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यू पी में अधिवक्ता खतरे में

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हापुड़ में प्रियंका त्यागी एडवोकेट के साथ पुलिस प्रशासन द्वारा बदसलूकी और उसके बाद हापुड़ बार एसोसिएशन के अधिवक्ताओं के शांति पूर्ण धरने पर सी ओ हापुड़ द्वारा बर्बरता पूर्वक लाठी चार्ज करना, साथ ही, महिला अधिवक्ताओं को भी लाठी चार्ज के घेरे में लेना जिसमें दो दर्जन से अधिक अधिवक्ताओं का गम्भीर रूप से घायल होना, इसे लेकर पूरे यू पी के अधिवक्ताओं की कलमबंद हड़ताल और ठीक हड़ताल के दिन हापुड़ से सटे हुए गाजियाबाद में 35 वर्षीय अधिवक्ता मोनू चौधरी की गोली मारकर हत्या उत्तर प्रदेश में अधिवक्ताओं की असुरक्षित स्थिति दिखाने के लिए पर्याप्त है और अधिवक्ता सुरक्षा कानून की जरूरत की पुरजोर वक़ालत कर रही है.         वकीलों की सुरक्षा के लिए बार काउंसिल ऑफ इंडिया प्रतिबद्ध है और इसीलिए अधिवक्ता सुरक्षा कानून के ड्राफ़्ट को बीसीआई ने मंजूरी दे दी थी . बीसीआई ने इस ऐक्ट का प्रारूप तैयार कर सभी राज्यों की बार काउंसिल को भेजा था और उनसे सुझाव और संशोधन के लिए राय मांगी थी और फिर बिना किसी संशोधन के ही ऐक्ट के मसौदे को मंजूरी दे दी गयी. एडवोकेट प्रोटेक्शन बिल की रूपरेखा और ड्राफ़्ट बार काउंसिल ऑफ इंडिया

पाकिस्तान लौटेगी सीमा हैदर

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     सीमा हैदर (पाकिस्तान की नागरिक) आजकल भारत में चर्चाओं में टॉप टेन में शामिल हैं और यही नहीं इस चर्चित चेहरे का फायदा उठाकर स्वयं को टॉप रैंकिंग में लाने के लिए भारतीय मीडिया भी काफी हाथ-पैर मार रहा है. पाकिस्तान के मुस्लिम समुदाय की सीमा हैदर अपने चार बच्चों के साथ तीन देशों - पाकिस्तान, नेपाल और भारत के बार्डर को अवैध रूप से पार कर भारत के राज्य उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले के रघुपुरा में अवैध रूप से रह रही है और अब वह भारत के नागरिक सचिन की पत्नी के तौर पर भारत की नागरिकता हासिल करने के लिए आगे बढ़ गई है और यही भारतीय नागरिकता हासिल करने के लिए बढ़ाया गया सीमा हैदर का कदम उसकी भारत में अवैध उपस्थिति का भंडाफोड़ कर गया है.  भारत में नागरिकता अधिनियम-1955 द्वारा भारतीय नागरिकता प्राप्ति के लिए कुछ नियम बनाए गए हैं जो इस प्रकार हैं -   पंजीकरण द्वारा नागरिकता  केन्द्रीय सरकार, आवेदन किये जाने पर, नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 5 के तहत किसी व्यक्ति (एक गैर क़ानूनी अप्रवासी न होने पर) को भारत के नागरिक के रूप में पंजीकृत कर सकती है यदि वह निम्न में से किसी एक श्रेणी के अंतर्गत आता ह

अधिवक्ता हित सर्वोपरि मानते हैं बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश के चेयरमैन श्री शिव किशोर गौड़ एडवोकेट

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        माननीय श्री शिव किशोर गौड़ एडवोकेट जी संघर्षों का दूसरा नाम हैं. शिव किशोर गौड़ एडवोकेट जी जब कक्षा 6  में थे तब शिव किशोर गौड़ एडवोकेट जी ने मजदूरी की, कक्षा 7 में घर पर क्राकरी का काम किया, हॉकरी भी की और तब उन्हें इस कार्य के लिए 140/-रुपये मिलते थे. शिव किशोर गौड़ एडवोकेट जी ने 1977-78 में इन्टर किया और उसके बाद ट्यूशन करने शुरू किए. 1990 में शिव किशोर गौड़ एडवोकेट जी ने वक़ालत पास की, 2000 मे पहली बार क्षेत्र पंचायत का चुनाव लड़ा और ब्लॉक अध्यक्ष चुने गए. 2005 मे जिला पंचायत सदस्य चुने गए. 2006-07 में समाजवादी पार्टी के विधान सभा अध्यक्ष रहे. 2008 में खुर्जा बार एसोसिएशन के जनरल सेक्रेटरी रहे. 2009-10 में समाजवादी पार्टी की अधिवक्ता सभा के जिला सचिव रहे. 2012 से 2017 तक समाजवादी पार्टी के विधान सभा के जिला अध्यक्ष रहे. 2018 में बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश के सदस्य चुने गए और 1 साल 2020-21 में सचिव और तीसरी बार सह अध्यक्ष चुने गए.     इतने कड़े संघर्षों के साथ माननीय श्री शिव किशोर गौड़ एडवोकेट जी अपने जीवन के सिद्धांतो पर अडिग खड़े रहे और 20 अगस्त 2023 को यह गौड़ सर की श्र

Lawyer - Advocate (Difference)

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 Lawyer और एडवोकेट या अधिवक्ता या अभिभाषक या वकील को आम जनता एक ही समझती है किन्तु सत्य कुछ अलग है -           Lawyer और एडवोकेट दोनों को ही कानून की जानकारी होती है।  Lawyer शब्द का उपयोग जनरल नेचर में होता है। यह उन लोगों के लिए इस्तेमाल होता है, जिसने कानून की पढ़ाई की हो। अगर इसे सीधे शब्दों में कहें तो Lawyer वो हो सकता है, जिसने एलएलबी (LLB) यानी कानून की पढ़ाई की हो। हालांकि, ये जरूरी नहीं कि कोई भी कानून पढ़ चुका हुआ व्यक्ति एडवोकेट हो। पर किसी भी व्यक्ति को लीगल एडवाइज देने का काम Lawyer कर सकता है, लेकिन वह किसी व्यक्ति के लिए कोर्ट में केस नहीं लड़ सकता है।         अगर बात करें एडवोकेट की तो एडवोकेट को Lawyer से अलग कहा जाता सकता है। यह शब्द उन लोगों के लिए प्रयोग किया जाता है, जो कानून की पढ़ाई करने के बाद किसी दूसरे व्यक्ति के लिए कोर्ट में अपनी दलील दे सकते हैं। जैसे हम कोई केस के लिए वकील के पास जाते हैं, और वो कोर्ट में हमारे लिए दलील देता है या केस लड़ता है, वो एडवोकेट होता है। बता दें कि हर Lawyer एडवोकेट हो यह ऐसा जरूरी नहीं है। लेकिन हर ए़डवोकेट Lawyer होता है।    

लोक अदालत का आज की न्याय व्यवस्था में स्थान

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 राजस्थान हाइकोर्ट द्वारा अपने निर्णय   "श्याम बच्चन बनाम राजस्थान राज्य एस.बी. आपराधिक रिट याचिका नंबर 365/2023" में यह स्पष्ट किया गया है कि लोक अदालतों के फैसले पक्षकारों की आपसी सहमति पर ही दिए जा सकते हैं.      राजस्थान हाईकोर्ट ने माना कि लोक अदालतों के पास कोई न्यायनिर्णय शक्ति नहीं है और केवल पक्षकारों के बीच समझौते के आधार पर अवार्ड दे सकती है। अदालत के सामने यह सवाल उठाया गया कि क्या विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के अध्याय VI के तहत लोक अदालतों के पास न्यायिक शक्ति है या केवल पक्षकारों के बीच आम सहमति पर निर्णय पारित करने की आवश्यकता है। अदालत ने कहा, "उपर्युक्त प्रावधानों का एकमात्र अवलोकन यह स्पष्ट करता है कि जब न्यायालय के समक्ष लंबित मामला (जैसा कि वर्तमान मामले में) को लोक अदालत में भेजा जाता है तो उसके पक्षकारों को संदर्भ के लिए सहमत होना चाहिए। यदि कोई एक पक्ष केवल इस तरह के संदर्भ के लिए न्यायालय में आवेदन करता है तो दूसरे पक्ष के पास न्यायालय द्वारा निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए पहले से ही सुनवाई का अवसर होना चाहिए कि मामला लोक अदालत में भेजने के लिए

वसीयत और मरणोपरांत वसीयत

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     वसीयत एक ऐसा अभिलेख जिसके माध्यम से व्यक्ति अपनी मृत्यु के बाद अपनी संपत्ति की व्यवस्था करता है .भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 3  में वसीयत अर्थात इच्छापत्र की परिभाषा इस प्रकार है -  ''वसीयत का अर्थ वसीयतकर्ता का अपनी संपत्ति के सम्बन्ध में अपने अभिप्राय का कानूनी प्रख्यापन है जिसे वह अपनी मृत्यु के पश्चात् लागू किये जाने की इच्छा रखता है .''      वसीयत वह अभिलेख है जिसे आदमी अपने जीवन में कई बार कर सकता है किन्तु वह लागू तभी होती है जब उसे करने वाला आदमी मर जाता है .एक आदमी अपनी संपत्ति की कई बार वसीयत कर सकता है किन्तु जो वसीयत उसके जीवन में सबसे बाद की होती है वही महत्वपूर्ण होती है.       वसीयत का पंजीकरण ज़रूरी नहीं है किन्तु वसीयत की प्रमाणिकता को बढ़ाने के लिए इसका रजिस्ट्रेशन करा लिया जाता है और रजिस्ट्रेशन अधिनियम 1908  की धारा 27  के अनुसार - '' विल एतस्मिन पश्चात् उपबंधित रीति से किसी भी समय रजिस्ट्रीकरण के लिए उपस्थापित या निक्षिप्त की जा सकेगी .''       इच्छापत्र सादे कागज पर लिखा जाता है और इसके लिए स्टाम्प नहीं लगता है क्योंकि ये

मार पति को और तब भी ले भरण पोषण

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  पति द्वारा क्रूरता से तो सभी वाकिफ हैं और उसके परिणाम में पति को सजा ही सजा मिलती है किन्तु आनंद में तो पत्नी है जो क्रूरता भी करती है तो भी सजा की भागी नहीं होती उसकी सजा मात्र इतनी कि उसके पति को उससे तलाक मिल सकता है किन्तु नारी-पुरुष समानता के इस युग में पारिवारिक संबंधों के मामले में पुरुष समानता की स्थिति में नहीं है .      2016  [1 ] D .N .R .[D .O .C .-11 ]17 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि हिन्दू विवाह अधिनियम 1955  की धारा 13  के अंतर्गत क्रूरता के आधार पर पति भी अपनी पत्नी से तलाक ले सकता है .        इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उपरोक्त वाद में पत्नी द्वारा पति के विरूद्ध कई दाण्डिक एवं सिविल प्रकरणों का दाखिल किया जाना क्रूरता माना और इस आधार पर पति को पत्नी से तलाक लेने का अधिकारी मानते हुए कहा कि ऐसी क्रूरता के आधार पर तलाक की डिक्री पारित की जा सकती है ,साथ ही यह भी कहा कि ऐसे में यदि तलाक की डिक्री पारित की जाती है तो पति को पत्नी को स्थायी निर्वाह व्यय देना होगा .इस तरह इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने तलाक की डिक्री के विरूद्ध अपील को ख़ारिज किया लेकिन पति को निर्देशित कि