sizing: border-box; font-size: 20px;"><br /></span></div><div class="article-summary" style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #212529; font-family: "Georgia Pro", Georgia, "Droid Serif", serif; font-size: 16px;"><span style="box-sizing: border-box; font-size: 20px;">सुरक्षा गृह, मानसिक अस्पताल अथवा नर्सिंग होम में भर्ती मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति।</span></div><div class="article-summary" style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #212529; font-family: "Georgia Pro", Georgia, "Droid Serif", serif; font-size: 16px;"><span style="box-sizing: border-box; font-size: 20px;"><br /></span></div><div class="article-summary" style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #212529; font-family: "Georgia Pro", Georgia, "Droid Serif", serif; font-size: 16px;"><span style="box-sizing: border-box; font-size: 20px;">ऐसा व्यक्ति जिसकी वार्षिक आय ₹3,00,000/- से कम हो।</span></div><div class="article-summary" style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #212529; font-family: "Georgia Pro", Georgia, "Droid Serif", serif; font-size: 16px;"><span style="box-sizing: border-box; font-size: 20px;">एलएडीसीएस के तहत मिलने वाले लाभ-</span></div><div class="article-summary" style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #212529; font-family: "Georgia Pro", Georgia, "Droid Serif", serif; font-size: 16px;"><span style="box-sizing: border-box; font-size: 20px;"><br /></span></div><div class="article-summary" style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #212529; font-family: "Georgia Pro", Georgia, "Droid Serif", serif; font-size: 16px;"><span style="box-sizing: border-box; font-size: 20px;">एलएडीसीएस मुख्यतः जिले अथवा मुख्यालय में आपराधिक मामलों में विशेष रूप से कानूनी सहायता प्रदान करने का कार्य करता है। सभी सत्र न्यायालयों, विशेष न्यायालयों, मजिस्ट्रेट न्यायालयों तथा कार्यकारी न्यायालयों में सभी विविध कार्यों सहित प्रतिनिधित्व, परीक्षण और अपील कर सकेंगे।</span></div><div class="article-summary" style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #212529; font-family: "Georgia Pro", Georgia, "Droid Serif", serif; font-size: 16px;"><span style="box-sizing: border-box; font-size: 20px;"><br /></span></div><div class="article-summary" style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #212529; font-family: "Georgia Pro", Georgia, "Droid Serif", serif; font-size: 16px;"><span style="box-sizing: border-box; font-size: 20px;">जिला न्यायालय/कार्यालय में उपस्थित होने वाले व्यक्तियों को उनकी प्रतिरक्षा के लिए कानूनी सलाह और सहायता प्रदान करना।</span></div><div class="article-summary" style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #212529; font-family: "Georgia Pro", Georgia, "Droid Serif", serif; font-size: 16px;"><span style="box-sizing: border-box; font-size: 20px;">नालसा स्कीम के तहत गिरफ्तारी से पूर्व अवस्था में कानूनी सहायता प्रदान करना।</span></div><div class="article-summary" style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #212529; font-family: "Georgia Pro", Georgia, "Droid Serif", serif; font-size: 16px;"><span style="box-sizing: border-box; font-size: 20px;"><span style="color: #303030;">फौजदारी मामलों में गिरफ्तारी पश्चात् रिमांड स्तर पर, जमानत, विचारण तथा अपील दाखिल करने के लिए।</span></span></div><div class="article-summary" style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #212529; font-family: "Georgia Pro", Georgia, "Droid Serif", serif; font-size: 16px;"><span style="box-sizing: border-box; font-size: 20px;"><span style="color: #303030;"><br /></span></span></div><div class="article-summary" style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #212529; font-family: "Georgia Pro", Georgia, "Droid Serif", serif; font-size: 16px;"><span style="box-sizing: border-box; font-size: 20px;"><span style="color: #303030;">प्रस्तुति </span></span></div><div class="article-summary" style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #212529; font-family: "Georgia Pro", Georgia, "Droid Serif", serif; font-size: 16px;"><span style="box-sizing: border-box; font-size: 20px;"><span style="color: #303030;">शालिनी कौशिक </span></span></div><div class="article-summary" style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #212529; font-family: "Georgia Pro", Georgia, "Droid Serif", serif; font-size: 16px;"><span style="box-sizing: border-box; font-size: 20px;"><span style="color: #303030;">एडवोकेट </span></span></div><div class="article-summary" style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #212529; font-family: "Georgia Pro", Georgia, "Droid Serif", serif; font-size: 16px;"><span style="box-sizing: border-box; font-size: 20px;"><span style="color: #303030;">कैराना (शामली) </span></span></div><div class="article-summary" style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #212529; font-family: "Georgia Pro", Georgia, "Droid Serif", serif; font-size: 16px;"><span style="box-sizing: border-box; font-size: 20px;"><br /></span></div><div class="article-summary" style="background-color: white; box-sizing: border-box; color: #212529; font-family: "Georgia Pro", Georgia, "Droid Serif", serif; font-size: 16px;"><span style="box-sizing: border-box; font-size: 20px;"><br /></span></div>Shalini kaushikhttp://www.blogger.com/profile/10658173994055597441noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-914093468121573002.post-41285570022000198512023-09-23T04:45:00.003-07:002023-09-23T22:23:13.161-07:00शिव किशोर गौड़ एडवोकेट - कुशल नेतृत्व - उज्ज्वल भविष्य बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश <p> </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg49eLBTK1cEQs0tKZpd6kBHLBno3P5v28PjymnO5TqASXV81hrbu0Mbw5KCF_ph-tNShE7HaENpN2c8SC3Y4VGTTbQ9cUQk8dnyrdNP5SJ7XeZ4zlWuEKlpsL543TxFNuxP7zptH10G6U2l14-k7EudDtw1uFPwkXXV_NZj_KVpEEiD-iyebMPkQapMJCe/s425/IMG-20230820-WA0024.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="425" data-original-width="281" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg49eLBTK1cEQs0tKZpd6kBHLBno3P5v28PjymnO5TqASXV81hrbu0Mbw5KCF_ph-tNShE7HaENpN2c8SC3Y4VGTTbQ9cUQk8dnyrdNP5SJ7XeZ4zlWuEKlpsL543TxFNuxP7zptH10G6U2l14-k7EudDtw1uFPwkXXV_NZj_KVpEEiD-iyebMPkQapMJCe/s320/IMG-20230820-WA0024.jpg" width="212" /></a></div><br /><p></p><p> पूरे भारत में मार्च 2023 तक, भारत में अधिवक्ताओं/वकीलों की संख्या 1.5 मिलियन (15 लाख) से अधिक होने का अनुमान है, जिसमें लगभग एक लाख अधिवक्ता बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश से सम्बद्ध हैं. एक औसत बुद्धि का व्यक्ति भी अनुमान लगा सकता है कि इतनी विशाल संस्था के सर्वोच्च पद पर आसीन पदाधिकारी पर अधिवक्ताओं के हितों को संरक्षित करने की कितनी महती जिम्मेदारी है. पूरे प्रदेश में एक भी अधिवक्ता के साथ कुछ गलत घटित होने पर जितनी तत्परता के साथ वर्तमान में बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश के चेयरमैन पद पर आसीन श्री शिव किशोर गौड़ जी द्वारा संज्ञान में लेकर कार्यवाही की जा रही है, वह उल्लेखनीय है। </p><p> हापुड़ में पुलिस महकमे द्वारा निर्दोष अधिवक्ताओं पर किए गए बर्बरता पूर्ण हमले पर भी श्री शिव किशोर गौड़ जी द्वारा सख्त रूख अपनाकर प्रदेश व्यापी हड़ताल का आह्वान किया गया और पूरे प्रदेश के अधिवक्ताओं ने बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश के आह्वान को धरातल पर मजबूती प्रदान की। इसका ही परिणाम था कि प्रदेश सरकार को झुककर बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश के चेयरमैन श्री शिव किशोर गौड़ जी को वार्ता के लिए ससम्मान आमंत्रित किया गया और अधिवक्ताओं की सभी मांगों को स्वीकार करना पड़ा। सफल वार्ता के पश्चात दोषी पुलिस अधिकारियों को निलंबित व स्थानांतरित किया गया और कुछ दिन पश्चात ही उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट लागू करने के लिए एक समिति गठित कर दी गई। यह यदि संभव हुआ तो केवल हमारे संघर्षशील नेतृत्व के कारण। </p><p> यही नहीं, 2015 में बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा अधिवक्ताओं के वकालत से प्रमाणिक रूप से जुड़े रहने के प्रमाण के लिए सर्टिफिकेट ऑफ प्रेक्टिस की शुरुआत की गई. जिससे अधिवक्ताओं को जो आरंभ से आज तक अपने प्रदेश की बार काउंसिल में रजिस्ट्रेशन कराकर वक़ालत करते रहते थे, उन्हें भविष्य में आगे प्रेक्टिस करने के लिए सर्टिफिकेट ऑफ प्रेक्टिस की जरूरत होने लगी. सबसे पहले अधिवक्ताओं को सर्टिफिकेट ऑफ प्रेक्टिस 2018 से प्रदान किए गए, जिनका रि-इश्यू का कार्य सितंबर 2022 से आरम्भ कर दिया गया, जिसमें अधिवक्ताओं द्वारा वक़ालत नामों की आवश्यकता और 500 रुपये की फीस को लेकर सवाल खड़े किए गए, जिसे देखते हुए बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा रि-इश्यू का कार्य स्थगित कर अपने हाथों में लिया गया और लगभग साल भर बीतने के बाद भी 1983 से पूर्व के अधिवक्ताओं को वक़ालत नामों की आवश्यकता से छूट देकर फीस 500 रुपये ही रखी गई, इधर अगस्त 2023 में बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश के चेयरमैन पद पर नियुक्त हुए श्री शिव किशोर गौड़ एडवोकेट जी और उन्होंने बार काउंसिल ऑफ इंडिया के 500 रुपये फीस के निर्देश और बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश के सम्भावित आर्थिक नुकसान को तरजीह न देते हुए अधिवक्ताओं की आर्थिक समस्या को तरजीह दी और आते ही सर्टिफिकेट ऑफ प्रेक्टिस के रि-इश्यू की फीस आधी कर दी 250 रुपये. </p><p> वर्तमान में चेयरमैन पद पर सर्वाधिक 15 सदस्यों की वोट से चयनित शिव किशोर गौड़ एडवोकेट जी अपनी व्यवहार कुशलता और अधिवक्ताओं के हित में निरन्तर लगे रहने के कारण एक सर्वप्रिय बार काउंसिल सदस्य के रूप में स्थान बनाए हुए हैं. 2017 में बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश के सदस्य के रूप में निर्वाचित श्री शिव किशोर गौड़ एडवोकेट जी अब तक बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश में सह अध्यक्ष और सदस्य सचिव रहे हैं. 1990 से अधिवक्ता के रूप में पंजीकृत शिव किशोर गौड़ एडवोकेट पहली बार बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश के सदस्य बने और अपने पहले ही कार्यकाल में शिव किशोर गौड़ एडवोकेट ने शामली, मेरठ, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर के अधिवक्ताओं के 60 से ऊपर अधिवक्ताओं के रजिस्ट्रेशन, 200 से अधिक अधिवक्ताओं को सर्टिफिकेट ऑफ प्रेक्टिस, कई अधिवक्ताओं का अन्य राज्यों से उत्तर प्रदेश में स्थानांतरण कार्य, कई अधिवक्ताओं के डेथ क्लेम का कार्य अपने विशेष प्रतिनिधि द्वारा जानकारी प्राप्त होने पर उनके अपने क्षेत्र में बैठे बैठे ही संपादित कराया है और प्रयाग राज में कार्यरत बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश को 800 किलोमीटर दूर शामली जिले तक सुलभ बना दिया है. </p><p> आज आवश्यकता है कि हम सब ऐसे कुशल व अधिवक्ताओं के हितों को समर्पित व्यक्तित्व श्री शिव किशोर गौड़ जी के हाथ मजबूत करें। कुशल नेतृत्व ही हम अधिवक्ताओं के न केवल वर्तमान बल्कि भविष्य को भी सुदृढ़ करता है।</p><p>द्वारा </p><p>शालिनी कौशिक </p><p>एडवोकेट </p><p>विशेष प्रतिनिधि, शामली </p><p>श्री शिव किशोर गौड़ एडवोकेट </p><p>चेयरमैन, </p><p>बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश </p><p><br /></p>Shalini kaushikhttp://www.blogger.com/profile/10658173994055597441noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-914093468121573002.post-84892195299753760782023-08-30T03:01:00.002-07:002023-08-30T03:01:39.601-07:00यू पी में अधिवक्ता खतरे में <div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjol1S8uV4N8mbnlym0bnRBXvrToifORVrvgxwjtxMA-9y-ti5sltzOmE79YgmyANzv5TkW9jolwRWhBO4Y0Uho1pbO7n5kB4Zq2bvnevTHhReJhLtYgWihDGW1hER5YQf0u9rKZ5gMKxCMBuU3qJ_nIKvArRepEp4XT1E8asgxpX6aPa4AoWspslC1g3hT/s1080/IMG_20230830_153142.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="662" data-original-width="1080" height="196" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjol1S8uV4N8mbnlym0bnRBXvrToifORVrvgxwjtxMA-9y-ti5sltzOmE79YgmyANzv5TkW9jolwRWhBO4Y0Uho1pbO7n5kB4Zq2bvnevTHhReJhLtYgWihDGW1hER5YQf0u9rKZ5gMKxCMBuU3qJ_nIKvArRepEp4XT1E8asgxpX6aPa4AoWspslC1g3hT/s320/IMG_20230830_153142.jpg" width="320" /></a></div><br /><p><br /></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><span style="text-align: left;">हापुड़ में प्रियंका त्यागी एडवोकेट के साथ पुलिस प्रशासन द्वारा बदसलूकी और उसके बाद हापुड़ बार एसोसिएशन के अधिवक्ताओं के शांति पूर्ण धरने पर सी ओ हापुड़ द्वारा बर्बरता पूर्वक लाठी चार्ज करना, साथ ही, महिला अधिवक्ताओं को भी लाठी चार्ज के घेरे में लेना जिसमें दो दर्जन से अधिक अधिवक्ताओं का गम्भीर रूप से घायल होना, इसे लेकर पूरे यू पी के अधिवक्ताओं की कलमबंद हड़ताल और ठीक हड़ताल के दिन हापुड़ से सटे हुए गाजियाबाद में 35 वर्षीय अधिवक्ता मोनू चौधरी की गोली मारकर हत्या उत्तर प्रदेश में अधिवक्ताओं की असुरक्षित स्थिति दिखाने के लिए पर्याप्त है और अधिवक्ता सुरक्षा कानून की जरूरत की पुरजोर वक़ालत कर रही है. </span></div><p> वकीलों की सुरक्षा के लिए बार काउंसिल ऑफ इंडिया प्रतिबद्ध है और इसीलिए अधिवक्ता सुरक्षा कानून के ड्राफ़्ट को बीसीआई ने मंजूरी दे दी थी . बीसीआई ने इस ऐक्ट का प्रारूप तैयार कर सभी राज्यों की बार काउंसिल को भेजा था और उनसे सुझाव और संशोधन के लिए राय मांगी थी और फिर बिना किसी संशोधन के ही ऐक्ट के मसौदे को मंजूरी दे दी गयी. एडवोकेट प्रोटेक्शन बिल की रूपरेखा और ड्राफ़्ट बार काउंसिल ऑफ इंडिया की सात सदस्यीय कमेटी ने तैयार किया और इसकी 16 धाराओं में वकील तथा उसके परिवार के सदस्यों को किसी प्रकार की क्षति और चोट पहुंचाने की धमकी देना, किसी भी सूचना को जबरन उजागर करने का दबाव देना, पुलिस अथवा किसी अन्य पदाधिकारी से दबाव दिलवाना, वकीलों को किसी केस में पैरवी करने से रोकना, वकील की संपत्ति को नुकसान पहुंचाना, किसी वकील के खिलाफ अपमानजनक शब्द का इस्तेमाल करना जैसे कार्यों को अपराध की श्रेणी में रखा गया और ये सभी अपराध गैर जमानती अपराध रखने का प्रावधान किया गया. ऐसे अपराध के लिए 6 माह से 5 वर्ष की सजा के साथ साथ दस लाख रुपये जुर्माना लगाने का भी प्रावधान रखा गया जिसके लिए पुलिस को 30 दिनों के भीतर अनुसंधान पूरा किया जाना जरूरी किया गया , जिसकी सुनवाई जिला एवं सत्र न्यायाधीश /अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश करेंगे. वकील को सुरक्षा के लिए हाई कोर्ट में आवेदन देने का प्रावधान और हाई कोर्ट वकील के आचरण सहित अन्य तथ्यों की जांच कर जरूरत पड़ने पर स्टेट बार काउंसिल तथा बीसीआई से जानकारी लेकर सुरक्षा देने के बारे में आदेश जारी करने का प्रावधान रखा गया लेकिन किसी केस में अभियुक्त वकील पर यह कानून लागू नहीं होगा यह भी निश्चित किया गय. </p><p> आज तक भी एडवोकेट प्रोटेक्शन ऐक्ट लागू नहीं किये जाने का खामियाजा उत्तर प्रदेश के अधिवक्ताओं को लगातार भुगतना पड़ रहा है और ऐक्ट के न होने के नकारात्मक असर वकीलों को नजर आते जा रहे हैं. लगातार ऐक्ट लागू किए जाने की मांग उत्तर प्रदेश में तहसील बार एसोसिएशन से लेकर बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश द्वारा की जा रही है, किंतु उत्तर प्रदेश सरकार के कानों पर जूँ तक नहीं रेंग रही है. अब लगातार हो रही अधिवक्ताओं की हत्या को देखते हुए यही सवाल उठ रहा है कि क्या वेस्ट यू पी में हाई कोर्ट खंडपीठ की तरह ही अधिवक्ताओं की सुरक्षा को भी ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है? </p><p> उत्तर प्रदेश के समस्त अधिवक्ताओं की ओर से विनम्र निवेदन है कि उत्तर प्रदेश सरकार तुरंत एडवोकेट प्रोटेक्शन ऐक्ट के लागू किए जाने के लिए कदम उठाए. </p><div> </div><div>शालिनी कौशिक </div><div>एडवोकेट</div><div>कैराना (शामली) </div><div><br /></div>Shalini kaushikhttp://www.blogger.com/profile/10658173994055597441noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-914093468121573002.post-53201488426778185092023-08-27T04:22:00.008-07:002023-08-27T07:35:29.729-07:00पाकिस्तान लौटेगी सीमा हैदर <p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjIgNRbqq-Ckcxsv8GmGR6wYF8n9_opL3u5J32uDr3n6n6BPncoxgnu9VSGg8_7l7816KjOU4tWvyELEFRZJoaneujgVah_OR8Ihos0-_nQjETf0LlC8mrhDmg33ZOdOv9lG5LNOImbHtbl1uhVPUDZI895hYOOfI5_HbOfyTj9WXPLkW7E90nG9857zbu2/s225/images%20(8)%20(3).jpeg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="225" data-original-width="225" height="225" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjIgNRbqq-Ckcxsv8GmGR6wYF8n9_opL3u5J32uDr3n6n6BPncoxgnu9VSGg8_7l7816KjOU4tWvyELEFRZJoaneujgVah_OR8Ihos0-_nQjETf0LlC8mrhDmg33ZOdOv9lG5LNOImbHtbl1uhVPUDZI895hYOOfI5_HbOfyTj9WXPLkW7E90nG9857zbu2/s1600/images%20(8)%20(3).jpeg" width="225" /></a></div><br /><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><div class="separator" style="clear: both;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both;"> सीमा हैदर (पाकिस्तान की नागरिक) आजकल भारत में चर्चाओं में टॉप टेन में शामिल हैं और यही नहीं इस चर्चित चेहरे का फायदा उठाकर स्वयं को टॉप रैंकिंग में लाने के लिए भारतीय मीडिया भी काफी हाथ-पैर मार रहा है. पाकिस्तान के मुस्लिम समुदाय की सीमा हैदर अपने चार बच्चों के साथ तीन देशों - पाकिस्तान, नेपाल और भारत के बार्डर को अवैध रूप से पार कर भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले के रघुपुरा में अवैध रूप से रह रही है और अब वह भारत के नागरिक सचिन की पत्नी के तौर पर भारत की नागरिकता हासिल करने के लिए आगे बढ़ गई है और यही भारतीय नागरिकता हासिल करने के लिए बढ़ाया गया सीमा हैदर का कदम उसकी भारत में अवैध उपस्थिति का भंडाफोड़ कर गया है. </div><div class="separator" style="clear: both;">भारत में नागरिकता अधिनियम-1955 द्वारा भारतीय नागरिकता प्राप्ति के लिए कुछ नियम बनाए गए हैं जो इस प्रकार हैं - </div><div class="separator" style="clear: both;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both;"> पंजीकरण द्वारा नागरिकता </div><div class="separator" style="clear: both;">केन्द्रीय सरकार, आवेदन किये जाने पर, नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 5 के तहत किसी व्यक्ति (एक गैर क़ानूनी अप्रवासी न होने पर) को भारत के नागरिक के रूप में पंजीकृत कर सकती है यदि वह निम्न में से किसी एक श्रेणी के अंतर्गत आता है:--</div><div class="separator" style="clear: both;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both;">भारतीय मूल का एक व्यक्ति जो पंजीकरण के लिए आवेदन करने से पहले सात साल के लिए भारत का निवासी हो;</div><div class="separator" style="clear: both;">भारतीय मूल का एक व्यक्ति जो अविभाजित भारत के बाहर किसी भी देश या स्थान में साधारण निवासी हो;</div><div class="separator" style="clear: both;">एक व्यक्ति जिसने भारत के एक नागरिक से विवाह किया है और पंजीकरण के लिए आवेदन करने से पहले सात साल के लिए भारत का साधारण निवासी है;</div><div class="separator" style="clear: both;">उन व्यक्तियों के अवयस्क बच्चे जो भारत के नागरिक हैं;</div><div class="separator" style="clear: both;">पूर्ण आयु और क्षमता से युक्त एक व्यक्ति जिसके माता पिता सात साल से भारत में रहने के कारण भारत के नागरिक के रूप में पंजीकृत हैं।</div><div class="separator" style="clear: both;">पूर्ण आयु और क्षमता से युक्त एक व्यक्ति, या उसका कोई एक अभिभावक, पहले स्वतंत्र भारत का नागरिक था और पंजीकरण के लिए आवेदन देने से पहले एक साल से वह भारत में रह रहा है।</div><div class="separator" style="clear: both;">पूर्ण आयु और क्षमता से युक्त एक व्यक्ति जो सात सालों के लिए भारत के एक विदेशी नागरिक के रूप में पंजीकृत है और पंजीकरण के लिए आवेदन देने से पहले वह एक साल से भारत में रह रहा है।. </div><div class="separator" style="clear: both;"> जिसके अनुसार, सीमा हैदर का गैर कानूनी अप्रवासी होना उसकी भारतीय नागरिकता प्राप्ति की सर्वप्रथम बाधा है, उसके पश्चात यदि वह यह कहती है कि वह भारत के नागरिक की पत्नी है तब भी वह भारत की नागरिकता प्राप्त नहीं कर सकती है क्योंकि ऐसे में पंजीकरण के लिए आवेदन करने से पूर्व उसे सात साल के लिए भारत का साधारण निवासी होना चाहिए था और वह अभी दो माह से ही भारत में रह रही हैं इसलिए इस नियम के अंतर्गत भी उसे भारतीय नागरिकता प्राप्त नहीं हो सकती है. </div><div class="separator" style="clear: both;"> सीमा हैदर का भारत में तीन तीन बॉर्डर लाँघकर आना, चार बच्चों को लेकर आना, पांचवी पास होना, मीडिया के प्रश्नों का बेहिचक ज़वाब देना, हिन्दू धर्म की मान्यताओं का बहुत बढ़चढ़कर दिखावा करना, इसरो के चंद्रमा पर पहुंचने को लेकर व्रत रखना, जय श्री राम के नारे लगाना आदि बहुत कुछ है जो उसे संदिग्धों की श्रेणी में रखता है और उसकी भारत में मौजूदगी को लेकर भारतीय जनमानस में रोष भरता है. ऐसे में भारतीय कानून के अनुसार और भारत में उसकी संदिग्ध उपस्थिति को देखते हुए उसे अभिरक्षा में लेकर उसके चारों बच्चों के साथ उसे वापस पाकिस्तानी सरकार के हवाले कर दिया जाना चाहिए.</div><div class="separator" style="clear: both;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both;">शालिनी कौशिक</div><div class="separator" style="clear: both;"> एडवोकेट </div><div class="separator" style="clear: both;">कैराना (शामली)</div></div>Shalini kaushikhttp://www.blogger.com/profile/10658173994055597441noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-914093468121573002.post-43502218260313837972023-08-24T04:47:00.005-07:002024-02-27T19:34:07.461-08:00अधिवक्ता हित सर्वोपरि मानते हैं बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश के चेयरमैन श्री शिव किशोर गौड़ एडवोकेट <p> </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjG1DJ9-yzFvRSwI7Mb_bGOk880mfSWHrMpioSc6O9dQb5LQxKxA8H58PwByR3XQ2Hk1soA1t-uSqYJ4Xfl8Tan3ThNN50O6hSiSEHjqibsQ7-XHngL6OHy_z3b4j12FXY9PXh2MKLmBow0_NNGQIubaqfyoalH7WwAGqWaww4qrUeGQSaDysnxvx6CexdS/s425/IMG-20230820-WA0024.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="425" data-original-width="281" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjG1DJ9-yzFvRSwI7Mb_bGOk880mfSWHrMpioSc6O9dQb5LQxKxA8H58PwByR3XQ2Hk1soA1t-uSqYJ4Xfl8Tan3ThNN50O6hSiSEHjqibsQ7-XHngL6OHy_z3b4j12FXY9PXh2MKLmBow0_NNGQIubaqfyoalH7WwAGqWaww4qrUeGQSaDysnxvx6CexdS/s320/IMG-20230820-WA0024.jpg" width="212" /></a></div><br /><p></p><p> माननीय श्री शिव किशोर गौड़ एडवोकेट जी संघर्षों का दूसरा नाम हैं. शिव किशोर गौड़ एडवोकेट जी जब कक्षा 6 में थे तब शिव किशोर गौड़ एडवोकेट जी ने मजदूरी की, कक्षा 7 में घर पर क्राकरी का काम किया, हॉकरी भी की और तब उन्हें इस कार्य के लिए 140/-रुपये मिलते थे. शिव किशोर गौड़ एडवोकेट जी ने 1977-78 में इन्टर किया और उसके बाद ट्यूशन करने शुरू किए. 1990 में शिव किशोर गौड़ एडवोकेट जी ने वक़ालत पास की, 2000 मे पहली बार क्षेत्र पंचायत का चुनाव लड़ा और ब्लॉक अध्यक्ष चुने गए. 2005 मे जिला पंचायत सदस्य चुने गए. 2006-07 में समाजवादी पार्टी के विधान सभा अध्यक्ष रहे. 2008 में खुर्जा बार एसोसिएशन के जनरल सेक्रेटरी रहे. 2009-10 में समाजवादी पार्टी की अधिवक्ता सभा के जिला सचिव रहे. 2012 से 2017 तक समाजवादी पार्टी के विधान सभा के जिला अध्यक्ष रहे. 2018 में बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश के सदस्य चुने गए और 1 साल 2020-21 में सचिव और तीसरी बार सह अध्यक्ष चुने गए.</p><p> इतने कड़े संघर्षों के साथ माननीय श्री शिव किशोर गौड़ एडवोकेट जी अपने जीवन के सिद्धांतो पर अडिग खड़े रहे और 20 अगस्त 2023 को यह गौड़ सर की श्रेष्ठता ही कही जाएगी कि बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश में पश्चिमी यू पी का प्रतिनिधित्व 25 सदस्यों मे मात्र 3 अधिवक्ताओं का होने पर भी उन्हें प्रथम बार की सदस्यता मे ही बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश के चेयरमैन पद के लिए सदस्यों द्वारा चयनित किया गया है. यह पश्चिमी यू पी के लिए बहुत गौरव का क्षण है कि अधिवक्ताओं की सबसे बड़ी संस्था बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश में खुर्जा के अधिवक्ता श्री शिव किशोर गौड़ एडवोकेट चेयरमैन पद पर नियुक्त हुए हैं.</p><p> संघर्षों से भरे हुए माननीय श्री शिव किशोर गौड़ एडवोकेट जी के जीवन के बारे में जब मैंने सर से गहराई से जानना चाहा तो अपने जीवन के संघर्षों के बारे में बताते बताते श्री शिव किशोर गौड़ एडवोकेट जी काफी भावुक हो गए और कहने लगे कि आपको तो हमने उपरी उपरी बातेँ ही बताई हैं अगर पूरी गहराई से हम बताएं तो आप रो देंगी. सर कहने लगे कि हमने बहुत संघर्ष देखे हैं और इसीलिये हमें किसी का भी दर्द अपना ही लगता है और इसीलिए हम हर किसी की मदद के लिए हमेशा तैयार रहते हैं और आज अगर मैं कुछ हूं तो यह परम पिता परमात्मा की ही कृपा है. </p><p> और यह सच्चाई है क्योंकि मैंने जब सर का नम्बर ढूंढ़कर उनसे अपने COP नम्बर के लिए सहायता मांगी थी तो सर ने मुझसे मेरा फॉर्म भेजने के लिए कहा और जिस किसी का भी फॉर्म मैंने सर को दिया है सर ने उसका काम कराया है और यही नहीं सर ने कभी भी फॉर्म में निश्चित रकम से ऊपर एक भी पैसा नहीं लिया है क्योंकि जब मैं सर को अपना फॉर्म देने मुजफ्फरनगर गई तो वहां सर के बेटे उत्कर्ष गौड़ एडवोकेट मिले और मेरा ड्राफ़्ट तैयार नहीं था तो मैं उन्हें 500 /- रुपये के ड्राफ़्ट के लिए ऊपर से पैसे देने लगी तो उन्होंने एकदम कहा कि पापा गुस्सा होंगे. 31 जनवरी 2020 को मैंने सर को पहले फॉर्म के रूप में अपना फॉर्म दिया था COP नम्बर के लिए और आज अगस्त 2023 में स्थिति यह है कि सर शामली जिले के 170 अधिवक्ताओं को COP नम्बर और 60 अधिवक्ताओं के रजिस्ट्रेशन नंबर बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश से जारी करा चुके हैं. जबसे गौड़ सर ने शामली जिले के अधिवक्ताओं के सहयोग की जिम्मेदारी अपने कँधों पर उठाई है, शामली जिले के अधिवक्ताओं का ना तो बार काउंसिल में रजिस्ट्रेशन की कोई परेशानी रह गई है और न ही COP नम्बर प्राप्त करने में कोई परेशानी रह गई है.</p><p> और यह गौड़ सर की अधिवक्ताओं की समस्या निदान करने की भावना ही कही जाएगी कि सर ने बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश के चेयरमैन पद को सम्भालते ही 2018 में सबसे पहले COP नम्बर प्राप्त अधिवक्ताओं के COP नम्बर रि-इश्यू की फीस 500 रुपये से घटाकर 250 रुपये कर दी है जिसमें सर्वप्रथम बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश को बहुत बड़े आर्थिक नुकसान की समस्या सामने आई किन्तु सर अपने निर्णय से नहीं डगमगाये और उन्होंने अधिवक्ताओं का हित हो ऊपर रखा. सर का कहना था कि - "जिसने मेरे लिए एक बार भी कोई कार्य कर दिया है उसका एहसान मैं जिंदगी भर याद रखता हूं और उसके साथ खड़ा रहता हूं." </p><p> ऐसे हैं हम सभी के आदरणीय श्री शिव किशोर गौड़ एडवोकेट जी और शायद ऐसे व्यक्तित्व के लिए ही कहा गया है -</p><p>"हौ<span style="color: #0f172a; font-family: Inter, sans-serif; font-size: 16px;">सलों को जोड़कर पंख बना लेते हैं लोग,</span></p><p><span style="color: #0f172a; font-family: Inter, sans-serif; font-size: 16px;">उड़ने के लिए लिए सपने सजा लेते हैं लोग,</span></p><p><span style="color: #0f172a; font-family: Inter, sans-serif; font-size: 16px;">अगर हाथों में कामयाबी की लकीरें न हों,</span></p><p><span style="color: #0f172a; font-family: Inter, sans-serif; font-size: 16px;">तपाकर खुद को कुंदन बना लेते हैं लोग।" </span></p><p>शालिनी कौशिक एडवोकेट</p><p>विशेष प्रतिनिधि, शामली</p><p>माननीय श्री शिव किशोर गौड़ एडवोकेट, चेयरमैन, बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश</p>Shalini kaushikhttp://www.blogger.com/profile/10658173994055597441noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-914093468121573002.post-13240336009005298082023-03-25T02:54:00.001-07:002023-03-25T02:54:28.716-07:00Lawyer - Advocate (Difference) <div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh-NhcNNfidfsTewO-e4CIXOspSFQq_a_An3VLS61owPh9oHZUZ7favg5vhyoWuEWkYsSNz8Xyi5w_ZW87iNBt5lFcOs-EgZcqbUBWzcbLtbDecOkL8Ps-DVb0t5XRbuzIr3sfJ75ef5TgjB4KNWGhAuw-EwE_kM5PZz9CzBfjpcWjDDDFv6lJ0ANPKiA/s2168/Photo%20Collage%20Maker_Sjm6nY.png" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="2168" data-original-width="2168" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh-NhcNNfidfsTewO-e4CIXOspSFQq_a_An3VLS61owPh9oHZUZ7favg5vhyoWuEWkYsSNz8Xyi5w_ZW87iNBt5lFcOs-EgZcqbUBWzcbLtbDecOkL8Ps-DVb0t5XRbuzIr3sfJ75ef5TgjB4KNWGhAuw-EwE_kM5PZz9CzBfjpcWjDDDFv6lJ0ANPKiA/w320-h320/Photo%20Collage%20Maker_Sjm6nY.png" width="320" /></a></div><p> Lawyer और एडवोकेट या अधिवक्ता या अभिभाषक या वकील को आम जनता एक ही समझती है किन्तु सत्य कुछ अलग है - </p><p> Lawyer और एडवोकेट दोनों को ही कानून की जानकारी होती है। Lawyer शब्द का उपयोग जनरल नेचर में होता है। यह उन लोगों के लिए इस्तेमाल होता है, जिसने कानून की पढ़ाई की हो। अगर इसे सीधे शब्दों में कहें तो Lawyer वो हो सकता है, जिसने एलएलबी (LLB) यानी कानून की पढ़ाई की हो। हालांकि, ये जरूरी नहीं कि कोई भी कानून पढ़ चुका हुआ व्यक्ति एडवोकेट हो। पर किसी भी व्यक्ति को लीगल एडवाइज देने का काम Lawyer कर सकता है, लेकिन वह किसी व्यक्ति के लिए कोर्ट में केस नहीं लड़ सकता है।</p><p> अगर बात करें एडवोकेट की तो एडवोकेट को Lawyer से अलग कहा जाता सकता है। यह शब्द उन लोगों के लिए प्रयोग किया जाता है, जो कानून की पढ़ाई करने के बाद किसी दूसरे व्यक्ति के लिए कोर्ट में अपनी दलील दे सकते हैं। जैसे हम कोई केस के लिए वकील के पास जाते हैं, और वो कोर्ट में हमारे लिए दलील देता है या केस लड़ता है, वो एडवोकेट होता है। बता दें कि हर Lawyer एडवोकेट हो यह ऐसा जरूरी नहीं है। लेकिन हर ए़डवोकेट Lawyer होता है।</p><p> अगर कोई कानून पढ़ाई करने के बाद दूसरों के लिए केस नहीं लड़ता है तो वो Lawyer कहा जाता है। वहीं,अगर व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के लिए केस लड़ता है तो वह एडवोकेट बोला जाता है। यह प्रोफेशनल होता है। एडवोकेट बनने के लिए Lawyer को बार काउंसिल में रजिस्ट्रेशन करवाना होता है और बार के एग्जाम पास करने होते हैं, जिसके बाद वो एडवोकेट बन सकता है।</p><p> अब आते हैं एडवोकेट - अधिवक्ता - अभिभाषक - वकील पर तो ये सब एक ही होते हैं -</p><p> अधिवक्ता, अभिभाषक या वकील (एडवोकेट advocate) के अनेक अर्थ हैं, परंतु हिंदी में ऐसे व्यक्ति से है जिसको न्यायालय में किसी अन्य व्यक्ति की ओर से उसके हेतु या वाद का प्रतिपादन करने का अधिकार प्राप्त हो। अधिवक्ता किसी दूसरे व्यक्ति के स्थान पर (या उसकी तरफ से) दलील प्रस्तुत करता है।</p><p>प्रस्तुति </p><p>शालिनी कौशिक </p><p> एडवोकेट </p><p>कैराना (शामली) </p>Shalini kaushikhttp://www.blogger.com/profile/10658173994055597441noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-914093468121573002.post-8438052627523789032023-03-18T01:50:00.005-07:002023-03-19T01:29:55.094-07:00लोक अदालत का आज की न्याय व्यवस्था में स्थान <div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh_aE5NQbGP5tebd-lxh3AHjeWcoxNchtHy27dzFxdP36ffx8WSglvjd6J4fk_zJv-8rT0gHz5r5hfNDu7xOGsPF1_zBCMdTVaEzsQ6GZmGJl52WVfy0sizKtXs6XpMSEWD-ywtLfAVRzyl0mNVeOxLPiGe_WX7XKnwEJJZf9JbLVfiCVQx0i6Rrce05w/s459/images%20(8)%20(13).jpeg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="285" data-original-width="459" height="199" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh_aE5NQbGP5tebd-lxh3AHjeWcoxNchtHy27dzFxdP36ffx8WSglvjd6J4fk_zJv-8rT0gHz5r5hfNDu7xOGsPF1_zBCMdTVaEzsQ6GZmGJl52WVfy0sizKtXs6XpMSEWD-ywtLfAVRzyl0mNVeOxLPiGe_WX7XKnwEJJZf9JbLVfiCVQx0i6Rrce05w/s320/images%20(8)%20(13).jpeg" width="320" /></a></div><br /><p><br /></p><p> राजस्थान हाइकोर्ट द्वारा अपने निर्णय </p><p> "श्याम बच्चन बनाम राजस्थान राज्य एस.बी. आपराधिक रिट याचिका नंबर 365/2023" में यह स्पष्ट किया गया है कि लोक अदालतों के फैसले पक्षकारों की आपसी सहमति पर ही दिए जा सकते हैं. </p><p> राजस्थान हाईकोर्ट ने माना कि लोक अदालतों के पास कोई न्यायनिर्णय शक्ति नहीं है और केवल पक्षकारों के बीच समझौते के आधार पर अवार्ड दे सकती है।</p><p>अदालत के सामने यह सवाल उठाया गया कि क्या विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के अध्याय VI के तहत लोक अदालतों के पास न्यायिक शक्ति है या केवल पक्षकारों के बीच आम सहमति पर निर्णय पारित करने की आवश्यकता है।</p><p>अदालत ने कहा,</p><p>"उपर्युक्त प्रावधानों का एकमात्र अवलोकन यह स्पष्ट करता है कि जब न्यायालय के समक्ष लंबित मामला (जैसा कि वर्तमान मामले में) को लोक अदालत में भेजा जाता है तो उसके पक्षकारों को संदर्भ के लिए सहमत होना चाहिए। यदि कोई एक पक्ष केवल इस तरह के संदर्भ के लिए न्यायालय में आवेदन करता है तो दूसरे पक्ष के पास न्यायालय द्वारा निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए पहले से ही सुनवाई का अवसर होना चाहिए कि मामला लोक अदालत में भेजने के लिए उपयुक्त है।</p><p>पक्षकारों के बीच समझौता होने पर ही अधिनिर्णय दिया जा सकता है और यदि पक्षकार किसी समझौते पर नहीं पहुंचते हैं तो लोक अदालत अधिनियम की धारा 20 की उप-धारा (6) के तहत मामले को न्यायालय के समक्ष वापस भेजने के लिए बाध्य है।"</p><p>इस प्रकार यह माना जा सकता है कि लोक अदालतों के पास कोई न्यायिक शक्ति नहीं है किन्तु जो शक्ति लोक अदालत अपने पास रखती है वह बेहद महत्वपूर्ण है. पक्षकारों की आपसी सहमति पर आधारित लोक अदालतों के निर्णय एक डिक्री की तरह होते हैं और यही कारण है कि लोक अदालतों के निर्णय के खिलाफ कोई अपील किसी भी अन्य न्यायालय में पेश नहीं की जा सकती है. </p><p> उत्तर प्रदेश राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण निःशुल्क कानूनी सहायता के क्षेत्र में प्रयासरत है. लोक अदालतों को निःशुल्क कानूनी सहायता का एक बहुत ही सशक्त माध्यम कहा जा सकता है. जिसमें अदालतों द्वारा विवादग्रस्त मामलों को पक्षकारों की आपसी सहमति से निबटा कर मुकदमों के बोझ को तो हल्का किया ही जा रहा है साथ ही, पक्षकारों पर न्याय प्राप्ति के लिए महंगी पड़ रही न्याय व्यवस्था को भी सस्ता करने का प्रयास किया जा रहा है. अदालतों में लम्बित मुकदमों की भरमार को देखते हुए लोक अदालतों की संख्या में बढ़ोतरी की जा रही है और उनमें न केवल पहले से ही दायर मुकदमे वरन ऐसे सभी विवाद भी जो अभी न्यायालय के समक्ष नहीं आए हैं, प्री लिटिगेशन के आधार पर निबटाने के प्रयास जारी हैं और इसी को देखते हुए विशेष लोक अदालतों का आयोजन भी किया जा रहा है जिनमे चेक बाउंस, बैंक वसूली, नगरपालिका के संपत्ति कर आदि मामले निबटाये जा रहे हैं. </p><p>प्रस्तुति</p><p>शालिनी कौशिक </p><p> एडवोकेट</p><p>रिसोर्स पर्सन </p><p>जिला विधिक सेवा प्राधिकरण </p><p>शामली </p><p><br /></p>Shalini kaushikhttp://www.blogger.com/profile/10658173994055597441noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-914093468121573002.post-60502637325599636482022-08-16T10:04:00.003-07:002022-08-16T10:04:27.625-07:00वसीयत और मरणोपरांत वसीयत <p> </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjgyoMTkIonzwVZIg_B9KE3Gb-UmxsD35J5os5nBU7tWEncCllszHY_8zg8jvzfSHn5Q_7QUwPP07sEbOc8PjdmYTcyKV0luaL7TCpYg3g2MRL8diQ4DLtAODhiK_Oz1mETIaR140Gh_-fa-bB_EaKZl0SPmvcRnsV-Ir1_lqOTypnQ9fP8j06wAPvKcg/s343/download.jpeg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="147" data-original-width="343" height="137" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjgyoMTkIonzwVZIg_B9KE3Gb-UmxsD35J5os5nBU7tWEncCllszHY_8zg8jvzfSHn5Q_7QUwPP07sEbOc8PjdmYTcyKV0luaL7TCpYg3g2MRL8diQ4DLtAODhiK_Oz1mETIaR140Gh_-fa-bB_EaKZl0SPmvcRnsV-Ir1_lqOTypnQ9fP8j06wAPvKcg/s320/download.jpeg" width="320" /></a></div><br /><div><br /></div><br /> वसीयत एक ऐसा अभिलेख जिसके माध्यम से व्यक्ति अपनी मृत्यु के बाद अपनी संपत्ति की व्यवस्था करता है .भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 3 में वसीयत अर्थात इच्छापत्र की परिभाषा इस प्रकार है -<br /> ''वसीयत का अर्थ वसीयतकर्ता का अपनी संपत्ति के सम्बन्ध में अपने अभिप्राय का कानूनी प्रख्यापन है जिसे वह अपनी मृत्यु के पश्चात् लागू किये जाने की इच्छा रखता है .''<br /> वसीयत वह अभिलेख है जिसे आदमी अपने जीवन में कई बार कर सकता है किन्तु वह लागू तभी होती है जब उसे करने वाला आदमी मर जाता है .एक आदमी अपनी संपत्ति की कई बार वसीयत कर सकता है किन्तु जो वसीयत उसके जीवन में सबसे बाद की होती है वही महत्वपूर्ण होती है.<br /> वसीयत का पंजीकरण ज़रूरी नहीं है किन्तु वसीयत की प्रमाणिकता को बढ़ाने के लिए इसका रजिस्ट्रेशन करा लिया जाता है और रजिस्ट्रेशन अधिनियम 1908 की धारा 27 के अनुसार -<br />'' विल एतस्मिन पश्चात् उपबंधित रीति से किसी भी समय रजिस्ट्रीकरण के लिए उपस्थापित या निक्षिप्त की जा सकेगी .''<br /> इच्छापत्र सादे कागज पर लिखा जाता है और इसके लिए स्टाम्प नहीं लगता है क्योंकि ये स्टाम्प से मुक्त होता है किन्तु आजकल स्टाम्प की महत्ता इतनी बढ़ गयी है कि कहीं भी अगर बड़ों के स्थान पर अपना नाम चढ़वाना हो तो वहां स्टाम्प युक्त कागज को ही पक्के सबूत के रूप में लिया जाता है इसलिए सावधानी बरतते हुए वसीयतकर्ता अपने प्रतिनिधियों को आगे की परेशानियों से बचाने के लिए स्टाम्प का ही प्रयोग करते हैं .<br /> वसीयत लागू ही व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात् होती है और इसके लिए एक प्रावधान अधिनियम में ऐसा भी है जिसके जरिये वसीयत वसीयतकर्ता की मृत्यु के पश्चात् भी पंजीकृत कराई जा सकती है .<br /> रजिस्ट्रेशन अधिनियम की धारा 41 के अनुसार इच्छापत्र वसीयतकर्ता की मृत्योपरान्त भी पंजीकृत कराया जा सकता है .धारा 41 के अनुसार -<br />''[1 ] वसीयतकर्ता या दाता द्वारा रजिस्ट्रीकरण करने के लिए उपस्थापित की गयी विल या दत्तकग्रहण प्राधिकार ,किसी भी अन्य दस्तावेज के रजिस्ट्रीकरण की रीति ,को वैसी ही रीति से रजिस्ट्रीकृत किया जायेगा .<br />[2 ] उस विल या दत्तकग्रहण प्राधिकार का ,जो उसे उपस्थापित करने के हक़दार किसी अन्य व्यक्ति द्वारा रजिस्ट्रीकरण के लिए उपस्थापित किया जाये उस दशा में रजिस्ट्रीकरण किया जा सकेगा जिसमे रजिस्ट्रीकर्ता ऑफिसर का समाधान हो जाये कि -<br />[क] विल या प्राधिकार ,यथास्थिति ,वसीयतकर्ता या दाता द्वारा निष्पादित किया गया था ;<br />[ख] वसीयतकर्ता या दाता मर गया है ;तथा<br />[ग] विल या प्राधिकार को उपस्थापित करने वाला व्यक्ति उसे उपस्थापित करने का धारा 40 के अधीन हक़दार है .<br /> और धारा 40 में रजिस्ट्रीकरण अधिनियम कहता है -<br />[1 ] वसीयतकर्ता या उसकी मृत्यु के पश्चात् विल के अधीन निष्पादक के रूप में या अन्यथा दावा करने वाला कोई भी व्यक्ति उसे रजिस्ट्रीकरण के लिए किसी भी रजिस्ट्रार या उपरजिस्ट्रार के समक्ष उपस्थापित कर सकेगा .<br />[2 ] किसी भी दत्तक प्राधिकार का दाता या उसकी मृत्यु के पश्चात् उस प्राधिकार का आदाता या दत्तक पुत्र उसे रजिस्ट्रीकरण के लिए किसी भी रजिस्ट्रार या उपरजिस्ट्रार के समक्ष उपस्थापित कर सकेगा .<br /> और मृत्योपरान्त हुई इस प्रकार पंजीकृत वसीयत के बारे में इलाहाबाद उच्च न्यायालय का कृष्ण कुमार बनाम कोर्ट ऑफ़ डिस्टिक्ट रजिस्ट्रार ,एडिशनल डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट [ऍफ़.एन्ड आर.] रायबरेली 2010 [2 ]जे .सी.एल.आर.612 [इला.] [ल .पी.] <br />''वसीयत के वसीयतकर्ता के विधिक प्रतिनिधिगण किसी वसीयत के पंजीकरण के विरूद्ध उसे मिथ्या तथा जाली होने का अभिकथन करते हुए आपत्ति दाखिल करने के लिए सक्षम नहीं हैं .''<br /> इस प्रकार वसीयत का रजिस्ट्रेशन उसके विरोधियों के मुख बंद कर देता है और जिसके हक़ में वह की जाती है उसे निर्बाध रूप से हक़दार घोषित करता है .बस ध्यान यह रखा जाये कि वसीयत दो गवाहों की उपस्थिति में की गयी हो और उन गवाहों का उस संपत्ति में कोई हित न हो और मृत्योपरांत वसीयत वसीयतकर्ता की मृत्यु के बाद तीन माह के अंदर रजिस्ट्रार के समक्ष प्रस्तुत कर दी गयी हो.<br /> मृत्योपरांत वसीयत का पंजीकरण भी उसके विरोधियों के मुख इसलिए बंद कर देता है क्योंकि जब यह रजिस्ट्रार के समक्ष प्रस्तुत की जाती है तब इसे एक बंद लिफाफे में ही रखा जाता है और वसीयतकर्ता के सभी विधिक प्रतिनिधियों को समन भेजकर आपत्ति दाखिल करने का अवसर दिया जाता है और आपत्ति दाखिल करने का समय समाप्त होने के पश्चात् ही वसीयत रजिस्ट्रीकृत की जाती है .इसलिए वसीयत करें और वसीयतकर्ता व् वसीयत आदाता इन तथ्यों का ध्यान रखें .<br />शालिनी कौशिक<br /> एडवोकेट <br /><br />Shalini kaushikhttp://www.blogger.com/profile/10658173994055597441noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-914093468121573002.post-44989131411087109112022-08-15T10:03:00.002-07:002022-08-15T10:03:24.116-07:00मार पति को और तब भी ले भरण पोषण <p> <img alt="Image result for wife beating her husband" src="https://encrypted-tbn0.gstatic.com/images?q=tbn:ANd9GcTVQXTQiee43cdfTfi40nutGAYMoj5KW5GmmBkojaNcPfhRx30e" /></p><br />पति द्वारा क्रूरता से तो सभी वाकिफ हैं और उसके परिणाम में पति को सजा ही सजा मिलती है किन्तु आनंद में तो पत्नी है जो क्रूरता भी करती है तो भी सजा की भागी नहीं होती उसकी सजा मात्र इतनी कि उसके पति को उससे तलाक मिल सकता है किन्तु नारी-पुरुष समानता के इस युग में पारिवारिक संबंधों के मामले में पुरुष समानता की स्थिति में नहीं है .<br /> 2016 [1 ] D .N .R .[D .O .C .-11 ]17 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 13 के अंतर्गत क्रूरता के आधार पर पति भी अपनी पत्नी से तलाक ले सकता है .<br /> इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उपरोक्त वाद में पत्नी द्वारा पति के विरूद्ध कई दाण्डिक एवं सिविल प्रकरणों का दाखिल किया जाना क्रूरता माना और इस आधार पर पति को पत्नी से तलाक लेने का अधिकारी मानते हुए कहा कि ऐसी क्रूरता के आधार पर तलाक की डिक्री पारित की जा सकती है ,साथ ही यह भी कहा कि ऐसे में यदि तलाक की डिक्री पारित की जाती है तो पति को पत्नी को स्थायी निर्वाह व्यय देना होगा .इस तरह इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने तलाक की डिक्री के विरूद्ध अपील को ख़ारिज किया लेकिन पति को निर्देशित किया कि वह स्थायी निर्वाह व्यय भत्ता के रूप में 35 लाख की रकम जमा करे.<br /> सवाल ये है कि क्या हम इसे न्याय कहेंगे ? पति को जब क्रूरता करने पर कारावास की सजा का प्रावधान है तो पत्नी को क्रूरता करने पर भरण-पोषण की सुविधा क्यों ? क्या वह पत्नी जो पति के साथ क्रूरता करती है वह पत्नी के रूप में न्यायालय से राहत पाने की हक़दार है ? क्या यह स्त्री-पुरुष समानता का कानून है ?<br /> वास्तव में आज कानून की यही दरियादिली कुछ पुरुषों के लिए गले की फ़ांस बन गयी है और उन्हें कानून की इस दरियादिली के आगे झुकते हुए अपनी व् अपने परिजनों की जान बचाने के लिए ऐसी क्रूर स्त्री के आगे सब लुटाना पड़ता है .कानून को ध्यान देना ही होगा .समय बदल रहा है .<br /><br />शालिनी कौशिक<br />एडवोकेट Shalini kaushikhttp://www.blogger.com/profile/10658173994055597441noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-914093468121573002.post-43407948174972637852022-08-10T10:03:00.001-07:002022-08-10T10:03:04.484-07:00महिला और मुस्लिम विधि <p>विधि भारती -शोध पत्रिका में प्रकाशित<br /><br />भारतीय संविधान की राजभाषा हिंदी है और देश में हिंदी भाषी राज्यों या क्षेत्रों की बहुलता है भारत में निम्न राज्य हिंदी भाषी क्षेत्रों में आते हैं -बिहार ,छत्तीसगढ़ ,दिल्ली ,हरियाणा ,हिमाचल प्रदेश ,झारखण्ड ,मध्य-प्रदेश ,राजस्थान ,उत्तर प्रदेश व् उत्तराखंड ,इसी के साथ-साथ भारतीय संविधान का अनुच्छेद १४ सभी नागरिकों को समानता का अधिकार भी देता है जिसके चलते भारत का हर नागरिक समान है ,उसके साथ धार्मिक आधार पर कोई भी भेदभाव नहीं किया जाता है किन्तु भारत के संविधान का यह मौलिक अधिकार सभी धर्मों के व्यक्तिगत मामलों में मौन हैं और इसी लिए धर्मों के अंदरूनी भेदभाव पर इसका कोई प्रभाव नहीं है ,हिन्दू हो या मुस्लिम ,इन धर्मों में व्यक्तिगत रूप से कौनसी जाति को ऊँचा समझा जाता है और कौनसी जाति को नीचे इन पर हमारा संविधान मौन है ,ऐसे ही इन धर्मों में नारी की क्या स्थिति है इस पर भी संविधान का कोई अंकुश नहीं है वह केवल स्वतन्त्र रूप से नारी को अधिकार देकर इन धर्मों के बाहर उसकी स्थिति सुदृढ़ करने की कोशिश कर सकता है धर्मों को यह आदेश नहीं दे सकता कि ये भी उसे निरपेक्ष रूप से बराबर माने और इसी को देखते हुए सरकार द्वारा पुरानी परम्पराओं में ही आज तक उलझे हुए मुस्लिम समाज में निकृष्ट स्तर तक पहुंची महिला की स्थिति को सुधारने के लिए सबसे पहले इस समाज की तीन तलाक की प्रथा पर चोट पहुंचाकर उसकी स्थिति को सँभालने की चेष्टा की जा रही है ,<br /> भारत में ज्यादातर मुस्लिम हनफ़ी या सुन्नी हैं ,इसी के साथ-साथ मुस्लिम कानून की एक और संस्था शिया को मानने वाले मुस्लिम भी भारत में निवास करते हैं ,मुस्लिम शासन काल में इस्लामी कानून ही भारत का कानून था और व्यैक्तिक कानून को छोड़कर इसके सभी प्रावधान जैसे संविदा विधि ,दाण्डिक विधि ,अपकृत्य विधि आदि हिन्दुओं व् मुसलमानों पर एक समान लागू होते थे ,मुग़ल शासन काल में भारत में हनफ़ी इस्लामी विधि लागू रही जो ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के दौरान क्रमशः समाप्त हुई ,यद्यपि इस्लामिक दाण्डिक विधि कुछ आगे तक चली किन्तु 1960 में भारतीय दंड संहिता के अधिनियम के साथ समाप्त हो गयी ,<br /> भारत में मुसलमानो के संपत्ति अधिकार सूचीबद्ध नहीं हैं ,वह मुस्लिम कानून की दो संस्थाओं के तहत आते हैं -हनफ़ी और शिया ,हनफ़ी संस्था केवल उन रिश्तेदारों को वारिस के रूप में मानती है जिनका पुरुष के माध्यम से मृतक से सम्बन्ध होता है ,इसमें बेटे की बेटी ,बेटे का बेटा और माता-पिता आते हैं ,दूसरी ओर शिया संस्था ऐसा कोई भेदभाव नहीं करती इसका मतलब है जिन वारिसों का मृतक से सम्बन्ध महिलाओं के जरिये है ,उन्हें भी अपना लिया जाता है ,ऐसे ही सुन्नी संप्रदाय की मलिकी विचार पद्धति की किताब-अल-मुवता में मलिकी विचारधारा के सिद्धांत मिलते हैं ,इस विचार पद्धति की मुख्य विशेषता यह है कि परिवार के मुखिया की शक्ति स्त्रियों और बच्चों पर अत्यधिक होती है केवल इसी विचार पद्धति के अंतर्गत विवाहिता स्त्री अपनी संपत्ति की निरपेक्ष स्वामिनी नहीं होती है और पति की अनुमति के बिना अपनी संपत्ति का विक्रय दान नहीं कर सकती है किन्तु यह विचार पद्धति भारत में प्रचलित ही नहीं है इसलिए हिंदी भाषी क्षेत्रों की मुस्लिम महिलाओं के अधिकार इससे प्रभावित नहीं होते क्योंकि यह उत्तरी अफ्रीका ,मोरक्को स्पेन में प्रचलित है ,<br /> शिया और सुन्नी विधि दोनों में ही महिलाओं के अधिकार पृथक-पृथक हैं इसका अध्ययन हम निम्न शीर्षकों के अंतर्गत कर सकते हैं -<br />1 -मातृत्व -शिया विधि के अंतर्गत कुवांरी महिला द्वारा उत्पन्न संतान माँ विहीन मानी जाती है परन्तु विवाहित महिला यदि परपुरुषगमन द्वारा संतान उत्पन्न करती है तो वह उस संतान की माँ मानी जाएगी जबकि सुन्नी विधि के अंतर्गत जिस महिला को बच्चा पैदा होता है वह उसकी माँ होती है और कोई संतान माँ विहीन नहीं मानी जाती ,<br />2 -वलायत -सुन्नी विधि के अंतर्गत लड़के की सात वर्ष की आयु पूरी होने और लड़की के व्यस्क होने तक माँ अभिरक्षा की हक़दार होती है जबकि शिया विधि के अंतर्गत लड़के के दो साल का होने और लड़की के सात साल का होने तक माँ उनकी वली रहती है ,<br />3 -वृद्धि [औल ]का सिद्धांत -सुन्नी विधि के अंतर्गत वृद्धि [औल ] का सिद्धांत जिसके बाद यदि हिस्सेदार का कुल योग इकाई से अधिक होता है तो प्रत्येक हिस्सेदारों का अंश कम हो जाता है सभी हिस्सेदारों पर समान रूप से लागू होता है परन्तु शिया विधि के अंतर्गत वृद्धि [औल ] का सिद्धांत केवल पुत्रियों और बहनों के प्रति ही लागू होता है अर्थात यदि हिस्सेदारों का कुल योग इकाई से अधिक होता है तो केवल पुत्रियों व् बहनों का हिस्सा कम होता है ,<br /> मुस्लिम कानून के तहत विरासत के कानून काफी सख्त हैं ,उनकी विचारधारा के मुताबिक महिलाओं को पुरुष से आधी तवज्जो मिलती है इसलिए बेटो को बेटी के हिस्से से दोगना मिलता है लेकिन बेटी को जो भी संपत्ति विरासत में मिलेगी ,उस पर उसका पूर्ण अधिकार होगा ,अगर कोई भाई नहीं है तो उसे आधा हिस्सा मिलेगा और वह अपनी मर्जी से कानूनी तौर पर उसका प्रबंधन ,नियंत्रण और निपटारा कर सकती है ,<br /> वह उन लोगों से भी गिफ्ट्स ले सकती है जिनसे वह संपत्ति हासिल करेगी ,यह विरोधाभासी है क्योंकि वह पुरुष के हिस्से का केवल एक तिहाई हिस्सा पा सकती है लेकिन बावजूद इसके बिना किसी परेशानी के तोहफे ले सकती है ,जब तक बेटी की शादी नहीं होती उसे माता-पिता के घर में रहने और सहायता पाने का अधिकार है लेकिन शादी के बाद की स्थिति भिन्न है ,<br /> मुस्लिम विधि में विवाह एक संस्था है ,यह संस्था मानव सभ्यता का आधार है ,कुरान में लिखा है कि ''हमने पुरुषों को स्त्रियों पर हाकिम [अधिकारी ]बनाकर भेजा है '' दूसरे शब्दों में मुस्लिम विधि में पत्नी की अधीनता स्वीकार की गयी है ,महत्वपूर्ण वाद अब्दुल कदीर बनाम सलीमन [1846 ] 8 इला० 149 में न्यायाधीश महमूद और न्यायाधीश मित्तर ने सबरुन्निशा के वाद में मुस्लिम विवाह को संविदात्मक दायित्व के रूप में बल दिया है और मुस्लिम विवाह को विक्रय संविदा के समान बताया है और यही विक्रय संविदा मुस्लिम विधि में महिला की स्थिति को न्यायाधीश महमूद के शब्दों में कुछ यूँ व्यक्त करती है -<br />''मुस्लिम विधि में मेहर वह धन है अथवा वह संपत्ति है जो पति द्वारा पत्नी को शादी के प्रतिफल के रूप में दिया जाता है अथवा देने का वचन दिया जाता है ,''<br /> इसी प्रकार न्यायाधीश मित्तर ने सबरुन्निशा के मामले में कलकत्ता उच्च न्यायालय का निर्णय देते हुए कहा कि -<br />''मुस्लिम विधि में विवाह विक्रय संविदा के समान एक सिविल संविदा है विक्रय में मूल्य के बदले संपत्ति का अंतरण होता है ,विवाह की संविदा में पत्नी संपत्ति और मेहर मूल्य होता है ,''<br /> इस प्रकार यदि हम एकतरफा रूप से देखें तो इस्लाम में महिला की स्थिति को संपत्ति समान ही पाएंगे किन्तु इसे पूर्ण स्थिति नहीं कहा जा सकता है क्योंकि जैसे कि संविदा में पक्षकारों की स्वतंत्र इच्छा व् सहमति आवश्यक है वैसे ही मुस्लिम विधि में विवाह के पक्षकारों की भी स्वतंत्र इच्छा व् सहमति आवश्यक है और इसलिए यहाँ स्त्री भी स्वतंत्र इच्छा व् सहमति के प्रयोग द्वारा ही विवाह संस्था में प्रवेश का अधिकार रखती है जैसे कि ''हसन बनाम कुट्टी जेनेवा '' में कहा गया कि विवाह में सहमति आवश्यक तत्व है और पिता की अनुमति व्यस्क पुत्री की सहमति नहीं ले सकती ,'' ऐसे ही ''एस मुहीदुद्दीन बनाम खतीजा बाई 1939 ,41 बम्बई लॉ रिपोर्टर 1020 के वाद में एक शाफ़ई [व्यस्क ] लड़की की सहमति के विरुद्ध पिता के द्वारा कार्यान्वित विवाह मान्य नहीं धारण किया गया ,इसी प्रकार ''अहमद उन्निसा बेगम बनाम अकबर शाह ए-आई-आर 1942 पेशावर 42 में कहा गया कि जहाँ विवाह के लिए सहमति न प्राप्त की गयी हो ,स्त्री की इच्छा के विरुद्ध विवाह की पूर्णावस्था विवाह को मान्य नहीं बना देगी ,''<br /></p><div> भारत में बाल विवाह अवरोध अधिनियम 1929 के द्वारा पुरुषों का 21 वर्ष से कम की अवस्था में और स्त्रियों का 18 वर्ष से कम की अवस्था में विवाह अपराध है किन्तु मुस्लिम विधि में उपर्युक्त अधिनियम के किसी प्रावधान का उल्लंघन होने पर भी विवाह शून्य नहीं होता है और विशेष रूप से हिंदी भाषी राज्य उत्तर प्रदेश में इसका खुला उल्लंघन होता है क्योंकि शिया स्त्री के मामले में वयस्कता की आयु मासिक धर्म के साथ साथ शुरू हो जाती है और प्रत्यक्ष साक्ष्य के अभाव में पूर्वधारणा यह होती है कि मासिक धर्म 9 और 10 साल के उम्र में शुरू हो जाता है इसलिए यहाँ संविदा के नियम स्वतंत्र इच्छा व् सहमति का उल्लंघन होता है क्योंकि 9 या 10 साल की लड़की स्वतंत्र इच्छा व् सहमति नहीं रख सकती इसलिए यहाँ पिता की अनुमति से उसका विवाह होता है और इसे मान्य बनाने के लिए वयस्कता का विकल्प रखा गया है किन्तु यहाँ भी मुस्लिम महिला के साथ भेदभाव रखा गया है ,</div><p> मुल्ला ,आप सिट 14 वां संस्करण 1955 p 117 में मुल्ला का यह मत है कि वयस्कता का विकल्प यदि स्त्री द्वारा यौवनावस्था प्राप्त करते ही तुरंत अथवा शादी का ज्ञान न हो सकने की दशा में शादी की सूचना मिलते ही प्रयोग न किया गया तब यह अधिकार समाप्त हो जाता है लेकिन पुरुष के लिए यह अधिकार तब तक रहता है जब तक कि वह प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से विवाह का अनुसमर्थन नहीं कर देता है उदाहरण के लिए सम्भोग द्वारा या मेहर का भुगतान करके ,<br /> धर्म में भिन्नता को लेकर भी मुस्लिम महिला भेदभाव की शिकार है ,वह किसी ऐसे पुरुष से विवाह नहीं कर सकती जो मुसलमान न हो ,चाहे वह किताबी हो या नहीं ,दैवी ग्रन्थ पर आधारित धर्म के अनुयायी पुरुष को 'किताबी 'और स्त्री को 'किताबिया ' कहते हैं जबकि सुन्नी मुसलमान पुरुष गैर मुस्लिम स्त्री से यदि वह किताबिया अर्थात ईसाई या यहूदी हो विवाह कर सकता है ,<br /> अब आते हैं तलाक के मुद्दे पर जो वर्तमान में सर्वाधिक विवाद का विषय है वह है तीन तलाक ,यूँ तलाक कहने का अधिकार मुस्लिम विधि में पुरुष को ही है और मुस्लिम विवाह संविदा है ये तो इन विधिवेत्ताओं की राय से व् न्यायालयों के निर्णयों से स्पष्ट हो चुका है पर मजाक यहाँ ये है कि यहाँ बराबरी की बात कहकर भी बराबरी कहाँ दिखाई गयी है .मुस्लिम विधि में जब निकाह के वक़्त प्रस्ताव व् स्वीकृति को महत्व दिया गया तो तलाक के समय केवल मर्द को ही तलाक कहने का अधिकार क्यों दिया गया .संविदा तो जब करने का अधिकार दोनों का है तो तोड़ने का अधिकार भी तो दोनों को ही मिलना चाहिए था लेकिन इनका तलाक के सम्बन्ध में कानून महिला व् पुरुष में भेद करता है और पुरुषों को अधिकार ज्यादा देता है और ये तीन तलाक जिस कानून के अन्तर्गत दिया जाता है वह है -तलाक -उल-बिद्दत -" तलाक - उल - बिददत को तलाक - उल - बैन के नाम से भी जाना जाता है. यह तलाक का निंदित या पापमय रूप है. विधि की कठोरता से बचने के लिए तलाक की यह अनियमित रीति ओमेदिया लोगों ने हिज्रा की दूसरी शताब्दी में जारी की थी. शाफई और हनफी विधियां तलाक - उल - बिददत को मान्यता देती हैं यघपि वे उसे पापमय समझते हैं. शिया और मलिकी विधियां तलाक के इस रूप को मान्यता ही नहीं देती. तलाक की यह रीति नीचे लिखी बातों की अपेक्षा करती है -<br />1- एक ही तुहर के दौरान किये गये तीन उच्चारण, चाहे ये उच्चारण एक ही वाक्य में हों-"जैसे - मैं तुम्हें तीन बार तलाक देता हूं. " अथवा चाहे ये उच्चारण तीन वाक्यों में हों जैसे -" मैं तुम्हें तलाक देता हूं, मैं तुम्हें तलाक देता हूं, मैं तुम्हें तलाक देता हूं. "<br />2-एक ही तुहर के दौरान किया गया एक ही उच्चारण, जिससे रद्द न हो सकने वाला विवाह विच्छेद का आशय साफ प्रकट हो :जैसे" मैं तुम्हें रद्द न हो सकने वाला तलाक देता हूं."<br /> पति की मृत्यु या तलाक होने पर भी सभी प्रयोजनों के लिए मुस्लिम विवाह का तुरंत विच्छेद नहीं हो जाता विच्छेद हो जाने पर भी वह कुछ प्रयोजनों के लिए इद्दत की अवधि तक प्रभावी रहता है ,''इद्दत ''वह अवधि है जिसमे जिस स्त्री के विवाह का पति की मृत्यु या तलाक द्वारा विच्छेद हो गया हो ,उसे एकांत में रहना और दूसरे पुरुष से विवाह न करना अनिवार्य है ,मुस्लिम विधि में जब कोई विवाह विवाह-विच्छेद या पति की मृत्यु के कारण विघटित हो जाता है तो स्त्री कुछ समय तक पुनः विवाह नहीं कर सकती है ,इस निश्चित समय को ''इद्दत '' कहा जाता है ,इद्दत का उद्देशय यह निश्चित करना होता है कि क्या स्त्री पति से गर्भवती है अथवा नहीं ,जिससे कि मृत्यु अथवा विवाह-विच्छेद के पश्चात् उत्पन्न हुई संतान की पैतृकता में भ्रम न पैदा हो ,साथ ही तलाक के मामले में इद्दत अवधि (करीब तीन महीने) के बाद रखरखाव का शुल्क उसके माता-पिता के पास वापस चला जाता है। लेकिन अगर महिला के बच्चे उसका सपोर्ट करने की स्थिति में हैं तो जिम्मेदारी उन पर आ जाती है।<br /> पति की मृत्यु के मामले में विधवा को (अगर बच्चे हैं) एक आठवां हिस्सा मिलेगा। अगर बच्चे नहीं हैं तो एक चौथाई हिस्सा मिलेगा। वहीं अगर मृतक की एक से ज्यादा पत्नियां हैं तो हिस्सा एक-सोलहवें तक घट सकता है। पत्नी के रूप एक मुस्लिम महिला अपने पति से निर्वाह व्यय प्राप्त करने की अधिकारिणी होती है ,और शादी कायम रहते हुए चाहे मेहर के सम्बन्ध में कोई अनुबंध न भी किया गया हो उसे अपने पति के साथ रहने का अधिकार होता है और अपने अनन्य उपयोग के लिए एक कक्ष का ,उसे निषिद्ध आस्तियों के भीतर के अपने सम्बन्धियों के यहाँ जाने और उनका उसके यहाँ आने का अधिकार होता है इस प्रकार एक मुस्लिम महिला के पत्नी के रूप में निम्न अधिकार हैं -<br />1 -पति की सामर्थ्य को ध्यान में रखते हुए उससे निर्वाह व्यय की प्राप्ति ,यदि पत्नी आज्ञाकारिणी और व्यस्क है तो उसे इस अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता ,भले ही वह अपनी संपत्ति से अपना निर्वाह कर सकती हो ,यह अधिकार उसे तब तक प्राप्त रहता है जब तक कि विवाह-विच्छेद नहीं होता है ,<br />२ -एक से अधिक पत्नियां होने पर सभी से समान व्यवहार तथा पृथक शयन कक्ष ,<br />3 -अपना मेहर प्राप्त करने और भुगतान न किये जाने पर समागम से इंकार का अधिकार ,<br />4 -वर्ष में कम से कम एक बार अपने निषिद्ध आस्तियों के भीतर के सम्बन्धियों के यहाँ जाने और उनके उसके यहाँ आने और उसके माता -पिता और पूर्व पति से उत्पन्न बच्चों के उचित अंतराल से उसके यहाँ आने का अधिकार ,<br />५ -यदि पति उसी मकान में कोई रखैल उसके साथ रखे तो पति के साथ रहने से इंकार करने और ऐसे इंकार के होते हुए निर्वाह की अभ्यर्थना करने का अधिकार ,<br />6 -वह एक कक्ष के उपयोग के लिए ,जिसमे वह अपने पति के अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति को आने न दे ,अधिकृत हो जाती है ,<br /> लेकिन ऐसा नहीं है कि ये अधिकार पत्नी को निर्बाध रूप से प्राप्त हो इन्हें पाने के लिए पत्नी के रूप में उन्हें कुछ कर्तव्यों को भी निभाना होगा जो कि निम्न हैं -<br />1 -उसके लिए दाम्पत्य निष्ठां का दृढ़ता से पालन आवश्यक है ,<br />2 -वह अपने स्वास्थ्य ,शिष्टता और स्थान का ध्यान रखते हुए पति को अपने साथ समागम करने देने के लिए बाध्य है ,<br />3 -वह पति की उचित आज्ञाओं का पालन करने के लिए बाध्य है ,<br />4 -पक्षकारों की सामाजिक स्थिति और स्थानीय प्रथा के अनुसार पर्दा करना पत्नी का कर्तव्य है ,<br />5 -वह मृत्यु या विवाह-विच्छेद होने पर इद्दत का पालन करने के लिए बाध्य है ,<br /> और इन्हें लेकर मुस्लिम विधि का ''तीन तलाक '' मुस्लिम महिलाओं के लिए जीवन में एक नश्तर के समान है ,नाग के काटने के समान है जिसका काटा कभी पानी नहीं मांगता ,साइनाइड जहर के समान है जिसका क्या स्वाद है उसे खाने वाला व्यक्ति कागज पेन्सिल लेकर लिखने की इच्छा लेकर उसे चाहकर भी नहीं लिख पाता,ऐसा विनाशकारी प्रभाव रखने वाला शब्द ''तीन तलाक'' मुस्लिम महिलाओं के जीवन की त्रासदी है .अच्छी खासी चलती शादी-शुदा ज़िन्दगी एक क्षण में तहस-नहस हो जाती है .पति का तलाक-तलाक-तलाक शब्द का उच्चारण पत्नी के सुखी खुशहाल जीवन का अंत कर जाता है और कहीं कोई हाथ मदद को नहीं आ पाता क्योंकि मुस्लिम शरीयत कानून पति को ये इज़ाज़त देता है .कानून का जो मजाक मुस्लिम शरीयत कानून में उड़ाया गया है ऐसा किसी भी अन्य धर्म में नज़र नहीं आता .बराबरी का अधिकार देने की बात कर मुस्लिम धर्म में महिलाओं को निम्नतम स्तर पर उतार दिया गया है .मुस्लिम महिलाओं को मिले हुए मेहर के अधिकार की चर्चा उनके पुरुषों की बराबरी के रूप में की जाती है फिर निकाह के समय '' क़ुबूल है '' भी महिलाओं की ताकत के रूप में वर्णित किया जाता है किन्तु यदि हम गहनता से इन दोनों पहलुओं का विश्लेषण करें तो ये दोनों ही इसे संविदा का रूप दे देते हैं .और मुस्लिम विधि के बड़े बड़े जानकार इस धर्म की विवाह संस्था को संविदा का ही नाम देते हैं .बेली के सार-संग्रह में विवाह की परिभाषा स्त्री-पुरुष के समागम को वैध बनाने और संतान उत्पन्न करने के प्रयोजन के लिए की गयी संविदा के रूप में की गयी है .[BAILLIE : डाइजेस्ट ,पेज ९४.]<br /> आमतौर पर इस सबको ही लेकर लोगों की धारणा यह है कि इस्लाम में महिलाओं को अत्यधिक अत्याचार और शोषण सहना पड़ता है – लेकिन क्या हकीक़त में ऐसा है ? क्या लाखों की तादाद में मुसलमान इतने दमनकारी हैं या फिर ये गलत धारणाएं पक्षपाती मीडिया ने पैदा की हैं ? इस्लाम को लेकर यह गलतफहमी है और फैलाई जाती है कि इस्लाम में औरत को कमतर समझा जाता है। सच्चाई इसके उलट है। हम इस्लाम का अध्ययन करें तो पता चलता है कि इस्लाम ने महिला को चौदह सौ साल पहले वह मुकाम दिया है जो आज के कानून दां भी उसे नहीं दे पाए। इस्लाम लोकतान्त्रिक मज़हब है और इसमें औरतों को बराबरी के जितने अधिकार दिए गए हैं उतने किसी भी धर्म में नहीं हैं।इस्लाम के अलावा कोई ऐसा दीन, धर्म या जीवन दर्शन नहीं है जिसने औरत को उसका पूरा जायज़ अधिकार और न्याय दिया हो और उसके नारित्व की सुरक्षा की हो। इंसानी हैसियत से दायित्वों और कर्तव्यों के मामले में औरत मर्द के बराबर है। माँ की हैसियत ये बताई गयी है कि उसके पैरों तले जन्नत है।<br />1930 में, एनी बेसेंट ने कहा, “ईसाई इंग्लैंड में संपत्ति में महिला के अधिकार को केवल बीस वर्ष पहले ही मान्यता दी गई है, जबकि इस्लाम में हमेशा से इस अधिकार को दिया गया है। यह कहना बेहद गलत है कि इस्लाम उपदेश देता है कि महिलाओं में कोई आत्मा नहीं है ।” (जीवन और मोहम्मद की शिक्षाएं, 1932)<br />डॉक्टर लिसा (अमेरिकी नव मुस्लिम महिला)मैंने तो जिस धर्म (इस्लाम) को स्वीकार किया है वह स्त्री को पुरुष से अधिक अधिकार देता है।<br />डॉक्टर लिसा एक अमेरिकी महिला डॉक्टर हैं, लगभग तीस साल पहले मुसलमान हुई हैं और मुबल्लिगा हैं, यह इस्लाम में महिलाओं के अधिकार के संबंध में लगने वाले आरोपों का दान्दान शिकन जवाब देने के संबंध में काफी प्रसिद्ध हैं।<br />उनके एक व्याख्यान के अंत में उनसे सवाल किया गया कि –<br />“आप ने एक ऐसा धर्म क्यों स्वीकार किया जो औरत को मर्द से कम अधिकार देता है”?<br />*उन्होंने जवाब में कहा कि –<br />“मैंने तो जिस धर्म को स्वीकार किया है वह स्त्री को पुरुष से अधिक अधिकार देता है”,<br />पूछने वाले ने पूछा वो कैसे?<br />डॉक्टर साहिबा ने कहा “सिर्फ दो उदाहरण से समझ लीजिए”,<br />– पहली यह कि “इस्लाम ने मुझे चिंता आजीविका से मुक्त रखा है यह मेरे पति की जिम्मेदारी है कि वह मेरे सारे खर्च पूरे करे”, चिंता आजीविका से बड़ा कोई सांसारिक बोझ नहीं और अल्लाह हम महिलाओं को इससे पूरी तरह से मुक्ति रखा है, शादी से पहले यह हमारे पिता की जिम्मेदारी है और शादी के बाद हमारे पति की।<br />– दूसरा उदाहरण यह है कि “अगर मेरी संपत्ति में निवेश या संपत्ति आदि हो तो इस्लाम कहता है कि यह सिर्फ तुम्हारा है तुम्हारे पति का इसमें कोई हिस्सा नहीं है”,<br />जबकि मेरे पति को इस्लाम कहता है कि “जो आप ने कमा और बचा रखा है यह सिर्फ तुम्हारा बल्कि तुम्हारी पत्नी का भी है अगर आप ने उसका यह हक़ अदा न किया तो मैं तुम्हें देख लूंगा।”<br /> इस्लाम में औरतों को निम्न अधिकार भी दिए गए हैं -<br />1 -इस्लाम में औरतों को संपत्ति का अधिकार -औरत को बेटी के रूप में पिता की जायदाद और बीवी के रूप में पति की जायदाद का हिस्सेदार बनाया गया। यानी उसे साढ़े चौदह सौ साल पहले ही संपत्ति में अधिकार दे दिया गया।<br />2 -औरतों को अपनी पहचान बनाये रखने का सम्मान-इस्लाम ने औरतों को अपनी पहचान बनाये रखने का भी सम्मान किया है इसलिए जब अन्य महज़ब में शादी के बाद नाम बदलने की इज़ाज़त है ,इस्लाम में औरत शादी के बाद भी अपना नाम बरक़रार रख सकती है। उन्होंने कहा कि अगर इसके बाद भी लोग सोचते हैं कि हम लोग अपनी औरतों को दबा कर रखते हैं तो हमें इस पर सोचना चाहिए।<br />3 -तलाक़ (तलाक़े खुला) लेने का अधिकार-इस्लाम के पहले दुखी और कष्टपूर्ण वैवाहिक जीवन को समाप्त करके पति पत्नी के अलग अलग सुखी जीवन जीने का कोई वैज्ञानिक उपाय किसी मज़हब में नहीं था। जहाँ मर्द को बुरी औरत से निजात के लिए तलाक का अधिकार दिया है। वही औरत को भी “खुला” का अधिकार प्रदान किया गया है। जिसका प्रयोग कर वो ग़लत मर्द से छुटकारा पाने का आसान रास्ता दे दिया गया।इसलिए यह कहना गलत है कि इस्लाम में औरतों के साथ बराबरी नहीं है इस्लाम में औरतों को तलाके खुला लेने का अधिकार देकर उसकी स्थिति को मर्द से बराबरी पर लाया गया है ,<br /> 4 -समान पुरस्कार और बराबर जवाबदेही– इस्लाम में आदमी और औरत एक ही अल्लाह को मानते हैं, उसी की इबादत करते हैं, एक ही किताब पर ईमान लाते हैं | अल्लाह सभी इंसानों को एक जैसी कसौटी पर तौलता है वह भेदभाव नहीं करता।<br /> अगर हम दूसरे मज़हबों से इस्लाम की तुलना करेंगे तब हम देखेंगे की इस्लाम दोनों लिंगों के बीच भी न्याय करता है | उदाहरण के लिए इस्लाम इस बात को ख़ारिज करता है कि माँ हव्वा हराम पेड़ से फल तोड़ कर खाने के लिए ज्यादा ज़िम्मेदार हैं बजाय हज़रत आदम के | इस्लाम के मुताबिक माँ हव्वा और हज़रत आदम दोनों ने गुनाह किया | जिसके लिए दोनों को सजा मिली | जब दोनों को अपने किये पर पछतावा हुआ और उन्होंने माफ़ी मांगी, तब दोनों को माफ़ कर दिया गया।<br />5 -तलाकशुदा का विवाह- समाज मे हर व्यक्ति को बिना शादी के नही रहना चाहिए/ अगर तलाक़ हो गयी है तो फ़ौरन अच्छे साथी चुन कर सुखमय जीवन बिताना चाहिए/तलाकशुदा और विधवा महिलाओं को सम्मान देकर पुरुषों को उनसे विवाह करने के लिए प्रेरित किया है , सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम हज़रत मुहम्मद ने ऐसी तलाकशुदा और विधवा महिलाओं से खुद विवाह करके अपने मानने वालों को दिखाया कि देखो मैं कर रहा हूँ , तुम भी करो , मैं सम्मान और हक दे रहा हूँ तुम भी दो , मुसलमानों के लिए विधवा और तलाकशुदा औरतों से विवाह करना हुजूर सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की एक सुन्नत पूरी करना है जो बहुत पुण्य का काम है। <br />6 -वर चुनने का अधिकार-वर चुनने के मामले में इस्लाम ने स्त्री को यह अधिकार दिया है कि वह किसी के विवाह प्रस्ताव को स्वेच्छा से स्वीकार या अस्वीकार कर सकती है। इस्लामी कानून के अनुसार किसी स्त्री का विवाह उसकी स्वीकृति के बिना या उसकी मर्जी के विरुद्ध नहीं किया जा सकता। बीवी के रूप में भी इस्लाम औरत को इज्जत और अच्छा ओहदा देता है। कोई पुरुष कितना अच्छा है, इसका मापदंड इस्लाम ने उसकी पत्नी को बना दिया है। इस्लाम कहता है अच्छा पुरुष वहीं है जो अपनी पत्नी के लिए अच्छा है। यानी इंसान के अच्छे होने का मापदंड उसकी हमसफर है।<br /> 7 - स्वतंत्र बिज़्नेस करने का अधिकार-इस्लाम ने महिलाओं को बहुत से अधिकार दिए हैं। जिनमें प्रमुख हैं, जन्म से लेकर जवानी तक अच्छी परवरिश का हक़, शिक्षा और प्रशिक्षण का अधिकार, शादी ब्याह अपनी व्यक्तिगत सहमति से करने का अधिकार और पति के साथ साझेदारी में या निजी व्यवसाय करने का अधिकार, नौकरी करने का आधिकार, बच्चे जब तक जवान नहीं हो जाते (विशेषकर लड़कियां) और किसी वजह से पति और पुत्र की सम्पत्ति में वारिस होने का अधिकार। इसलिए वो खेती, व्यापार, उद्योग या नौकरी करके आमदनी कर सकती हैं और इस तरह होने वाली आय पर सिर्फ और सिर्फ उस औरत का ही अधिकार होगा। औरत को भी हक़ है। (पति से अलग होना का अधिकार)<br />8 -और माता के रूप में - अगर बच्चे अपने पैरों पर खड़ें हैं तो मुस्लिम माता को उनसे विरासत पाने का हक है। अगर बेटे की मौत हो जाए और उसके बच्चे भी हैं तो मृतक की मां को उसकी संपत्ति का एक-छठवां हिस्सा मिलेगा। लेकिन अगर पोते-पोतियां नहीं हैं तो महिला को एक-तिहाई हिस्सा मिलेगा।<br />9 -मेहर : यह वो पैसा या संपत्ति होती है, जो शादी के वक्त पत्नी अपने पति से पाने की हकदार होती है। मेहर दो तरह की होती हैं-तुरंत और देरी से। पहले मामले में पत्नी को शादी के तुरंत बाद पैसा दे दिया जाता है। जबकि दूसरे में शादी खत्म होने के बाद मिलता है, चाहे वह तलाक के कारण हो या पति की मौत की वजह से।<br />10 -वसीयत: एक मुस्लिम पुरुष या औरत कुल संपत्ति का एक तिहाई हिस्सा ही वसीयत के जरिए दे सकता/सकती है। अगर संपत्ति में कोई वारिस नहीं है तो पत्नी को वसीयत के जरिए ज्यादा राशि मिल सकती है।<br />11 -हिबा: मुस्लिम कानून के तहत किसी भी तरह की संपत्ति को तोहफे के तौर पर दिया जा सकता है। एक गिफ्ट को वैध बनाने के लिए उसे तोहफा बनाने की घोषणा होनी चाहिए और रिसीवर द्वारा उसे स्वीकार किया जाना चाहिए।<br /> इस्लाम के अनुसार मर्द और औरतें दोनों समाज का हिस्सा हैं और दोनों को मिलकर समाज के कल्याण के लिए काम करना है इसलिए संतुष्ट होकर किसी स्थान पर उठना बैठना भी ज़रूरी हो। जब कोई महान उद्देश्य की प्राप्ति मकसद हो या किसी भलाई और नेक काम को अंजाम देने में औरत और मर्द दोनों के संयुक्त संघर्ष और आपसी सहयोग की ज़रूरत हो। लेकिन इस मेल जोल की भी इस्लाम (शरीयत) ने एक सीमा बताई है।<br /> इसके साथ साथ कानून भी अब इनकी स्थिति को लेकर जागरूक है और इनके लिए लाभदायक कुछ प्रावधान कर इनकी वित्तीय व् पारिवारिक स्थिति सुदृढ़ करने के उपाय किये जा रहे हैं -<br /> 1 -वयस्कता के विकल्प के सम्बन्ध में आधुनिक विधि [मुस्लिम विवाह विच्छेद अधिनियम 1939 ] ने वयस्कता के विकल्प की पुरानी विधि को काफी सीमा तक बदल दिया है ,इससे पहले पिता या पितामह द्वारा संविदाकृत विवाह ,अति विशिष्ट परिस्थितियों के सिवा ,वयस्कता प्राप्त कर लेने पर अवयस्क द्वारा अस्वीकृत नहीं किया जा सकता था परन्तु अब यह मुस्लिम विधि के अंतर्गत विवाहिता स्त्री के विषय में सन 1939 के उक्त अधिनियम की धारा 2 [7 ]के द्वारा निरस्त कर दी गयी है ,धारा 2 [7 ] का कथन इस प्रकार है -''मुस्लिम विधि के अंतर्गत विवाहिता कोई स्त्री विवाह-विच्छेद की डिक्री इस आधार पर प्राप्त करने के लिए अधिकृत होगी कि वह अपने पिता या अभिभावक द्वारा पंद्रह वर्ष की आयु प्राप्त करने के पहले विवाह में दिए जाने पर अठारह वर्ष की आयु प्राप्त करने से पहले उसने विवाह को अस्वीकार कर दिया ,बशर्ते कि विवाह पूर्णावस्था को प्राप्त न हुआ हो ,<br />2 - मशहूर शाह बानो केस में सुप्रीम कोर्ट ने तलाक के मामले में कहा था कि मुस्लिम महिला कानून, 1986 (तलाकों के अधिकारों का संरक्षण) के सेक्शन 3 (1एचए) के मुताबिक अलग होने के बाद भी अपनी पूर्व पत्नी की देखभाल करने की जिम्मेदारी पति की है। यह अवधि इद्दत के भी परे है, क्योंकि महिला अपनी संपत्ति और सामान पर नियंत्रण रखती है।<br />3 - इसके साथ ही तीन तलाक रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट प्रतिबद्ध है और उसके निर्देश पर केंद्र सरकार ने भी तीन तलाक रोकने के लिए एक मसौदा तैयार किया है -<br />1-यह मसौदा गृह मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता वाले एक अंतर-मंत्री समूह ने तैयार किया है. इस में अन्य सदस्य विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, वित्त मंत्री अरुण जेटली, विधि मंत्री रविशंकर प्रसाद और विधि राज्यमंत्री पीपी चौधरी थे.<br />2-प्रस्तावित कानून एक बार में तीन तलाक या 'तलाक ए बिद्दत' पर लागू होगा और यह पीड़िता को अपने तथा नाबालिग बच्चों के लिए गुजारा भत्ता मांगने के लिए मजिस्ट्रेट से गुहार लगाने की शक्ति देगा.<br />3-इसके तहत पीड़ित महिला मजिस्ट्रेट से नाबालिग बच्चों के संरक्षण का भी अनुरोध कर सकती है और मजिस्ट्रेट इस मुद्दे पर अंतिम फैसला करेंगे.<br />4-मसौदा कानून के तहत, किसी भी तरह का तीन तलाक (बोलकर, लिखकर या ईमेल, एसएमएस और व्हाट्सएप जैसे इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से) गैरकानूनी होगा.<br />5-मसौदा कानून के अनुसार, एक बार में तीन तलाक गैरकानूनी और शून्य होगा और ऐसा करने वाले पति को तीन साल के कारावास की सजा हो सकती है. यह गैर-जमानती और संज्ञेय अपराध होगा.<br />6-प्रस्तावित कानून जम्मू-कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में लागू होना है.<br />7-तलाक और विवाह का विषय संविधान की समवर्ती सूची में आता है और सरकार आपातकालीन स्थिति में इस पर कानून बनाने में सक्षम है, लेकिन सरकारिया आयोग की सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए सरकार ने राज्यों से सलाह करने का फैसला किया.<br /> इस प्रकार मुस्लिम विधि में महिलाओं की स्थिति उतनी भी बुरी नहीं है जितनी दिखाई जा रही है और जहाँ बुरी स्थिति है वहां सुधार करने की उच्चतम न्यायलय व् हमारी लोकतान्त्रिक सरकार द्वारा कोशिशें की जा रही हैं इसलिए आशा ही नहीं हमें विश्वास है कि मुस्लिम महिलाओं की ज़िंदगी में भी उन्नति का सूर्य जल्द ही उदित होगा और हाँ यह भी ज़रूरी है कि इसके लिए वे स्वयं भी प्रयास करें क्योंकि खुद को शिक्षा के उजाले से जोड़कर अपनी ज़िंदगी को वे बहुत जल्द 21 वीं सदी में जाने लायक बना पाएंगी और फिर सभी जानते हैं कि खुदा उसी की मदद करता है जो अपनी मदद आप करता है ,<br /><br />कुमारी शालिनी कौशिक<br /> [एडवोकेट ]<br />कांधला [शामली ]<br /><br /><br /><br /> </p>Shalini kaushikhttp://www.blogger.com/profile/10658173994055597441noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-914093468121573002.post-55486165715217412932022-08-08T23:38:00.001-07:002022-08-08T23:38:06.991-07:00अधिवक्ता फिर सत्ता में शीर्ष पर <p> <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgmP-kXIc-dot6iiWcLynHx_pZ9KXT5qjtJrWfkb_WI4xK1MWSltZUpMkiyDVMQv22FsQIC3vZA8wLXNpEEPTxEgv--bl7ueF9jJLiTPzefsyLMU9e-Z4rlfCzmWfgTsRFeid3z-gkr0bSgsDjE64TAXks0Z84Rsgo0Anblk_TwEjn-auQTqmXT97-2ZA/s1280/IMG-20220807-WA0029.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em; text-align: center;"><img border="0" data-original-height="1280" data-original-width="1023" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgmP-kXIc-dot6iiWcLynHx_pZ9KXT5qjtJrWfkb_WI4xK1MWSltZUpMkiyDVMQv22FsQIC3vZA8wLXNpEEPTxEgv--bl7ueF9jJLiTPzefsyLMU9e-Z4rlfCzmWfgTsRFeid3z-gkr0bSgsDjE64TAXks0Z84Rsgo0Anblk_TwEjn-auQTqmXT97-2ZA/s320/IMG-20220807-WA0029.jpg" width="256" /></a></p><br /><p><br /></p><p> 6 अगस्त 2022 को देश के 14 वें उपराष्ट्रपति के रूप में जगदीप धनखड़ जी का चयन मात्र एक राजनीतिज्ञ, एक किसान पुत्र की ही जीत नहीं है बल्कि यह एक बार फिर अधिवक्ता समुदाय का भारतीय राजनीति में दखल और प्रभाव दिखा गया है यह चुनाव इसलिए भी महत्वपूर्ण रहा कि इसमें जीत या हार किसी की भी होती किन्तु पद के लिए चुना एक अधिवक्ता ही जाता. </p><p> धनखड़ का जन्म 18 मई 1951 को राजस्थान राज्य के झुंझुनू जिले के एक छोटे से गाँव 'किठाना' में जाट के घर हुआ था। उनकी प्राथमिक शिक्षा किठाना गांव के स्कूल में हुई। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा सैनिक स्कूल, चित्तौड़गढ़ से पूरी की और फिर राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। स्कूली शिक्षा के बाद जगदीप धनखड़ ने राजस्थान के प्रतिष्ठित महाराज कॉलेज जयपुर में ग्रेजुएशन की पढ़ाई के लिए एडमिशन लिया. यहां से उन्होंने फिजिक्स में BSE की डिग्री ली| साल 1978 में उन्होंने जयपुर विश्वविद्यालय में एलएलबी कोर्स में एडमिशन लिया। कानून की डिग्री लेने के लेने बाद जगदीप धनखड़ ने वकालत शुरू कर दी और साल 1990 में जगदीप धनखड़ को राजस्थान हाईकोर्ट में सीनियर एडवोकेट का ओहदा दिया गया. जगदीप धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट से लेकर देश के कई हाईकोर्टों में वकालत की प्रैक्टिस की. साल 1988 तक देश में प्रतिष्ठित वकीलों में शुमार हो गए थे. सुप्रीम कोर्ट में वकालत के साथ साथ जगदीप धनखड़ जी ने पेरिस में अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायालय के भी तीन साल तक सदस्य के रूप में सेवाएं दी.</p><p> जगदीप धनखड़ विपक्ष की जिस उम्मीदवार मारग्रेट अल्वा को हराकर उपराष्ट्रपति बने हैं वे मारग्रेट अल्वा भी एक क़ाबिल वकील के रूप में अपना भारतीय राजनीति में ऊंचा मुकाम रखती हैं. अल्वा ने चढ़ती वय में ही एक एडवोकेट के रूप में विशिष्ट पहचान बनाली थी. कांग्रेस पार्टी की महासचिव रहने और तेजस्वी सांसद के रूप में पाँच पारियाँ (1974 से 2004) खेल चुकने के साथ-साथ वे केन्द्र सरकार में चार बार महत्वपूर्ण महकमों की राज्यमंत्री रहीं। एक सांसद के रूप में उन्होंने महिला-कल्याण के कई कानून पास कराने में अपनी प्रभावी भूमिका अदा की। महिला सशक्तिकरण संबंधी नीतियों का ब्लू प्रिन्ट बनाने और उसे केन्द्र एवं राज्य सरकारों द्वारा स्वीकार कराये जाने की प्रक्रिया में उनका मूल्यवान योगदान रहा। केवल देश में में ही नहीं, समुद्र पार भी उन्होंने मानव-स्वतन्त्रता और महिला-हितों के अनुष्ठानों में अपनी बौद्धिक आहुति दी। दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति ने तो उन्हें वहाँ के स्वाधीनता संग्राम में रंगभेद के खिलाफ लड़ाई लड़ने में अपना समर्थन देने के लिए राष्ट्रीय सम्मान प्रदान किया.</p><p> अधिवक्ता समुदाय भारतीय राजनीति में स्वतंत्रता के पश्चात से ही नहीं बल्कि स्वतंत्रता आंदोलन से ही महती भूमिका निभाता रहा है. 1857 में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम होने पर देश में स्वतंत्रता के लिए देश में आंदोलनों का आरंभ हुआ और हुआ देश हित में सबसे सक्रिय अधिवक्ता समुदाय का स्वतंत्रता आंदोलनों में पदार्पण. </p><p> महात्मा गांधी, मदन मोहन मालवीय, लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक, पंडित मोतीलाल नेहरू, सरदार पटेल, पंडित जवाहरलाल नेहरू, सैफुद्दीन किचलू, सी. आर. दास, आसफ अली आदि एक से बढ़कर एक अधिवक्ताओं ने देश के स्वतंत्रता संग्राम में अपनी सेवाएं दी. स्वतंत्रता आंदोलनों के आरंभ में ही भारतीय राजनीति की मुख्यधारा में महात्मा गांधी के प्रवेश को भी चिह्नित किया गया. गांधी, पेशे से वकील भी, दक्षिण अफ्रीका से लौटे थे, जहां उन्होंने नस्लीय भेदभाव के खिलाफ और लोगों की नागरिक स्वतंत्रता के लिए एक सफल सत्याग्रह किया था। इस बीच, गांधी ने चंपारण और खेड़ा सत्याग्रह में अपनी सफलता से पहले ही भारत में अपनी पहचान बना ली थी। गांधी ने जमींदारों के खिलाफ संगठित विरोध और हड़ताल का नेतृत्व किया, जिन्होंने ब्रिटिश सरकार के मार्गदर्शन में, क्षेत्र के गरीब किसानों को खेती पर अधिक मुआवजा और नियंत्रण देने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, और अकाल समाप्त होने तक राजस्व वृद्धि और इसके संग्रह को रद्द कर दिया। खेड़ा में, पेशे से वकील, सरदार पटेल ने अंग्रेजों के साथ बातचीत में किसानों का प्रतिनिधित्व किया, जिन्होंने राजस्व संग्रह को निलंबित कर दिया और सभी कैदियों को रिहा कर दिया। पटेल ने बाद में गुजरात में खेड़ा, बोरसाड और बारडोली के किसानों को ब्रिटिश राज द्वारा थोपी गई दमनकारी नीतियों के खिलाफ अहिंसक सविनय अवज्ञा में संगठित किया; इस भूमिका में, वह गुजरात के सबसे प्रभावशाली नेताओं में से एक बन गए।एक प्रख्यात वकील और भारत के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद भी चंपारण आंदोलन में गांधी के साथ शामिल थे। एक अन्य वकील और राजनेता भुलाभाई देसाई ने 1928 में बारडोली सत्याग्रह के बाद ब्रिटिश सरकार द्वारा की गई जांच में गुजरात के किसानों का प्रतिनिधित्व किया। भूलाभाई ने किसानों के मामले का मजबूती से प्रतिनिधित्व किया, और संघर्ष की अंतिम सफलता के लिए महत्वपूर्ण थे। पंडित मोतीलाल नेहरू, प्रयागराज के एक प्रसिद्ध अधिवक्ता एवं ब्रिटिशकालीन राजनेता थे। वे भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू के पिता थे। वे भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के आरम्भिक कार्यकर्ताओं में से थे। 1919 में अमृतसर में अंग्रेजों द्वारा सैकड़ों भारतीयों के नरसंहार ने मोतीलाल को महात्मा गांधी के साथ जुड़ने के लिए प्रेरित किया. असहयोग आंदोलन , कानून में अपना करियर छोड़ना और जीवन की एक सरल, गैर-अंग्रेजी शैली में बदलना। 1921 में उन्हें और जवाहरलाल दोनों को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया और छह महीने के लिए जेल में डाल दिया। मोतीलाल ने 1930 के सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लिया, जो नमक मार्च से संबंधित था , जिसके लिए उन्हें जेल में डाल दिया गया था। रिहाई के तुरंत बाद उनकी मृत्यु हो गई। आसफ अली देश के सबसे सम्मानित वकीलों में से एक, उन्होंने वकील के रूप में बटुकेश्वर दत्त का बचाव किया. गांधीजी ने गुजरात में अपना प्रसिद्ध नमक सत्याग्रह और दांडी मार्च शुरू करने पर सेंट्रल असेंबली हॉल में बम फेंकने के आरोप में क्रांतिकारियों भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को गिरफ्तार किया गया था। एक स्वतंत्रता सेनानी और एक प्रमुख वकील आसफ अली ने क्रांतिकारियों का बचाव किया गया. स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान आसफ अली को कई बार कैद की सजा सुनाई गई थी, जो अगस्त 1942 में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी द्वारा अपनाए गए 'भारत छोड़ो' प्रस्ताव के मद्देनजर थी। उन्हें जवाहरलाल नेहरू और अन्य के साथ अहमदनगर किले की जेल में हिरासत में लिया गया था।असहयोग आंदोलन में जवाहरलाल नेहरू की भागीदारी भी देखी गई जिन्होंने इस दौरान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में खुद को डुबो दिया। लंदन में पढ़े-लिखे वकील, नेहरू ने अपना समय देश का दौरा करने और गांधीवादी विचारों को फैलाने और आम लोगों की समस्याओं से खुद को परिचित कराने में बिताया था। राजगोपालाचारी, लाला लाजपत राय, मदन मोहन मालवीय, मोतीलाल नेहरू, सीआर दास और सरदार पटेल अन्य वकील थे जिन्होंने असहयोग आंदोलन में अपना पूरा योगदान दिया। पटेल ने 300,000 से अधिक सदस्यों की भर्ती के लिए राज्य का दौरा किया और रुपये जुटाए। असहयोग आंदोलन के लिए 1.5 मिलियन फंड और अहमदाबाद और गुजरात में ब्रिटिश सामानों की अलाव आयोजित करने में मदद की। उन्होंने चौरी चौरा कांड के मद्देनजर गांधी के विवादास्पद प्रतिरोध निलंबन का भी समर्थन किया। अधिकांश वकीलों ने अंग्रेजों द्वारा लागू किए गए मार्शल लॉ के असहाय पीड़ितों के बचाव के लिए, अपने स्वयं के कानूनी अभ्यास की कीमत पर, स्वतंत्र रूप से अपना समय दिया, जिन्हें फांसी की सजा दी गई थी या कारावास की लंबी अवधि की सजा सुनाई गई थी। </p><p> स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भी अधिवक्ता समुदाय देश के नव निर्माण में भागीदार रहा है और देश की प्रतिष्ठा का परचम अपने बुद्धि के बल पर समय समय पर फहराता रहा है. देश पर पूर्व में हुए मुस्लिम आक्रांताओं के हमले, भारतीय संस्कृति को छिन्न भिन्न करने की कोशिश करने वाले मुगलों की सत्ता के दुष्परिणामों से और स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद अँग्रेजों द्वारा लगभग बर्बाद किए जा चुके भारत के नव निर्माण में अपना जीवन लगाने वाली कॉंग्रेस पार्टी के नेता और देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू भी वकील थे.भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद जी भी वकील थे वहीं वर्तमान में कांग्रेस के बड़े नेताओं में से ऐसे लोग हैं जो राजनेता के साथ-साथ नामी वकील भी हैं. </p><p>* देश के टॉप वकीलों की कतार में अभिषेक मनु सिंघवी सुप्रीम कोर्ट के सबसे कम उम्र के नामित सीनियर एडवोकेट थे. मूलत: राजस्थान के जोधपुर के रहने वाले अभिषेक मनु सिंघवी के पिता लक्ष्मीमल सिंघवी भी जाने-माने वकील रहे हैं. वो ब्रिटेन में भारत के पूर्व उच्चायुक्त भी थे.</p><p>* 34 साल की उम्र में सुप्रीम कोर्ट ने अश्विनी कुमार को सीनियर काउंसल नियुक्त किया था. कांग्रेस पार्टी की सरकार में वो कानून मंत्रालय की जिम्मेदारी भी संभाल चुके हैं.</p><p>* देश के नामी वकीलों में शुमार और पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद यूपीए सरकार में कई मंत्रालय संभाल चुके हैं. इनके पिता खुर्शीद आलम खान पूर्व राष्ट्रपति जाकिर हुसैन के दामाद थे. अलीगढ़ के रहने वाले खुर्शीद ने इंदिरा गांधी के कार्यकाल में प्रधानमंत्री कार्यालय में विशेष अधिकारी के तौर पर अपने करियर की शुरुआत की थी. वो प्रख्यात लेखक और कानून शिक्षक भी रहे हैं.</p><p>* पूर्व सूचना एवं प्रसारण राज्यमंत्री मनीष तिवारी पेशे से वकील हैं. उनकी पहचान गरीबों का मुफ्त केस लड़ने को लेकर है</p><p>* कांग्रेस के वरिष्ठ नेता केटीएस तुलसी भी इसी कतार में हैं. 7 नवंबर 1947 को होशियारपुर पंजाब भारत में जन्मे तुलसी ने पंजाब विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में कला स्नातक की उपाधि ली फिर 1971 में एलएलबी करके वकालत शुरू कर दी. तुलसी की पहचान कई नामी केस लड़ने से हुई. </p><p> यही नहीं, वर्तमान सत्ताधारी दल भाजपा से भी अधिवक्ता समुदाय का एक बड़ा धड़ा आज भी जुड़ा हुआ है और देश सेवा में संलग्न है. वित्त मंत्री रहे अरुण जेटली एक प्रतिष्ठित एडवोकेट थे. स्व सुषमा स्वराज एक प्रख्यात एडवोकेट थी, पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने पहले जयप्रकाश नारायण के आन्दोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। आपातकाल का पुरजोर विरोध करने के बाद वे सक्रिय राजनीति से जुड़ गयीं। वर्ष २०१४ में उन्हें भारत की पहली महिला विदेश मंत्री होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. कैबिनेट में उन्हें शामिल करके उनके कद और काबिलियत को स्वीकारा गया. दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री और देश में किसी राजनीतिक दल की पहली महिला प्रवक्ता बनने की उपलब्धि भी उन्हीं के नाम दर्ज है। कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद सहित मोदी कैबिनेट में वकील भरे हुए हैं। इसमें जेपी नड्डा, चौधरी बीरेंद्र सिंह, रामकृपाल यादव और राजेन मोहन गोहन, अर्जुन मेघवाल, पीपी चौधरी भी शामिल हैं। वर्तमान लोकसभा में कुल सांसद हैं 543। इनमें अकेले 7% के पास वकालत की डिग्री है। </p><p> अधिवक्ताओं की देश के स्वतंत्रता आंदोलन में भागीदारी और स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश के नव निर्माण में योगदान अधिवक्ता समुदाय के लिए गौरव की बात है और आज देश के सर्वोच्च संवैधानिक पदों में से एक पर एक अधिवक्ता जगदीप धनखड़ जी का चुना जाना अधिवक्ता समुदाय की देश सेवा में निरंतर सक्रियता को दर्शाने के लिए पर्याप्त है और इस शानदार गौरवशाली उपलब्धि के लिए जगदीप धनखड़ जी और देश के अधिवक्ता समुदाय को हार्दिक शुभकामनाएं 👍🌹🙏</p><p>द्वारा </p><p>शालिनी कौशिक </p><p>एडवोकेट </p><p>कैराना (शामली) </p><p><br /></p><p><br /></p><p> </p>Shalini kaushikhttp://www.blogger.com/profile/10658173994055597441noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-914093468121573002.post-53367941587167944142022-08-03T08:29:00.005-07:002022-08-03T08:45:31.882-07:00खंडपीठ वेस्ट यू पी में आएगी...... <p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p><p> <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjuRzR_ekf4F6HB8_MtXUXPnicrHhrYIE1jEIMZih8HZRvTPARYAYRe3OczBxxEcZlR5yZU3PSSv3FzTEFfg9LmeyyRmCzXYd1K2iR4TYNCkXeScIT6IfWmPgo-fmKhdwjCTxSJ9jfijMrV/s1080/IMG_20210717_233726.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em; text-align: center;"><img border="0" data-original-height="606" data-original-width="1080" height="181" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjuRzR_ekf4F6HB8_MtXUXPnicrHhrYIE1jEIMZih8HZRvTPARYAYRe3OczBxxEcZlR5yZU3PSSv3FzTEFfg9LmeyyRmCzXYd1K2iR4TYNCkXeScIT6IfWmPgo-fmKhdwjCTxSJ9jfijMrV/w320-h181/IMG_20210717_233726.jpg" width="320" /></a></p><br /><p><br /></p><p> एजाज रहमानी ने कहा है कि -</p><p> अभी से पाँव के छाले न देखो,</p><p> अभी यारों सफर की इब्तदा है. </p><p>वेस्ट यू पी में हाई कोर्ट बेंच की मांग करते करते वकीलों को 4 दशक से ऊपर हो गए हैं किन्तु आंदोलन कभी वर्तमान रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह जी के पूर्व में दिए गए बयान के समर्थन, कभी पंजाब के राज्यपाल रहे श्री वीरेन्द्र वर्मा जी के समर्थन के बयान से ऊपर की सफलता अर्जित नहीं कर पाया और फिर अब तो प्रचंड बहुमत वाली भाजपा सरकार के केंद्रीय कानून मंत्री श्री किरण रिजूजू ने साफ कर दिया है कि उनके पास वेस्ट यू पी में हाई कोर्ट खंडपीठ के लिए कोई प्रस्ताव ही नहीं है.</p><p> इस आंदोलन की सफलता के लिए बार एसोसिएशन कैराना के अधिवक्ताओं ने बाबू कौशल प्रसाद एडवोकेट जी के नेतृत्व में 1989 में कॉंग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद जी का सफल घेराव किया और इसी सफलता के कारण तत्कालीन विधायक मुनव्वर हसन के समर्थकों द्वारा कैराना के अधिवक्ताओं पर हमले किए गए, उनके चेंबर तोड़े गए, वेस्ट यू पी के अधिवक्ताओं द्वारा कई कई महीनों तक हड़ताल की गई, शनिवार की हड़ताल वेस्ट यू पी में हाई कोर्ट बेंच के लिए लगातार जारी है किन्तु परिणाम ढाक के तीन पात. </p><p> आज न्यू इंडिया का समय चल रहा है, मोदी जी के नेतृत्व में सोशल मीडिया निरंतर तरक्की कर रहा है ऐसे में मोदी जी की मन की बात, ट्विटर, फ़ेसबुक, कू, आदि सोशल मीडिया अकाउंट से प्रेरणा लेकर केंद्रीय संघर्ष समिति को अपने इस आंदोलन की सफलता के लिए निम्न उपायों को अमल में लाना चाहिए -</p><p>1- भाजपा के कार्यकर्ताओं की भांति वेस्ट यू पी के अधिवक्ताओं को भी घर घर जाकर जनता में वेस्ट यू पी हाई कोर्ट बेंच के लाभों को लेकर जागरूकता फैलाने के प्रयास करने चाहिए और इसके लिए हर बार एसोसिएशन द्वारा क्षेत्रीय अधिवक्ताओं की समिति गठित की जानी चाहिए.</p><p>2- जिस तरह हमारे मोदी जी और योगी जी ने अपने अपने सोशल मीडिया अकाउंट बनाए हैं और उनके माध्यम से आम जनता से जुड़े हैं उसी तरह केंद्रीय संघर्ष समिति को भी अपने सोशल मीडिया अकाउंट बनाने चाहिए और उनके माध्यम से जनता से जुड़कर उन्हें अपने आंदोलन से जोड़ लेना चाहिए.</p><p>3- कोई भी मीटिंग अधिवक्ता भवन में नहीं होनी चाहिए बल्कि जनता के बीच खुले आकाश के नीचे और गाँव गाँव तक पहुंच बना कर होनी चाहिए.</p><p>4- आम जनता से भी सुझाव आमंत्रित किए जाने चाहिए और उन्हें अधिवक्ताओं के बीच अपनी बात रखने का अवसर देना चाहिए.</p><p> याद रखिए यह आंदोलन अधिवक्ताओं के व्यावसायिक फायदे के लिए नहीं है बल्कि यह आंदोलन न्याय को पीड़ित के पास तक पहुंचाने के लिए है और इसलिए इसमे जनता की भागीदारी अधिवक्ताओं के साथ जरूरी है और यह बात निश्चित रूप से कही जा सकती है कि जिस दिन जनता अधिवक्ता जिंदाबाद का नारा बुलंद होगा उस दिन ये आंदोलन अवश्य सफल होगा.</p><p>केंद्रीय संघर्ष समिति, मेरठ को यह ध्यान में रखते हुए जनता को जोड़ कर आन्दोलन की सफलता के लिए आगे बढ़ना होगा - </p><p>तू अगर चाहे झुकेगा आसमां भी सामने ,</p><p> दुनिया तेरे आगे झुककर सलाम करेगी .</p><p> जो आज न पहचान सके तेरी काबिलियत ,</p><p> कल उनकी पीढियां तक इस्तेकबाल करेंगी .</p><p> शालिनी कौशिक एडवोकेट</p><p> बार एसोसिएशन</p><p> कैराना (शामली)</p>Shalini kaushikhttp://www.blogger.com/profile/10658173994055597441noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-914093468121573002.post-61959219025041506242022-07-28T07:38:00.001-07:002022-07-28T07:38:23.619-07:00पश्चिमी उत्तर प्रदेश केंद्रीय संघर्ष समिति की कमजोरी उजागर <p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiuGQBPXiuoYMjqHzYufOOz7A4-CCTg_hud1duCA9NRIO-3HmsTh0a9h7VTcxBKNJXoaUlDin_wCR6s2GC3pxoSKZn_Nj1aozRVuMOAgvA5Xb-4_WMc-uNiMHHYUEVm7QpWm9WhPJl2IUALVctogX4uAZqYo7neE-hMu6eQyVq6R-FXSK3UheOim1EKEg/s1068/sc-all-hc-kiren-rijiju-1068x601.jpeg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="601" data-original-width="1068" height="180" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiuGQBPXiuoYMjqHzYufOOz7A4-CCTg_hud1duCA9NRIO-3HmsTh0a9h7VTcxBKNJXoaUlDin_wCR6s2GC3pxoSKZn_Nj1aozRVuMOAgvA5Xb-4_WMc-uNiMHHYUEVm7QpWm9WhPJl2IUALVctogX4uAZqYo7neE-hMu6eQyVq6R-FXSK3UheOim1EKEg/s320/sc-all-hc-kiren-rijiju-1068x601.jpeg" width="320" /></a></div><br /><span style="background-color: white; color: #353535; font-family: Georgia, "Times New Roman", Times, serif;"><br /></span><p></p><p><span style="background-color: white; color: #353535; font-family: Georgia, "Times New Roman", Times, serif;">गुरुवार को कानून और न्याय मंत्रालय ने राज्यसभा को सूचित किया कि भारत में किसी भी उच्च न्यायालय की कोई नई पीठ स्थापित करने का कोई प्रस्ताव नहीं है।</span></p><p> <span style="background-color: white; color: #353535; font-family: Georgia, "Times New Roman", Times, serif;">डॉ समसित पत्र (सांसद) ने निम्नलिखित प्रश्न पूछे:</span></p><p style="background-color: white; color: #353535; font-family: Georgia, "Times New Roman", Times, serif; margin: 0px 0px 1em; padding: 0px;">क्या कानून और न्याय मंत्री यह बताने की कृपा करेंगे कि:</p><p style="background-color: white; color: #353535; font-family: Georgia, "Times New Roman", Times, serif; margin: 0px 0px 1em; padding: 0px;">(क) पिछले पांच वर्षों के दौरान भारत में न्यायालयों के लिए स्थापित नई न्यायपीठों का विवरण;<br />(बी) वर्तमान में सरकार के पास लंबित नई पीठों की स्थापना के प्रस्ताव: और<br />(ग) भारत में एक न्यायालय के लिए एक नई पीठ स्थापित करने की प्रक्रिया?</p><p style="background-color: white; color: #353535; font-family: Georgia, "Times New Roman", Times, serif; margin: 0px 0px 1em; padding: 0px;">श्री किरेन रिजिजू का उत्तर:</p><p style="background-color: white; color: #353535; font-family: Georgia, "Times New Roman", Times, serif; margin: 0px 0px 1em; padding: 0px;"><br /></p><p style="background-color: white; color: #353535; font-family: Georgia, "Times New Roman", Times, serif; margin: 0px 0px 1em; padding: 0px;">(ए) से (सी): पिछले पांच वर्षों के दौरान, जलपाईगुड़ी में कलकत्ता उच्च न्यायालय की एक सर्किट बेंच की स्थापना 07.02.2019 से की गई थी। उच्च न्यायालय की खंडपीठों की स्थापना जसवंत सिंह आयोग द्वारा की गई सिफारिशों और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सुनाए गए निर्णय के अनुसार की जाती है। जिसमें एक पूर्ण प्रस्ताव पर विचार करने के बाद आवश्यक व्यय और आधारभूत सुविधाएं प्रदान करना है और संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को दिन–प्रतिदिन प्रशासन की देखभाल करने की आवश्यकता है। इसके बाद प्रस्ताव पर संबंधित राज्य के राज्यपाल की सहमति भी होनी चाहिए। वर्तमान में किसी भी उच्च न्यायालय की पीठों की स्थापना के लिए सरकार के पास कोई पूर्ण प्रस्ताव लंबित नहीं है।</p><p style="background-color: white; color: #353535; font-family: Georgia, "Times New Roman", Times, serif; margin: 0px 0px 1em; padding: 0px;"> केंद्रीय सरकार का तो यही ज़वाब आना था और यह उस मजबूत स्थिति रखने वाली भारतीय जनता पार्टी के कानून मंत्री किरण रिजिजू का बयान है जो पूर्ण बहुमत से केंद्र में भी है और उत्तर प्रदेश में भी, और ज़वाब भी यह " कि वर्तमान में किसी भी उच्च न्यायालय की पीठों की स्थापना के लिए सरकार के पास कोई पूर्ण प्रस्ताव लम्बित नहीं है." अब केंद्र सरकार से तो सवालों का रास्ता ही बंद हो गया किन्तु हम पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अधिवक्ताओं को कुछ सवाल करने हैं - पश्चिमी उत्तर प्रदेश केंद्रीय संघर्ष समिति से</p><p style="background-color: white; color: #353535; font-family: Georgia, "Times New Roman", Times, serif; margin: 0px 0px 1em; padding: 0px;">1- क्या कर रही थी संघर्ष समिति उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में - जब मेरठ में योगी आदित्यनाथ जी के आगमन पर एक भी आवाज़ हमें नहीं सुनाई दी - खंडपीठ नहीं तो वोट नहीं? </p><p style="background-color: white; color: #353535; font-family: Georgia, "Times New Roman", Times, serif; margin: 0px 0px 1em; padding: 0px;">2- क्या फायदा है इन रोज़ रोज़ की हड़ताल का - जब 1979 से चल रहे इस आंदोलन को संघर्ष समिति जनता और अधिवक्ताओं के हित में जोश - खरोश से उठा ही नहीं पा रही? </p><p style="background-color: white; color: #353535; font-family: Georgia, "Times New Roman", Times, serif; margin: 0px 0px 1em; padding: 0px;">3- क्यूँ संघर्ष समिति अपनी रणनीति को कारगर स्वरुप नहीं दे पा रही है?</p><p style="background-color: white; color: #353535; font-family: Georgia, "Times New Roman", Times, serif; margin: 0px 0px 1em; padding: 0px;"> कारण केवल एक है सत्ता के प्रभाव में अधिवक्ताओं का, जनता का हित दबाया जा रहा है. आज सरकार अधिवक्ताओं के प्रति उपेक्षित रवैय्या अख्तियार किए हुए है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने के लिए अग्रसर है और चाहे अनचाहे वेस्ट यू पी केंद्रीय संघर्ष समिति इस दबाव को मान रही है और पुरजोर तरीके से वेस्ट यू पी में हाई कोर्ट खंडपीठ के आन्दोलन को आगे बढ़ाने में कमजोर पड़ती जा रही है.</p><p style="background-color: white; color: #353535; font-family: Georgia, "Times New Roman", Times, serif; margin: 0px 0px 1em; padding: 0px;">शालिनी कौशिक एडवोकेट</p><p style="background-color: white; color: #353535; font-family: Georgia, "Times New Roman", Times, serif; margin: 0px 0px 1em; padding: 0px;">कैराना (शामली) </p>Shalini kaushikhttp://www.blogger.com/profile/10658173994055597441noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-914093468121573002.post-73308996628708902112022-07-02T22:21:00.006-07:002022-07-02T22:32:27.311-07:00योगी जी कैराना में स्थापित करें जनपद न्यायालय शामली <div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEghLaAnfyFdQvePp78wfJCsI9Qhdk2djS6e4NKje8rr0tKtxJOUGfHrExosPV5x1EcocnVkdD4PjoQSm7z9bzeH0MwRies5Vs-IG5fJmGiPRJHWuPhneYTI_cX0ce3TGV1mH2kylwKbLLOH4HYhCotJlJo4NaLm46yzeU-R0vm4T8EIr62CeP2l75-b6g/s200/images%20(21).jpeg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="128" data-original-width="200" height="205" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEghLaAnfyFdQvePp78wfJCsI9Qhdk2djS6e4NKje8rr0tKtxJOUGfHrExosPV5x1EcocnVkdD4PjoQSm7z9bzeH0MwRies5Vs-IG5fJmGiPRJHWuPhneYTI_cX0ce3TGV1mH2kylwKbLLOH4HYhCotJlJo4NaLm46yzeU-R0vm4T8EIr62CeP2l75-b6g/w320-h205/images%20(21).jpeg" width="320" /></a></div><br /><p> 2011 में 28 सितंबर को शामली जिले का सृजन किया गया. तब उसमें केवल शामली और कैराना तहसील शामिल थी. इससे पहले शामली और कैराना तहसील मुजफ्फरनगर जनपद के अंतर्गत आती थी. कुछ समय बाद शामली जिले में ऊन तहसील बनने के बाद अब शामली जिले के अंतर्गत तीन तहसील कार्यरत हैं. 2018 के अगस्त तक शामली जिले का कानूनी कार्य मुजफ्फरनगर जिले के अंतर्गत ही कार्यान्वित रहा किन्तु अगस्त 2018 में शामली जिले की कोर्ट शामली जिले में जगह का चयन न हो पाने के कारण कैराना में आ गई और इसे नाम दिया गया -" जिला एवं सत्र न्यायालय शामली स्थित कैराना. "</p><p> 2018 से अब तक मतलब जुलाई 2022 तक शामली जिले के मुख्यालय से लगभग 12 किलोमीटर दूर जिला जज की कोर्ट के लिए जगह का चयन हो जाने के बाद शासन द्वारा 51 एकड़ भूमि जिला न्यायालय कार्यालय और आवासीय भवनों के लिए आवंटित की गयी थी, जिसमें चाहरदीवारी के निर्माण के लिए 4 करोड़ की धन राशि अवमुक्त की गई थी जिससे अब तक केवल बाउंड्रीवाल का ही निर्माण हो पाया है. उच्च न्यायालय इलाहाबाद द्वारा जिला न्यायालय कार्यालय और आवासीय भवनों के निर्माण के लिए 295 करोड़ रुपये का एस्टीमेट बनाकर शासन को भेजा गया था किंतु शासन द्वारा वर्तमान तक भी कोई धनराशि अवमुक्त नहीं की गई. </p><p><br /></p><p> अब तक हमने बात की केवल उन महत्वाकांक्षाओं की जिनके मद्देनजर बगैर किसी व्यवस्थित योजना के शामली जिले का निर्माण पहले प्रबुद्ध नगर के नाम से और बाद में जनता के दबाव में शामली जिले के ही नाम से कर दिया गया. अब यदि वास्तविकता की बात करें तो शामली जिले में केवल तहसील स्तर का ही कार्य सम्पन्न हो रहा है. जिसे देखते हुए कहा जा सकता है कि वहां कानूनी विभाग लगभग शून्यता की स्थिति में है और वहां जिला जज की कोर्ट की स्थापना के साथ साथ मुंसिफ कोर्ट से लेकर जिला जज की कोर्ट की स्थापना करने के लिए बहुत बड़े स्तर का कार्य सम्पन्न करना होगा, जबकि शामली जिले की तहसील कैराना में जिला जज की कोर्ट से एक नंबर कम की कही जाने वाली कोर्ट ए डी जे कोर्ट की स्थापना ही 2011 में हो चुकी है और कैराना तहसील में स्थापित न्यायालय परिसर शामली जिले के मुख्यालय से मात्र 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और फिर ज़िला न्यायालय शामली के कार्यालय और आवासीय भवनों का निर्माण अब भी तो शामली मुख्यालय पर नहीं किया जाना है अब भी तो वह शामली के गाँव बनत में किया जाना है और वह भी केवल शामली के अधिवक्ताओं और जनता की इस जिद पर कि शामली जिले का ही सर ऊंचा रहना चाहिए, जबकि कैराना भी तो शामली जिले की ही तहसील है और अगर उत्तर प्रदेश सरकार कैराना के न्यायालय तक के क्षेत्र को शामली जिले के ही क्षेत्र में सम्मिलित कर यहां स्थापित न्यायालयों को मुख्य न्यायालय का दर्जा प्रदान करती है तो जितने बजट की आवश्यकता शामली जिले के बनत गाँव में न्यायालय भवनों हेतु है उसके एक चौथाई से भी कम खर्च में शामली जिले के जनपद न्यायालय की समस्या का निवारण हो जाएगा, किन्तु मानवीय हठ इस साधारण सी बात को एक प्रदेश स्तरीय समस्या का रूप प्रदान कर रही है. </p><p><br /></p><p> ऐसे में, माननीय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी से विनम्र निवेदन है कि वे कैराना की सुदृढ़ न्यायिक व्यवस्था, कैराना में फैली अपराधियों की जड़ें और शामली जिले की बदहाल कर देने वाली जाम की समस्या को देखते हुए कैराना में ही जिला एवं सत्र न्यायाधीश के न्यायालय को शामली जिले का मुख्य न्यायालय घोषित करें और यदि इसके लिए उन्हें कैराना में न्यायालय परिसर तक के क्षेत्र को शामली जिले के अंतर्गत ही घोषित करना पड़े तो करें क्योंकि शामली जिले में जिस जगह का चयन जिला कोर्ट के लिए किया गया है वहां तक क्षेत्र के निवासियों का पहुंचना असंभव नहीं तो कठिन अवश्य है क्योंकि शामली जिला इतना सघन रूप से बसा हुआ है कि मात्र एक किलोमीटर पार करने में भी 1-2 घण्टे से ऊपर का समय लग रहा है. ऐसे में न्याय पाने के लिए पीड़ितों को या तो रात में ही घर से निकलना पड़ेगा या फिर न्याय पाने की आशा को ही खो देना पड़ेगा. साथ ही, यदि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा कैराना स्थित जनपद न्यायालय को मुख्य न्यायालय का दर्जा दिया जाता है तो सरकार का बहुत सारा धन भी बचेगा और कैराना तहसील में लगभग खंडहर पड़े बहुत सारे क्षेत्र का न्यायालय और अधिवक्ताओं के चेम्बर के रूप में इस्तेमाल भी हो सकेगा. </p><p><br /></p><p> अतः माननीय मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ जी कम से कम एक बार जांच कमेटी बिठाकर कैराना स्थित जनपद न्यायालय को ही शामली जिले के मुख्य न्यायालय का दर्जा दिए जाने की मांग पर विचार करें. </p><p><br /></p><p> 🙏🙏धन्यवाद 🙏🙏</p><p><br /></p><p>शालिनी कौशिक एडवोकेट</p><p>कैराना (शामली)</p>Shalini kaushikhttp://www.blogger.com/profile/10658173994055597441noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-914093468121573002.post-21893739351741029792022-06-01T20:47:00.006-07:002022-06-01T20:49:20.158-07:00बीसीआई विचार करे <p> </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjRZD0KIub7-qo-VPHlkCLQ_wzcZEYqC4fk5iYLCab35DOGBIE4peCoVCyhYtGLNVaUqBNBBAMXVZhcUB8yySKHs646BOBuRea-v9-uXJleqXz3YOlUwG6rtSefkcrnUwgIcb9a_rZo0C6kQDlxeCdnHo8fST2_p29CvbHMZqUCNego2FKHLrKYWbBd1w/s1140/IMG_20220602_091355.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1140" data-original-width="1080" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjRZD0KIub7-qo-VPHlkCLQ_wzcZEYqC4fk5iYLCab35DOGBIE4peCoVCyhYtGLNVaUqBNBBAMXVZhcUB8yySKHs646BOBuRea-v9-uXJleqXz3YOlUwG6rtSefkcrnUwgIcb9a_rZo0C6kQDlxeCdnHo8fST2_p29CvbHMZqUCNego2FKHLrKYWbBd1w/w189-h200/IMG_20220602_091355.jpg" width="189" /></a></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><br /></div><p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">आश्चर्य है कि व्यापारी वर्ग सरकार से स्वयं के लिए विधान परिषद की सीट मांग सकता है, सांसद, विधायक की तरह वीआईपी का दर्जा मांग सकता है, हर शहर में एक चौक का नाम व्यापार शक्ति चौक करने की मांग कर सकता है और विद्धान कहे जाने वाले और देश की आजादी से लेकर आज तक देश को सर्वोत्कृष्ट विकास की राह पर पहुंचाने वाले अधिवक्ताओं का समुदाय अपने वर्चस्व और सम्मान को लेकर खामोशी अख्तियार कर रहा है. अब आए दिन वकीलों की हड़ताल को रोकने को लेकर माननीय सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट द्वारा नई से नई कार्यवाहियों की तैयारियां की जा रही हैं और इस पर भी बीसीआई खामोश रहता है. कोविड-19 के ख़तरनाक दौर में अधिवक्ताओं के आर्थिक सहयोग हेतु कोई मांग नहीं रखता है और वह भी उस स्थिति में जब अधिवक्ता वक़ालत के अलावा कोई अन्य व्यवसाय कर ही नहीं सकते. क्यूँ आज का अधिवक्ता समुदाय खामोश हो गया है? क्या आज वकीलों ने सरकार के इस तानाशाही रवैये को अपनी नियति मानकर स्वीकार कर लिया है. इस पर माननीय बीसीआई द्वारा विचार किया जाना जरूरी है और वकीलों का मनोबल ऊंचा करने और सम्मान कायम रखने के लिए देश स्तरीय सम्मेलन और आंदोलन की राह पर आगे बढ़ना जरूरी है. क्योंकि</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><div class="separator" style="clear: both;">"तू अगर चाहे झुकेगा आसमां भी सामने,</div><div class="separator" style="clear: both;">दुनिया तेरे आगे झुककर सलाम करेगी ।</div><div class="separator" style="clear: both;">जो आज न पहचान सके तेरी काबिलियत</div><div class="separator" style="clear: both;">कल उनकी पीढ़ियां तक इस्तकबाल करेंगी."</div><div class="separator" style="clear: both;"> शालिनी कौशिक एडवोकेट</div><div class="separator" style="clear: both;"> कैराना</div></div><p><br /></p>Shalini kaushikhttp://www.blogger.com/profile/10658173994055597441noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-914093468121573002.post-50407502000808737752022-04-22T23:48:00.002-07:002022-04-22T23:48:52.255-07:00कचहरी को बाजार न बनाया जाए <p> </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi3J5QvHgC8Z3LmnR9mmsTxjl-mLF1p1XK7HfHUtVXOgpmoge2SLUohWU5jFTZWKrNXmQYCG5wOvBmTEI82qiCfDpluum4iFye5hSKCyVs_bkuNHgWqWZF4Tu7-XaVV6hsdO7GJhQFhx8nOEp5HVKbnrEZWFwqHfNAxWrvh6mTUQqz4WbwtphDKqH4__Q/s1579/IMG_20220423_113743.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1579" data-original-width="1080" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi3J5QvHgC8Z3LmnR9mmsTxjl-mLF1p1XK7HfHUtVXOgpmoge2SLUohWU5jFTZWKrNXmQYCG5wOvBmTEI82qiCfDpluum4iFye5hSKCyVs_bkuNHgWqWZF4Tu7-XaVV6hsdO7GJhQFhx8nOEp5HVKbnrEZWFwqHfNAxWrvh6mTUQqz4WbwtphDKqH4__Q/w137-h200/IMG_20220423_113743.jpg" width="137" /></a></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><br /></div>22 अप्रैल 2022 को सोनीपत कोर्ट परिसर में दिनदहाड़े गवाह वेद प्रकाश की हत्या हो जाती है और कहा जाता है कि हत्यारे पेशेवर नहीं थे, सतर्क होता तो बच सकती थी वेद प्रकाश की जान.<p></p><p> ऐसा नहीं है कि न्यायालय परिसर में यह कोई पहली घटना हो. उत्तर प्रदेश में तो ये घटनाएं आम हैं. कभी शाहजहांपुर में अधिवक्ता की हत्या हो जाती है तो कभी गोरखपुर में दुष्कर्म आरोपी की, गाजियाबाद में कचहरी में कड़ी सुरक्षा के बावजूद वाहनों की चोरी हो जाती हैं किन्तु दो चार दिन महीने सुरक्षा मजबूत कर कचहरी फिर वापस लौट आती है लापरवाही की तरफ, किसी अगली घटना के इंतजार में.</p><p> देखा जाए तो कचहरी न्याय पाने का एक केंद्र है और वहां न्यायाधीशों, वकीलों, मुन्शी, न्यायालयों के कर्मचारियों, स्टाम्प वेंडर्स, बैनामा लेखकों आदि न्यायालय कार्य करने वाले और वकीलों के कार्य करने वालों का और कचहरी में आने जाने वालों के चाय नाश्ते आदि का प्रबंध करने वालों का होना एक अनिवार्य आवश्यकता है किन्तु कचहरी में भीख मांगने वालों का आना, मेवे आदि बेचने वालों का आना, कान साफ करने वालों का आना कचहरी को सामान्य बाजार की श्रेणी में ला देता है और उसकी सुरक्षा को खतरे में डाल देता है और सबसे खतरनाक है ऐसे में बगैर किसी जांच - पड़ताल पूछताछ के गैर जरूरी लोगों का कचहरी परिसर में प्रवेश. क्या ज़रूरी नहीं है ऐसे में ये उपाय -</p><p>1 - सभी वकीलों, मुंशियों आदि के लिए आई कार्ड हों.</p><p>2- वकील अपने मुवक्किल और गवाहों को कचहरी परिसर में आने का पत्र जारी करें, जिसे गेट पर तैनात पुलिस को दिखाकर ही मुवक्किल और गवाह कचहरी में प्रवेश कर सकें.</p><p>3- जिन लोगों का कचहरी के किसी कार्य से ताल्लुक नहीं है, उन्हें केवल सामान या सेवा बेचने के लिए या भीख मांगने के लिए ही कचहरी में आना है, उनका कचहरी में प्रवेश प्रतिबंधित किया जाए.</p><p>4- कचहरी में प्रवेश करने वाले की जांच पड़ताल कर ही प्रवेश कराया जाए और यदि उसके पास हथियार या कोई भी घातक वस्तु हों तो उसके लाने का कारण पता कर गेट पर ही रजिस्टर में दर्ज कर हथियार जमा कराया जाए और गैर जरूरी होने पर हथियार सहित कचहरी में प्रवेश न करने दिया जाए. </p><p> हमें ये प्रतिबंध नागवार गुजर सकते हैं किन्तु ये सब जरूरी हैं न्याय व्यवस्था को सुदृढ़ और सुरक्षित रूप से कायम रखने के लिए और मैं समझती हूं कि सतर्कता के तौर पर इन्हें अपनाया जाना चाहिए.</p><p>शालिनी कौशिक एडवोकेट</p><p>कैराना </p>Shalini kaushikhttp://www.blogger.com/profile/10658173994055597441noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-914093468121573002.post-79254069390292142192022-04-18T23:12:00.003-07:002022-04-18T23:22:12.889-07:00वकीलों का ड्रेस कोड <p> </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg_oB4lWvpsLy49Ehy0nP_vD5VtFZv0pbkulpbD4DqhMnVuk4207XzrL0fcO2yKN3HdZg2LR7MBitB6LXQPX1b7Ukrb4-IGg-4yOsUJXBQs9GB09_VLhH9AWWvLM4X-crGgcFWR7HK2XhT03x11AOIvVl_qzKt146ydqHmdG8Nc2O3aCD0JrMFEwgykTg/s1297/85655-1-1068x1297.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1297" data-original-width="1068" height="200" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg_oB4lWvpsLy49Ehy0nP_vD5VtFZv0pbkulpbD4DqhMnVuk4207XzrL0fcO2yKN3HdZg2LR7MBitB6LXQPX1b7Ukrb4-IGg-4yOsUJXBQs9GB09_VLhH9AWWvLM4X-crGgcFWR7HK2XhT03x11AOIvVl_qzKt146ydqHmdG8Nc2O3aCD0JrMFEwgykTg/w165-h200/85655-1-1068x1297.jpg" width="165" /></a></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><br /></div>प्रत्येक पेशे का एक निश्चित ड्रेस कोड होता है जो एक पेशे से जुड़े हुए लोगों की पहचान से गहरा ताल्लुक रखता है. यही ड्रेस कोड आम जनता में सफेद शर्ट, नेक बैंड और काले कोट पहने व्यक्ति के लिए तुरंत कानूनी पेशे से जुड़े व्यक्तित्व का परिचय देता है. जहां यह ड्रेस कोड अधिवक्ताओं को आम जनता में " ऑफिसर ऑफ द कोर्ट" के रूप में पहचान देता है वहीं यह ड्रेस कोड अधिवक्ताओं में आत्मविश्वास और अनुशासन को भी जन्म देता है. <div> यह काली और सफेद पोशाक, जो कानूनी पेशेवरों द्वारा पहनी जाती है, इस ड्रेस कोड के विकास का इतिहास मध्य युग का है जब वकीलों को बैरिस्टर, सॉलिसिटर, अधिवक्ता या पार्षद के रूप में भी जाना जाता था, तब उनका ड्रेस कोड जजों के समान था.</div><div> भारत में कानूनी व्यवस्था का आरम्भ ब्रिटेन द्वारा किया गया और क्योंकि जब भारत में कानूनी व्यवस्था का आरम्भ हुआ, भारत पर अंग्रेजों का शासन था तो अधिवक्ताओं की ड्रेस पर भी ब्रिटेन की व्यवस्था हावी होनी अवश्यंभावी थी. तब से लेकर अब तक बहुत से परिवर्तन होते रहे और अब भारत में वकीलों का ड्रेस कोड अधिवक्ता अधिनियम 1961 के तहत बार काउंसिल ऑफ इंडिया के नियमों द्वारा शासित होता है. जो इस प्रकार है - </div><div>" उपरोक्त नियमों की धारा 49 सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय, अधीनस्थ न्यायालयों, न्यायाधिकरणों या प्राधिकरणों में उपस्थित होने वाले अधिवक्ताओं के लिए ड्रेस कोड को नियंत्रित करती है। वे अपनी पोशाक के भाग के रूप में निम्नलिखित पहनेंगे, जो शांत और प्रतिष्ठित होंगे। </div><div>I. भारत में अधिवक्ताओं के लिए ड्रेस कोड भाग</div><div>VI: अधिवक्ता अधिनियम, 1961 की धारा 49(1)(gg) के तहत बार काउंसिल ऑफ इंडिया के नियम/नियमों का अध्याय IV। अधिवक्ताओं द्वारा पहना जाता है, जलवायु परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, किसी भी अदालत या न्यायाधिकरण के समक्ष पेश होता है। ”</div><div><br /></div><div>1- कोट</div><div><br /></div><div>(ए) एक काले बटन-अप कोट, चापकन, अचकन, काला शेरवानी और वकील के गाउन के साथ सफेद बैंड, या</div><div>(बी) एक काला खुला स्तन कोट, सफेद कॉलर, कठोर या मुलायम, और वकील के गाउन के साथ सफेद बैंड .</div><div>किसी भी मामले में जींस को छोड़कर लंबी पतलून (सफेद, काली, धारीदार या ग्रे) या धोती:</div><div>2- काली टाई</div><div><br /></div><div>परन्तु यह और कि उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालयों, जिला न्यायालयों, सत्र न्यायालयों या नगर सिविल न्यायालयों के अलावा अन्य न्यायालयों में बैंड के स्थान पर काली टाई पहनी जा सकती है।</div><div>द्वितीय. लेडी एडवोकेट्स:</div><div>(ए) ब्लैक फुल स्लीव जैकेट या ब्लाउज, व्हाइट कॉलर स्टिफ या सॉफ्ट व्हाइट बैंड्स और एडवोकेट्स गाउन। सफेद ब्लाउज, कॉलर के साथ या बिना कॉलर के, सफेद बैंड के साथ और काले खुले ब्रेस्टेड कोट के साथ।</div><div>या</div><div>(बी) साड़ी या लंबी स्कर्ट (सफेद या काला या बिना किसी प्रिंट या डिज़ाइन के कोई भी मधुर या मंद रंग) या फ्लेयर्स (सफेद, काली या काली-धारीदार या ग्रे) या पंजाबी पोशाक चूड़ीदार-कुर्ता या सलवार-कुर्ता के साथ या बिना दुपट्टा (सफेद या काला) या काले कोट और बैंड के साथ पारंपरिक पोशाक।</div><div><br /></div><div>III. बशर्ते कि सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय में पेश होने के अलावा अधिवक्ता का गाउन पहनना वैकल्पिक होगा।</div><div><br /></div><div>चतुर्थ। परन्तु यह और कि उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालय, जिला न्यायालय, सत्र न्यायालय या नगर सिविल न्यायालय के अलावा अन्य न्यायालयों में बैंड के स्थान पर काली टाई पहनी जा सकती है।"</div><div>न्यायाधीशों का ड्रेस कोड वरिष्ठ अधिवक्ताओं के समान ही होता है। पुरुष न्यायाधीश सफेद शर्ट और पतलून के साथ एक सफेद गर्दन बैंड और एक काले कोट के साथ एक गाउन पहनते हैं, जबकि महिला न्यायाधीश आमतौर पर पारंपरिक साड़ी पहनना पसंद करती हैं, और इसे एक सफेद गर्दन बैंड, एक काला कोट और एक गाउन के साथ जोड़ती हैं।</div><div><br /></div><div>नियमों के अनुसार, एक अधिवक्ता को न्यायालयों के अलावा अन्य सार्वजनिक स्थानों पर बैंड या गाउन नहीं पहनना चाहिए, सिवाय ऐसे औपचारिक अवसरों पर और ऐसे स्थानों पर जैसे कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया या कोर्ट द्वारा निर्धारित किया जा सकता है।</div><div>COVID-19 के प्रकोप के बीच जब न्यायालयों को अपने कामकाज के लिए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग प्रणाली का पालन करना पड़ा है, तो वकीलों के लिए अदालत के सामने पेश होने के लिए ड्रेस कोड में भी बदलाव लाया गया है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अधिवक्ताओं को निर्देश दिया है कि वे वर्चुअल कोर्ट के माध्यम से की जा रही सुनवाई के दौरान "सादे सफेद शर्ट / सलवार-कमीज / साड़ी, सादे सफेद गले में पट्टी" पहन सकते हैं। इसी आधार पर देश भर के उच्च न्यायालयों ने वर्चुअल कोर्ट के माध्यम से पेश होने के लिए वकीलों के नए ड्रेस कोड में बदलाव को अधिसूचित किया है। इसमें कहा गया है कि यह प्रणाली तब तक बनी रहेगी जब तक कि "चिकित्सा अनिवार्यताएं मौजूद न हों या अगले आदेश तक।"</div><div> इसी ड्रेस कोड पर आपत्ति जताई गई है और इलाहाबाद हाई कोर्ट के समक्ष इसे बदलने के लिए याचिका दायर की गई है, जिस पर बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) ने इलाहाबाद हाईकोर्ट को सूचित किया कि उसने वकीलों के लिए ड्रेस कोड के मुद्दे पर बार और न्यायपालिका के साथ विचार-विमर्श करने के लिए पांच सदस्यीय समिति का गठन किया है। बीसीआई ने यह सबमिशन हाईकोर्ट द्वारा उसे जारी एक नोटिस के जवाब में दिया है, जो अदालत के समक्ष दायर याचिका पर वकीलों के लिए निर्धारित काले कोट और पोशाक के मौजूदा ड्रेस कोड पर प्रतिबंध लगाने की मांग कर रहा है। इसमें आरोप लगाया गया कि यह भारत की जलवायु परिस्थितियों के खिलाफ है।</div><div> याचिका में किए गए अभिकथनों का उल्लेख करते हुए बीसीआई ने कहा: "वास्तव में याचिकाकर्ता ने कहा है कि बैंड ईसाई धर्म का प्रतीक है। उनके बयान के अनुसार इसे बंद कर दिया जाना चाहिए। गैर ईसाइयों को इसे पहनने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कोट और गाउन पहनने पर भी सवाल उठाया है। ड्रेस फ्रेमिंग के समय नियमों को बनाते वक्त और न ही उसके बाद से आज तक इस तरह की व्याख्या की गई है। इस मुद्दे पर निर्णय लेने से पहले बार और न्यायपालिका के वरिष्ठ सदस्यों सहित सभी हितधारकों के साथ इस मुद्दे पर विस्तृत विचार-विमर्श की आवश्यकता है।"</div><div> याचिका में आगे कहा गया, "एडवोकेट्स के लिए निर्धारित ड्रेस कोड जहां उन्हें कोट और गाउन पहनना है और एक बैंड के माध्यम से अपनी गर्दन बांधना है, जलवायु परिस्थितियों के अनुसार नहीं है ... एडवोकेट्स बैंड ईसाई धर्म का धार्मिक प्रतीक है। इसलिए गैर-ईसाइयों को इसे पहनने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है… सफेद साड़ी और सलवार-कमीज पहनना हिंदू संस्कृति और परंपरा के अनुसार विधवा महिलाओं का प्रतीक है, इसलिए बीसीबी की ओर से इस संबंध में भी विवेक का प्रयोग नहीं किया गया।. </div><div> इसे लेकर जब आम जनता और अधिवक्ताओं की राय ली गई तो कुछ इस तरह के विचार सामने आए - एक संजू बाबा कहते हैं कि </div><div>"वर्तमान में वकीलों का ड्रेस किसी धरम के आधार पर नहीं है , भारत के जलवायु के विपरीत भी नहीं है ,याचिकाकर्ता को बाहरी चीजों पर ध्यान न देकर न्यायिक प्रणाली और न्याय पर ध्यान केंद्रित करनी चाहिए ड्रेस कोड बदलने से न्याय पर असर नहीं पड़ेगा बल्कि ड्रेस कोड के चक्कर में भेद भाव पैदा होगा ,कोई कहेगा ये ड्रेस मुझमें सूट नहीं करता, इसका रंग मेरे ग्रह के अनुसार नहीं है, ऐसी रंग की ड्रेस पहनने से केस में हार होती है इत्यादि,.........…"</div><div>अधिवक्ता अर्चित पंवार: बार एसोसिएशन, कैराना (शामली) कहते हैं कि </div><div> "ड्रेस कोड का ठीक पालन करना बहुत ज्यादा जरुरी है… उचित ड्रेस कोड का ना होना एक तरह की अवमानना ही है मेरी राय में और रही बात ड्रेस कोड में तबदीली करने की… मेरी राय में मौजूदा ड्रेस कोड पर्याप्त है और इसमें कोई बदलाव की आवश्यकता नहीं है।" </div><div>सुरेन्द्र कुमार मलिक एडवोकेट: बार एसोसिएशन, कैराना (शामली) को ड्रेस आरामदायक भी चाहिए और वे कहते हैं कि </div><div>" बैंड और गाउन को हटाना चाहिए</div><div>कोट व टाई होनी चाहिए" </div><div> और मैं स्वयं एक अधिवक्ता हूं और मुझे स्वयँ पर गर्व भी होता है और मेरा आत्मविश्वास भी बढ़ता है जब मैं यह ड्रेस पहनती हूं, समाज में सम्मान प्राप्त होता है इस ड्रेस को धारण करने पर, यह कहना कि यह भारत की धार्मिक रीति रिवाजों के विपरीत है, गलत है क्योंकि ये भारतीय संस्कृति में पाखण्ड परोसने वालों के कारनामे हैं जिन्होंने एक विधवा के लिए ड्रेस कोड का सृजन किया, नारी पर जितने अत्याचार पुरुष प्रधान समाज कर सकता है हमेशा से करता आया है और करता ही रहेगा, उन्होंने सफेद रंग को विधवाओं के लिए लागू किया, पुरुष का विवाह हो जाए या पत्नी मर जाये, वह वैसे का वैसा ही रहेगा, उसके रहन सहन, पहनावे में कोई अन्तर नहीं आएगा किन्तु नारी की जिंदगी में दोनों ही स्थितियों में बंदिशें लागू हो जाती हैं किन्तु यह पिछड़ेपन की सोच न्याय के पैरोकारों पर लागू नहीं हो सकती. इस ड्रेस कोड ने एक लम्बे समय से हमारे समाज, देश, विदेश में एक पहचान बनाई है और हम नहीं चाहते हैं कि यह पहचान हमसे छिन जाए. आज स्थिति यह है कि पहले पहल युवा पीढ़ी इस ड्रेस कोड के आकर्षण में ही वक़ालत व्यवसाय को अपनाते हैं और बाद में अपनी योग्यता से आगे बढ़ते जाते हैं. </div><div> इसलिए बार काउंसिल ऑफ इंडिया से हमारा विनम्र निवेदन है कि अधिवक्ताओं के ड्रेस कोड को भारतीय पुरातनवादी सोच के कारण परिवर्तन की ओर न धकेला जाए और इसे जस का तस ही रखा जाए. </div><div>शालिनी कौशिक एडवोकेट </div><div>सीट नंबर 29 </div><div>बार एसोसिएशन </div><div>कैराना </div><div><br /><div> </div></div>Shalini kaushikhttp://www.blogger.com/profile/10658173994055597441noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-914093468121573002.post-15553081031567349882022-03-26T08:18:00.004-07:002022-03-26T08:18:27.483-07:00कैराना स्थित जनपद न्यायालय ही हो शामली जनपद का मुख्य न्यायालय <p> </p><blockquote style="border: none; margin: 0 0 0 40px; padding: 0px;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: left;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhZTXl_YdaCMM_UmLbgQZMwE32uYDN4bZcUbwz5dOR1qNtPUKOiTqNkdd5-ykDSU9imb3jLZUaopRSv7ei5wr1V90Q7j4BDB_GR5VbEMdPQbOeswq1JW1nBct8diR47w7fIUDacQHFfrti7wCBRazYYBCb-d-VgvbuNfZ4WlMstuIQTIdyg_uPWCiVuCQ/s691/images%20(21).jpeg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="443" data-original-width="691" height="128" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhZTXl_YdaCMM_UmLbgQZMwE32uYDN4bZcUbwz5dOR1qNtPUKOiTqNkdd5-ykDSU9imb3jLZUaopRSv7ei5wr1V90Q7j4BDB_GR5VbEMdPQbOeswq1JW1nBct8diR47w7fIUDacQHFfrti7wCBRazYYBCb-d-VgvbuNfZ4WlMstuIQTIdyg_uPWCiVuCQ/w200-h128/images%20(21).jpeg" width="200" /></a></div></blockquote><br /><blockquote style="border: none; margin: 0 0 0 40px; padding: 0px;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><span style="text-align: left;"> 2011 में 28 सितंबर को शामली जिले का सृजन किया गया. तब उसमें केवल शामली और कैराना तहसील शामिल थी. इससे पहले शामली और कैराना तहसील मुजफ्फरनगर जनपद के अंतर्गत आती थी. कुछ समय बाद शामली जिले में ऊन तहसील बनने के बाद अब शामली जिले के अंतर्गत तीन तहसील कार्यरत हैं. 2018 के अगस्त तक शामली जिले का कानूनी कार्य मुजफ्फरनगर जिले के अंतर्गत ही कार्यान्वित रहा किन्तु अगस्त 2018 में शामली जिले की कोर्ट शामली जिले में जगह का चयन न हो पाने के कारण कैराना में आ गई और इसे नाम दिया गया -" जिला एवं सत्र न्यायालय शामली स्थित कैराना. "</span></div></blockquote><p> 2018 से अब तक मतलब मार्च 2022 तक शामली जिले के मुख्यालय से लगभग 12 किलोमीटर दूर जिला जज की कोर्ट के लिए जगह का चयन हो जाने के बाद केवल बाउंड्रीवाल का ही निर्माण हो पाया है और शामली जिले में केवल तहसील स्तर का ही कार्य सम्पन्न हो रहा है. जिसे देखते हुए कहा जा सकता है कि वहां कानूनी विभाग लगभग शून्यता की स्थिति में है और वहां जिला जज की कोर्ट की स्थापना के साथ साथ मुंसिफ कोर्ट से लेकर जिला जज की कोर्ट की स्थापना करने के लिए बहुत बड़े स्तर का कार्य सम्पन्न करना होगा, जबकि शामली जिले की तहसील कैराना में जिला जज की कोर्ट से एक नंबर कम की कही जाने वाली कोर्ट ए डी जे कोर्ट की स्थापना ही 2011 में हो चुकी है और कैराना तहसील में स्थापित न्यायालय परिसर शामली जिले के मुख्यालय से मात्र 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है.</p><p><br /></p><p> ऐसे में, माननीय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी से विनम्र निवेदन है कि वे कैराना की सुदृढ़ न्यायिक व्यवस्था, कैराना में फैली अपराधियों की जड़ें और शामली जिले की बदहाल कर देने वाली जाम की समस्या को देखते हुए कैराना में ही जिला एवं सत्र न्यायाधीश के न्यायालय को शामली जिले का मुख्य न्यायालय घोषित करें और यदि इसके लिए उन्हें कैराना में न्यायालय परिसर तक के क्षेत्र को शामली जिले के अंतर्गत ही घोषित करना पड़े तो करें क्योंकि शामली जिले में जिस जगह का चयन जिला कोर्ट के लिए किया गया है वहां तक क्षेत्र के निवासियों का पहुंचना असंभव नहीं तो कठिन अवश्य है क्योंकि शामली जिला इतना सघन रूप से बसा हुआ है कि मात्र एक किलोमीटर पार करने में भी 1-2 घण्टे से ऊपर का समय लग रहा है. ऐसे में न्याय पाने के लिए पीड़ितों को या तो रात में ही घर से निकलना पड़ेगा या फिर न्याय पाने की आशा को ही खो देना पड़ेगा. साथ ही, यदि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा कैराना स्थित जनपद न्यायालय को मुख्य न्यायालय का दर्जा दिया जाता है तो सरकार का बहुत सारा धन भी बचेगा और कैराना तहसील में लगभग खंडहर पड़े बहुत सारे क्षेत्र का न्यायालय और अधिवक्ताओं के चेम्बर के रूप में इस्तेमाल भी हो सकेगा. </p><p><br /></p><p> अतः माननीय मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ जी कम से कम एक बार जांच कमेटी बिठाकर कैराना स्थित जनपद न्यायालय को ही शामली जिले के मुख्य न्यायालय का दर्जा दिए जाने की मांग पर विचार करें. </p><p><br /></p><p> 🙏🙏धन्यवाद 🙏🙏</p><p><br /></p><p>शालिनी कौशिक एडवोकेट</p><p><br /></p><p>कैराना (शामली) </p>Shalini kaushikhttp://www.blogger.com/profile/10658173994055597441noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-914093468121573002.post-13741136899038248442022-03-25T10:10:00.003-07:002022-03-25T11:11:50.358-07:00खंडपीठ /चेंबर /आर्थिक मदद /आरक्षण वकीलों को कुछ तो दें योगी जी <p> <a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEji3ttcxp6P-kKQnNFD1rNgqWpQmNxoTfEIt7AhZU5Wcy9OcClYWePZpH3NcSvCHmzaPKAC9nsk_wd7uobDOWFugxZ4MQqvSXcxTPEtrrlxlEtPcYMSy_JiPoILzZ-VLwQVpp0fd24mHWt-EFcueLVENQg5r0P-mDOq7uvjagUCg_aWE6Ds3CI0MSY7Qw/s414/i2ieop.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em; text-align: center;"><img border="0" data-original-height="233" data-original-width="414" height="113" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEji3ttcxp6P-kKQnNFD1rNgqWpQmNxoTfEIt7AhZU5Wcy9OcClYWePZpH3NcSvCHmzaPKAC9nsk_wd7uobDOWFugxZ4MQqvSXcxTPEtrrlxlEtPcYMSy_JiPoILzZ-VLwQVpp0fd24mHWt-EFcueLVENQg5r0P-mDOq7uvjagUCg_aWE6Ds3CI0MSY7Qw/w200-h113/i2ieop.jpg" width="200" /></a></p><p> माननीय योगी आदित्यनाथ जी ने आज उत्तर प्रदेश के दूसरी बार मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण की है. जहां एक ओर योगी आदित्यनाथ जी ने अपने पिछले कार्यकाल में पुलिस और प्रशासन का बेहतर तरीके से इस्तेमाल करते हुए आपराधिक तत्वों को उत्तर प्रदेश में जेल के सींखचों में डालने का कार्य सफलतापूर्वक किया है वहीं न्याय के पैरोकार अधिवक्ताओं के प्रति उपेक्षापूर्ण रवैया योगी सरकार द्वारा अख्तियार किया गया है. योगी आदित्यनाथ जी के माध्यम से सभी के लिए घोषणाएं की जा रही हैं किन्तु वकीलों को लेकर अभी तक किसी मदद का आश्वासन सामने नहीं आया है. अतः देश औेर दुनिया की कोरोना कालीन उपजी विषम परिस्थितियों को देखते हुए मेरा योगी जी से निम्न निवेदन है -</p><p>1 - यह कि जूनियर अधिवक्ताओं के लिए आर्थिक सहायता हेतु कुछ राशि सरकार द्वारा घोषित की जाए और कुछ निश्चित धनराशि इस बीमारी के कारण अपने परिजन को खो चुके वकील के परिवार को दिए जाने की जल्द घोषणा की जाए.</p><p>2- यह कि रोजगार की समस्या को लेकर देखते हुए आज बड़ी संख्या में युवाओं द्वारा वक़ालत को अपने व्यवसाय के रूप में अपनाया जा रहा है किन्तु कचहरी में जूनियर वकीलों के लिए सबसे बड़ी समस्या उनके व्यवसाय स्थल को लेकर आ रही है. ऐसे में जूनियर वकीलों के चेम्बर के लिए सम्बन्धित कचहरी में स्थल की उपलब्धता सुनिश्चित करायी जाए.</p><p>3- यह कि वक़ालत व्यवसाय में आज भी महिला अधिवक्ताओं को दोयम दर्जा प्राप्त है और उन्हें अभी भी अपना स्थान मजबूत बनाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ता है. ऐसे में, महिला अधिवक्ताओं के लिए न्यायालयों में कमिश्नर और सरकारी वकीलों के पदों पर आरक्षण दिए जाने की व्यवस्था की जाए.</p><p>4- यह कि पिछले 5 दशक से पश्चिमी यू पी के अधिवक्ताओं द्वारा हाई कोर्ट की खंडपीठ की मांग की जा रही है और अब भाजपा नीत सरकार द्वारा अपने मंत्रिमंडल में वेस्ट यू पी को तरजीह दी गई है. ऐसे में अधिवक्ताओं की इस मांग के साथ न्याय करते हुए माननीय योगी जी से निवेदन है कि वेस्ट यू पी में हाई कोर्ट खंडपीठ प्रदान करते हुए यहां की जनता को न्याय के करीब लाया जाए और अधिवक्ताओं के दामन पर हड़ताल प्रिय होने का कलंक हाई कोर्ट खंडपीठ देकर मिटा दिया जाए.</p><p> माननीय श्री योगी आदित्यनाथ जी अधिवक्ताओं की इन सभी समस्याओं पर विचार करेंगे और उन्हें अवश्य हल करेंगे " योगी है तो यकीन है" उक्ति पर ध्यान केन्द्रित करते हुए कहा जा सकता है.</p><p>शालिनी कौशिक एडवोकेट</p><p>कैराना </p>Shalini kaushikhttp://www.blogger.com/profile/10658173994055597441noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-914093468121573002.post-48563646657826884812022-01-28T22:13:00.002-08:002022-01-28T22:27:25.050-08:00 खंडपीठ नहीं तो वोट नहीं <p> </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEjHwwRv3wGPvgrICJ_73CZVlcLc2Aay-rhaBWttMplkJFDbXYYhjOXmLbdSlhUJrMo7mPq2Ai9Q3El0fi9WRS-Yadvg4_8SWoHuOpKjz7dCtt10ZHKmgeugyc4lM55aJEfJ8elcMW3D3VIOUQv4B0Q35LQMg1jeqogt9QoURhygiZQXDhj57Hx6hVTrsA=s540" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="405" data-original-width="540" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEjHwwRv3wGPvgrICJ_73CZVlcLc2Aay-rhaBWttMplkJFDbXYYhjOXmLbdSlhUJrMo7mPq2Ai9Q3El0fi9WRS-Yadvg4_8SWoHuOpKjz7dCtt10ZHKmgeugyc4lM55aJEfJ8elcMW3D3VIOUQv4B0Q35LQMg1jeqogt9QoURhygiZQXDhj57Hx6hVTrsA=s320" width="320" /></a></div><br /><p></p><p>मुर्दा लोहे को औजार बनाने वाले</p><p>अपने आँसू को हथियार बनाने वाले</p><p>हमको बेकार समझते हैं सियासत दां</p><p>मग़र हम हैं इस मुल्क की सरकार बनाने वाले</p><p> सत्य और सही उद्घोषित हैं ये पंक्तियाँ वेस्ट यू पी के अधिवक्ताओं की दशा की. यू पी में विधानसभा चुनावों का दौर चल रहा है, कहीं लड़की, कहीं किसान, कहीं महंगाई - बेरोजगारी, कहीं जाट - मुसलमान, कहीं दलित कहीं व्यापारी तो कहीं मथुरा कहीं काशी का शोर है किन्तु अगर कहीं दबा हुआ है तो वह है लगभग 4 दशक से पश्चिमी यू पी के अधिवक्ताओं द्वारा की जा रही हाई कोर्ट खंडपीठ की मांग का मुद्दा, जिसे लेकर माननीय सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया, इलाहाबाद हाई कोर्ट, बार काउंसिल ऑफ इंडिया बार बार वकीलों की हड़ताल से परेशानी पर टिप्पणियों द्वारा जता भी चुके हैं. हाई कोर्ट अपने फैसलों में जिक्र करते हैं कि पिछले 35 साल से शनिवार को अदालत कार्यवाही का बहिष्कार करके विरोध करने का सिलसिला रहा है.</p><p> वकीलों की हड़ताल से कोर्टस, वादकारी, कर्मचारी सब परेशान हैं किन्तु वकीलों की परेशानी किसी को भी दिखाई नहीं देती, जो न्याय का पैरोकार होने के कारण न्याय अंतिम व्यक्ति तक, पीड़ित तक पहुंचाने के लिए अपने व्यावसायिक हितों को कुचलने का कार्य कर रहा है और वह भी उस स्थिति में जब कि उसे वक़ालत करते हुए कोई और रोजगार करने का अधिकार नहीं है.</p><p> 1979 से पश्चिमी उत्तर प्रदेश के वकीलों ने पश्चिमी यू पी में हाई कोर्ट खंडपीठ की मांग उठाई और तबसे देश प्रदेश में कॉंग्रेस, भाजपा, सपा, बसपा, यूपीए, एनडीए सभी पार्टियों की सरकारें आई किन्तु सभी ने विद्वान वर्ग में सम्मिलित अधिवक्ता वर्ग को मूर्ख बनाने का ही कार्य किया है.</p><p> समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध,</p><p> जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनके भी अपराध.</p><p> कॉंग्रेस पार्टी के तो कहने ही क्या, वह 60-70 सालों तक सत्ता में रहते हुए श्री राम मन्दिर के ताले खुलवा सकती है किन्तु वेस्ट यू पी की जनता के न्याय पर लगे हुए ताले खुलवाना उसकी नीयत में ही नहीं, सपा ने इस ओर अपना कोई दायित्व कभी दिखाया ही नहीं, बसपा प्रमुख मायावती जी वेस्ट यू पी को पूरी हाई कोर्ट देने चली वह भी 2007 से 2012 के पूरे कार्यकाल के अंतिम समय में उत्तर प्रदेश के टुकड़े का चार्ट दिखाकर और भाजपा देश - प्रदेश दोनों जगह पूर्ण और मजबूत बहुमत में रहते हुए भी खंडपीठ आंदोलन के संबंध में उपेक्षापूर्ण रवैय्या अख्तियार किए रही.</p><p> वेस्ट के पैसे से पूर्वी उत्तर प्रदेश फलता फूलता है और वेस्ट को ही लूटता रहेगा और यह क्रम यूँ ही चलता रहेगा क्योंकि उत्तर प्रदेश की राजनीति में पूर्वी नेताओं का ही दबदबा कायम रहता है और वे अपनी राजनीति जमाए रखने के लिए वेस्ट यू पी को कभी हाई कोर्ट खंडपीठ नहीं मिलने देंगे किन्तु यहां अगर आंदोलन की असफलता की ज्यादा जिम्मेदारी की बात की जाए तो वह सबसे ज्यादा वेस्ट यू पी के अधिवक्ताओं की है जिनके लिए चुनाव आने पर पार्टियां, जातियां हावी हो जाती हैं. आंदोलन की सफ़लता उनके लिए गौण हो जाती है वे बंट जाते हैं और इस मुद्दे को लेकर चुप हो जाते हैं, दुष्यंत कुमार ने कहा है-</p><p>"यहां तो सिर्फ गूंगे बहरे लोग बसते हैं</p><p>खुदा जाने यहां पर किस तरह का जलसा हुआ होगा."</p><p> मेरा वेस्ट यू पी के अधिवक्ताओं से केवल इतना कहना है कि आप अगर बंट रहे हैं तो बंटे रहिए, धीरे धीरे आपका हड़ताल करने का अधिकार भी छीन लिया जाएगा और तब सिवाय " असफल क्रांतिकारी " के तमगे के बगैर आपके कुछ भी हाथ नहीं आएगा और अगर आप वेस्ट यू पी में हाई कोर्ट खंडपीठ के लिए प्रतिबद्ध हैं तो आगे आयें और एकजुट होकर चुनाव मैदान में उतरी हुई सभी पार्टियों के सामने " खण्डपीठ नहीं तो वोट नहीं" के निर्णय को मजबूती से रखें. कवि दुष्यंत कुमार ने भी कहा है कि </p><p>हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए </p><p>इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए </p><p>सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं </p><p>मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए. </p><p> और अब ये हमारे हाथ में है, जब भगीरथ भगवान शिव की उपासना कर देव लोक से माँ गंगा को धरती पर ला सकते हैं तो हम हाई कोर्ट खंडपीठ क्यूँ नहीं ला सकते जबकि ये हमारा लोकतंत्र है, हमारी ही चुनी जाने वाली सरकार है. इसलिए एकजुट होइए और सभी पार्टियों से कह दीजिए </p><p>" खण्डपीठ नहीं तो वोट नहीं" </p><p>द्वारा </p><p>शालिनी कौशिक एडवोकेट </p><p>जिला कोर्ट शामली स्थित कैराना </p><p><br /></p>Shalini kaushikhttp://www.blogger.com/profile/10658173994055597441noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-914093468121573002.post-4402160825630699022021-11-15T08:20:00.002-08:002021-11-15T08:24:07.362-08:00ADVOCATE PROTECTION BILL <div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgcEcbG9OIDb5iICt331um2yLvKiw6e_FAPfl3dkBtIdAv-ip5xC6jVsYkDeDaU2uxCKyubO4CVde5WdLpsGD5ppllqVXwiLj7pbp7uI7yNdXeevSzu2e3CcH736j-QqheILrkUvctznUYZ/s1080/IMG_20211115_083644.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="910" data-original-width="1080" height="169" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgcEcbG9OIDb5iICt331um2yLvKiw6e_FAPfl3dkBtIdAv-ip5xC6jVsYkDeDaU2uxCKyubO4CVde5WdLpsGD5ppllqVXwiLj7pbp7uI7yNdXeevSzu2e3CcH736j-QqheILrkUvctznUYZ/w200-h169/IMG_20211115_083644.jpg" width="200" /></a></div><br /><div><br /></div><div>वकीलों की सुरक्षा के लिए बार काउंसिल ऑफ इंडिया प्रतिबद्ध है और इसीलिए अधिवक्ता सुरक्षा कानून के ड्राफ़्ट को बीसीआई ने मंजूरी दे दी है. बीसीआई ने इस ऐक्ट का प्रारूप तैयार कर सभी राज्यों की बार काउंसिल को भेजा था और उनसे सुझाव और संशोधन के लिए राय मांगी थी और अब बिना किसी संशोधन के ही ऐक्ट के मसौदे को मंजूरी दी गयी है. एडवोकेट प्रोटेक्शन बिल की रूपरेखा और ड्राफ़्ट बार काउंसिल ऑफ इंडिया की सात सदस्यीय कमेटी ने तैयार की है और इसकी 16 धाराओं में वकील तथा उसके परिवार के सदस्यों को किसी प्रकार की क्षति और चोट पहुंचाने की धमकी देना, किसी भी सूचना को जबरन उजागर करने का दबाव देना, पुलिस अथवा किसी अन्य पदाधिकारी से दबाव दिलवाना, वकीलों को किसी केस में पैरवी करने से रोकना, वकील की संपत्ति को नुकसान पहुंचाना, किसी वकील के खिलाफ अपमानजनक शब्द का इस्तेमाल करना जैसे कार्यों को अपराध की श्रेणी में रखा गया है और ये सभी अपराध गैर जमानती अपराध होंगे. ऐसे अपराध के लिए 6 माह से 5 वर्ष की सजा के साथ साथ दस लाख रुपये जुर्माना लगाने का भी प्रावधान है जिसके लिए पुलिस को 30 दिनों के भीतर अनुसंधान पूरा करना होगा, जिसकी सुनवाई जिला एवं सत्र न्यायाधीश /अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश करेंगे. वकील को सुरक्षा के लिए हाई कोर्ट में आवेदन देना होगा और हाई कोर्ट वकील के आचरण सहित अन्य तथ्यों की जांच कर जरूरत पड़ने पर स्टेट बार काउंसिल तथा बीसीआई से जानकारी लेकर सुरक्षा देने के बारे में आदेश जारी करेगा लेकिन किसी केस में अभियुक्त वकील पर यह कानून लागू नहीं होगा.</div><div> प्रस्तुति</div><div>शालिनी कौशिक एडवोकेट</div><div><br /></div>Shalini kaushikhttp://www.blogger.com/profile/10658173994055597441noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-914093468121573002.post-9305976713816053042021-07-17T11:58:00.001-07:002021-07-17T11:58:31.112-07:00Advocates learn from Modi ji and BJP <div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjuRzR_ekf4F6HB8_MtXUXPnicrHhrYIE1jEIMZih8HZRvTPARYAYRe3OczBxxEcZlR5yZU3PSSv3FzTEFfg9LmeyyRmCzXYd1K2iR4TYNCkXeScIT6IfWmPgo-fmKhdwjCTxSJ9jfijMrV/s1080/IMG_20210717_233726.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="606" data-original-width="1080" height="113" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjuRzR_ekf4F6HB8_MtXUXPnicrHhrYIE1jEIMZih8HZRvTPARYAYRe3OczBxxEcZlR5yZU3PSSv3FzTEFfg9LmeyyRmCzXYd1K2iR4TYNCkXeScIT6IfWmPgo-fmKhdwjCTxSJ9jfijMrV/w200-h113/IMG_20210717_233726.jpg" width="200" /></a></div><br /><p><br /></p><p> एजाज रहमानी ने कहा है कि -</p><p> अभी से पाँव के छाले न देखो,</p><p> अभी यारों सफर की इब्तदा है. </p><p>वेस्ट यू पी में हाई कोर्ट बेंच की मांग करते करते वकीलों को 4 दशक से ऊपर हो गए हैं किन्तु आंदोलन कभी वर्तमान रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह जी के पूर्व में दिए गए बयान के समर्थन, कभी पंजाब के राज्यपाल रहे श्री वीरेन्द्र वर्मा जी के समर्थन के बयान से ऊपर की सफलता अर्जित नहीं कर पाया जबकि इस आंदोलन की सफलता के लिए बार एसोसिएशन कैराना के अधिवक्ताओं ने बाबू कौशल प्रसाद एडवोकेट जी के नेतृत्व में 1989 में कॉंग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद जी का सफल घेराव किया और इसी सफलता के कारण तत्कालीन विधायक मुनव्वर हसन के समर्थकों द्वारा कैराना के अधिवक्ताओं पर हमले किए गए, उनके चेंबर तोड़े गए, वेस्ट यू पी के अधिवक्ताओं द्वारा कई कई महीनों तक हड़ताल की गई, शनिवार की हड़ताल वेस्ट यू पी में हाई कोर्ट बेंच के लिए लगातार जारी है किन्तु परिणाम ढाक के तीन पात. </p><p> आज न्यू इंडिया का समय चल रहा है, मोदी जी के नेतृत्व में सोशल मीडिया निरंतर तरक्की कर रहा है ऐसे में मोदी जी की मन की बात, ट्विटर, फ़ेसबुक, कू, आदि सोशल मीडिया अकाउंट से प्रेरणा लेकर केंद्रीय संघर्ष समिति को अपने इस आंदोलन की सफलता के लिए निम्न उपायों को अमल में लाना चाहिए -</p><p>1- भाजपा के कार्यकर्ताओं की भांति वेस्ट यू पी के अधिवक्ताओं को भी घर घर जाकर जनता में वेस्ट यू पी हाई कोर्ट बेंच के लाभों को लेकर जागरूकता फैलाने के प्रयास करने चाहिए और इसके लिए हर बार एसोसिएशन द्वारा क्षेत्रीय अधिवक्ताओं की समिति गठित की जानी चाहिए.</p><p>2- जिस तरह हमारे मोदी जी और योगी जी ने अपने अपने सोशल मीडिया अकाउंट बनाए हैं और उनके माध्यम से आम जनता से जुड़े हैं उसी तरह केंद्रीय संघर्ष समिति को भी अपने सोशल मीडिया अकाउंट बनाने चाहिए और उनके माध्यम से जनता से जुड़कर उन्हें अपने आंदोलन से जोड़ लेना चाहिए.</p><p>3- कोई भी मीटिंग अधिवक्ता भवन में नहीं होनी चाहिए बल्कि जनता के बीच खुले आकाश के नीचे और गाँव गाँव तक पहुंच बना कर होनी चाहिए.</p><p>4- आम जनता से भी सुझाव आमंत्रित किए जाने चाहिए और उन्हें अधिवक्ताओं के बीच अपनी बात रखने का अवसर देना चाहिए.</p><p> याद रखिए यह आंदोलन अधिवक्ताओं के व्यावसायिक फायदे के लिए नहीं है बल्कि यह आंदोलन न्याय को पीड़ित के पास तक पहुंचाने के लिए है और इसलिए इसमे जनता की भागीदारी अधिवक्ताओं के साथ जरूरी है और यह बात निश्चित रूप से कही जा सकती है कि जिस दिन जनता अधिवक्ता जिंदाबाद का नारा बुलंद होगा उस दिन ये आंदोलन अवश्य सफल होगा.</p><p>केंद्रीय संघर्ष समिति, मेरठ को यह ध्यान में रखते हुए जनता को जोड़ कर आन्दोलन की सफलता के लिए आगे बढ़ना होगा - </p><p>तू अगर चाहे झुकेगा आसमां भी सामने ,</p><p> दुनिया तेरे आगे झुककर सलाम करेगी .</p><p> जो आज न पहचान सके तेरी काबिलियत ,</p><p> कल उनकी पीढियां तक इस्तेकबाल करेंगी .</p><p> शालिनी कौशिक एडवोकेट</p><p> बार एसोसिएशन</p><p> कैराना (शामली)</p>Shalini kaushikhttp://www.blogger.com/profile/10658173994055597441noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-914093468121573002.post-48902597824258150712021-07-09T11:38:00.003-07:002021-07-09T11:38:35.695-07:00अविवाहित बेटी और भरण पोषण का अधिकार <p> </p><p><br /></p><table align="center" border="0" cellpadding="0" cellspacing="0" style="cursor: default; font-family: "times new roman"; margin-bottom: 0.5em; margin-left: auto; margin-right: auto; padding: 6px; text-align: center;"><tbody><tr><td style="cursor: text; font-size: 11px; margin: 8px;"><img alt="" height="133" src="http://t0.gstatic.com/images?q=tbn:ANd9GcSvgN5knvQvS1DqzIaz2f5auFUwLKLgQCl3qsCwHPW5XGyJwfp7hEL7SPY" style="border-width: 0px; margin-left: auto; margin-right: auto;" width="200" /></td></tr><tr><td style="cursor: text; font-size: 13px; margin: 8px; padding-top: 4px;"><br /></td></tr></tbody></table><div style="font-family: "times new roman"; line-height: normal; margin: 0px;"><span face=""arial" , "helvetica" , sans-serif"><span style="line-height: 28px;"><strong><br /></strong></span></span></div><div style="font-family: arial, helvetica, sans-serif; line-height: 28px;"><strong>दंड प्रक्रिया सहिंता १९७३ की धारा १२५ [१] के अनुसार ''यदि पर्याप्त साधनों वाला कोई व्यक्ति -</strong></div><div style="font-family: arial, helvetica, sans-serif; line-height: 28px;"><strong>...............................................................................................................................................</strong></div><div style="font-family: arial, helvetica, sans-serif; line-height: 28px;"><strong>[ग] -अपने धर्मज या अधर्मज संतान का [जो विवाहित पुत्री नहीं है ],जिसने वयस्कता प्राप्त कर ली है ,जहाँ ऐसी संतान किसी शारीरिक या मानसिक असामान्यता या क्षति के कारण अपना भरण -पोषण करने में असमर्थ है ,..........</strong></div><div style="font-family: arial, helvetica, sans-serif; line-height: 28px;"><strong>........................................................................................................................................................</strong></div><div style="font-family: arial, helvetica, sans-serif; line-height: 28px;"><div><strong>भरण पोषण करने की उपेक्षा करता है या भरण पोषण करने से इंकार करता है तो प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट ,ऐसी उपेक्षा या इंकार साबित होने पर ,ऐसे व्यक्ति को ये निर्देश दे सकेगा कि वह अपनी ऐसी संतान को ऐसी मासिक दर पर जिसे मजिस्ट्रेट उचित समझे भरण पोषण मासिक भत्ता दे .</strong></div><div><strong>और इसी कानून का अनुसरण करते हुए<span class="Apple-converted-space"> </span></strong><strong>मुंबई हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति के यू चंडीवाल ने बहरीन में रहने वाले एक व्यक्ति को उसकी सबसे बड़ी बेटी के भरण पोषण का खर्च देने का आदेश दिया है हालाँकि वह बालिग हो गयी है .अदालत द्वारा १६<span class="Apple-converted-space"> </span></strong><strong>अक्टूबर को फैसले में कहा गया कि इस मामले में सबसे बड़ी बेटी न सिर्फ अविवाहित है बल्कि अपनी माँ पर आश्रित है इसलिए वह भरण पोषण का खर्च पाने की हक़दार है .</strong></div><div></div><div><strong>शालिनी कौशिक</strong></div><div><strong>[कानूनी ज्ञान ]</strong></div></div>Shalini kaushikhttp://www.blogger.com/profile/10658173994055597441noreply@blogger.com0