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2025 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

आओ विवाह रजिस्टर्ड करें यू पी में

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 उत्तर प्रदेश में विवाह पंजीकरण कराने के लिए, आपको IGRSUP (एकीकृत शिकायत निवारण प्रणाली) वेबसाइट पर ऑनलाइन आवेदन करना होगा। आपको आवश्यक दस्तावेज, जैसे कि आधार कार्ड, पहचान प्रमाण, आयु प्रमाण पत्र, निवास प्रमाण पत्र, और विवाह प्रमाण पत्र (यदि लागू हो) अपलोड करने होंगे। इसके बाद, आपको आवेदन शुल्क का भुगतान करना होगा और आवेदन पत्र जमा करना होगा। सत्यापन प्रक्रिया पूरी होने के बाद, आपको विवाह प्रमाण पत्र जारी किया जाएगा।  विस्तृत प्रक्रिया: 1️⃣ वेबसाइट पर जाएं: सबसे पहले, IGRSUP वेबसाइट पर जाएं।  2️⃣. आवेदन करें: "विवाह पंजीकरण" अनुभाग में, "आवेदन करें" विकल्प पर क्लिक करें।  3️⃣. पंजीकरण फॉर्म भरें: पति और पत्नी दोनों का विवरण, विवाह की तिथि और स्थान, और गवाहों का विवरण दर्ज करें।  4️⃣. दस्तावेज अपलोड करें: आवश्यक दस्तावेज, जैसे कि आधार कार्ड, पहचान प्रमाण, आयु प्रमाण पत्र, निवास प्रमाण पत्र, और विवाह प्रमाण पत्र (यदि लागू हो), अपलोड करें।  5️⃣. आवेदन शुल्क का भुगतान करें: ऑनलाइन भुगतान के माध्यम से आवेदन शुल्क का भुगतान करें।  6️⃣. आवेदन जमा करें: आवेदन ...

मुस्लिम पर्सनल लॉ- वसीयत को चुनौती

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 सुप्रीम कोर्ट ने आज एक याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है,जिसमें यह घोषणा करने की मांग की गई है कि " भारत में मुसलमानों को पवित्र कुरान के अनुसार न्यायसंगत तरीके से वसीयत ( वसीयत/Will) बनाने का अधिकार है, और उन पर यह प्रतिबंध नहीं होना चाहिए कि वे अपनी संपत्ति का केवल एक-तिहाई हिस्सा ही बिना कानूनी वारिसों की सहमति के वसीयत कर सकते हैं।"  जस्टिस पमिडिघंटम श्री नरसिम्हा और जस्टिस अतुल एस. चंदुरकर की खंडपीठ ने नोटिस जारी किया और इस याचिका को Tarsem v. Dharma & Anr. मामले के साथ टैग कर दिया। उस मामले में भी कोर्ट ने मोहम्मडन लॉ के तहत वसीयत करने की शक्ति की सीमा से जुड़े समान प्रश्न तय किए थे। याचिकाकर्ता, जो अबू धाबी में वकालत करते हैं, ने यह घोषणा करने का निर्देश मांगा है कि 1925 के भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम (Indian Succession Act) के तहत मुसलमानों को वसीयतनामा संबंधी उत्तराधिकार से बाहर रखना, और गैर-संहिताबद्ध मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत एक-तिहाई सीमा लगाना, संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21, 25 और 300A का उल्लंघन है। याचिका में कहा गया है —   “जब कुरान की आयतें...

🅾︎🅿︎🅴︎🆁︎🅰︎🆃︎🅸︎🅾︎🅽︎ 🆂︎🅰︎🆅︎🅴︎🆁︎🅰︎

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वेस्ट यू पी में नशे के अवैध कारोबार की तेजी से बढ़ती जा रही सक्रियता को देखते हुए प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कड़े निर्देश जारी किये जाने पर अब सहारनपुर मंडल में पुलिस प्रशासन नशे के कारोबार पर नकेल कसने जा रहा है. इसके लिए सहारनपुर पुलिस उप महानिरीक्षक अभिषेक सिंह के द्वारा ‘ऑपरेशन सवेरा’ अभियान की शुरुआत की गई है. जिसका मुख्य उद्देश्य नशे के अवैध व्यापार में लिप्त अपराधियों पर सख्त कार्यवाही करते हुए, समाज को नशामुक्त और सुरक्षित बनाना है. ऑपरेशन सवेरा को सफल बनाने के लिए सहारनपुर रेंज के पुलिस उप महानिरीक्षक अभिषेक सिंह ने मंडल के तीनों जिलों सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, शामली के SSP को इस अभियान के तहत नशा कारोबारियों पर शिकंजा कसने के आदेश दिए हैं.  DIG अभिषेक सिंह के निर्देश पर सहारनपुर, मुजफ्फरनगर और शामली में पुलिस नशा कारोबारियों, सप्लायर्स और माफिया नकेल कसने जा रही है. साथ ही अवैध संपत्तियों को जब्त किया जाएगा और समाज को नशे के दुष्परिणामों से जागरूक किया जाएगा.पुलिस उप महानिरीक्षक अभिषेक सिंह का कहना है कि  ‘ ऑपरेशन सवेरा’ न केवल अपराधियों पर सख्त कार्रवाई का सं...

'उम्मीद पोर्टल पर लगाई जाए रोक-मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड

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( shalini kaushik law classes) ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड द्वारा सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर उम्मीद पोर्टल को निलंबित किये जाने की मांग की गई है. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड द्वारा वक्फ एक्ट 2025 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई पूरी होने तक सुप्रीम कोर्ट में एक रिट याचिका दाखिल कर उम्मीद पोर्टल को निलंबित करने की मांग की है.बोर्ड ने याचिका दाखिल कर सुप्रीम कोर्ट से मांग की है कि    " या तो पोर्टल पर रोक लगाई जाए या केंद्र सरकार को उसका अधिसूचना वापस लेने का निर्देश दिया जाए।"      बोर्ड के राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ. एस. क्यू. आर. इलियास ने कहा कि  " बार-बार अपील करने के बावजूद सरकार ने 6 जून को उम्मीद पोर्टल शुरू कर दिया और वक्फ संपत्तियों के पंजीकरण को अनिवार्य बना दिया। बोर्ड इस कदम को “गैरक़ानूनी” और “अदालत की अवमानना” करार देता है. " ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कोर्ट में याचिका दायर करते हुए कहा है कि,   “यह मुतवल्लियों पर अवैध दबाव डालता है और सुप्रीम कोर्ट में मांगी गई राहतों को प्रभावित करता है।”   ऑल इ...

सुप्रीम कोर्ट में फंसा 🇪‌🇨‌🇮‌

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  @IndianlawSK28 सप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (14 अगस्त) को भारत के निर्वाचन आयोग (ECI) को निर्देश दिया कि वह बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) अभियान के बाद प्रकाशित वोटर लिस्ट से हटाए गए लगभग 65 लाख मतदाताओं की जिलावार सूची जिला निर्वाचन अधिकारियों की वेबसाइटों पर प्रकाशित करे। न्यायालय ने यह भी कहा कि नाम हटाने के कारण जैसे मृत्यु, प्रवास, दोहरा पंजीकरण आदि, स्पष्ट किए जाने चाहिए। यह जानकारी बिहार के मुख्य निर्वाचन अधिकारी की वेबसाइट पर भी प्रदर्शित की जानी चाहिए ताकि दस्तावेजों को EPIC नंबरों के आधार पर सर्च किया जा सके। इसके अलावा, न्यायालय ने चुनाव आयोग को सार्वजनिक नोटिस में यह भी निर्दिष्ट करने का निर्देश दिया कि छूटे हुए व्यक्ति फाइनल लिस्ट में शामिल होने के लिए अपना दावा प्रस्तुत करते समय अपना आधार कार्ड भी प्रस्तुत कर सकते हैं। समाचार पत्रों, इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया के माध्यम से व्यापक प्रचार किया जाना चाहिए कि सूची वेबसाइट पर प्रकाशित की जाएगी। सुप्रीम कोर्ट द्वारा चुनाव आयोग को अगले मंगलवार तक ये कदम उठाने का निर्देश दिया गया। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागच...

अब नहीं होगी बच्चों की ताड़ना यू पी के स्कूलों में

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@indianlawsk28    उत्तर प्रदेश के निजी व सरकारी विद्यालयों के शिक्षक अब बच्चों की ताड़ना नहीं कर सकेंगे.बेसिक शिक्षा विभाग की ओर से इस संबंध में शिक्षकों के लिए कड़े निर्देश जारी किये गए हैं.  बेसिक शिक्षा विभाग की ओर से राष्ट्रीय बालक अधिकार संरक्षण आयोग की ओर से जारी इन दिशा निर्देशों का हवाला देते हुए कहा गया है कि विद्यालय में पढ़ रहे बच्चों को किसी प्रकार की शारीरिक व मानसिक दंड न दिए जाएँ. साथ ही सभी निजी व सरकारी विद्यालयों को कहा गया है कि इन दिशा निर्देशों का व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाये, साथ ही, बच्चों को भी बताया जाये कि वे इसके विरोध में अपनी बात कह सकते हैं।  ➡️ स्कूल शिक्षा महानिदेशक कंचन वर्मा का आदेश-  स्कूल शिक्षा महानिदेशक कंचन वर्मा की ओर से सभी बीएसए को निर्देश दिया गया है कि  "हर स्कूल जिसमें छात्रावास हैं, जेजे होम्स, बाल संरक्ष्ज्ञण गृह भी शामिल हैं, में एक ऐसी व्यवस्था की जाए, जहां बच्चे अपनी बात रख सकें। ऐसे संस्थानों में किसी एनजीओ की सहायता ली जा सकती है। हर स्कूल में एक शिकायत पेटिका भी होनी चाहिए, जहां छात्र अपनी शिकायत दे सकें।...

Maintenance Case पत्नी को है अधिकार दिल्ली हाईकोर्ट

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( Shalini kaushik law classes ) दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए कहा है कि पत्नी अपने पति की वास्तविक आय/संपत्ति का पता लगाने के लिए बैंक अधिकारियों को गवाह के तौर पर बुलाने की मांग कर सकती है.          पतियों द्वारा अपनी पत्नी को गुजारा भत्ता देने से बचने के लिए अपनी वास्तविक आय को छिपाना कोई नई बात नहीं है, दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि  "पत्नी अपने पति की वास्तविक आय/संपत्ति के बारे में अपने दावों की पुष्टि के लिए बैंक अधिकारियों सहित गवाहों को बुलाने के लिए बैंक अधिकारियों को गवाह के तौर पर बुलाने की मांग कर सकती है।"       जस्टिस रविंदर डुडेजा ने याचिकाकर्ता-पत्नी की याचिका स्वीकार की, जबकि फैमिली कोर्ट ने प्रतिवादी-पति की वास्तविक आय के संबंध में अपने दावों की पुष्टि के लिए बैंक अधिकारियों सहित गवाहों को बुलाने के लिए CrPC की धारा 311 के तहत उसकी अर्जी खारिज कर दी थी।   Case title: NJ v. आज आभार 🙏👇 प्रस्तुति शालिनी कौशिक एडवोकेट कैराना (शामली)

पत्नी की परिभाषा दस्तावेज से बड़ी -इलाहाबाद हाईकोर्ट

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( shalini kaushik law classes ) इलाहाबाद हाई कोर्ट का मानना है कि जो पुरुष और महिला एक लंबे समय तक पति-पत्नी की तरह साथ रहे हैं तो पत्नी का भरण-पोषण का हक बनता है। इसलिए भरण-पोषण के लिए विवाह को साबित करना जरूरी नहीं है। भरण पोषण के एक मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि  " भरण-पोषण के मामले में पत्नी की परिभाषा दस्तावेज से बड़ी है। पुरुष और महिला लंबे समय तक पति-पत्नी की तरह साथ रहे हैं तो भरण-पोषण का हक बनता है। लिहाजा, भरण-पोषण के लिए विवाह को साबित करना जरूरी नहीं है। कानून का मकसद न्याय है न कि ऐसे रिश्तों को नकारना जो समाज में पति-पत्नी की तरह माने जाते है।" इस टिप्पणी के साथ न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा की अदालत ने देवरिया निवासी याची की पुनरीक्षण याचिका स्वीकार कर ली। कोर्ट ने पारिवारिक न्यायालय का आदेश रद्द कर नए सिरे से मामले की सुनवाई करने के लिए वापस भेज दिया। साथ ही कांस्टेबल पति को मामले के निस्तारण होने तक याची को 8,000 रुपये प्रति माह अंतरिम भरण-पोषण देने का आदेश दिया है। मामले में याची ने 2017 में पति के निधन के बाद कांस्टेबल देवर संग शादी होने का दा...

14 साल बाद अनुकम्पा नियुक्ति रद्द करना गलत -इलाहाबाद हाई कोर्ट

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( Shalini kaushik law classes )  इलाहाबाद हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति मंजू रानी चौहान की एकलपीठ ने शिव कुमार की याचिका पर आदेश देते हुए कहा कि  "अनुकंपा नियुक्ति में कोई धोखाधड़ी या महत्वपूर्ण तथ्य नहीं छुपाया गया है, तो वर्षों बाद उस नियुक्ति को निरस्त नहीं किया जा सकता। "    यह टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने मां के सरकारी स्कूल में शिक्षिका होने के आधार पर अनुकंपा नियुक्ति के तहत क्लर्क के पद पर कार्यरत कर्मचारी को बर्खास्त किए जाने के आदेश को रद्द कर दिया हाथरस निवासी शिव कुमार के पिता हाथरस में सहायक अध्यापक के पद पर कार्यरत थे । सेवा के दौरान उनकी मृत्यु हो गई। याची को 2001 में अनुकंपा के आधार पर जूनियर क्लर्क पद पर नियुक्ति दी गई। बाद में वह पदोन्नत होकर सीनियर क्लर्क बने। इस बीच 31 मई 2023 में उनकी सेवा यह कहकर समाप्त कर दी गई कि नियुक्ति के समय उन्होंने यह तथ्य नहीं बताया था कि उनकी मां सरकारी नौकरी में थीं। याची ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी। याची अधिवक्ता ने दलील दी कि नियुक्ति आवेदन के समय कोई निर्धारित फॉर्म नहीं था जिसमें परिवार के सदस्यों की नौकरी की जानकारी दे...

सोशल मीडिया और अश्लील तस्वीरें -अपराध

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 गुजरात हाईकोर्ट द्वारा अभी हाल ही में उस पति पर ₹25,000 का जुर्माना लगाया गया, जिसने अपनी पत्नी की 'अश्लील' तस्वीरें और उनके साथ भद्दी टिप्पणियां व्हाट्सएप और इंस्टाग्राम पर अपलोड की थीं और उन्हें वायरल भी किया था।  इसके साथ ही जस्टिस हसमुख डी. सुथार की पीठ ने यह आदेश पारित करते हुए पति के खिलाफ दर्ज एफ आई आर और उसके बाद शुरू की गई सभी कार्यवाही यह देखते हुए रद्द कर दी गयी कि मामला दोनों पक्षों के बीच सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझा लिया गया है. आदेश पारित करते हुए जस्टिस हसमुख डी. सुथार ने कहा,  "...यद्यपि दोनों पक्षों के बीच विवाद सुलझ गया, लेकिन याचिकाकर्ता के आचरण को देखते हुए पति ने अपनी पत्नी की अश्लील तस्वीरें मांगी हैं। इतना ही नहीं, उसने इन तस्वीरों को सोशल मीडिया पर भी वायरल कर दिया, याचिकाकर्ता पर ₹25,000 का जुर्माना लगाया जाता है।"         इसके साथ ही जज ने जुर्माने की राशि एक सप्ताह के भीतर राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण में जमा किये जाने के निर्देश दिए।  प्रस्तुत मामले में पति पर सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66(ई) और 67 के साथ भारत...

दो वोटर आई डी कार्ड -कैसे हैँ अपराध?

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Shalini kaushik law classes  आज तेजस्वी यादव चर्चाओं मे बने हुए हैँ, इस बार चर्चाओं में रहने का कारण कोई राजनीतिक बयानबाजी नहीं है बल्कि एक ऐसा कार्य है जिसे देश की निष्पक्ष लोकतान्त्रिक प्रक्रिया को धक्का पहुंचाने के कारण गंभीर अपराध की श्रेणी मे रखा गया है. बिहार में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैँ और इधर बिहार की मुख्य विपक्षी पार्टी में से एक राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव के पास 2 वोटर आईडी कार्ड होने के मामले ने वहां की राजनीति को गर्मा दिया है। चुनाव आयोग ने इस मामले की जांच बैठाने का फैसला किया है.  ➡️  वोटर आई डी कार्ड का महत्व- वोटर आईडी कार्ड सिर्फ एक पहचान पत्र नहीं बल्कि एक अहम अधिकार है। चुनाव में वोट डालने के लिए इस दस्तावेज का आपके पास होना बहुत जरूरी है। वोटर आईडी कार्ड निर्वाचन आयोग द्वारा जारी किया जाता है। ➡️ एक मतदाता के दो वोटर आई डी कार्ड होना-   अगर एक मतदाता जानबूझकर या अनजाने में दो वोटर आईडी कार्ड अपने पास रखता है तो यह गंभीर अपराध है. यह निष्पक्ष लोकतांत्रिक प्रक्रिया को लेकर कई सवाल खड़े करता है। अगर कोई मतदाता जानबूझकर दो वोटर आईड...

कार में बैठकर वर्चुअल सुनवाई में पेश वकील पर ₹10,000 का जुर्माना -मध्य प्रदेश हाईकोर्ट )

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  मध्यप्रदेश हाईकोर्ट द्वारा एक वकील पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से चल रही अदालत की कार्यवाही में कार में बैठे-बैठे शामिल होने पर ₹10,000 का जुर्माना लगाया गया है. वकील के इस व्यवहार को न्यायिक गरिमा के खिलाफ बताते हुए अदालत ने इसे कोर्ट के प्रति अनादर बताया।  न्यायमूर्ति अतुल श्रीधरन और न्यायमूर्ति अनुराधा शुक्ला की खंडपीठ ने यह आदेश पारित करते हुए कहा कि " वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की सुविधा उन वकीलों के लिए दी गई है जो किसी वैध कारण से अदालत में शारीरिक रूप से उपस्थित नहीं हो सकते। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि पेशी की औपचारिकता को इस हद तक हल्का कर दिया जाए कि कोर्ट की गरिमा ही प्रभावित हो।" न्यायालय ने अपने आदेश में साफ तौर पर स्पष्ट किया कि " कार से पेश होना न केवल असंगत है बल्कि इससे यह प्रतीत होता है कि संबंधित वकील ने न्यायालय के प्रति उचित सम्मान नहीं दिखाया."       अद्यतन निर्णयों की जानकारी के लिए जुड़े रहिये कानूनी ज्ञान ब्लॉग से http://shalinikaushikadvocate.blogspot.com पर क्लिक कर  धन्यवाद 🙏🙏 आभार 🙏👇 प्रस्तुति  शालिनी कौशिक  एड...

कँगना को राहत नहीं -पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट

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  (कँगना को राहत नहीं-हाईकोर्ट) (Shalini kaushik law classes) पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा एक्ट्रेस और भारतीय जनता पार्टी (BJP) सांसद कंगना रनौत द्वारा 2021 के किसान आंदोलन पर की गई टिप्पणियों को लेकर दायर मानहानि के मामले में दायर समन आदेश रद्द करने से इनकार कर दिया गया। कँगना रणौत ने ट्विटर पर पोस्ट किया था कि एक बुजुर्ग महिला प्रदर्शनकारी महिंदर कौर को आंदोलन में भाग लेने के लिए पैसे दिए गए थे। जस्टिस त्रिभुवन दहिया ने कहा,  " कानून के प्रासंगिक प्रावधानों के आलोक में प्रारंभिक साक्ष्यों की जांच करके मामले के तथ्यों पर उचित विचार करने के बाद यह आदेश पारित किया गया। याचिकाकर्ता का यह तर्क मान्य नहीं है कि रीट्वीट उसने नहीं किया। " न्यायालय ने जोर देते हुए कहा कि  "ट्विटर कम्युनिकेशंस इंडिया प्राइवेट लिमिटेड (TCIPL) द्वारा यह रिपोर्ट प्राप्त न होना कि क्या कथित रीट्वीट याचिकाकर्ता द्वारा किया गया, CrPC की धारा 202 के तहत मजिस्ट्रेट के अधिकार क्षेत्र को छीनने का आधार नहीं हो सकता।"  न्यायालय ने माना कि  "रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की जा सकी, क्योंकि कंपनी www.t...

आपकी रील गैरकानूनी है

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 रील बनाना एक फैशन बन गया है आजकल. रील्स बनाने के नशे में आज युवा वर्ग तो इस कदर मदहोश है कि उसे यह भी नहीं दिखाई दे रहा है कि वह रील्स में कुछ गैरकानूनी काम भी धड़ल्ले से कर रहा है जिनके करने पर उसे जेल भी काटनी पड़ सकती है. तो चलिए आज वह क़ानून भी जान लीजिए जो गैरकानूनी रील बनाने वालों पर क़ानून के शिकंजे को कसता है. आज सोशल मीडिया में रील बनाकर नोट कमाने का प्रचलन जोरों पर है. नोट कमाने के लिए अधिक से अधिक व्यू बटोरने होते हैं और ये देखने में आया है कि सीधी साफ, सभ्य रील्स पर उतने व्यू नहीं होते जितने व्यू उलटी सीधी, अनाप शनाप हरकत वाली रील्स पर होते हैँ. इंस्टाग्राम, फेसबुक, यूट्यूब, ट्विटर, स्नैपचैट, व्हाट्सएप्प, टेलीग्राम जैसी सोशल नेटवर्किंग प्लेटफार्म पर रील्स के माध्यम से गाली-गलौज करते हुए या आपत्तिजनक तरीक़े से रील्स डालना वीडियो पोस्ट करना क्रिएटर्स के लिए केवल एक "ट्रेंड" या "फन कंटेंट" हो सकता है किन्तु यदि हम इसे क़ानून की दृष्टि से देखते हैँ तो यह कानूनन एक दंडनीय अपराध है। ➡️ आईटी एक्ट और बी एन एस में ये रील्स हैँ अपराध - वे रील्स जो समाज में अश्लीलता फै...

High Court has important power in marriage related disputes - Supreme Court

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     (  High Court has important power in marriage related disputes - Supreme Court )      विवाह संबंधी झगड़ों में दायर खासतौर पर उन विवाह संबंधी झगड़ों में दायर की गई एफ आई आर के संबंध में जिनमें अक्सर भारतीय दंड संहिता की धारा 498A, 323, 504, और 506 लगाई जाती हैं उन एफ आई आर रद्द करने के संबंध में महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अपूर्वा अरोरा बनाम उत्तर प्रदेश   राज्य मामले में स्पष्ट किया कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत हाईकोर्ट के पास वह शक्ति है कि वह ऐसी आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर सके जो केवल बदले की भावना या प्रताड़ना के उद्देश्य से की गई हो।       सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि- " अगर कोई एफ आई आर कानून का दुरुपयोग करते हुए दर्ज की गई हो, और उसका उद्देश्य न्याय नहीं बल्कि प्रतिशोध हो, तो हाईकोर्ट को आगे बढ़कर ऐसे मामलों को समाप्त कर देना चाहिए।" ➡️ धारा 482 दंड प्रक्रिया संहिता की शक्ति-       सुप्रीम कोर्ट के अनुसार दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत हाईकोर्ट को " अंतर्न...

रजिस्टर्ड वसीयत प्रमाणिक: सुप्रीम कोर्ट

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 सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (21 जुलाई) को दोहराया कि रजिस्टर्ड 'वसीयत' के उचित निष्पादन और प्रामाणिकता की धारणा होती है और सबूत का भार वसीयत को चुनौती देने वाले पक्ष पर होता है। ऐसा मानते हुए जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट का फैसला रद्द कर दिया, जिसमें विवादित भूमि में अपीलकर्ता/लासुम बाई का हिस्सा कम कर दिया गया था और रजिस्टर्ड वसीयत और मौखिक पारिवारिक समझौते के आधार पर उनका पूर्ण स्वामित्व बरकरार रखा। न्यायालय ने माना कि हाईकोर्ट ने अपने तर्क में गलती की और इस बात पर ज़ोर दिया कि रजिस्टर्ड वसीयत की प्रामाणिकता की प्रबल धारणा होती है। यह धारणा वर्तमान मामले में और भी पुष्ट हुई, क्योंकि प्रतिवादी ने यह स्वीकार किया था कि वसीयत पर उसके पिता के हस्ताक्षर थे, इसलिए उसने इसकी प्रामाणिकता पर कोई विवाद नहीं किया, खासकर तब जब वसीयत से न केवल अपीलकर्ता को बल्कि स्वयं प्रतिवादी और उसकी बहन को भी लाभ हुआ हो। Case Title: METPALLI LASUM BAI (SINCE DEAD) AND OTHERS VERSUS METAPALLI MUTHAIH(D) BY LRS. (https://hindi.livelaw.in/supreme-court/registered...

Every Advocate is lawyer but Lawyer only Lawyer

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  आप एक एडवोकेट (Advocate) तब बन सकते हैं जब आप लॉ की डिग्री पूरी करने के बाद, बार काउंसिल में रजिस्टर हो जाते है और आपको कोर्ट में केस लड़ने की अनुमति मिल जाती है. एडवोकेट, लॉयर से अलग होता है क्योंकि लॉयर सिर्फ कानूनी सलाह दे सकता है, जबकि एडवोकेट कोर्ट में केस लड़ सकता है और अपने क्लाइंट का प्रतिनिधित्व कर सकता है.  ➡️ एडवोकेट बनने की प्रक्रिया:  1️⃣ एलएलबी की डिग्री: सबसे पहले, किसी मान्यता प्राप्त लॉ कॉलेज से 3 या 5 साल की एलएलबी (बैचलर्स ऑफ लॉ) की डिग्री प्राप्त करना आवश्यक है.  2️⃣ बार काउंसिल में रजिस्ट्रेशन: एलएलबी पूरी करने के बाद, आपको अपने राज्य की बार काउंसिल में रजिस्टर कराना होगा.  3️⃣. ऑल इंडिया बार एग्जामिनेशन (AIBE):  पहले आपको लॉ की डिग्री प्राप्त करने के बाद केवल संबंधित राज्य की बार काउंसिल मे एनरोलमेंट कराना होता था किन्तु अब 2010 से बार काउंसिल में रजिस्ट्रेशन के बाद, आपको रजिस्ट्रेशन के दो साल के अंदर ऑल इंडिया बार एग्जामिनेशन (AIBE) भी पास करना होता है.  4️⃣. प्रेक्टिस का प्रमाण पत्र:(COP-certificate of practice)   20...

गुजारा भत्ता -अहम फैसला

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रजनीश बनाम नेहा (Rajnish vs Neha) का मामला 2021 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुनाया गया एक महत्वपूर्ण फैसला है, जो भरण-पोषण (maintenance) के मामलों से संबंधित है। इस फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने भरण-पोषण के मामलों में दिशा-निर्देश जारी किए, जिससे अदालतों को यह सुनिश्चित करने में मदद मिल सके कि भरण-पोषण के मामलों का तेजी से और कुशलता से निपटारा हो।  रजनीश बनाम नेहा मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने माना कि भरण-पोषण के मामलों में, अदालतों को कुछ बातों पर विचार करना चाहिए, जैसे: 🌑 पति और पत्नी दोनों की वित्तीय स्थिति (financial position)।  🌑 भरण-पोषण की राशि तय करते समय, पति की आय और देनदारियों (liabilities) पर विचार किया जाना चाहिए।  🌑 भरण-पोषण का आदेश देते समय, अदालतों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आदेश उचित और न्यायसंगत हो। 🌑 भरण-पोषण के मामलों का निपटारा यथासंभव शीघ्रता से किया जाना चाहिए। यह फैसला भरण-पोषण के मामलों में अदालतों को एकरूपता लाने और यह सुनिश्चित करने में मदद करता है कि पीड़ितों को उचित और समय पर न्याय मिले। सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया कि भरण-पोषण के मा...

सिर्फ आर्य समाज मंदिर का प्रमाणपत्र विवाह का वैध सबूत नहीं : हाईकोर्ट

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इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बैंच की एकल पीठ ने महिला के अनुकंपा नियुक्ति के मामले में दिए अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि " सिर्फ आर्य समाज मंदिर का प्रमाणपत्र विवाह का वैध सबूत नहीं माना जाएगा।" इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि  "महज स्टांप पेपर पर पति-पत्नी के बीच तलाक नहीं हो सकता है।" न्यायमूर्ति मनीष माथुर की एकल पीठ ने  ये कहते हुए कोर्ट ने महिला की अनुकंपा नियुक्ति पाने की याचिका खारिज कर दी। ➡️ क्या था मामला -  मौजूदा मामले में महिला ने अपने पति की मृत्यु के बाद उसकी जगह खुद को अनुकंपा नियुक्ति प्रदान करने का दावा किया, जिसे उसके पति की नौकरी के विभाग कृषि विभाग ने बीते 5 अप्रैल को खारिज कर दिया। अपने दावे को खारिज करने के आदेश को महिला ने हाईकोर्ट में चुनौती दी ।जिसमें महिला का कहना था कि कृषि विभाग में कार्यरत व्यक्ति के साथ, उसकी पहली पत्नी से कथित तलाक होने के बाद 2021 में महिला ने आर्य समाज मंदिर में विवाह किया था। इसके साथ ही महिला ने कोर्ट के समक्ष ये बात भी रखी कि उसके द्वारा इस संबंध में जरूरी दस्तावेज भी कोर्ट में पेश किए गए और आर्य समाज मंदिर से...

Cooling Period Alert- 498A की FIR में दो महीने तक नहीं होगी गिरफ्तारी

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परिवार कल्याण समिति (FWC) की स्थापना के संबंध में इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा निर्धारित सुरक्षा उपायों का समर्थन करते हुए वैवाहिक विवादों में भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498A (क्रूरता अपराध) के दुरूपयोग को रोकने के लिए निर्देश जारी कर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा निर्धारित दिशानिर्देश प्रभावी रहेंगे और प्राधिकारियों द्वारा उनका क्रियान्वयन किया जाना चाहिए।  चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की खंडपीठ ने आदेश दिया: "इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा 13.06.2022 के आपराधिक पुनर्विचार संख्या 1126/2022 के विवादित निर्णय में अनुच्छेद 32 से 38 के अनुसार, 'भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए के दुरुपयोग से बचाव के लिए परिवार कल्याण समितियों के गठन' के संबंध में तैयार किए गए दिशानिर्देश प्रभावी रहेंगे और उपयुक्त प्राधिकारियों द्वारा उनका क्रियान्वयन किया जाएगा।"  ➡️ इलाहाबाद हाई कोर्ट 2022 निर्णय- इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा अपने 2022 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट के सोशल एक्शन फोरम फॉर मानव अधिकार बनाम भारत संघ 2018 (10) एससीसी 443 मामले में दिए गए फै...

होटलों को रजिस्ट्रेशन और लाइसेंस दिखाना होगा -सुप्रीम कोर्ट

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खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन विभाग (एफएसडीए) ने कांवड़ यात्रा मार्ग पर दुकानों पर नाम लिखने के मामले में नई रणनीति अपनाते हुए दुकानों पर दुकानदारों के नाम लिखने के बजाय दुकान का नाम लिखे जाने के आदेश पारित किये गए। जिस संबंध में व्यक्तिगत तौर पर जानने के लिए एप से जानकारी प्राप्त करने के लिए खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन विभाग (एफएसडीए) ने प्रपत्र जारी किया.  पहले प्रदेश में कांवड़ यात्रा मार्ग की दुकानों पर दुकानदार के नाम लिखने की बात कही गई किन्तु एफएसडीए के एक्ट में इसका कोई प्रावधान न मिलने पर विभाग ने नई रणनीति अपनाते हुए ग्राहक संतुष्टि फीडबैक प्रपत्र तैयार किया और तैयार प्रपत्र को हर दुकानदार को अपनी दुकान पर लगाना अनिवार्य कर दिया .इस प्रपत्र में टोल फ्री नंबर और फूड सेफ्टी कनेक्ट एप के तहत क्यूआर कोड लगा था। क्यू आर कोड को स्कैन करते ही ग्राहक इस पर पूरा विवरण देख सकते हैँ। QR कोड को स्कैन करते ही दुकानदार के नाम से ही अन्य सभी विवरण भी सामने आ जाने थे.     उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकारों द्वारा कांवड़ यात्रा मार्ग पर भोजन विक्रेताओं को अपने बैनरों पर QR Co...

पिता की मृत्यु के बाद मां ही बच्चे की प्राकृतिक अभिभावक-बॉम्बे हाई कोर्ट

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  एक मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा- " हिंदू अल्पसंख्यक और संरक्षकता अधिनियम, 1956 की धारा 6 के तहत वैधानिक योजना, यह प्रदान करती है कि मां पिता के बाद प्राकृतिक अभिभावक बन जाती है, और कानून उसे प्राथमिकता देता है जब तक कि यह साबित न हो जाए कि वह अयोग्य है" न्यायालय ने आगे कहा-  "धारा 6 (a) में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि अविवाहित लड़की के मामले में, पिता और उसके बाद, मां नाबालिग की प्राकृतिक अभिभावक है , कानूनी रूप से बोलते हुए, नाबालिग लड़की को मां की हिरासत में दिया जाना चाहिए जब तक कि यह स्थापित न हो जाए कि उसके पास नाबालिग के कल्याण को सुरक्षित करने के लिए प्रतिकूल हित या अक्षमता है।" न्यायालय ने कहा कि  " नाबालिग का कल्याण सर्वोच्च विचार है, हालांकि विशेष विधियों के प्रावधान माता-पिता या अभिभावकों के अधिकारों को नियंत्रित करते हैं। "  न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि " केवल इसलिए कि दादा-दादी ने कुछ वर्षों तक बच्चे का पालन-पोषण किया था, उन्हें प्राकृतिक अभिभावक पर बेहतर अधिकार नहीं देता है। यह देखा गया है कि केवल इसलिए कि दादा-दादी या अन्य रिश...