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सितंबर, 2025 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

GST बचत उत्सव कानूनी जानकारी के साथ

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 प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा पितृ विसर्जिनी अमावस्या 20 सितंबर 2025 की शाम 5 बजे देशवासियों को नवरात्रि पर्व पर  "GST बचत उत्सव" का तोहफा दिया है.जीएसटी की दरों में ऐतिहासिक रूप से कमी होने के बाद 390 से ज्यादा चीजें सस्ती हो गई हैं। खासकर खाने और घर से जुड़े सामानों की कीमत में गिरावट देखने को मिलेगी। इसके अलावा ऑटोमोबाइल, मैटेरियल, कृषि, खिलौने, खेल, शिक्षा, हैंडीक्राफ्ट, मेडिकल, स्वास्थ्य और बीमा की टैक्स दरों में लोगों को राहत मिलेगी।  ➡️ GST 2.0  22 सितंबर 2025 से लागू -       अब जीएसटी के 4 टैक्स स्लैब को हटाकर 2 टैक्स स्लैब ही रखे गए हैं। ज्यादातर वस्तुओं पर अब 5 प्रतिशत और 18 प्रतिशत का ही टैक्स लगेगा। लक्जरी वस्तुओं पर 40 प्रतिशत जीएसटी देना होगा। नई दरें लागू होने के साथ रसोई के सामान से लेकर दवाइयां, गाड़ियां, कपड़े, मकान खरीदना-बनवाना, बीमा उत्पाद और एसी-टीवी जैसे कई उत्पाद सस्ते हो गए हैं। इसके अलावा, दूध के टेट्रापैक, रोटी, खाखरा, निजी स्वास्थ्य एवं जीवन बीमा उत्पादों, पढ़ाई-लिखाई से जुड़ीं कुछ चीजों और 33 से अधिक जीवनरक्षक द...

नेहा सिंह राठौर की याचिका ख़ारिज-इलाहाबाद हाईकोर्ट

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  इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लोक गायिका नेहा सिंह राठौर द्वारा दायर याचिका खारिज की, जिसमें उन्होंने पहलगाम आतंकवादी हमले पर कथित रूप से 'भड़काऊ' सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर "भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने" सहित कई आरोपों के तहत उनके खिलाफ दर्ज FIR को चुनौती दी थी। जस्टिस राजेश सिंह चौहान और जस्टिस सैयद क़मर हसन रिज़वी की खंडपीठ ने कहा कि  " FIR और अन्य सामग्री में लगाए गए आरोप प्रथम दृष्टया एक संज्ञेय अपराध का संकेत देते हैं, जो मामले की जांच को उचित ठहराता है। " खंडपीठ ने आगे कहा कि  "कथित सोशल मीडिया पोस्ट में भारत के प्रधानमंत्री के नाम का अपमानजनक तरीके से इस्तेमाल किया गया। यहां तक कि गृह मंत्री को भी निशाना बनाया गया।"  खंडपीठ ने केस डायरी का अवलोकन करते हुए कहा,   "ऐसी टिप्पणियों में याचिकाकर्ता ने धार्मिक कोण और बिहार चुनाव के कोण का इस्तेमाल करते हुए प्रधानमंत्री का नाम लेकर उन पर आरोप लगाया और कहा कि भाजपा सरकार अपने निहित स्वार्थ के लिए हजारों सैनिकों के जीवन का बलिदान दे रही है और देश को पड़ोसी देश के साथ युद्ध में धक...

जब्त मादक पदार्थ की वीडियो रिकॉर्डिंग सबूत के तौर पर मान्य: सुप्रीम कोर्ट

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  सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि  "जब्त मादक पदार्थ की वीडियो रिकॉर्डिंग ट्रांसक्रिप्ट के बिना भी सबूत मानी जाएगी, बशर्ते भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 65B के तहत वैध इलेक्ट्रॉनिक प्रमाणपत्र प्रस्तुत हो।"  अदालत ने स्पष्ट किया कि  "वीडियो को हर गवाह की गवाही के दौरान चलाना आवश्यक नहीं है।" जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस उज्ज्वल भुयान की खंडपीठ ने बॉम्बे हाईकोर्ट का वह आदेश रद्द किया जिसमें एनडीपीएस मामले में सिर्फ इसलिए पुनःविचारण का निर्देश दिया गया था क्योंकि वीडियो गवाहों के सामने नहीं चलाया गया और न ही उसका ट्रांसक्रिप्ट बनाया गया। फैसले में कहा गया कि  "सीडी एक इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड है और धारा 65B की शर्तें पूरी होने पर यह दस्तावेज़ की तरह स्वीकार्य है। वीडियो की सामग्री देखकर अदालत निष्कर्ष निकाल सकती है।" ट्रायल कोर्ट में वीडियो आरोपियों, वकीलों और न्यायाधीश की मौजूदगी में चलाया गया था और अदालत ने गवाहों व आरोपियों की उपस्थिति भी देखी थी, इसलिए पुनःविचारण आवश्यक नहीं।      पृष्ठभूमि में, पुलिस ने छापों में 147 किलो गांजा जब्त किया था। ट्रायल कोर्ट न...

"जाति महिमा मंडन 'राष्ट्रविरोधी',': इलाहाबाद हाईकोर्ट

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 इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण निर्णय मे समाज में जाति महिमा मंडन की प्रवृत्ति पर कड़ी आपत्ति जताई और उत्तर प्रदेश सरकार को व्यापक निर्देश दिए कि  " एफआईआर, पुलिस दस्तावेज़, सार्वजनिक रिकॉर्ड, मोटर वाहनों और सार्वजनिक बोर्ड से जाति संदर्भ हटाए जाएं। " जस्टिस विनोद दिवाकर की पीठ ने कहा कि  " ऐसा जाति महिमा मंडन "राष्ट्रविरोधी" है और संविधान के प्रति श्रद्धा ही "सच्ची देशभक्ति" और "राष्ट्र सेवा का सर्वोच्च रूप" है।" महत्वपूर्ण रूप से, एकल न्यायाधीश ने कहा कि  "यदि भारत को 2047 तक वास्तव में विकसित राष्ट्र बनना है तो समाज से गहराई तक जड़ें जमा चुकी जाति प्रथा का उन्मूलन आवश्यक है। " अदालत ने कहा, "यह लक्ष्य सरकार के सभी स्तरों से निरंतर और बहुस्तरीय प्रयासों की मांग करता है—प्रगतिशील नीतियों, मजबूत भेदभाव-रोधी कानूनों और परिवर्तनकारी सामाजिक कार्यक्रमों के माध्यम से।"  अदालत ने यह भी नोट किया कि जाति व्यवस्था और उसके सामाजिक प्रभाव को समाप्त करने के लिए कोई व्यापक कानून नहीं है। ➡️ प्रथम सूचना रिपोर्ट और पुलिस...

यू पी में बिना अनुमति दीवारों पर पोस्टर लगाना गैरकानूनी

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      उत्तर प्रदेश में दीवारों पर बिना अनुमति के पोस्टर लगाना गैरकानूनी है. इस मामले में कार्रवाई की जा सकती है और जुर्माना भी लगाया जा सकता है.  ➡️ इस संबंध में लागू क़ानून- ✒️ दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 151 के तहत शिकायत दर्ज कराई जा सकती है. यह धारा किसी भी व्यक्ति को "सार्वजनिक शांति भंग करने" या "किसी अन्य व्यक्ति को डराने-धमकाने" के लिए दंडनीय बनाती है.  ✒️ भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 427 के तहत शिकायत दर्ज कराई जा सकती है. यह धारा "किसी भी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने" या "किसी भी संपत्ति पर कब्जा करने" के लिए दंडनीय बनाती है.  ✒️ संपत्ति बदरंग अधिनियम के तहत सार्वजनिक स्थानों या दीवारों की खूबसूरती को नष्ट करने वाले किसी भी व्यक्ति के खिलाफ सज़ा का प्रावधान है.  ✒️ अगर कोई व्यक्ति दीवार पर बिना अनुमति के पोस्टर लगाता है, तो उसके ख़िलाफ़ कार्रवाई की जा सकती है. इसके लिए, नगर निगम की टीम जुर्माना लगाती है और उस दीवार को दोबारा पेंट भी कराती है. प्रस्तुति  शालिनी कौशिक  एडवोकेट  कैराना (शामली )

मुस्लिम महिला तलाक के बाद भी CrPC की धारा 125 के तहत पति से भरण-पोषण की हकदार-पटना हाईकोर्ट

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 पटना हाईकोर्ट ने कहा है कि  "एक मुस्लिम महिला तलाक के बाद भी धारा 125 CrPC के तहत अपने पति से भरण-पोषण (maintenance) मांग सकती है, अगर तलाक के बाद इद्दत अवधि में उसके भविष्य के लिए पति ने “उचित और न्यायसंगत प्रावधान” नहीं किया। " जस्टिस जितेंद्र कुमार ने फैमिली कोर्ट के आदेश को सही ठहराया, जिसमें एक मुस्लिम पुरुष को अपनी पत्नी को महीने ₹7,000 देने का निर्देश दिया गया था। पति ने दलील दी थी कि  "उनकी शादी आपसी सहमति (mubarat) से खत्म हो गई थी, " लेकिन कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया। ➡️ मामला संक्षेप में- पत्नी ने आरोप लगाया कि  " शादी के तुरंत बाद पति की क्रूरता के कारण उसे अपने माता-पिता के घर लौटना पड़ा। उसने कोई आय न होने का हवाला देते हुए ₹15,000 प्रति माह की मांग की। उसने बताया कि उसका पति विदेश में काम करता है और लगभग ₹1 लाख प्रति माह कमाता है। " पति ने क्रूरता के आरोप को खारिज किया और कहा कि " शादी 2013 में मुबारत (आपसी तलाक) से खत्म हो गई थी। उसने दावा किया कि उसने पहले ही ₹1,00,000 की राशि एलिमनी, दीन मोहर और इद्दत खर्च के रूप में दे दी है।" ...

एडवोकेट रजिस्ट्रेशन कराना है बार कौंसिल ऑफ़ उत्तर प्रदेश में

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   बार कौंसिल ऑफ़ उत्तर प्रदेश द्वारा आजकल बहुत बड़ी संख्या में एडवोकेट रजिस्ट्रेशन इंटरव्यू लिए जा रहे हैँ. पिछले साल सुप्रीम कोर्ट द्वारा एडवोकेट रजिस्ट्रेशन की फीस घटाए जाने के बाद से तेजी से एडवोकेट रजिस्ट्रेशन का कार्य बढ़ा है क्योंकि न्यायालयों मे वही लॉयर प्रेक्टिस कर सकते हैं जो संबंधित राज्य की बार कौंसिल मे एडवोकेट के रूप में रजिस्टर्ड हों. तो आज हम आपको बताने जा रहे हैँ, बार कौंसिल ऑफ़ उत्तर प्रदेश में एडवोकेट रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया- ✒️ सबसे पहले आप बार कौंसिल ऑफ़ उत्तर प्रदेश की आधिकारिक वेबसाइट upbarcouncil.com पर जाइये, जिसे आप गूगल के एड्रेस बार में search कर सकते हैँ- ✒️ जब आप गूगल के एड्रेस बार में बार कौंसिल ऑफ़ उत्तर प्रदेश की आधिकारिक वेबसाइट को खोल लेते हैँ तो उसमें लेफ्ट साइड मे शीर्ष पर लाल रंग मे PRINT REGISTRATION FORM लिखा हुआ दिखेगा, आप उससे फॉर्म प्रिंट कीजिए और फॉर्म भर लीजिए, अगर फॉर्म भरने में कोई दिक्कत आती हैँ तो कमेंट सेक्शन में सूचित करें, हम आपकी समस्या का समाधान अवश्य करेंगे. अब देखिए आपको फॉर्म के साथ क्या क्या संलग्न करना है- 1️⃣ Provisional...

2020 में COP नम्बर प्राप्त सभी अधिवक्ताओं की सूचनार्थ

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  बार कॉन्सिल ऑफ़ उत्तर प्रदेश द्वारा 2020 में जिन अधिवक्ताओं को COP नंबर जारी किये गए हैं , वे सभी अधिवक्ता COP re-issue form जल्द से जल्द सभी वांछित डाक्यूमेंट्स के साथ बार कॉन्सिल ऑफ़ उत्तर प्रदेश के आधिकारिक पते पर या माननीय चेयरमेन सर के पते पर भेज दें, ताकि वे समय से COP re-issue प्रक्रिया में सम्मिलित हो सकें और उन्हें विलम्ब शुल्क का भुगतान न करना पड़े. आपके COP कार्ड की एक्सपायरी date I-d कार्ड के पीछे लिखी है, आप वहां देखिये और निम्न फॉर्म के साथ निम्नलिखित डाक्यूमेंट्स संलग्न कर उपरोक्त पते पर भेज दीजिये 🙏🙏 🌑 *5 वकालत नामों की कॉपी *आधार कार्ड की कॉपी *250 रुपये का ड्राफ़्ट - BCUP CERTIFICATE AND PRACTICE VARIFICATION के नाम *हाई स्कूल से लेकर ENROLLMENT, COP की कॉपी तक के documents की कॉपी self attested  * तीन फोटो कोट एन्ड टाई में -2 फोटो फॉर्म पर चिपकाने हैँ - एक envelope में attach करना है फॉर्म पर.  * सभी signature full name के साथ, initial नहीं 🌑 वकालत नामों की फोटो कॉपी लगेंगी और 2021,2022,2023,2024,2025 की एक एक कॉपी लगेगी. द्वारा  शालिनी कौशिक ...

वक्फ संशोधन--पूरे क़ानून पर रोक लगाने से इंकार-सुप्रीम कोर्ट

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सुप्रीम कोर्ट ने 14 सितंबर 2025 को वक्फ संशोधन याचिका की सुनवाई करते हुए कहा कि  "किसी भी कानून को असंवैधानिक मानना बहुत दुर्लभ मामलों में ही किया जाता है। "  मौजूदा याचिका में पूरे वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 को चुनौती दी गई थी, लेकिन असली विवाद कुछ खास धाराओं पर था। याचिका की सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने पूरे कानून पर रोक लगाने से इनकार किया है, लेकिन कुछ धाराओं पर रोक लगाई है जो निम्न हैं- 🌑 धारा 3(r): पाँच साल तक "इस्लाम का पालन" करने की शर्त नियम बने बिना मनमाना इस्तेमाल हो सकती है, इसलिए रोकी गई. 🌑 धारा 2(c) का प्रावधान : वक्फ संपत्ति को वक्फ संपत्ति न मानने वाला प्रावधान रोका गया। 🌑 धारा 3C: कलेक्टर को वक्फ संपत्ति के अधिकार तय करने का अधिकार देना गलत है। जब तक अदालत फैसला नहीं करती, संपत्ति के अधिकार प्रभावित नहीं होंगे और वक्फ को बेदखल नहीं किया जाएगा। 🌑 ग़ैर-मुस्लिम सदस्य : वक्फ बोर्ड में ग़ैर-मुस्लिम सदस्य 4 से ज़्यादा और राज्य स्तर पर 3 से ज़्यादा नहीं होंगे।  🌑 धारा 23: पदेन अधिकारी (Ex-officio) मुस्लिम समुदाय से ही होना चाहिए। आभार 🙏👇 प्रस्तु...

व्हाट्सएप या ई-मेल से नोटिस भेजना वैध नहीं--सुप्रीम कोर्ट

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सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया था कि वे पुलिस को सीआरपीसी की धारा 41ए या बीएनएसएस की धारा 35 के तहत नोटिस भेजने के लिए केवल वहीं तरीके अपनाने का निर्देश दें, जिनकी कानून के तहत अनुमति हो। व्हाट्सएप या अन्य इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से नोटिस भेजना सीआरपीसी और बीएनएसएस के तहत तय की गई विधियों का विकल्प नहीं हो सकता। सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालयों के रजिस्ट्रार जनरल और सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को तीन हफ्ते के भीतर अनुपालन सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था।  🌑 अब एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि  " दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) या भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) के तहत व्हाट्सएप और ईमेल से नोटिस भेजना वैध नहीं है। " सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा राज्य की ओर से अपने जनवरी 2025 के आदेश में संशोधन की मांग वाली याचिका खारिज कर दी। 🌑 जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस नोंग्मीकापम कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि  " हम खुद यह विश्वास दिलाने में असमर्थ हैं कि ई-मेल और व्हाट्सएप जैसे इलेक्ट्रॉनिक संचार ...

आरोपी की नीयत वैवाहिक संबंधों के संबंध में महत्वपूर्ण- सुप्रीम कोर्ट

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सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि   "शादी का वादा करने के बाद आपसी सहमति से बने यौन संबंध, और शुरुआत से ही बुरी नीयत से झूठा वादा करके बनाए गए यौन संबंध — दोनों में फर्क है।" कोर्ट ने कहा,  "बलात्कार और सहमति से बने यौन संबंधों में स्पष्ट अंतर है। जब मामला शादी के वादे का हो, तो अदालत को यह बहुत सावधानी से देखना होगा कि आरोपी सच में पीड़िता से शादी करना चाहता था या फिर उसकी नीयत शुरू से ही गलत थी और उसने केवल अपनी वासना की पूर्ति के लिए झूठा वादा किया था। बाद वाली स्थिति धोखाधड़ी या छल के दायरे में आती है।" जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने विवाह के झूठे बहाने पर बलात्कार के मामले में मजिस्ट्रेट द्वारा आरोपी को भेजे गए समन को रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा कि-  "इस बात का कोई सबूत नहीं है कि आरोपी की नीयत शुरू से ही गलत थी। शिकायत में यह सामने आया था कि दोनों का रिश्ता कई वर्षों (2010–2014) तक चला, पीड़िता के परिवार से भी मुलाकात हुई और शादी को लेकर पुलिस की मौजूदगी में आश्वासन भी दिए गए।"  कोर्ट ने फिर कहा कि  "ये परिस्थितियाँ य...

COP को लेकर बार कौंसिल ऑफ़ उत्तर प्रदेश के महत्वपूर्ण फैसले चेयरमैन श्री शिव किशोर गौड़ एडवोकेट जी के नेतृत्व में

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      बार कौंसिल ऑफ़ उत्तर प्रदेश द्वारा नये रजिस्टर्ड अधिवक्ताओं के लिए COP फीस में भारी बढ़ोतरी की गई है, जिसे लेकर नये अधिवक्ताओं में चिंता और रोष है. इसे लेकर मैंने माननीय चेयरमेन बार काउंसिल ऑफ़ उत्तर प्रदेश श्री शिव किशोर गौड़ एडवोकेट जी से वार्ता की, माननीय चेयरमैन सर से प्राप्त सूचना के अनुसार 1️⃣ नये अधिवक्ताओं के लिए COP नम्बर की फीस में बढ़ोतरी का मुख्य कारण ही उन्हें मेडिकल क्लेम, डेथ क्लेम जैसी सुविधाओं से फिर से जोड़ना है जिससे वे रजिस्ट्रेशन फीस में भारी कमी किये जाने पर वंचित हो गए थे.  इसके साथ ही  2️⃣ नये वकीलों को COP के आवेदन के लिए 1 साल का समय दे दिया गया है, अब नये वकील 1 साल में COP के लिए आवेदन कर सकते हैँ. और उन्हें  3️⃣ अपने COP आवेदन फॉर्म के साथ वकालत नामे की कॉपी लगाने की भी आवश्यकता नहीं है. ये सभी निर्णय अधिवक्ता हित के उत्तम प्रयास हैँ जो कि बार कॉन्सिल ऑफ़ उत्तर प्रदेश द्वारा माननीय चेयरमैन श्री शिव किशोर गौड़ एडवोकेट जी के नेतृत्व में लिए जा रहे हैँ. इसके साथ ही चेयरमैन सर के इस उदार रुख को देखते हुए अधिवक्ताओं के उज्ज्वल भविष्य ...

COP लेना है, पर कैसे

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  🇨‌🇴‌🇵‌ लेना है तो ले लें     According to the information received from Honorable Chairman Bar Council of Uttar Pradesh Shri Shiv Kishore Gaur Advocate, under the new registration process, registered advocates will obtain the COP number in compliance the following procedure- 1️⃣- Declaration form - DD of ₹250 (which you can download for free from the official website of Bar Council of Uttar Pradesh.) 🌑 Documents (photocopy of all certificates from high school to enrollment) 🌑 Advocate ID and Certificate  🌑 AIBE Certificate *2 passport size photos (in coat and band) 2️⃣- Application form with DD of ₹ 14,500 and ₹ 500 for General and OBC category.  3️⃣- DD of ₹ 13,500 and ₹ 500 for SC/ST category. 4️⃣ New advocates can get a COP form free of cost by clicking on "Advocate details for COP "on the Interview section of the official website of Bar Council of Uttar Pradesh.       माननीय चेयरमैन बार कौंसिल ऑफ़ उत्तर प्रदेश श्री शिव किशोर गौड़ एड...

उत्तर प्रदेश में वकीलों के लिए बन गए नये नियम

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( कब और कैसे कर सकेंगे अब वकालत उत्तर प्रदेश में )  बार कॉन्सिल ऑफ़ उत्तर प्रदेश द्वारा वकीलों के लिए अदालतों में दाखिल किए जाने वाले वकालतनामे पर अपनी पंजीकरण संख्या (Registration Number) और सी.ओ.पी. नंबर (Certificate of Practice Number) लिखना अनिवार्य कर दिया गया है, और आदेश की प्रति सभी जनपद न्यायाधीश, बार एसोसिएशनों को भी प्रेषित की गई है. ➡️ वकालत के लिए रजिस्ट्रेशन और सी ओ पी कोर्ट में अनिवार्य- वकीलों में आपराधिक और फ़्रॉड किस्म के तत्वों की बढ़ती जा रही आवाजाही को देखते हुए उत्तर प्रदेश राज्य विधिज्ञ परिषद रजिस्ट्रेशन और सी ओ पी की कोर्ट में अनिवार्यता को लेकर और भी गंभीर हो गई है. बार कौंसिल ऑफ़ उत्तर प्रदेश के सामने यह मुद्दा जोरो से सामने आ रहा है कि कई वकील अपने वकालतनामे पर इन दोनों महत्वपूर्ण जानकारियों को ही नहीं लिख रहे हैं, जबकि ऐसा करना कानूनी रूप से जरूरी है। इसलिए अब राज्य विधिज्ञ परिषद उत्तर प्रदेश ने वकालत नामों पर रजिस्ट्रेशन नम्बर और सी ओ पी नम्बर लिखना अनिवार्य करने का आदेश जारी किया है. आदेश का उद्देश्य अदालती प्रक्रियाओं में पारदर्शिता लाना और यह सुनिश्चित कर...

यू पी परिवहन विभाग का बदल गया हेल्पलाइन नम्बर

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  उत्तर प्रदेश परिवहन विभाग ने शिकायत और समाधान के लिए हेल्पलाइन नंबर बदल दिए हैं। अब 11 अंकों की जगह सिर्फ तीन अंकों का नंबर 149 जारी किया गया है। पुराने नंबर 18001800151 को बंद कर दिया गया है। शिकायत 149 पर और समाधान 151 पर मिलेगा। नए नंबरों की जानकारी के लिए विभाग जागरूकता अभियान चलाएगा। प्रस्तुति  शालिनी कौशिक  एडवोकेट  कैराना (शामली )

तीसरे पक्ष को पितृत्व पर प्रश्न उठाने का अधिकार नहीं-ओड़िशा हाईकोर्ट

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  संपत्ति बंटवारे के मामले में डीएनए टेस्ट की मांग को लेकर हुई सुनवाई के दौरान ओडिशा हाईकोर्ट ने एक अहम टिप्पणी की है। इसके साथ ही ओडिशा हाई कोर्ट की एकल पीठ के न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी.पी. राउत्रे ने मामले में कई और मार्गदर्शक सिद्धांत भी स्थापित किये जिनका पालन क़ानून के क्षेत्र में एक लम्बे समय तक किया जायेगा. उन सभी मार्गदर्शक सिद्धांतो को 1️⃣2️⃣3️⃣ 4️⃣5️⃣ से चिन्हित किया गया है. हाईकोर्ट ने कहा कि  1️⃣ " मां के बयान के बावजूद बच्चे का डीएनए परीक्षण कराना उसके मातृत्व का अपमान है। इतना ही नहीं यह कानून के भी विरुद्ध है। " ओडिशा हाई कोर्ट की एकल पीठ के न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी.पी. राउत्रे ने यह टिप्पणी करते हुए निचली अदालत का फैसला बरकरार रखा।   ➡️ मामला संक्षेप में - संपत्ति बंटवारे के एक मामले में विरोधी पक्ष के 58 साल के व्यक्ति के पिता का पता लगाने के लिए उसका डीएनए परीक्षण का निर्देश देने की मांग की गई थी। जिसे निचली अदालत ने खारिज कर दिया था। जिसके बाद निचली अदालत के आदेश को चुनौती देते हुए मामला हाईकोर्ट पहुंचा। वहीं अब हाईकोर्ट ने भी निचली अदालत के आदेश को ...

भरण-पोषण के लिए वयस्क बेटी का दावा CrPC की कार्यवाही में नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

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  इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि- " परिवार न्यायालय, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 125 के तहत दायर एक आवेदन पर सुनवाई करते हुए, हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 (HAMA) की धारा 20(3) के तहत किसी बालिग, अविवाहित बेटी को भरण-पोषण का आदेश नहीं दे सकता। " न्यायमूर्ति रजनीश कुमार की अध्यक्षता वाली अदालत ने स्पष्ट किया कि  " HAMA के तहत भरण-पोषण का दावा एक दीवानी अधिकार है, जिसका निर्णय एक उचित सिविल वाद के माध्यम से होना चाहिए, न कि किसी संक्षिप्त आपराधिक कार्यवाही के जरिए। " इलाहाबाद हाईकोर्ट ने परिवार न्यायालय के आदेश को रद्द कर मामले को वापस भेजते हुए यह निर्देश जारी किया कि  " आवेदन को कानून के अनुसार नए सिरे से निर्णय के लिए एक सिविल वाद में परिवर्तित किया जा सकता है. " निर्णित मामले में अनुराग पांडे द्वारा सुल्तानपुर के प्रधान न्यायाधीश, परिवार न्यायालय के 30 जुलाई, 2024 के एक फैसले को चुनौती देते हुए दायर की गई. एक आपराधिक पुनरीक्षण याचिका से उत्पन्न हुआ। परिवार न्यायालय ने श्री पांडे को उनकी ब...

विवाहित बेटी भी अनुकम्पा नियुक्ति की हकदार-इलाहाबाद हाईकोर्ट

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अनुकम्पा नियुक्ति पर इलाहाबाद हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला आया है। हाईकोर्ट ने कहा कि " विवाहित बेटी भी अनुकंपा पर नियुक्ति की हकदार है। बेटियों के विवाहित होने से अनुकंपा नियुक्ति देने से इनकार नहीं किया जा सकता ." इलाहाबाद हाई कोर्ट ने जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी (बीएसए) देवरिया को निर्देश जारी किया कि  "वह अपीलकर्ता की अनुकंपा नियुक्ति के दावे पर फिर से विचार करें और आठ सप्ताह के भीतर निर्णय लें।"  यह आदेश न्यायमूर्ति मनोज कुमार गुप्ता एवं न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्र की खंडपीठ ने चंदा देवी की विशेष अपील पर दिया है। ➡️ संक्षेप में मामला- देवरिया निवासी चंदा देवी के पिता संपूर्णानंद पांडेय पूर्व प्राथमिक विद्यालय गजहड़वा, ब्लॉक बनकटा, तहसील भाटपाररानी में सहायक अध्यापक के पद पर कार्यरत थे। सेवा के दौरान 2014 में उनकी मृत्यु हो गई। चंदा देवी ने अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति के लिए आवेदन किया। दिसंबर 2016 में जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी ने उनके आवेदन को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि वह विवाहित बेटी हैं, इसलिए वह शासनादेश चार सितंबर 2000 के अनुसार अनुकंपा नियुक्ति के लि...

जिठानी-देवरानी अलग परिवार-इलाहाबाद हाई कोर्ट

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  इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा हाल ही में बरेली के जिला कार्यक्रम अधिकारी द्वारा आंगनवाड़ी कार्यकर्ता की नियुक्ति को रद्द किये जाने को रद्द कर दिया गया, जिसमें कहा गया था कि  "एक भाभी (जेठानी) को सरकारी आदेश के तहत 'एक ही परिवार' का हिस्सा तब माना जाता है, ज़ब दोनों भाई एक ही घर और रसोई में साथ रहते हैं।" जस्टिस अजीत कुमार की पीठ ने कुमारी सोनम की याचिका को स्वीकार करते हुए यह फैसला सुनाया, जिनकी नियुक्ति 13 जून, 2025 को बरेली के जिला कार्यक्रम अधिकारी ने रद्द कर दी थी। रद्द करने का आधार यह था कि उसकी जेठानी पहले से ही उसी केंद्र में आंगनवाड़ी सहायक के रूप में सेवा कर रही थी। जबकि याचिकाकर्ता का तर्क यह था कि उसकी जेठानी (भाभी) एक अलग घर नंबर के साथ एक अलग घर में रहती है और इसलिए, वह उसके पति के परिवार की परिभाषा में नहीं आती है, भले ही वह उसके ससुर के परिवार से संबंधित हो। याचिकाकर्ता के वकील ने संबंधित परिवार रजिस्टर दस्तावेज को भी इंगित किया, जिससे पता चलता था कि उसकी जेठानी वास्तव में अलग रहती थी। संदर्भ के लिए, 21 मई, 2023 को सरकारी आदेश के तहत खंड 12 (iv) के तहत बनाए...