एक साल के भीतर भी मांग सकते हैँ तलाक -इलाहाबाद हाई कोर्ट

( shalini kaushik law classes) 

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए स्पष्ट किया है कि असाधारण मुश्किलों अथवा असाधारण उत्पीड़न का सामना कर रहे पति अथवा पत्नी विवाह के एक साल के भीतर भी तलाक का मुकदमा दाखिल कर सकते हैं।

 हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 14 के अंतर्गत पति पत्नी विवाह के एक वर्ष के पश्चात ही तलाक की मांग कर सकते हैं. जिसके आधार पर परिवार न्यायालय ने एक दम्पति के आपसी समझौते के आधार पर दाखिल तलाक की अर्जी को खारिज कर दिया था, जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई।

➡️ केस का विवरण:- 

3 सितम्बर 2024 को सम्पन्न इस वैवाहिक मामले में पति पत्नी दोनों के सम्बंध में बहुत ज्यादा खटास आ जाने के कारण दोनों ने आपसी सहमति से विवाह विच्छेद का मुकदमा अंबेडकर नगर के परिवार न्यायालय में दाखिल किया। जिसे विवाह के एक वर्ष के भीतर मुकदमा दाखिल होने के आधार पर, परिवार न्यायालय ने मुकदमे को खारिज कर दिया।

➡️ क़ानून क्या कहता है:-

हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 14, आम तौर पर अदालत को विवाह के एक वर्ष के भीतर तलाक याचिका पर विचार करने से रोकती है । तलाक लेने के लिए यह अवधि दिए जाने का उद्देश्य सुलह को प्रोत्साहित करना और जल्दबाजी में लिए गए तलाक के निर्णय को हतोत्साहित करना है किन्तु इसके साथ साथ एक प्रावधान द्वारा अदालत को अपवाद में इस अवधि के भीतर तलाक का निर्णय दिए जाने की अनुमति देता है यदि याचिकाकर्ता को असाधारण कठिनाई का सामना करना पड़ता है या प्रतिवादी असाधारण रूप से भ्रष्ट है।

➡️ हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 14:-

    हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 14 कहती है कि

🌑 धारा 14- विवाह के एक वर्ष के भीतर तलाक के लिए कोई याचिका प्रस्तुत नहीं की जाएगी। 

1️⃣ इस अधिनियम में किसी बात के होते हुए भी, कोई भी न्यायालय तलाक की डिक्री द्वारा विवाह विच्छेद के लिए किसी याचिका पर तब तक विचार नहीं कर सकेगा, जब तक कि याचिका प्रस्तुत करने की तारीख से विवाह की तारीख से एक वर्ष बीत न गया हो:

परन्तु न्यायालय, उच्च न्यायालय द्वारा उस संबंध में बनाए गए नियमों के अनुसार अपने समक्ष आवेदन किए जाने पर, विवाह की तारीख से एक वर्ष बीत जाने से पूर्व याचिका प्रस्तुत किए जाने की अनुमति इस आधार पर दे सकता है कि मामला याचिकाकर्ता के लिए असाधारण कठिनाई का है या प्रत्यर्थी की ओर से असाधारण चरित्रहीनता का है, किन्तु यदि याचिका की सुनवाई के समय न्यायालय को ऐसा प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ता ने मामले की प्रकृति को किसी मिथ्या निरूपण या छिपाकर याचिका प्रस्तुत करने की अनुमति प्राप्त की है, तो न्यायालय, यदि वह डिक्री सुनाता है, तो इस शर्त के अधीन रहते हुए ऐसा कर सकता है कि डिक्री विवाह की तारीख से एक वर्ष की समाप्ति के पश्चात् प्रभावी नहीं होगी या वह किसी याचिका पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, जो उक्त एक वर्ष की समाप्ति के पश्चात् लाई जा सकती है, उसी या सारतः उन्हीं तथ्यों पर, जो इस प्रकार खारिज की गई याचिका के समर्थन में आरोपित हैं, याचिका को खारिज कर सकता है।

2️⃣ विवाह की तारीख से एक वर्ष की समाप्ति से पूर्व विवाह-विच्छेद के लिए याचिका प्रस्तुत करने की अनुमति के लिए इस धारा के अधीन किसी आवेदन का निपटारा करते समय न्यायालय को विवाह से उत्पन्न किसी भी संतान के हितों को ध्यान में रखना होगा तथा इस प्रश्न को भी ध्यान में रखना होगा कि क्या उक्त एक वर्ष की समाप्ति से पूर्व पक्षकारों के बीच सुलह की उचित संभावना है।

    हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 14 के परन्तुक को ध्यान में रखते हुए अपीलार्थी की ओर से अधिवक्ता गौरव मेहरोत्रा ने दलील दी कि हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 13-बी आपसी समझौते के आधार पर विवाह विच्छेद का प्रावधान करती है, हालांकि धारा 14 यह स्पष्ट करती है कि आपसी समझौते से विवाह विच्छेद का मुकदमा विवाह के एक वर्ष के पश्चात ही लाया जा सकता है। गौरव मेहरोत्रा एडवोकेट द्वारा कहा गया कि धारा 14 का ही परंतुक इस बात को स्पष्ट करता है कि याची पति अथवा पत्नी जब अपने वैवाहिक जीवन में असाधारण कठिनाई का सामना कर रहे हों अथवा असाधारण उत्पीड़न से गुजर रहे हों, ऐसी परिस्थिति में उक्त एक वर्ष के प्रतीक्षा अवधि को समाप्त किया जा सकता है।

पक्ष विपक्ष दोनों की दलीलों को सुनने के उपरांत इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति विवेक चौधरी व न्यायमूर्ति बृजराज सिंह की लखनऊ खंडपीठ ने अम्बेडकर नगर निवासी पति की अपील पर निर्णय पारित करते हुए कहा कि:-

"असाधारण मुश्किलों अथवा असाधारण उत्पीड़न का सामना कर रहे पति अथवा पत्नी विवाह के एक साल के भीतर भी तलाक का मुकदमा दाखिल कर सकते हैं।"

जानकारी के लिए आभार 👇🙏


प्रस्तुति

शालिनी कौशिक

एडवोकेट

कैराना (शामली)



टिप्पणियाँ

  1. सार्थक निर्णय, विवाह एक ऐसा सम्बन्ध है जो प्यार पर ही टिका होता है, जहां प्यार नहीं वहां वैवाहिक सम्बन्ध खत्म ही हो जाने चाहिये. जानकारी देने के लिए आपका आभार 🙏🙏

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