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खंडपीठ नहीं तो वोट नहीं

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  मुर्दा लोहे को औजार बनाने वाले अपने आँसू को हथियार बनाने वाले हमको बेकार समझते हैं सियासत दां मग़र हम हैं इस मुल्क की सरकार बनाने वाले             सत्य और सही उद्घोषित हैं ये पंक्तियाँ वेस्ट यू पी के अधिवक्ताओं की दशा की. यू पी में विधानसभा चुनावों का दौर चल रहा है, कहीं लड़की, कहीं किसान, कहीं महंगाई - बेरोजगारी, कहीं जाट - मुसलमान, कहीं दलित कहीं व्यापारी तो कहीं मथुरा कहीं काशी का शोर है किन्तु अगर कहीं दबा हुआ है तो वह है लगभग 4 दशक से पश्चिमी यू पी के अधिवक्ताओं द्वारा की जा रही हाई कोर्ट खंडपीठ की मांग का मुद्दा, जिसे लेकर माननीय सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया, इलाहाबाद हाई कोर्ट, बार काउंसिल ऑफ इंडिया बार बार वकीलों की हड़ताल से परेशानी पर टिप्पणियों द्वारा जता भी चुके हैं. हाई कोर्ट अपने फैसलों में जिक्र करते हैं कि पिछले 35 साल से शनिवार को अदालत कार्यवाही का बहिष्कार करके विरोध करने का सिलसिला रहा है.             वकीलों की हड़ताल से कोर्टस, वादकारी, कर्मचारी सब परेशान हैं किन्तु वकीलों की परेशानी किसी को भी दिखाई नहीं देती, जो न्याय का पैरोकार होने के कारण न्याय अंतिम व्यक्ति तक,