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उत्तर प्रदेश में शुरू होने जा रहा है SIR, इन लोगों को दिखाने होंगे दस्तावेज

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जागरण न्यूज 30 सितंबर 2025 के अनुसार उत्तर प्रदेश में 22 साल बाद मतदाता सूची का विशेष पुनरीक्षण अभियान शुरू होगा। 70% मतदाताओं को कोई दस्तावेज नहीं देना होगा केवल हस्ताक्षरित फॉर्म जमा करना होगा जो बीएलओ द्वारा घर पर दिया जाएगा। केवल 30% मतदाताओं को पहचान के लिए दस्तावेज़ देने होंगे। चुनाव आयोग 2003 की मतदाता सूची से वर्तमान सूची का मिलान कर रहा है ताकि मतदाता सूची को सटीक बनाया जा सके। भारत निर्वाचन आयोग द्वारा कराये गए निरीक्षण मे यह तथ्य प्रकाश मे आया है कि केवल 30 प्रतिशत मतदाता ही ऐसे हैं जिन्हें पहचान के लिए 12 मान्य दस्तावेजों में से एक अनिवार्य रूप से देना पड़ेगा। भारत निर्वाचन आयोग का यह अभियान अक्टूबर में शुरू होने की उम्मीद है। अभियान से पहले चुनाव आयोग ने इसकी तैयारियां तेज करते हुए घर घर फॉर्म उपलब्ध कराने का  काम बीएलओ को सौंपा है। अब तक हुई मैपिंग में करीब 60-70 प्रतिशत मतदाताओं के नाम दोनों मतदाता सूचियाें में दर्ज मिले हैं। ऐसे में इन 60-70 प्रतिशत मतदाताओं को अभियान के दौरान कोई भी पहचान का प्रपत्र नहीं देना पड़ेगा।         चुनाव आयोग का मानना ...

AIBE XX फीस भुगतान

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  एआईबीई (AIBE) परीक्षा के लिए ड्राफ्ट बनाने की अब कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि परीक्षा शुल्क का भुगतान केवल ऑनलाइन मोड में किया जाता है।  ➡️ भुगतान के लिए उपलब्ध विकल्प हैं: 🌑 क्रेडिट कार्ड 🌑 डेबिट कार्ड 🌑 नेट बैंकिंग 🌑 यूपीआई (UPI)    आपको सीधे एआईबीई की आधिकारिक वेबसाइट पर पंजीकरण के दौरान ऑनलाइन भुगतान करना होगा। प्रस्तुति  शालिनी कौशिक  एडवोकेट  कैराना (शामली )

AIBE XX सिविल क़ानून की तैयारी

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  आज हम आपको अखिल भारतीय बार परीक्षा xx के तीसरे पेपर सिविल क़ानून की तैयारी कराने जा रहे हैँ, अब बारी बारी से आप इसके महत्वपूर्ण पॉइंट्स पर ध्यान दीजिये- ➡️ सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC)       सिविल प्रक्रिया संहिता जिसे आप और हम सी पी सी के रूप में सम्बोधित करते हैँ, से अखिल भारतीय बार परीक्षा AIBE में 10 नंबर के प्रश्न पूछे जाते हैँ. ➡️ सी पी सी का क़ानून में महत्व-   आपराधिक मामलों पर महत्वपूर्ण कानून हैँ- दंड प्रक्रिया संहिता जो कि अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता हो गया है और भारतीय दंड संहिता जो कि अब भारतीय नागरिक संहिता हो गया है,उसी तरह सी पी सी का महत्व है, यह सिविल मुकदमों की रीढ़ है किन्तु इसकी खास विशेषता यह है कि इसमें कानूनी धाराएं और प्रक्रिया एक साथ ही हैँ. AIBE में इससे संबंधित प्रश्न प्रक्रियात्मक होते हैं और अक्सर विभिन्न अवधारणाओं के बीच अंतर पूछा जाता है. ➡️ मुख्यतः ध्यान दें 1️⃣ न्यायालयों का अधिकार क्षेत्र (धारा 9)। 2️⃣ रेस सब-ज्यूडिस और रेस ज्यूडिकाटा (धारा 10, 11)। 3️⃣ अभिवचन (आदेश 6), वादपत्र (आदेश 7), और लिखित कथन (आदेश 8)। 4️⃣ समन (आदे...

केवल पंजीकृत दत्तक ग्रहण विलेख यूपी में मान्य-इलाहाबाद हाईकोर्ट

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  इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि  "पंजीकरण अधिनियम, 1908 की धारा 17(3) में राज्य संशोधन के आधार पर केवल पंजीकृत दत्तक ग्रहण विलेख यूपी राज्य में मान्य है। केवल गोद लेने के दस्तावेज का नोटरीकरण इसे उत्तराधिकार साबित करने के लिए वैध नहीं बनाता है।"  जस्टिस राजन रॉय और जस्टिस प्रशांत कुमार की बेंच ने कहा,   "यूपी राज्य में लागू अधिनियम, 1956 की संशोधित धारा 16(2) और यूपी राज्य में लागू अधिनियम, 1908 की धारा 17 (1)(एफ) और (3) को संयुक्त रूप से पढ़ने से यह स्पष्ट हो जाता है कि 01.01.1977 के बाद यूपी राज्य में कोई भी गोद लेना केवल एक पंजीकृत विलेख के माध्यम से हो सकता है, अन्यथा नहीं।" अपीलकर्ताओं द्वारा एकल जज के आदेश के खिलाफ विशेष अपील के माध्यम से हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया, जिसके तहत बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका में नाबालिग को उसके प्राकृतिक अभिभावकों के माध्यम से हिरासत में लेने की अनुमति दी गई। यहां अपीलकर्ताओं के दावे को इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि गोद लेने का दस्तावेज केवल नोटरीकृत है और कानून के अनुसार पंजीकृत नहीं है। एकल जज के आदेश को समन्वय पीठ के फैसले का...

नये संशोधन पर तलाक की दूसरी याचिका स्वीकार्य -इलाहाबाद हाईकोर्ट

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  इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि " एक ही आधार पर तलाक की याचिका खारिज होने पर भी, हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 के तहत दूसरे आधार पर तलाक की याचिका दायर करने में कोई रोक नहीं है।"  जस्टिस मनीष कुमार निगम ने कहा—  “हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 के तहत किसी एक आधार पर याचिका का निर्णय, दूसरे आधार पर तलाक की याचिका दायर करने पर रोक नहीं लगाता। यदि पहली याचिका खारिज होने के बाद भी पक्षकार को दूसरी याचिका दायर करने की अनुमति मिलती है, तो संशोधन के माध्यम से नए आधार जोड़ने में कोई बाधा नहीं है।” अदालत ने कहा कि  " तलाक याचिकाओं में आधार बदलने या जोड़ने की अनुमति दी जा सकती है ताकि कई बार एक ही मामले में कार्यवाही न करनी पड़े।"  ➡️ मामले का संक्षेप -  ✒️ पति-प्रतिवादी ने फैमिली कोर्ट, हमीरपुर में धारा 13 हिन्दू विवाह अधिनियम के तहत तलाक की याचिका दायर की। पत्नी ने अपने लिखित उत्तर में आरोपों को खारिज किया। इसके बाद कोर्ट ने मुद्दे तैयार किए। बाद में पति ने आधार बदलने के लिए संशोधन आवेदन दायर किया, जिसे पत्नी ने विरोध किया। कोर्ट ने यह संशो...

AIBE तैयारी दूसरे महत्वपूर्ण कानून की 2️⃣

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                                   2️⃣     अखिल भारतीय बार परीक्षा 20 ( AIBE-XX ) 30 नवंबर 2025 को आयोजित होने जा रही है. परीक्षा के आवेदन आदि की सम्पूर्ण जानकारी हम आपको अपने ब्लॉग ( AIBE-XX पूरी जानकारी एक साथ ) में दे चुके हैँ. इसके साथ ही अपने पूर्व ब्लॉग में हम आपको -संवैधानिक विधि की तैयारी के बारे में भी बता चुके हैं, जिसके बारे में अगर आप हमारे ब्लॉग और यू ट्यूब व्लॉग से जुड़े हुए हैं तो जान ही गए होंगे, आज हम आपके लिए लेकर आये हैं परीक्षा में आने वाले दूसरे क़ानून दंड प्रक्रिया सहिता (CrPC) / भारतीय नागरिक  सुरक्षा संहिता (BNSS) की तैयारी-  ➡️ दंड प्रक्रिया सहिता (CrPC) / भारतीय नागरिक  सुरक्षा संहिता (BNSS)- 🌑 दंड  प्रक्रिया सहिता (CrPC) जो कि अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) में परिवर्तित हो गई है उसमें से लगभग 10 अंक के MCQ अर्थात mutiple choice question मतलब बहुविकल्पीय प्रश्न आपसे पूछे जायेंगे. ➡️  दड प्रक्रिया सहिता (CrPC) / भारतीय ना...

BNS, BNSS और BSA में IPC, CrPC और IEA की धाराएं भी लिखना जरूरी-इलाहाबाद हाई कोर्ट

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  इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निर्देश दिया है कि  "अब से जिन मामलों या याचिकाओं में नए आपराधिक कानूनों — जैसे भारतीय न्याय संहिता (BNS), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) — का उल्लेख किया जाएगा, उनमें पुराने कानूनों — भारतीय दंड संहिता (IPC), दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (IEA) — की संबंधित धाराएं भी साथ में लिखना जरूरी होगा।" जस्टिस श्री प्रकाश सिंह की पीठ ने यह आदेश देते हुए कहा कि  "याचिकाओं और अपीलों में केवल नए कानूनों की धाराएं लिखने से अदालत और वकीलों को काफी असुविधा होती है, क्योंकि अभी कई मामलों में पुराने और नए प्रावधानों की तुलना आवश्यक होती है।" अदालत ने यह भी बताया कि  "अधिवक्ताओं ने स्वयं सुझाव दिया था कि पुराने कानूनों की समान धाराएं साथ में लिखने से मामलों के शीघ्र निपटारे में मदद मिलेगी। इसलिए अदालत ने रजिस्ट्री को सख्त निर्देश दिया है कि आगे से सभी याचिकाओं में दोनों कानूनों के प्रावधान शामिल किए जाएं। " ➡️ आदेश का कारण-  प्रस्तुत मामले में याचिकाकर्ताओं ने BNS की धारा 126(2), 194(2), 115...

AIBE -जानें परीक्षा की मूल बातें

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  कल हमारे ब्लॉग की एक पाठक ने हमसे अनुरोध किया था कि - " कृपया पेपर की समय सीमा और कुल कितने नंबर का पेपर आएगा ये भी बताने का कष्ट करें , "  तो आज हम आपकी अखिल भारतीय बार परीक्षा को लेकर आपकी इन समस्याओं का समाधान करने जा रहे हैँ. सबसे पहले आप जानिए AIBE की समय सीमा और नंबर पद्धति के बारे में- ➡️ AIBE की समय सीमा और नंबर पद्धति- ऑल इंडिया बार एग्जामिनेशन (AIBE) परीक्षा की अवधि 3 घंटे 30 मिनट (साढ़े तीन घंटे) होती है. यह एक ऑफ़लाइन, पेन-एंड-पेपर परीक्षा है जिसमें 100 बहुविकल्पीय प्रश्न होते हैं, जिसके लिए कोई नकारात्मक अंकन नहीं होता है.  AIBE परीक्षा का विवरण  अवधि: 3 घंटे 30 मिनट प्रारूप: ऑफ़लाइन, पेन-एंड-पेपर आधारित प्रश्नों का प्रकार: वस्तुनिष्ठ प्रकार के प्रश्न (बहुविकल्पीय) प्रश्नों की कुल संख्या: 100 कुल अंक: 100 नकारात्मक अंकन: नहीं      अब आते हैं प्रश्न पद्धति पर  ➡️ AIBE प्रश्न पद्धति- अखिल भारतीय बार परीक्षा में बहुविकल्पीय प्रश्न पूछे जाते हैँ. बहुविकल्पीय प्रश्न पद्धति को अंग्रेजी में MCQ कहा जाता है. MCQ का अर्थ मल्टीपल चॉइस क्वेश्च...

AIBE-XX सभी कानूनों की तैयारी कैसे करें?-1️⃣

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        अखिल भारतीय बार परीक्षा 20 ( AIBE-XX ) 30 नवंबर 2025 को आयोजित होने जा रही है. परीक्षा के आवेदन आदि की सम्पूर्ण जानकारी हम आपको अपने ब्लॉग ( AIBE-XX पूरी जानकारी एक साथ ) में दे चुके हैँ, जिसे आप पोस्ट में दिए गए लिंक पर क्लिक कर देख सकते हैं. अब आपके लिए लेकर आये हैं हम परीक्षा में आने वाले कानूनों की तैयारी का तरीका, जिसे हम क्रमवार ढंग से प्रस्तुत करने जा रहे हैँ. आज हम सबसे पहले आपके लिए लेकर आये हैँ देश के सर्वोच्च क़ानून " संवैधानिक विधि " की तैयारी-  1️⃣ संवैधानिक विधि (Constitutional Law)-       AIBE परीक्षा में क़ानून के 100 नम्बर के प्रश्नों में से संवैधानिक विधि से 10 नंबर के प्रश्न पूछे जाते हैं. जिस कारण परीक्षा पास करने के लिए यह एक महत्वपूर्ण विधि हो जाती है. ➡️ संवैधानिक विधि का महत्व - संविधान विधि का महत्व इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि यह भारतीय कानून में सर्वोच्च कानून है और संविधान का संरक्षक हमारे देश का उच्चतम न्यायालय अर्थात सुप्रीम कोर्ट है. संवैधानिक विधि से पूछे जाने वाले प्रश्न सीधे तौर पर ऐतिहासिक सिद्धांतों और अनु...

रेपिस्ट से भरण पोषण नहीं मांग सकती लिव-इन-पार्टनर जम्मू कश्मीर एन्ड लद्दाख हाईकोर्ट

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 जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने अहम फैसले में स्पष्ट किया कि  "कोई महिला अपने लिव-इन पार्टनर से भरण-पोषण की मांग नहीं कर सकती यदि उसने उसी पर रेप का आरोप लगाया हो और उसे दोषी ठहराया गया हो।"  जस्टिस विनोद चटर्जी कौल की पीठ ने प्रिंसिपल सेशन जज कठुआ का आदेश बरकरार रखा, जिसमें मजिस्ट्रेट द्वारा महिला को दी गई अंतरिम भरण-पोषण राशि को रद्द कर दिया गया था।   🌑 महिला की दलील-   वह 10 वर्षों तक प्रतिवादी के साथ रही एक बच्चा भी हुआ और विवाह का आश्वासन दिया गया लेकिन शादी नहीं हुई। उसने दलील दी कि लंबे समय तक साथ रहने के कारण वह पत्नी की तरह भरण-पोषण पाने की अधिकारी है। हाईकोर्ट ने कहा कि-  " महिला ने स्वयं ही प्रतिवादी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376 (बलात्कार) का मुकदमा दायर किया और प्रतिवादी दोषी भी ठहराया गया। ऐसे में दोनों को पति-पत्नी के रूप में मान्यता नहीं दी जा सकती।" अदालत ने कहा कि - "CrPC की धारा 125 के तहत भरण-पोषण का दावा तभी किया जा सकता है, जब पति-पत्नी का वैधानिक या मान्य संबंध हो। " कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि  " नाबा...

मुफ्त वकील उत्तर प्रदेश में

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  उत्तर प्रदेश में मुफ़्त वकील प्राप्त करने के लिए, आपको अपने जिले के जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (DLSA) या राज्य के राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (SLSA) से संपर्क करना होगा. आप राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) की वेबसाइट (nalsa.gov.in) पर ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं, या सीधे ज़िला कोर्ट में जाकर प्रार्थना पत्र दे सकते हैं. इसके अतिरिक्त, आप मुफ़्त कानूनी सलाह के लिए टोल-फ्री हेल्पलाइन नंबर 15100 पर भी कॉल कर सकते हैं. ➡️ मुफ़्त वकील कैसे प्राप्त करें- ✒️ जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (DLSA) से संपर्क करें:  हर जिले में DLSA होता है जो गरीब और ज़रूरतमंद लोगों को मुफ़्त वकील दिलाता है. आप सीधे कोर्ट में स्थित DLSA में जाकर आवेदन कर सकते हैं.  ✒️ राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (SLSA) से संपर्क करें:  बड़े मामलों या हाई कोर्ट से जुड़े केस के लिए राज्य SLSA से संपर्क करें. आप इसके लिए ऑनलाइन या ऑफ़लाइन आवेदन कर सकते हैं. ✒️ NALSA की वेबसाइट का उपयोग करें:  आप राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) की वेबसाइट (nalsa.gov.in) पर जाकर ऑनलाइन आवेदन पत्र भर सकते हैं और आवश्यक दस्ता...

नाबालिग के खिलाफ किया जा सकता है भरण पोषण का दावा-इलाहाबाद हाईकोर्ट

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 इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि  "  दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 125 और 128 के तहत नाबालिग के खिलाफ भरण-पोषण का दावा किया जा सकता है।"  जस्टिस मदन पाल सिंह ने बाल विवाह और नाबालिग पति से भरण-पोषण की मांग के मामले में सुनवाई करते हुए कहा-   “धारा 125 और 128 CrPC के तहत नाबालिग के खिलाफ दाखिल आवेदन पर सुनवाई करने में कोई रोक नहीं है।”  ➡️ मामले का विवरण संक्षेप में-  पुनरीक्षणकर्ता/ नाबालिग पति के तर्क - ✒️उसकी शादी मात्र 13 साल की उम्र में विपक्षी संख्या-2 से हुई थी. ✒️ दो साल बाद एक बेटी (विपक्षी संख्या-3) का जन्म हुआ। जब पति लगभग 16 साल का था. ✒️ पत्नी बिना उचित कारण उसके साथ रहने से इंकार कर चुकी है, इसलिए धारा 125(4) के अनुसार वह भरण-पोषण की हकदार नहीं है।  ✒️ वह नाबालिग था, इसलिए उसके खिलाफ धारा 125 के तहत दावा सीधे तौर पर नहीं किया जा सकता था, बल्कि अभिभावक के माध्यम से ही किया जा सकता था।       पत्नी ने धारा 125 CrPC के तहत भरण-पोषण का दावा दायर किया। कोर्ट ने कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता के अध्याय IX में यह प्रावधा...

सीनियर सिटीजन की संपत्ति से बच्चे को बेदखल करने का अधिकार-सुप्रीम कोर्ट

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  सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि  "माता-पिता और सीनियर सिटीजन के भरण-पोषण एवं कल्याण अधिनियम, 2007 के अंतर्गत न्यायाधिकरण को सीनियर सिटीजन की संपत्ति से बच्चे को बेदखल करने का आदेश देने का अधिकार है, यदि सीनियर सिटीजन के भरण-पोषण के दायित्व का उल्लंघन होता है।"      जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने 80 वर्षीय व्यक्ति और उनकी 78 वर्षीय पत्नी के भरण पोषण मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट का आदेश रद्द करते हुए उनके द्वारा दायर अपील स्वीकार की, बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपने आदेश में उनके बड़े बेटे के खिलाफ पारित बेदखली के निर्देश को अमान्य कर दिया था। अदालत ने इस बात पर ज़ोर दिया कि  "यह अधिनियम सीनियर सिटीजन की देखभाल और सुरक्षा सुनिश्चित करके उनकी दुर्दशा को दूर करने के लिए बनाया गया था। इसलिए इसके प्रावधानों की व्याख्या इस तरह से की जानी चाहिए, जो इसके कल्याणकारी उद्देश्य को बढ़ावा दे।"     सुप्रीम कोर्ट ने कहा,  "अधिनियम की रूपरेखा स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि यह कानून वृद्ध व्यक्तियों की दुर्दशा को दूर करने, उनकी देखभाल और सुरक्षा के लिए बन...

AIBE-XX पूरी जानकारी एक साथ

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    बहुत महत्वपूर्ण है हमारी आज की पोस्ट,आज हम आपके लिए AIBE-XX की पूरी जानकारी एक साथ लेकर आये हैं. हमारी आज की पोस्ट का अध्ययन करने के बाद आपको किसी और ब्लॉग या वेबसाइट को सर्च नहीं करना पड़ेगा. इसलिए ध्यान दीजिये हमारी आज की पोस्ट और @indianlawsk28 पर हमारे वीडियो पर, यदि इतनी जानकारी के बाद और कोई जानकारी हमसे चाहिए तो कमेंट सेक्शन में लिखकर सूचित करें. हम अति शीघ्र आपकी समस्या का समाधान प्रस्तुत करेंगे🙏🙏 ➡️ क्या है AIBE परीक्षा? एआईबीई परीक्षा राष्ट्रीय स्तर की परीक्षा है, जो बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा उन लॉ ग्रेजुएट्स के लिए आयोजित की जाती है, जो कोर्ट में प्रैक्टिस करना चाहते हैं. इस परीक्षा के माध्यम से लॉ ग्रेजुएट्स को प्रैक्टिस सर्टिफिकेट दिया जाता है. भारत में वकालत करने के लिए यह सर्टिफिकेट अनिवार्य है. यह परीक्षा भारत के कई शहरों में आयोजित की जाती है. अखिल भारतीय बार परीक्षा (AIBE) हिंदी से लेकर अंग्रेजी, तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मराठी, बंगाली, गुजराती, उड़िया, असमिया और पंजाबी भाषाओं में आयोजित की जाती है. ➡️ AIBE परीक्षा में LAW - कैंडिडेट से 100 अंकों की परीक्...

सुप्रीम कोर्ट ने ससुराल वालों पर दर्ज वैवाहिक क्रूरता का मामला ख़ारिज किया.

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  सुप्रीम कोर्ट द्वारा शुक्रवार (26 सितंबर) को एक महिला के ससुराल पक्ष के खिलाफ दर्ज आपराधिक कार्यवाही रद्द कर दी गई । महिला द्वारा अपने ससुर, सास और ननद पर घरेलू हिंसा और मानसिक प्रताड़ना के आरोप लगाए गए थे. मामले का अवलोकन कर सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि " ये आरोप केवल अस्पष्ट और सामान्य थे और इनमें कोई ठोस तथ्य नहीं है।"    चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) बी.आर. गवई, जस्टिस के. विनोद चंद्रन और जस्टिस अतुल एस. चंदुरकर की पीठ ने अपील स्वीकार करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट का आदेश रद्द किया, जिसने पहले इन आरोपों को ख़ारिज करने से इनकार कर दिया था। FIR में भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498ए (क्रूरता), धारा 377 (अप्राकृतिक यौन संबंध), धारा 506 (धमकी) और धारा 34 (समान आशय) के तहत अपराध दर्ज किए गए। अदालत ने कहा कि " शिकायत में केवल सामान्य आरोप हैं, जिनमें कोई विशेष विवरण नहीं दिया गया। महिला ने अपने पति पर अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने और मानसिक उत्पीड़न का आरोप लगाया था लेकिन ये आरोप सिर्फ पति तक सीमित थे ससुराल पक्ष पर नहीं। " पीठ ने दिगंबर बनाम महाराष्ट्र राज्य (2024) मामले का ...

आ गया AIBE-XX

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 बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) द्वारा ऑल इंडिया बार एग्जामिनेशन-XX (AIBE-XX) की परीक्षा 30 नवंबर 2025 को आयोजित किये जाने की घोषणा कर दी गई है। इसकी अधिसूचना 26 सितंबर 2025 को जारी की गई है. ➡️ मुख्य तिथियां - 🌑 पंजीकरण शुरू: 29 सितंबर 2025  🌑पंजीकरण की आखिरी तारीख: 28 अक्टूबर 2025 🌑 फीस भरने की आखिरी तारीख: 29 अक्टूबर 2025 🌑 फॉर्म सुधारने की आखिरी तारीख: 31 अक्टूबर 2025  🌑 एडमिट कार्ड जारी होंगे: 15 नवंबर 2025  🌑 परीक्षा की तारीख: 30 नवंबर 2025 ➡️ परीक्षा में आरक्षण- 🌑 जनरल/ओबीसी उम्मीदवारों के लिए – 45%  🌑 एससी/एसटी और दिव्यांग उम्मीदवारों के लिए – 40% प्रस्तुति शालिनी कौशिक एडवोकेट कैराना (शामली)

धारा 498A से पति और सास का डर देख सुप्रीम कोर्ट भी चिंतित

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  सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक बार फिर आईपीसी की धारा 498A (अब भारत न्याय संहिता, 2023 की धारा 84) के दुरुपयोग पर चिंता जताई। केस विवाह के डेढ़ महीने के भीतर पत्नी द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत से जुड़ा था। जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस आर. महादेवन की बेंच ने सुनवाई के दौरान कहा कि  " अक्सर पति और सास झूठी शिकायतों के डर में रहते हैं। " जस्टिस नागरत्ना ने टिप्पणी की –  “498A बहुत कठोर और अक्सर दुरुपयोग की जाने वाली धारा है। यह रिश्ते पर नींबू निचोड़ने जैसा असर डालती है।”  कोर्ट ने पति, पत्नी और सास को मध्यस्थता (मेडिएशन) में शामिल होने का निर्देश दिया। सुप्रीम कोर्ट हाल के वर्षों में कई बार 498A के दुरुपयोग पर चिंता जता चुका है— 1️⃣ मई 2024 :  जस्टिस पारदीवाला और मनोज मिश्रा की बेंच ने संसद से आग्रह किया कि नई न्याय संहिता की धारा 85 व 86 (498A के समान) पर पुनर्विचार किया जाए।  2️⃣ दिसंबर 2024:  जस्टिस नागरत्ना की अलग-अलग पीठों ने कहा कि पतियों के पूरे परिवार को फंसाना गलत है और कई बार 498A को 376, 377 व 506 जैसी धाराओं के साथ दबाव बनाने के लिए इस्त...

शादी के 6 महीने मे आपसी सहमति से तलाक नहीं -इलाहाबाद हाई कोर्ट

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  इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक दंपति की उस अपील को खारिज किया, जिसमें उन्होंने शादी के महज़ छह महीने के भीतर ही आपसी सहमति से तलाक़ मांगा था। अदालत ने साफ़ कहा कि  "जब तक विवाह में अत्यधिक कठिनाई या घोर दुराचार साबित न हो तब तक छह महीने से पहले तलाक़ की अनुमति नहीं दी जा सकती।" ➡️ मामला संक्षेप मे- याचिकाकर्ता दंपति का विवाह 3 मार्च, 2025 को हुआ था।  21 मार्च 2025 से ही दोनों अलग रहने लगे और कुछ समय बाद आपसी सहमति से तलाक़ की अर्जी दायर कर दी। फैमिली कोर्ट ने उनकी याचिका 13 अगस्त 2025 को खारिज कर दी. ➡️ पति की ओर से अपील में दलील-      उनके लिए विशेष कठिनाई यह है कि मुक़दमेबाज़ी की वजह से वे विदेश नहीं जा पा रहे हैं, इसलिए अदालत को अनुमति देनी चाहिए थी।  ➡️ अदालत की राय- जस्टिस अरिंदम सिन्हा और जस्टिस अवनीश सक्सेना की खंडपीठ ने कहा, "जब दोनों पक्ष आपसी सहमति से तलाक़ मांग रहे हैं तो यह अपने आप इस बात के खिलाफ़ जाता है कि उनमें से कोई अत्यधिक कठिनाई या घोर दुराचार का शिकार है। विधायिका का आशय साफ़ है कि विवाह को एक अवसर अवश्य दिया जाना चाहिए।"  अदालत ने...

स्टेट बार काउंसिल्स के चुनाव 31 जनवरी 2026 तक कराएं -सुप्रीम कोर्ट

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  सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि  " देशभर की स्टेट बार काउंसिल्स के चुनाव 31 जनवरी 2026 तक कराए जाएं।" कोर्ट ने स्पष्ट किया कि  "एलएलबी सर्टिफिकेट की जांच (verification) के कारण चुनाव अनिश्चितकाल तक टाले नहीं जा सकते।"  कोर्ट को बताया गया कि इस एलएलबी सर्टिफिकेट की जांच (verification) में फर्जी वोटरों और डिग्रीधारियों का पता चला है, यहां तक कि अपराधी भी वकीलों के वेश में हिंसा करते हैं। यह मामला बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) के नियम 32 को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान आया, जो स्टेट बार काउंसिल सदस्यों के कार्यकाल को बढ़ाने का अधिकार देता है। याचिकाकर्ता की ओर से सीनियर एडवोकेट माधवी दीवान ने बताया कि 23 में से केवल 14 स्टेट बार काउंसिल्स ने जवाब दाखिल किया है और ज्यादातर में 2 साल से चुनाव नहीं हुए। बीसीआई की ओर से सीनियर एडवोकेट एस. गुरु कृष्णकुमार ने कहा कि 50% सत्यापन कार्य पूरा हो चुका है। इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि- " चुनाव आयोग देशभर में चुनाव करा देता है, तो बार काउंसिल्स क्यों नहीं? अगर 31 जनवरी तक चुनाव नहीं कराए तो कोर्ट खुद एक आयोग बनाकर चु...