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ADVOCATE PROTECTION BILL

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वकीलों की सुरक्षा के लिए बार काउंसिल ऑफ इंडिया प्रतिबद्ध है और इसीलिए अधिवक्ता सुरक्षा कानून के ड्राफ़्ट को बीसीआई ने मंजूरी दे दी है. बीसीआई ने इस ऐक्ट का प्रारूप तैयार कर सभी राज्यों की बार काउंसिल को भेजा था और उनसे सुझाव और संशोधन के लिए राय मांगी थी और अब बिना किसी संशोधन के ही ऐक्ट के मसौदे को मंजूरी दी गयी है. एडवोकेट प्रोटेक्शन बिल की रूपरेखा और ड्राफ़्ट बार काउंसिल ऑफ इंडिया की सात सदस्यीय कमेटी ने तैयार की है और इसकी 16 धाराओं में वकील तथा उसके परिवार के सदस्यों को किसी प्रकार की क्षति और चोट पहुंचाने की धमकी देना, किसी भी सूचना को जबरन उजागर करने का दबाव देना, पुलिस अथवा किसी अन्य पदाधिकारी से दबाव दिलवाना, वकीलों को किसी केस में पैरवी करने से रोकना, वकील की संपत्ति को नुकसान पहुंचाना, किसी वकील के खिलाफ अपमानजनक शब्द का इस्तेमाल करना जैसे कार्यों को अपराध की श्रेणी में रखा गया है और ये सभी अपराध गैर जमानती अपराध होंगे. ऐसे अपराध के लिए 6 माह से 5 वर्ष की सजा के साथ साथ दस लाख रुपये जुर्माना लगाने का भी प्रावधान है जिसके लिए पुलिस को 30 दिनों के भीतर अनुसंधान पूरा करना होगा,

Advocates learn from Modi ji and BJP

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 एजाज रहमानी ने कहा है कि -  अभी से पाँव के छाले न देखो,  अभी यारों सफर की इब्तदा है.  वेस्ट यू पी में हाई कोर्ट बेंच की मांग करते करते वकीलों को 4 दशक से ऊपर हो गए हैं किन्तु आंदोलन कभी वर्तमान रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह जी के पूर्व में दिए गए बयान के समर्थन, कभी पंजाब के राज्यपाल रहे श्री वीरेन्द्र वर्मा जी के समर्थन के बयान से ऊपर की सफलता अर्जित नहीं कर पाया जबकि इस आंदोलन की सफलता के लिए बार एसोसिएशन कैराना के अधिवक्ताओं ने बाबू कौशल प्रसाद एडवोकेट जी के नेतृत्व में 1989 में कॉंग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद जी का सफल घेराव किया और इसी सफलता के कारण तत्कालीन विधायक मुनव्वर हसन के समर्थकों द्वारा कैराना के अधिवक्ताओं पर हमले किए गए, उनके चेंबर तोड़े गए, वेस्ट यू पी के अधिवक्ताओं द्वारा कई कई महीनों तक हड़ताल की गई, शनिवार की हड़ताल वेस्ट यू पी में हाई कोर्ट बेंच के लिए लगातार जारी है किन्तु परिणाम ढाक के तीन पात.         आज न्यू इंडिया का समय चल रहा है, मोदी जी के नेतृत्व में सोशल मीडिया निरंतर तरक्की कर रहा है ऐसे में मोदी जी की मन की बात, ट्विटर, फ़ेसबुक, कू, आदि सोशल मीडिया अकाउंट

अविवाहित बेटी और भरण पोषण का अधिकार

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  दंड प्रक्रिया सहिंता १९७३ की धारा १२५ [१] के अनुसार ''यदि पर्याप्त साधनों वाला कोई व्यक्ति - ............................................................................................................................................... [ग] -अपने धर्मज या अधर्मज संतान का [जो विवाहित पुत्री  नहीं है ],जिसने वयस्कता प्राप्त कर ली है ,जहाँ  ऐसी संतान किसी शारीरिक या मानसिक असामान्यता या क्षति के कारण अपना भरण -पोषण करने में असमर्थ है ,.......... ........................................................................................................................................................ भरण पोषण करने की उपेक्षा करता है  या भरण पोषण करने से इंकार करता है तो प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट ,ऐसी उपेक्षा या इंकार साबित होने पर ,ऐसे व्यक्ति को ये निर्देश दे सकेगा कि वह अपनी ऐसी संतान को ऐसी मासिक दर पर जिसे मजिस्ट्रेट उचित समझे भरण पोषण मासिक भत्ता दे . और इसी कानून का अनुसरण  करते हुए   मुंबई हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति के यू चंडीवाल  ने बहरीन में रहने वाले एक व्यक्ति को उसकी सबसे बड़ी