सोशल मीडिया और अश्लील तस्वीरें -अपराध
गुजरात हाईकोर्ट द्वारा अभी हाल ही में उस पति पर ₹25,000 का जुर्माना लगाया गया, जिसने अपनी पत्नी की 'अश्लील' तस्वीरें और उनके साथ भद्दी टिप्पणियां व्हाट्सएप और इंस्टाग्राम पर अपलोड की थीं और उन्हें वायरल भी किया था।
इसके साथ ही जस्टिस हसमुख डी. सुथार की पीठ ने यह आदेश पारित करते हुए पति के खिलाफ दर्ज एफ आई आर और उसके बाद शुरू की गई सभी कार्यवाही यह देखते हुए रद्द कर दी गयी कि मामला दोनों पक्षों के बीच सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझा लिया गया है.
आदेश पारित करते हुए जस्टिस हसमुख डी. सुथार ने कहा,
"...यद्यपि दोनों पक्षों के बीच विवाद सुलझ गया, लेकिन याचिकाकर्ता के आचरण को देखते हुए पति ने अपनी पत्नी की अश्लील तस्वीरें मांगी हैं। इतना ही नहीं, उसने इन तस्वीरों को सोशल मीडिया पर भी वायरल कर दिया, याचिकाकर्ता पर ₹25,000 का जुर्माना लगाया जाता है।"
इसके साथ ही जज ने जुर्माने की राशि एक सप्ताह के भीतर राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण में जमा किये जाने के निर्देश दिए।
प्रस्तुत मामले में पति पर सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66(ई) और 67 के साथ भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 351(2) और 356(2) के तहत FIR दर्ज की गई थी।
पति ने आरोप लगाया कि चूंकि उसकी पत्नी वैवाहिक जीवन के लिए तैयार या इच्छुक नहीं थी, इसलिए उसने उसकी बदनामी के लिए उसकी अश्लील तस्वीरें सोशल मीडिया पर अपलोड कर वायरल कर दीं। जिसमें पत्नी द्वारा कार्यवाही किये जाने पर उसने एफ आई आर और उसके बाद की कार्यवाही को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। 30 जुलाई को दोनों पक्ष के वकीलों ने पीठ को सूचित किया कि कार्यवाही लंबित रहने के दौरान दोनों पक्षों ने सौहार्दपूर्ण ढंग से आपस की बातचीत से विवाद सुलझा लिया है। आपसी समझौते के बाद मूल शिकायतकर्ता ने बयानहल्फी देते हुए कार्यवाही रद्द करने में आपत्ति न होने की बात कही और इसके लिए वह व्यक्तिगत रूप न्यायालय में उपस्थित भी हुईं। जिस पर न्यायालय ने यह कहते हुए एफ आई आर रद्द कर दी कि-
" विवाद निजी प्रकृति का था, सुलझ गया और अब सोशल मीडिया पर कोई अश्लील सामग्री उपलब्ध नहीं थी।"
पीठ ने कहा,
"...इस न्यायालय की राय में इससे कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा और दोषसिद्धि की संभावना बहुत कम है। आरोपित FIR के संबंध में याचिकाकर्ता के विरुद्ध आपराधिक कार्यवाही जारी रखने से याचिकाकर्ता को अनावश्यक परेशानी होगी... न्याय के उद्देश्यों को सुरक्षित करने के लिए आरोपित FIR और उसके अनुसरण में CrPC की धारा 528 के तहत शुरू की गई सभी परिणामी कार्यवाहियों को रद्द करना उचित होगा।"
Case title - SAHDEV RANCHODBHAI BRAHMAN vs. STATE OF GUJARAT & ANR.
आभार🙏👇
प्रस्तुति
शालिनी कौशिक
एडवोकेट
कैराना (शामली )
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