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इच्छा मृत्यु व् आत्महत्या :नियति व् मजबूरी

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इच्छा मृत्यु व् आत्महत्या :नियति व् मजबूरी अरुणा रामचंद्र शानबाग ,एक नर्स ,जिस पर हॉस्पिटल के एक सफाई कर्मचारी द्वारा दुष्कर्म की नीयत से बर्बर हमला किया गया जिसके कारण गला घुटने के कारण उसके मस्तिष्क को ऑक्सिजन  की आपूर्ति बंद हो गयी और उसका कार्टेक्स क्षतिग्रस्त हो गया ,ग्रीवा रज्जु में चोट के साथ ही मस्तिष्क नलिकाओं में भी चोट पहुंची और फलस्वरूप एक जिंदगी जिसे न केवल अपने लिए बल्कि इस समाज देश के लिए सेवा के नए आयाम स्थापित करने थे स्वयं सेवा कराने के लिए मुंबई के के.ई.एम्.अस्पताल के बिस्तर पर पसर गयी और ३६ साल से वहीँ टुकुर टुकुर जिंदगी के दिन गिन रही है .पिंकी वीरानी ,जिसने अरुणा की दर्दनाक  कहानी अपनी पुस्तक में बयां की ,ने उसकी जिंदगी को संविधान के अनुच्छेद २१ के अंतर्गत जीवन के अधिकार में मिले सम्मान से जीने के हक़ के अनुरूप नहीं माना .और उसके लिए ''इच्छा मृत्यु ''की मांग की ,जिसे सर्वोच्च  न्यायालय के न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू और न्यायमूर्ति ज्ञान सुधा मिश्रा ने सिरे से ख़ारिज कर दिया .अपने १४१ पन्नों के फैसले में न्यायालय ने कहा - ''देश म

पहले दें सबूत आप

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लोकसभा चनाव २०१४ नज़दीक हैं और इसलिए सर्वाधिक सुर्ख़ियों में हैं हमारे राजनेता .सत्ता कौन नहीं चाहता ,कुर्सी का नशा हर किसी के सिर चढ़कर बोलता है .हर कोई जो ओखली स्वरुप राजनीति में सिर घुसा देता है वह मूसल स्वरुप किसी आरोप अस्त्र से नहीं डरता और फिर वह जिसे जैसे भी हो जैसे जनता को उसका दिल जीतकर ,उसको लुभाकर ,बहकाकर अपने लिए कुर्सी का प्रबंध कर ही लेता है .सभी जानते हैं कि नेता होने के मायने क्या हैं ,''सिकंदर हयात ''जी के शब्दों में - ''मुझे इज़ज़त की परवाह है ,न मैं ज़िल्लत से डरता हूँ , अगर हो बात दौलत की ,तो हर हद से गुज़रता हूँ , मैं नेता हूँ मुझे इस बात की है तरबियत हासिल मैं जिस थाली में खाता हूँ उसी में छेद करता हूँ .'' और नेता की यही असलियत उसे आमतौर पर जनता के व्यंग्य के तीर झेलने को मजबूर करती है .चाहे-अनचाहे उसे ऐसी बहुत सी बाते सहनी पड़ती हैं जिससे उसका दूर-दूर तक कोई वास्ता भी नहीं होता किन्तु वह यह सहता है क्योंकि वह ताकत उसे राजनीति से मिलती है ,वह सामर्थ्य उसे जनता के स्नेह और कभी स्वार्थ से मिलता है और इन्ही के बल पर वह झूठे-सच्चे सभी आरोपो