पत्नी की परिभाषा दस्तावेज से बड़ी -इलाहाबाद हाईकोर्ट
( shalini kaushik law classes)
इलाहाबाद हाई कोर्ट का मानना है कि जो पुरुष और महिला एक लंबे समय तक पति-पत्नी की तरह साथ रहे हैं तो पत्नी का भरण-पोषण का हक बनता है। इसलिए भरण-पोषण के लिए विवाह को साबित करना जरूरी नहीं है।
भरण पोषण के एक मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि
" भरण-पोषण के मामले में पत्नी की परिभाषा दस्तावेज से बड़ी है। पुरुष और महिला लंबे समय तक पति-पत्नी की तरह साथ रहे हैं तो भरण-पोषण का हक बनता है। लिहाजा, भरण-पोषण के लिए विवाह को साबित करना जरूरी नहीं है। कानून का मकसद न्याय है न कि ऐसे रिश्तों को नकारना जो समाज में पति-पत्नी की तरह माने जाते है।"
इस टिप्पणी के साथ न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा की अदालत ने देवरिया निवासी याची की पुनरीक्षण याचिका स्वीकार कर ली। कोर्ट ने पारिवारिक न्यायालय का आदेश रद्द कर नए सिरे से मामले की सुनवाई करने के लिए वापस भेज दिया। साथ ही कांस्टेबल पति को मामले के निस्तारण होने तक याची को 8,000 रुपये प्रति माह अंतरिम भरण-पोषण देने का आदेश दिया है।
मामले में याची ने 2017 में पति के निधन के बाद कांस्टेबल देवर संग शादी होने का दावा किया । देवरिया के पारिवारिक न्यायालय में याची ने आरोप लगाया कि हिंदू रीति से विवाह होने के बाद देवर (पति ) दहेज की मांग करने लगा और दहेज़ न मिलने पर दूसरी शादी रचाकर याची व याची के बच्चों को घर से निकाल दिया। वहीं, विपक्षी ने शादी होने से इन्कार कर दिया।
इस पर पारिवारिक न्यायालय ने याची की भरण-पाेषण की मांग यह कहते हुए खारिज कर दी कि वह वैध शादी के प्रमाण नहीं दे सकी। लिहाजा, वह विपक्षी की पत्नी नहीं है। इसके खिलाफ याची ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
याची के अधिवक्ता ने आधार कार्ड, बैंक रिकॉर्ड और गवाहों के बयान पेश कर दलील दी कि दोनों लंबे समय तक पति-पत्नी की तरह रहे हैं और पहले पति की मृत्यु के बाद दूसरी शादी वैध है। याची का दूसरा पति यूपी पुलिस में कांस्टेबल है, वेतन के अलावा खेती से भी उसकी आमदनी है जबकि याची बेसहारा है। लिहाजा, वह भरण-पोषण की हकदार है।
विपक्षी के अधिवक्ता ने दलील दी कि विपक्षी कभी शादीशुदा नहीं था, बच्चे भाई की संतान हैं और याची पैतृक संपत्ति से पहले ही लाभ ले रही है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा की एकल पीठ ने पारिवारिक न्यायालय के आदेश को रद्द कर दिया और निर्णय देते हुए कहा कि अदालत ने विवाह का प्रमाण न होने के तकनीकी आधार पर अर्जी खारिज कर कानूनी व तथ्यात्मक गलती की है।
आभार 🙏👇
प्रस्तुति
शालिनी कौशिक
एडवोकेट
कैराना (शामली )
Nice judgement 👍
जवाब देंहटाएंThanks to comment 🙏🙏
हटाएंVery nice judgment
जवाब देंहटाएंThanks to comment 🙏🙏
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