सीता-सूर्पनखा और रावण-राम का भेद समझना होगा न्यायालयों को

 


एक आईटी फर्म में काम करने वाले और अपनी पत्नी से तलाक के मुकदमे से गुजर रहे अतुल सुभाष ने दिसंबर में  आत्महत्या कर ली। उन्होंने अपनी पत्नी और ससुराल वालों पर उत्पीड़न और कथित तौर पर झूठे मामलों में फंसाने का आरोप लगाया। यह मामला राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में रहा। अतुल सुभाष द्वारा अपने 24 पेज के सुसाइड नोट और 81 मिनट के वीडियो में आरोप लगाया कि पत्नी निकिता सिंघानिया को 40 हजार रुपये महीना गुजारा भत्ता के तौर पर देने के बावजूद, पत्नी और उसके परिवार वाले सभी केस खत्म करने के लिए 3 करोड़ रुपये की रकम मांग रहे थे. साथ ही, बच्चे से मिलने के लिए 30 लाख रुपये की डिमांड की जा रही थी.

   अतुल सुभाष के बाद और भी कुछ मामलों में पति पत्नी और उसके परिजनों द्वारा क़ानून के भेदभाव पूर्ण रवैयै और लगभग पत्नी के ही पक्ष को महत्व देने के कारण आत्महत्या के लिए विवश हो रहे हैं, ऐसे में, ये प्रश्न तो उठना स्वाभाविक ही है कि 

🌑 महत्वपूर्ण प्रश्न:- 

   "क्या पति से तलाक ले लेने, पति के प्रति किसी भी दाम्पत्य कर्तव्य का निर्वहन न करने के बावजूद पत्नी क़ानून के इस उदार रुख की पात्र है?"

➡️ हिन्दू धर्म में विवाह का उद्देश्य:-

 हिंदू धर्म में विवाह का मुख्य उद्देश्य "धर्म, प्रजा और रति" है. यह एक पवित्र संस्कार माना जाता है, जिसके माध्यम से व्यक्ति अपने धार्मिक कर्तव्यों का पालन करता है, संतानोत्पत्ति करता है और आनंद प्राप्त करता है. 

✒️ हिन्दू धर्म कहता है-

1️⃣ धार्मिक कर्तव्यों का पालन-

विवाह का पहला उद्देश्य धार्मिक कर्तव्यों का पालन करना है। पति और पत्नी दोनों को अपने-अपने धार्मिक और सामाजिक कर्तव्यों को निभाने के लिए एक-दूसरे का समर्थन करना होता है.

2️⃣ पितृ ऋण से मुक्ति हेतु संतानोत्पत्ति-

विवाह का दूसरा उद्देश्य संतानोत्पत्ति है, खासकर पुत्र प्राप्ति, जो पितृ ऋण से मुक्ति पाने का एक तरीका माना जाता है.

3️⃣ यौन सुख और आनंद:-

विवाह का तीसरा उद्देश्य यौन सुख और आनंद प्राप्त करना है। हालांकि, यह उद्देश्य अन्य दो की तुलना में कम महत्वपूर्ण माना जाता है. 

✒️ हिन्दू पति के कर्तव्य:-

एक हिंदू पति के कई कर्तव्य होते हैं, जिनमें पत्नी की रक्षा, सम्मान, पालन-पोषण, धार्मिक कर्तव्यों का पालन, भावनाओं का आदर, और संतानोत्पत्ति में सहभागी होना शामिल है. इसके अतिरिक्त, पति को पत्नी को प्रेम और स्नेह प्रदान करना चाहिए, साथ ही उसकी शिक्षा और स्वास्थ्य का भी ध्यान रखना चाहिए. 

🌑 पति के मुख्य कर्तव्य:-

1️⃣ पत्नी की रक्षा:

पति का कर्तव्य है कि वह अपनी पत्नी को हर प्रकार की हानि और संकट से बचाए. 

2️⃣ पत्नी को सम्मान देना:

पत्नी को सम्मान देना और उसके प्रति आदर भाव रखना पति का एक महत्वपूर्ण कर्तव्य है. 

3️⃣ पत्नी का पालन-पोषण करना:

पति का कर्तव्य है कि वह अपनी पत्नी को भोजन, वस्त्र, और आश्रय प्रदान करे, और उसकी सभी आवश्यकताओं का ध्यान रखे. 

4️⃣ धार्मिक कर्तव्यों का पालन:

पति को धार्मिक कर्तव्यों का पालन करना चाहिए और पत्नी को भी धार्मिक जीवन जीने के लिए प्रेरित करना चाहिए. 

5️⃣ पत्नी की भावनाओं और इच्छाओं का आदर करना:

पति को अपनी पत्नी की भावनाओं और इच्छाओं का आदर करना चाहिए, और उसे अपनी बात कहने का अवसर देना चाहिए. 

6️⃣ पत्नीव्रत धर्म का पालन:

पति को अपनी पत्नी के प्रति वफादार रहना चाहिए और उसके साथ प्रेम और स्नेह का व्यवहार करना चाहिए. 

7️⃣ संतानोत्पत्ति और पालन:

पति को संतानोत्पत्ति और उनके पालन-पोषण में सहभागी होना चाहिए, और उन्हें अच्छे संस्कार देने चाहिए. 

8️⃣ सहानुभूति और सहयोग:

पति को अपनी पत्नी के प्रति सहानुभूति और सहयोग का भाव रखना चाहिए, और आवश्यकता पड़ने पर उसकी मदद करनी चाहिए. 

9️⃣ संतुष्टि:

पति को अपनी पत्नी के साथ संतुष्ट रहना चाहिए और उसके प्रति वफादार रहना चाहिए. 

➡️ हिन्दू पत्नी के कर्तव्य:- 

एक हिंदू पत्नी के कई कर्तव्य होते हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं: पति की सेवा करना, घर-परिवार को संभालना, और धार्मिक कर्तव्यों का पालन करना। उसे अपने पति और परिवार के प्रति समर्पित होना चाहिए और उनका सम्मान करना चाहिए।

1️⃣ पति की सेवा:

एक पत्नी का कर्तव्य है कि वह अपने पति की देखभाल करे, उसकी जरूरतों का ध्यान रखे, और उसे खुश रखने की कोशिश करे। 

2️⃣ गृहस्थी का प्रबंधन:

उसे घर के कामकाज, जैसे खाना बनाना, सफाई करना, और बच्चों की देखभाल करना, आदि में कुशल होना चाहिए। 

3️⃣ धार्मिक कर्तव्यों का पालन:

एक पत्नी को धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेना चाहिए और अपने पति के साथ मिलकर धार्मिक जीवन जीना चाहिए।

4️⃣ पतिव्रत धर्म का पालन: 

उसे पतिव्रता होना चाहिए, जिसका अर्थ है कि उसे अपने पति के प्रति वफादार और समर्पित होना चाहिए। 

5️⃣ परिवार को जोड़कर रखना:

यदि संयुक्त परिवार है, तो पत्नी को परिवार के सदस्यों के बीच प्रेम और सद्भाव बनाए रखने की कोशिश करनी चाहिए। 

6️⃣ आत्म-सम्मान:

उसे सशक्त और आत्मविश्वासी होना चाहिए, और अपने आत्म-सम्मान को बनाए रखना चाहिए। 

7️⃣ संस्कारों को बनाए रखना:

उसे अपनी संस्कृति और परंपराओं से मिले संस्कारों को बनाए रखना चाहिए और अगली पीढ़ी को सिखाना चाहिए। 

8️⃣ पति का सम्मान:

उसे अपने पति का सम्मान करना चाहिए और उसके फैसलों का समर्थन करना चाहिए। 

     ऐसे में, एक हिन्दू विवाह संस्था पति के भी कर्तव्य निर्धारित करती है और पत्नी के भी और प्राचीन काल से आज तक यह विवाह संस्था यदि कायम है तो यह कहा जा सकता है कि पति और पत्नी द्वारा अपने दाम्पत्य कर्तव्यों का निर्वहन ईमानदारी और पूर्ण आस्था के साथ किया गया है. पहले हिन्दू विवाह संस्था में तलाक को कोई स्थान नहीं था किन्तु सभ्यता की तरक्की के साथ साथ तलाक भी जुडा और जहाँ एक तरफ पति पत्नी पर क्रूरता और अत्याचार के लिए जाने जाते थे, वहीं क़ानून के भेदभावपूर्ण रवैयै से पत्नी ने भी पति पर क्रूरता और अत्याचार आरम्भ किये किन्तु क़ानून ने अपना रुख नहीं बदला, वह पत्नी के पक्ष में ही निर्णय लिखकर स्वयं को नारीवाद का समर्थक दिखाने में लगा रहा. विभिन्न कोर्ट के जो भी निर्णय आते हैं एक ही सन्देश देते नजर आते हैं कि विवाह संस्था में प्रवेश करने पर जितने भी कर्तव्य हैं वे पति के हैं, नारी का विवाहित होने पर पत्नी के रूप में कोई कर्तव्य नहीं है और विभिन्न न्यायालय अपने निर्णयों से क़ानून के इसी भेदभाव पूर्ण रुख का उद्घोष कर रहे हैं-

➡️ केरल हाई कोर्ट का फैसला-(पत्नी को उसी स्तर का जीवन जीने का हक है जैसा वह पति के साथ रहकर जी रही थी.)

केरल हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अगर पत्नी अपनी आमदनी से अपने पहले के जीवन स्तर (standard of living) को बनाए रखने में असमर्थ है, तो उसे अपने पति से भरण-पोषण लेने का अधिकार होगा. जस्टिस एडप्पागथ ने कहा, "अगर पत्नी कमाने में सक्षम है या कुछ कमा रही है, तब भी यह उसे भरण-पोषण के अधिकार से वंचित नहीं करता असल सवाल यह है कि क्या पत्नी खुद को उसी स्टैंडर्ड पर बनाए रख सकती है, जिस पर वह पति के साथ रहते हुए रह रही थी. पत्नी को उसी स्तर का जीवन जीने का हक है  जैसा वह पति के साथ रहकर जी रही थी.

➡️ बॉम्बे हाई कोर्ट का निर्णय-( पत्नी निश्चित रूप से उसी जीवन स्तर के साथ बनाए रखने की हकदार है जैसा कि वह उनके अलगाव से पहले आदी थी।)

बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि पत्नी कमा रही है इसका मतलब यह नहीं है कि उसे अपने पति के उसी जीवन स्तर के साथ समर्थन से वंचित किया जा सकता है, जिसकी वह अपनी शादी के बाद आदी थी। जस्टिस मंजूषा देशपांडे ने कहा कि इस मामले में पत्नी ने भले ही कमाई की लेकिन उसकी आय उसके खुद के गुजारा भत्ता के लिए पर्याप्त नहीं है क्योंकि उसे नौकरी के लिए रोजाना लंबी दूरी तय करनी पड़ती है। जस्टिस देशपांडे ने 18 जून को पारित आदेश में कहा,"पत्नी को पति की आय से रखरखाव की अनुमति दी जानी चाहिए क्योंकि उसकी खुद की आय उसके रखरखाव के लिए अपर्याप्त है। केवल इसलिए कि पत्नी कमा रही है, उसे अपने पति से उसी जीवन स्तर के समर्थन से वंचित नहीं किया जा सकता है, जिसके लिए वह अपने वैवाहिक घर में आदी है,"कोर्ट ने कहा, "पत्नी निश्चित रूप से उसी जीवन स्तर के साथ बनाए रखने की हकदार है जैसा कि वह उनके अलगाव से पहले आदी थी। रखरखाव की मात्रा का निर्धारण करते समय, जिन विचारों को ध्यान में रखा जाना आवश्यक है, वे संबंधित पक्षों की आय हैं; उनकी उम्र; उनकी जिम्मेदारियां; उनकी उचित आवश्यकताएं; अन्य स्रोतों से प्राप्त आवश्यकताएं और आय, यदि कोई हो."

➡️ पटना हाई कोर्ट का आदेश-( तलाक के बाद भी पत्नी भरण-पोषण की मांग कर सकती है)-

पटना हाई कोर्ट (Patna High Court) ने रूही शर्मा बनाम विनय कुमार शर्मा (2016) में अपने एक महत्वपूर्ण फैसले से यह स्पष्ट किया कि तलाक के बाद भी पत्नी भरण-पोषण की मांग कर सकती है, और यह अधिकार उसके पास तब भी सुरक्षित रहता है जब तलाक की डिक्री पारित हो चुकी हो।

➡️ भारतीय संविधान का अनुच्छेद 14 और 15 -

     भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 में विधि के समक्ष समता का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि राज्य, भारत के राज्यक्षेत्र में किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता से या विधियों के समान संरक्षण से वँचित नहीं करेगा. इसके साथ ही अनुच्छेद 15 (1) कहता है कि राज्य, किसी नागरिक के विरुद्ध केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म-स्थान या इनमें से किसी के आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा.

       जिस देश के सर्वोच्च क़ानून में ही विभेदकारी रुख पर लगाम लगाई गई हो उसमें परिवार न्यायालयों द्वारा पति पत्नी के नाजुक मसलों में इस तरह विवेक को दरकिनार रखते हुए केवल पत्नी के पक्ष में यह निर्णय दे देना कि वह पति के घर मे रहने के समय की स्थिति को कायम रखने की हकदार है, गलत ही कहा जायेगा, क्योंकि यदि पत्नी का वैवाहिक स्थिति को कायम रखने का हक है तो ये हक तो पति का भी है, फिर जब पति तलाक के बाद भी, जबकि पत्नी उसका कोई कार्य नहीं करती है उसे वैवाहिक स्थिति देने के लिए कर्तव्य बद्ध है तो क्या पत्नी भी पति के घरेलू कामकाज की वैवाहिक स्थिति पति को देने के लिए कर्तव्य बद्ध नहीं ठहराई जानी चाहिए? न्यायालय के निर्णय के अनुसार पत्नी तलाक के बाद भी भरण पोषण का वाद कर सकती है, जबकि ये सर्वविदित है कि कोई भी तलाक पत्नी द्वारा बहुत बड़ी एकमुश्त रकम लेने के बाद ही कार्यान्वित किया जाता है, ऐसे में तलाक के बाद भी पत्नी को भरण पोषण का अधिकार देना, पति से उसके जीने के अधिकार को छीन लेने के समान ही कहा जायेगा क्योंकि इस तरह तो पति-पुरुष द्वारा अपनी जिंदगी को आगे बढ़ाना ही कठिन हो जायेगा अगर वह पहली गलती को सुधारने मे ही अपना जीवन लगाता जायेगा.

   आज न्यायालयों को न्याय की संकल्पना पर कार्य करना आरम्भ करना होगा, आज की स्त्री पुराने जमाने की अबला या कमजोर नारी नहीं है, वह अपने अधिकारों के लिए लड़ना भी जानती है और अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए पति को खतम करना भी. न्यायालयों को देखना होगा कि " सीता है तो सूर्पनखा भी है और रावण है तो राम भी हैं " और इसी विभेद को ध्यान में रखते हुए न्यायालयों को न्याय के पथ पर आगे बढ़ना होगा.

धन्यवाद 🙏🙏

द्वारा

शालिनी कौशिक

एडवोकेट

कैराना (शामली)


टिप्पणियाँ

  1. बहुत सही तथ्य प्रस्तुत किये हैं आपने, न्यायालय ध्यान दें तो न्याय ही होगा.

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    1. स्वस्थ प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक धन्यवाद 🙏🙏

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