संदेश

2025 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

AIBE-XX पूरी जानकारी एक साथ

चित्र
    बहुत महत्वपूर्ण है हमारी आज की पोस्ट,आज हम आपके लिए AIBE-XX की पूरी जानकारी एक साथ लेकर आये हैं. हमारी आज की पोस्ट का अध्ययन करने के बाद आपको किसी और ब्लॉग या वेबसाइट को सर्च नहीं करना पड़ेगा. इसलिए ध्यान दीजिये हमारी आज की पोस्ट और @indianlawsk28 पर हमारे वीडियो पर, यदि इतनी जानकारी के बाद और कोई जानकारी हमसे चाहिए तो कमेंट सेक्शन में लिखकर सूचित करें. हम अति शीघ्र आपकी समस्या का समाधान प्रस्तुत करेंगे🙏🙏 ➡️ क्या है AIBE परीक्षा? एआईबीई परीक्षा राष्ट्रीय स्तर की परीक्षा है, जो बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा उन लॉ ग्रेजुएट्स के लिए आयोजित की जाती है, जो कोर्ट में प्रैक्टिस करना चाहते हैं. इस परीक्षा के माध्यम से लॉ ग्रेजुएट्स को प्रैक्टिस सर्टिफिकेट दिया जाता है. भारत में वकालत करने के लिए यह सर्टिफिकेट अनिवार्य है. यह परीक्षा भारत के कई शहरों में आयोजित की जाती है. अखिल भारतीय बार परीक्षा (AIBE) हिंदी से लेकर अंग्रेजी, तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मराठी, बंगाली, गुजराती, उड़िया, असमिया और पंजाबी भाषाओं में आयोजित की जाती है. ➡️ AIBE परीक्षा में LAW - कैंडिडेट से 100 अंकों की परीक्...

सुप्रीम कोर्ट ने ससुराल वालों पर दर्ज वैवाहिक क्रूरता का मामला ख़ारिज किया.

चित्र
  सुप्रीम कोर्ट द्वारा शुक्रवार (26 सितंबर) को एक महिला के ससुराल पक्ष के खिलाफ दर्ज आपराधिक कार्यवाही रद्द कर दी गई । महिला द्वारा अपने ससुर, सास और ननद पर घरेलू हिंसा और मानसिक प्रताड़ना के आरोप लगाए गए थे. मामले का अवलोकन कर सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि " ये आरोप केवल अस्पष्ट और सामान्य थे और इनमें कोई ठोस तथ्य नहीं है।"    चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) बी.आर. गवई, जस्टिस के. विनोद चंद्रन और जस्टिस अतुल एस. चंदुरकर की पीठ ने अपील स्वीकार करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट का आदेश रद्द किया, जिसने पहले इन आरोपों को ख़ारिज करने से इनकार कर दिया था। FIR में भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498ए (क्रूरता), धारा 377 (अप्राकृतिक यौन संबंध), धारा 506 (धमकी) और धारा 34 (समान आशय) के तहत अपराध दर्ज किए गए। अदालत ने कहा कि " शिकायत में केवल सामान्य आरोप हैं, जिनमें कोई विशेष विवरण नहीं दिया गया। महिला ने अपने पति पर अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने और मानसिक उत्पीड़न का आरोप लगाया था लेकिन ये आरोप सिर्फ पति तक सीमित थे ससुराल पक्ष पर नहीं। " पीठ ने दिगंबर बनाम महाराष्ट्र राज्य (2024) मामले का ...

आ गया AIBE-XX

चित्र
 बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) द्वारा ऑल इंडिया बार एग्जामिनेशन-XX (AIBE-XX) की परीक्षा 30 नवंबर 2025 को आयोजित किये जाने की घोषणा कर दी गई है। इसकी अधिसूचना 26 सितंबर 2025 को जारी की गई है. ➡️ मुख्य तिथियां - 🌑 पंजीकरण शुरू: 29 सितंबर 2025  🌑पंजीकरण की आखिरी तारीख: 28 अक्टूबर 2025 🌑 फीस भरने की आखिरी तारीख: 29 अक्टूबर 2025 🌑 फॉर्म सुधारने की आखिरी तारीख: 31 अक्टूबर 2025  🌑 एडमिट कार्ड जारी होंगे: 15 नवंबर 2025  🌑 परीक्षा की तारीख: 30 नवंबर 2025 ➡️ परीक्षा में आरक्षण- 🌑 जनरल/ओबीसी उम्मीदवारों के लिए – 45%  🌑 एससी/एसटी और दिव्यांग उम्मीदवारों के लिए – 40% प्रस्तुति शालिनी कौशिक एडवोकेट कैराना (शामली)

धारा 498A से पति और सास का डर देख सुप्रीम कोर्ट भी चिंतित

चित्र
  सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक बार फिर आईपीसी की धारा 498A (अब भारत न्याय संहिता, 2023 की धारा 84) के दुरुपयोग पर चिंता जताई। केस विवाह के डेढ़ महीने के भीतर पत्नी द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत से जुड़ा था। जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस आर. महादेवन की बेंच ने सुनवाई के दौरान कहा कि  " अक्सर पति और सास झूठी शिकायतों के डर में रहते हैं। " जस्टिस नागरत्ना ने टिप्पणी की –  “498A बहुत कठोर और अक्सर दुरुपयोग की जाने वाली धारा है। यह रिश्ते पर नींबू निचोड़ने जैसा असर डालती है।”  कोर्ट ने पति, पत्नी और सास को मध्यस्थता (मेडिएशन) में शामिल होने का निर्देश दिया। सुप्रीम कोर्ट हाल के वर्षों में कई बार 498A के दुरुपयोग पर चिंता जता चुका है— 1️⃣ मई 2024 :  जस्टिस पारदीवाला और मनोज मिश्रा की बेंच ने संसद से आग्रह किया कि नई न्याय संहिता की धारा 85 व 86 (498A के समान) पर पुनर्विचार किया जाए।  2️⃣ दिसंबर 2024:  जस्टिस नागरत्ना की अलग-अलग पीठों ने कहा कि पतियों के पूरे परिवार को फंसाना गलत है और कई बार 498A को 376, 377 व 506 जैसी धाराओं के साथ दबाव बनाने के लिए इस्त...

शादी के 6 महीने मे आपसी सहमति से तलाक नहीं -इलाहाबाद हाई कोर्ट

चित्र
  इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक दंपति की उस अपील को खारिज किया, जिसमें उन्होंने शादी के महज़ छह महीने के भीतर ही आपसी सहमति से तलाक़ मांगा था। अदालत ने साफ़ कहा कि  "जब तक विवाह में अत्यधिक कठिनाई या घोर दुराचार साबित न हो तब तक छह महीने से पहले तलाक़ की अनुमति नहीं दी जा सकती।" ➡️ मामला संक्षेप मे- याचिकाकर्ता दंपति का विवाह 3 मार्च, 2025 को हुआ था।  21 मार्च 2025 से ही दोनों अलग रहने लगे और कुछ समय बाद आपसी सहमति से तलाक़ की अर्जी दायर कर दी। फैमिली कोर्ट ने उनकी याचिका 13 अगस्त 2025 को खारिज कर दी. ➡️ पति की ओर से अपील में दलील-      उनके लिए विशेष कठिनाई यह है कि मुक़दमेबाज़ी की वजह से वे विदेश नहीं जा पा रहे हैं, इसलिए अदालत को अनुमति देनी चाहिए थी।  ➡️ अदालत की राय- जस्टिस अरिंदम सिन्हा और जस्टिस अवनीश सक्सेना की खंडपीठ ने कहा, "जब दोनों पक्ष आपसी सहमति से तलाक़ मांग रहे हैं तो यह अपने आप इस बात के खिलाफ़ जाता है कि उनमें से कोई अत्यधिक कठिनाई या घोर दुराचार का शिकार है। विधायिका का आशय साफ़ है कि विवाह को एक अवसर अवश्य दिया जाना चाहिए।"  अदालत ने...

स्टेट बार काउंसिल्स के चुनाव 31 जनवरी 2026 तक कराएं -सुप्रीम कोर्ट

चित्र
  सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि  " देशभर की स्टेट बार काउंसिल्स के चुनाव 31 जनवरी 2026 तक कराए जाएं।" कोर्ट ने स्पष्ट किया कि  "एलएलबी सर्टिफिकेट की जांच (verification) के कारण चुनाव अनिश्चितकाल तक टाले नहीं जा सकते।"  कोर्ट को बताया गया कि इस एलएलबी सर्टिफिकेट की जांच (verification) में फर्जी वोटरों और डिग्रीधारियों का पता चला है, यहां तक कि अपराधी भी वकीलों के वेश में हिंसा करते हैं। यह मामला बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) के नियम 32 को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान आया, जो स्टेट बार काउंसिल सदस्यों के कार्यकाल को बढ़ाने का अधिकार देता है। याचिकाकर्ता की ओर से सीनियर एडवोकेट माधवी दीवान ने बताया कि 23 में से केवल 14 स्टेट बार काउंसिल्स ने जवाब दाखिल किया है और ज्यादातर में 2 साल से चुनाव नहीं हुए। बीसीआई की ओर से सीनियर एडवोकेट एस. गुरु कृष्णकुमार ने कहा कि 50% सत्यापन कार्य पूरा हो चुका है। इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि- " चुनाव आयोग देशभर में चुनाव करा देता है, तो बार काउंसिल्स क्यों नहीं? अगर 31 जनवरी तक चुनाव नहीं कराए तो कोर्ट खुद एक आयोग बनाकर चु...

धर्म परिवर्तन फर्जी होने पर शादी अवैध-इलाहाबाद हाई कोर्ट

चित्र
 धर्म परिवर्तन के फर्जी सर्टिफिकेट के सहारे इलाहाबाद हाईकोर्ट से सुरक्षा की मांग करने आए मुस्लिम पुरुष-हिन्दू नारी के विवाह को अमान्य करार दिया है। साथ ही याचिकाकर्ता के वकील पर कोर्ट द्वारा 25,000 रुपये हर्जाना भी लगाया गया. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस मामले में कहा है कि  "एक बार धर्म परिवर्तन अवैध होने पर धर्मांतरण के बाद शादी करने वाले युगल को कानून की नजर में शादीशुदा जोड़े के तौर पर नहीं माना जा सकता। " जस्टिस सौरभ श्रीवास्तव ने मोहम्मद बिन कासिम उर्फ अकबर नाम के एक व्यक्ति और अन्य द्वारा दायर याचिका पर यह आदेश पारित किया। याचिकाकर्ता का अनुरोध था कि अदालत प्रतिवादियों को यह निर्देश जारी करे कि वे उनके शांतिपूर्ण वैवाहिक जीवन में दखल न दें. ➡️ मामला संक्षेप में- याचिकाकर्ता के एडवोकेट द्वारा बताया गया कि मोहम्मद बिन कासिम मुस्लिम है, जबकि जैनब परवीन उर्फ चंद्रकांता हिंदू है। चंद्रकांता ने 22 फरवरी, 2025 को इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया और उसी दिन खानकाहे आलिया अरिफिया द्वारा इसका प्रमाण पत्र जारी किया गया था। 26 मई, 2025 को मोहम्मद बिन कासिम और जैनब परवीन उर्फ चंद्रकांता ने म...

ई रिक्शा में संगीत बजाना-उत्तर प्रदेश में गैरकानूनी

चित्र
  उत्तर प्रदेश में, खास तौर पर लखनऊ में, ई-रिक्शा में तेज आवाज में संगीत बजाने पर रोक है, और ऐसा करने पर चालान काटा जा सकता है. ऐसा इसलिए है क्योंकि तेज आवाज में संगीत बजाने से यात्रियों, विशेषकर महिलाओं,बुजुर्गों और बच्चों को परेशानी होती है, और यह यातायात नियमों का उल्लंघन भी है. मोटर वाहन अधिनियम के तहत वाणिज्यिक वाहनों में संगीत बजाना प्रतिबंधित है.  2 वर्ष पहले दैनिक भास्कर मे प्रकाशित समाचार के अनुसार कानपुर ट्रैफिक पुलिस ने मनमानी कर रहे ई-रिक्शा चालकों पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया था. कानपुर में ई-रिक्शा चालकों के खिलाफ अभियान शुरू कर ई-रिक्शा में म्यूजिक बजाने वालों के खिलाफ कार्रवाई की गई। पुलिस ने 275 ई-रिक्शा से म्यूजिक सिस्टम हटवाया। इसके साथ ही चेतावनी दी कि अगर दोबारा ई-रिक्शा में म्यूजिक बजते पाया गया तो सीज कर दिया जाएगा। ➡️ कानून और कारण-- 🌑 यात्रियों को परेशानी:      लखनऊ में ई-रिक्शा चालकों को म्यूजिक बजाने से रोका गया है क्योंकि इससे यात्रियों, खासकर महिलाओं,बुजुर्गों और छोटे बच्चों को काफी असुविधा होती है.  🌑 यातायात नियमों का उल्लंघन...

GST बचत उत्सव कानूनी जानकारी के साथ

चित्र
 प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा पितृ विसर्जिनी अमावस्या 20 सितंबर 2025 की शाम 5 बजे देशवासियों को नवरात्रि पर्व पर  "GST बचत उत्सव" का तोहफा दिया है.जीएसटी की दरों में ऐतिहासिक रूप से कमी होने के बाद 390 से ज्यादा चीजें सस्ती हो गई हैं। खासकर खाने और घर से जुड़े सामानों की कीमत में गिरावट देखने को मिलेगी। इसके अलावा ऑटोमोबाइल, मैटेरियल, कृषि, खिलौने, खेल, शिक्षा, हैंडीक्राफ्ट, मेडिकल, स्वास्थ्य और बीमा की टैक्स दरों में लोगों को राहत मिलेगी।  ➡️ GST 2.0  22 सितंबर 2025 से लागू -       अब जीएसटी के 4 टैक्स स्लैब को हटाकर 2 टैक्स स्लैब ही रखे गए हैं। ज्यादातर वस्तुओं पर अब 5 प्रतिशत और 18 प्रतिशत का ही टैक्स लगेगा। लक्जरी वस्तुओं पर 40 प्रतिशत जीएसटी देना होगा। नई दरें लागू होने के साथ रसोई के सामान से लेकर दवाइयां, गाड़ियां, कपड़े, मकान खरीदना-बनवाना, बीमा उत्पाद और एसी-टीवी जैसे कई उत्पाद सस्ते हो गए हैं। इसके अलावा, दूध के टेट्रापैक, रोटी, खाखरा, निजी स्वास्थ्य एवं जीवन बीमा उत्पादों, पढ़ाई-लिखाई से जुड़ीं कुछ चीजों और 33 से अधिक जीवनरक्षक द...

नेहा सिंह राठौर की याचिका ख़ारिज-इलाहाबाद हाईकोर्ट

चित्र
  इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लोक गायिका नेहा सिंह राठौर द्वारा दायर याचिका खारिज की, जिसमें उन्होंने पहलगाम आतंकवादी हमले पर कथित रूप से 'भड़काऊ' सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर "भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने" सहित कई आरोपों के तहत उनके खिलाफ दर्ज FIR को चुनौती दी थी। जस्टिस राजेश सिंह चौहान और जस्टिस सैयद क़मर हसन रिज़वी की खंडपीठ ने कहा कि  " FIR और अन्य सामग्री में लगाए गए आरोप प्रथम दृष्टया एक संज्ञेय अपराध का संकेत देते हैं, जो मामले की जांच को उचित ठहराता है। " खंडपीठ ने आगे कहा कि  "कथित सोशल मीडिया पोस्ट में भारत के प्रधानमंत्री के नाम का अपमानजनक तरीके से इस्तेमाल किया गया। यहां तक कि गृह मंत्री को भी निशाना बनाया गया।"  खंडपीठ ने केस डायरी का अवलोकन करते हुए कहा,   "ऐसी टिप्पणियों में याचिकाकर्ता ने धार्मिक कोण और बिहार चुनाव के कोण का इस्तेमाल करते हुए प्रधानमंत्री का नाम लेकर उन पर आरोप लगाया और कहा कि भाजपा सरकार अपने निहित स्वार्थ के लिए हजारों सैनिकों के जीवन का बलिदान दे रही है और देश को पड़ोसी देश के साथ युद्ध में धक...

जब्त मादक पदार्थ की वीडियो रिकॉर्डिंग सबूत के तौर पर मान्य: सुप्रीम कोर्ट

चित्र
  सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि  "जब्त मादक पदार्थ की वीडियो रिकॉर्डिंग ट्रांसक्रिप्ट के बिना भी सबूत मानी जाएगी, बशर्ते भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 65B के तहत वैध इलेक्ट्रॉनिक प्रमाणपत्र प्रस्तुत हो।"  अदालत ने स्पष्ट किया कि  "वीडियो को हर गवाह की गवाही के दौरान चलाना आवश्यक नहीं है।" जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस उज्ज्वल भुयान की खंडपीठ ने बॉम्बे हाईकोर्ट का वह आदेश रद्द किया जिसमें एनडीपीएस मामले में सिर्फ इसलिए पुनःविचारण का निर्देश दिया गया था क्योंकि वीडियो गवाहों के सामने नहीं चलाया गया और न ही उसका ट्रांसक्रिप्ट बनाया गया। फैसले में कहा गया कि  "सीडी एक इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड है और धारा 65B की शर्तें पूरी होने पर यह दस्तावेज़ की तरह स्वीकार्य है। वीडियो की सामग्री देखकर अदालत निष्कर्ष निकाल सकती है।" ट्रायल कोर्ट में वीडियो आरोपियों, वकीलों और न्यायाधीश की मौजूदगी में चलाया गया था और अदालत ने गवाहों व आरोपियों की उपस्थिति भी देखी थी, इसलिए पुनःविचारण आवश्यक नहीं।      पृष्ठभूमि में, पुलिस ने छापों में 147 किलो गांजा जब्त किया था। ट्रायल कोर्ट न...

"जाति महिमा मंडन 'राष्ट्रविरोधी',': इलाहाबाद हाईकोर्ट

चित्र
 इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण निर्णय मे समाज में जाति महिमा मंडन की प्रवृत्ति पर कड़ी आपत्ति जताई और उत्तर प्रदेश सरकार को व्यापक निर्देश दिए कि  " एफआईआर, पुलिस दस्तावेज़, सार्वजनिक रिकॉर्ड, मोटर वाहनों और सार्वजनिक बोर्ड से जाति संदर्भ हटाए जाएं। " जस्टिस विनोद दिवाकर की पीठ ने कहा कि  " ऐसा जाति महिमा मंडन "राष्ट्रविरोधी" है और संविधान के प्रति श्रद्धा ही "सच्ची देशभक्ति" और "राष्ट्र सेवा का सर्वोच्च रूप" है।" महत्वपूर्ण रूप से, एकल न्यायाधीश ने कहा कि  "यदि भारत को 2047 तक वास्तव में विकसित राष्ट्र बनना है तो समाज से गहराई तक जड़ें जमा चुकी जाति प्रथा का उन्मूलन आवश्यक है। " अदालत ने कहा, "यह लक्ष्य सरकार के सभी स्तरों से निरंतर और बहुस्तरीय प्रयासों की मांग करता है—प्रगतिशील नीतियों, मजबूत भेदभाव-रोधी कानूनों और परिवर्तनकारी सामाजिक कार्यक्रमों के माध्यम से।"  अदालत ने यह भी नोट किया कि जाति व्यवस्था और उसके सामाजिक प्रभाव को समाप्त करने के लिए कोई व्यापक कानून नहीं है। ➡️ प्रथम सूचना रिपोर्ट और पुलिस...

यू पी में बिना अनुमति दीवारों पर पोस्टर लगाना गैरकानूनी

चित्र
      उत्तर प्रदेश में दीवारों पर बिना अनुमति के पोस्टर लगाना गैरकानूनी है. इस मामले में कार्रवाई की जा सकती है और जुर्माना भी लगाया जा सकता है.  ➡️ इस संबंध में लागू क़ानून- ✒️ दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 151 के तहत शिकायत दर्ज कराई जा सकती है. यह धारा किसी भी व्यक्ति को "सार्वजनिक शांति भंग करने" या "किसी अन्य व्यक्ति को डराने-धमकाने" के लिए दंडनीय बनाती है.  ✒️ भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 427 के तहत शिकायत दर्ज कराई जा सकती है. यह धारा "किसी भी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने" या "किसी भी संपत्ति पर कब्जा करने" के लिए दंडनीय बनाती है.  ✒️ संपत्ति बदरंग अधिनियम के तहत सार्वजनिक स्थानों या दीवारों की खूबसूरती को नष्ट करने वाले किसी भी व्यक्ति के खिलाफ सज़ा का प्रावधान है.  ✒️ अगर कोई व्यक्ति दीवार पर बिना अनुमति के पोस्टर लगाता है, तो उसके ख़िलाफ़ कार्रवाई की जा सकती है. इसके लिए, नगर निगम की टीम जुर्माना लगाती है और उस दीवार को दोबारा पेंट भी कराती है. प्रस्तुति  शालिनी कौशिक  एडवोकेट  कैराना (शामली )

मुस्लिम महिला तलाक के बाद भी CrPC की धारा 125 के तहत पति से भरण-पोषण की हकदार-पटना हाईकोर्ट

चित्र
 पटना हाईकोर्ट ने कहा है कि  "एक मुस्लिम महिला तलाक के बाद भी धारा 125 CrPC के तहत अपने पति से भरण-पोषण (maintenance) मांग सकती है, अगर तलाक के बाद इद्दत अवधि में उसके भविष्य के लिए पति ने “उचित और न्यायसंगत प्रावधान” नहीं किया। " जस्टिस जितेंद्र कुमार ने फैमिली कोर्ट के आदेश को सही ठहराया, जिसमें एक मुस्लिम पुरुष को अपनी पत्नी को महीने ₹7,000 देने का निर्देश दिया गया था। पति ने दलील दी थी कि  "उनकी शादी आपसी सहमति (mubarat) से खत्म हो गई थी, " लेकिन कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया। ➡️ मामला संक्षेप में- पत्नी ने आरोप लगाया कि  " शादी के तुरंत बाद पति की क्रूरता के कारण उसे अपने माता-पिता के घर लौटना पड़ा। उसने कोई आय न होने का हवाला देते हुए ₹15,000 प्रति माह की मांग की। उसने बताया कि उसका पति विदेश में काम करता है और लगभग ₹1 लाख प्रति माह कमाता है। " पति ने क्रूरता के आरोप को खारिज किया और कहा कि " शादी 2013 में मुबारत (आपसी तलाक) से खत्म हो गई थी। उसने दावा किया कि उसने पहले ही ₹1,00,000 की राशि एलिमनी, दीन मोहर और इद्दत खर्च के रूप में दे दी है।" ...

एडवोकेट रजिस्ट्रेशन कराना है बार कौंसिल ऑफ़ उत्तर प्रदेश में

चित्र
   बार कौंसिल ऑफ़ उत्तर प्रदेश द्वारा आजकल बहुत बड़ी संख्या में एडवोकेट रजिस्ट्रेशन इंटरव्यू लिए जा रहे हैँ. पिछले साल सुप्रीम कोर्ट द्वारा एडवोकेट रजिस्ट्रेशन की फीस घटाए जाने के बाद से तेजी से एडवोकेट रजिस्ट्रेशन का कार्य बढ़ा है क्योंकि न्यायालयों मे वही लॉयर प्रेक्टिस कर सकते हैं जो संबंधित राज्य की बार कौंसिल मे एडवोकेट के रूप में रजिस्टर्ड हों. तो आज हम आपको बताने जा रहे हैँ, बार कौंसिल ऑफ़ उत्तर प्रदेश में एडवोकेट रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया- ✒️ सबसे पहले आप बार कौंसिल ऑफ़ उत्तर प्रदेश की आधिकारिक वेबसाइट upbarcouncil.com पर जाइये, जिसे आप गूगल के एड्रेस बार में search कर सकते हैँ- ✒️ जब आप गूगल के एड्रेस बार में बार कौंसिल ऑफ़ उत्तर प्रदेश की आधिकारिक वेबसाइट को खोल लेते हैँ तो उसमें लेफ्ट साइड मे शीर्ष पर लाल रंग मे PRINT REGISTRATION FORM लिखा हुआ दिखेगा, आप उससे फॉर्म प्रिंट कीजिए और फॉर्म भर लीजिए, अगर फॉर्म भरने में कोई दिक्कत आती हैँ तो कमेंट सेक्शन में सूचित करें, हम आपकी समस्या का समाधान अवश्य करेंगे. अब देखिए आपको फॉर्म के साथ क्या क्या संलग्न करना है- 1️⃣ Provisional...

2020 में COP नम्बर प्राप्त सभी अधिवक्ताओं की सूचनार्थ

चित्र
  बार कॉन्सिल ऑफ़ उत्तर प्रदेश द्वारा 2020 में जिन अधिवक्ताओं को COP नंबर जारी किये गए हैं , वे सभी अधिवक्ता COP re-issue form जल्द से जल्द सभी वांछित डाक्यूमेंट्स के साथ बार कॉन्सिल ऑफ़ उत्तर प्रदेश के आधिकारिक पते पर या माननीय चेयरमेन सर के पते पर भेज दें, ताकि वे समय से COP re-issue प्रक्रिया में सम्मिलित हो सकें और उन्हें विलम्ब शुल्क का भुगतान न करना पड़े. आपके COP कार्ड की एक्सपायरी date I-d कार्ड के पीछे लिखी है, आप वहां देखिये और निम्न फॉर्म के साथ निम्नलिखित डाक्यूमेंट्स संलग्न कर उपरोक्त पते पर भेज दीजिये 🙏🙏 🌑 *5 वकालत नामों की कॉपी *आधार कार्ड की कॉपी *250 रुपये का ड्राफ़्ट - BCUP CERTIFICATE AND PRACTICE VARIFICATION के नाम *हाई स्कूल से लेकर ENROLLMENT, COP की कॉपी तक के documents की कॉपी self attested  * तीन फोटो कोट एन्ड टाई में -2 फोटो फॉर्म पर चिपकाने हैँ - एक envelope में attach करना है फॉर्म पर.  * सभी signature full name के साथ, initial नहीं 🌑 वकालत नामों की फोटो कॉपी लगेंगी और 2021,2022,2023,2024,2025 की एक एक कॉपी लगेगी. द्वारा  शालिनी कौशिक ...

वक्फ संशोधन--पूरे क़ानून पर रोक लगाने से इंकार-सुप्रीम कोर्ट

चित्र
सुप्रीम कोर्ट ने 14 सितंबर 2025 को वक्फ संशोधन याचिका की सुनवाई करते हुए कहा कि  "किसी भी कानून को असंवैधानिक मानना बहुत दुर्लभ मामलों में ही किया जाता है। "  मौजूदा याचिका में पूरे वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 को चुनौती दी गई थी, लेकिन असली विवाद कुछ खास धाराओं पर था। याचिका की सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने पूरे कानून पर रोक लगाने से इनकार किया है, लेकिन कुछ धाराओं पर रोक लगाई है जो निम्न हैं- 🌑 धारा 3(r): पाँच साल तक "इस्लाम का पालन" करने की शर्त नियम बने बिना मनमाना इस्तेमाल हो सकती है, इसलिए रोकी गई. 🌑 धारा 2(c) का प्रावधान : वक्फ संपत्ति को वक्फ संपत्ति न मानने वाला प्रावधान रोका गया। 🌑 धारा 3C: कलेक्टर को वक्फ संपत्ति के अधिकार तय करने का अधिकार देना गलत है। जब तक अदालत फैसला नहीं करती, संपत्ति के अधिकार प्रभावित नहीं होंगे और वक्फ को बेदखल नहीं किया जाएगा। 🌑 ग़ैर-मुस्लिम सदस्य : वक्फ बोर्ड में ग़ैर-मुस्लिम सदस्य 4 से ज़्यादा और राज्य स्तर पर 3 से ज़्यादा नहीं होंगे।  🌑 धारा 23: पदेन अधिकारी (Ex-officio) मुस्लिम समुदाय से ही होना चाहिए। आभार 🙏👇 प्रस्तु...

व्हाट्सएप या ई-मेल से नोटिस भेजना वैध नहीं--सुप्रीम कोर्ट

चित्र
सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया था कि वे पुलिस को सीआरपीसी की धारा 41ए या बीएनएसएस की धारा 35 के तहत नोटिस भेजने के लिए केवल वहीं तरीके अपनाने का निर्देश दें, जिनकी कानून के तहत अनुमति हो। व्हाट्सएप या अन्य इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से नोटिस भेजना सीआरपीसी और बीएनएसएस के तहत तय की गई विधियों का विकल्प नहीं हो सकता। सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालयों के रजिस्ट्रार जनरल और सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को तीन हफ्ते के भीतर अनुपालन सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था।  🌑 अब एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि  " दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) या भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) के तहत व्हाट्सएप और ईमेल से नोटिस भेजना वैध नहीं है। " सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा राज्य की ओर से अपने जनवरी 2025 के आदेश में संशोधन की मांग वाली याचिका खारिज कर दी। 🌑 जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस नोंग्मीकापम कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि  " हम खुद यह विश्वास दिलाने में असमर्थ हैं कि ई-मेल और व्हाट्सएप जैसे इलेक्ट्रॉनिक संचार ...

आरोपी की नीयत वैवाहिक संबंधों के संबंध में महत्वपूर्ण- सुप्रीम कोर्ट

चित्र
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि   "शादी का वादा करने के बाद आपसी सहमति से बने यौन संबंध, और शुरुआत से ही बुरी नीयत से झूठा वादा करके बनाए गए यौन संबंध — दोनों में फर्क है।" कोर्ट ने कहा,  "बलात्कार और सहमति से बने यौन संबंधों में स्पष्ट अंतर है। जब मामला शादी के वादे का हो, तो अदालत को यह बहुत सावधानी से देखना होगा कि आरोपी सच में पीड़िता से शादी करना चाहता था या फिर उसकी नीयत शुरू से ही गलत थी और उसने केवल अपनी वासना की पूर्ति के लिए झूठा वादा किया था। बाद वाली स्थिति धोखाधड़ी या छल के दायरे में आती है।" जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने विवाह के झूठे बहाने पर बलात्कार के मामले में मजिस्ट्रेट द्वारा आरोपी को भेजे गए समन को रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा कि-  "इस बात का कोई सबूत नहीं है कि आरोपी की नीयत शुरू से ही गलत थी। शिकायत में यह सामने आया था कि दोनों का रिश्ता कई वर्षों (2010–2014) तक चला, पीड़िता के परिवार से भी मुलाकात हुई और शादी को लेकर पुलिस की मौजूदगी में आश्वासन भी दिए गए।"  कोर्ट ने फिर कहा कि  "ये परिस्थितियाँ य...

COP को लेकर बार कौंसिल ऑफ़ उत्तर प्रदेश के महत्वपूर्ण फैसले चेयरमैन श्री शिव किशोर गौड़ एडवोकेट जी के नेतृत्व में

चित्र
      बार कौंसिल ऑफ़ उत्तर प्रदेश द्वारा नये रजिस्टर्ड अधिवक्ताओं के लिए COP फीस में भारी बढ़ोतरी की गई है, जिसे लेकर नये अधिवक्ताओं में चिंता और रोष है. इसे लेकर मैंने माननीय चेयरमेन बार काउंसिल ऑफ़ उत्तर प्रदेश श्री शिव किशोर गौड़ एडवोकेट जी से वार्ता की, माननीय चेयरमैन सर से प्राप्त सूचना के अनुसार 1️⃣ नये अधिवक्ताओं के लिए COP नम्बर की फीस में बढ़ोतरी का मुख्य कारण ही उन्हें मेडिकल क्लेम, डेथ क्लेम जैसी सुविधाओं से फिर से जोड़ना है जिससे वे रजिस्ट्रेशन फीस में भारी कमी किये जाने पर वंचित हो गए थे.  इसके साथ ही  2️⃣ नये वकीलों को COP के आवेदन के लिए 1 साल का समय दे दिया गया है, अब नये वकील 1 साल में COP के लिए आवेदन कर सकते हैँ. और उन्हें  3️⃣ अपने COP आवेदन फॉर्म के साथ वकालत नामे की कॉपी लगाने की भी आवश्यकता नहीं है. ये सभी निर्णय अधिवक्ता हित के उत्तम प्रयास हैँ जो कि बार कॉन्सिल ऑफ़ उत्तर प्रदेश द्वारा माननीय चेयरमैन श्री शिव किशोर गौड़ एडवोकेट जी के नेतृत्व में लिए जा रहे हैँ. इसके साथ ही चेयरमैन सर के इस उदार रुख को देखते हुए अधिवक्ताओं के उज्ज्वल भविष्य ...