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मुस्लिम और हिन्दू महिलाओं के विवाह-विच्छेद से सम्बंधित अधिकार

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आज मैं आप सभी को जिस विषय में बताने जा रही हूँ उस विषय पर बात करना भारतीय परंपरा में कोई उचित नहीं समझता क्योंकि मनु के अनुसार कन्या एक बार ही दान दी जाती है किन्तु जैसे जैसे समय पलटा वैसे वैसे ये स्थितियां भी परिवर्तित हो गयी .महिलाओं ने इन प्रथाओं के कारण [प्रथाओं ही कहूँगी कुप्रथा नहीं क्योंकि कितने ही घर इन प्रथाओं ने बचाएं भी हैं] बहुत कष्ट भोगा है .हिन्दू व मुस्लिम महिलाओं के अधिकार इस सम्बन्ध में अलग-अलग हैं .   सर्वप्रथम हम मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की बात करते हैं.पहले मुस्लिम महिलाओं को तलाक के केवल दो अधिकार प्राप्त थे १-पति की नपुन्संकता,२-परपुरुशगमन का झूठा आरोप[लियन] किन्तु न्यायिक विवाह-विच्छेद [मुस्लिम विवाह-विच्छेद  अधिनियम१९३९]द्वारा मुस्लिम महिलाओं को ९ आधार प्राप्त हो गए हैं: १-पति की अनुपस्थिति, २-पत्नी के भरण-पोषण में असफलता, ३-पति को सात साल के कारावास की सजा, ४-दांपत्य दायित्वों के पालन में असफलता, ५-पति की नपुन्संकता, ६-पति का पागलपन, ७-पत्नी द्वारा विवाह की अस्वीकृति[यदि विवाह के समय लड़की १५ वर्ष से काम उम्र की हो तो वह १८ वर्ष की होने

आत्महत्या-प्रयास सफल तो आज़ाद असफल तो अपराध .

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आत्महत्या-प्रयास सफल तो आज़ाद असफल तो अपराध .      भारतीय दंड सहिंता की धारा ३०९ कहती है -''जो कोई आत्महत्या करने का प्रयत्न करेगा ओर उस अपराध को करने के लिए कोई कार्य करेगा वह सादा कारावास से ,जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से ,या दोनों से दण्डित किया जायेगा .'' सम्पूर्ण दंड सहिंता में ये ही एक ऐसी धारा है जिसमे अपराध के होने पर कोई सजा नहीं है ओर अपराध के पूर्ण न हो पाने पर इसे करने वाला सजा काटता है.ये धारा आज तक न्यायविदों के गले से नीचे नहीं उतरी है क्योंकि ये ही ऐसी धारा है जिसे न्याय की कसौटी पर खरी नहीं कहा जा सकता है .आये दिन समाचार पत्रों में ऐसे समाचार आते हैं -''जैसे अभी हाल में मुज़फ्फरनगर में एक महिला द्वारा अपने व् अपने तीन बच्चों पर तेल छिड़ककर आत्महत्या के प्रयास करने पर पुलिस द्वारा उसे पकड़ा गया .ऐसे ही एक समाचार के अनुसार आत्मदाह के प्रयास पर मुकदमा ,ये ऐसे समाचार हैं जो हमारी न्याय व्यवस्था पर ऊँगली उठाने के लिए पर्याप्त हैं . पी.रथिनम नागभूषण पट्नायिक बनाम भारत संघ ए.आई.आर. १९९४ एस.सी. १८४४  के व

स्वतंत्रता और अवमान कानून का सार्वभौमिक स्वरुप

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---------- Forwarded message ---------- From: Mani Ram Sharma < maniramsharma@gmail.com > Date: 2012/12/5 Subject: for kind perusal and publication - To: kaushik_shalini@hotmail.com नाम: मनीराम शर्मा पता: नकुल निवास, रोडवेज डिपो के पीछे      सरदारशहर - 331403                                       जिला: चुरू (राजस्थान)   संपर्क: 919460605417 , 919001025852 शैक्षणिक योग्यता : बी कोम , सी ए आई आई बी , एल एल बी एडवोकेट वर्तमान में , 22 वर्ष से अधिक स्टेट बैंक समूह में अधिकारी संवर्ग में   सेवा करने के पश्चात स्वेच्छिक सेवा निवृति प्राप्त, एवं समाज सेवा में विशेषतः न्यायिक सुधारों हेतु प्रयासरत ई-मेल : maniramsharma@gmail.com Name: Mani Ram Sharma Address: Nakul Niwas , Behind Roadways Depot Sardarshahar -331403 Distt. Churu (Raj) M- 919460605417,919001025852 Qualifications: B. Com., CAIIB, LL B Advocate Presently Busy Bee in Serving Societal Interests especially for Judicial Reforms, after taking   voluntary retirement on

मीडिया को सुधरना होगा .

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  ''सरकार को जाँच पूरी होने तक जी न्यूज़ का लाइसेंस निलंबित कर देना चाहिए ''प्रैस कौंसिल ऑफ़ इंडिया के अध्यक्ष जस्टिस मार्कंडेय काटजू के ये शब्द एक चेतावनी हैं हमारे मीडिया जगत के लिए जहाँ चैनल की आड़ में गैर कानूनी गतिविधियों को अंजाम दिया जा रहा है .कौंग्रेस सांसद नवीन जिंदल की कम्पनी के खिलाफ खबर न चलने के बदले १०० करोड़ रूपए की वसूली का प्रयास करने और धोखा धडी के आरोप में जी न्यूज़ के दो संपादक सुधीर चौधरी और समीर अहलूवालिया को दिल्ली की एक अदालत ने जमानत देने से इंकार कर दो दिन की पुलिस हिरासत में भेज दिया .इन दोनों पर भारतीय दंड सहिंता की निम्न धाराओं में आरोप लगाये गए हैं जिनका विवरण निम्न प्रकार है- १२०-बी आपराधिक षड्यंत्र के लिए दंड -और आपराधिक षड्यंत्र क्या है ये धारा १२०-क  में बताया गया है जो कहती है - १२०-क -आपराधिक षड्यंत्र की परिभाषा -जबकि दो या दो से अधिक व्यक्ति - १-कोई अवैध कार्य ,अथवा २-कोई ऐसा कार्य ,जो अवैध नहीं है ,अवैध साधनों द्वारा ,करने या करवाने के लिए सहमत होते हैं तब ऐसी सहमति आपराधिक षड्यंत्र कहलाती है ; और धारा १२०-बी में ऐसे अपराध के ल

देर से ही सही प्रशासन जागा :बधाई हो बार एसोसिएशन कैराना .

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                  आज मैं आपको इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक ऐसे निर्णय के बारे में बताने जा रही हूँ जो हमारे देश में कपटपूर्ण  व्  न्यायालय  का समय  बर्बाद करने वाले वादों की बढ़ोतरी को रोकने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है किन्तु इसके साथ ही यह दिखता है प्रशासनिक विफलता को जिसके कारन २४-५-२०१२ को दिया गया यह निर्णय २६-११-२०१२ तक भी कार्यान्वित नहीं हो पाया है .अब क्या नहीं हो पाया है यह आप इस निर्णय व् मामले के बारे में पढ़कर जान सकते हैं .  निर्णय -इलाहाबाद उच्च न्यायालय तिथि -२४-५-२०१२ जज-माननीय सिबगत उल्लाह जे. दिवित्य अपील न० -२१४ -२०१२ गुलज़ार अहमद पुत्र नियाज़ अहमद निवास पुराना बाज़ार ,जामा मस्जिद ,कैराना जिला मुज़फ्फरनगर [अब शामली ]-----वादी /अपीलार्थी                                                  बनाम श्रीमती अख्तरी विधवा नियाज़ अहमद निवासी पुराना बाज़ार ,जामा मस्जिद कैराना जिला मुज़फ्फरनगर [अब शामली ]---------प्रतिवादी /प्रत्यर्थी  प्रस्तुत मामले में वादी ने अपनी माता प्रतिवादी के विरुद्ध एक वाद दायर किया कि वादी द्वारा माता /प्रतिवादी के पक्ष में २०-७-२००२ को निष्पादित किया गया वि

अविवाहित बेटी का भरण-पोषण अधिकार

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अविवाहित बेटी का भरण-पोषण  अधिकार  दंड प्रक्रिया सहिंता १९७३ की धारा १२५ [१] के अनुसार ''यदि पर्याप्त साधनों वाला कोई व्यक्ति - ............................................................................................................................................... [ग] -अपने धर्मज या अधर्मज संतान का [जो विवाहित पुत्री  नहीं है ],जिसने वयस्कता प्राप्त कर ली है ,जहाँ  ऐसी संतान किसी शारीरिक या मानसिक असामान्यता या क्षति के कारण अपना भरण -पोषण करने में असमर्थ है ,.......... ........................................................................................................................................................ भरण पोषण करने की उपेक्षा करता है  या भरण पोषण करने से इंकार करता है तो प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट ,ऐसी उपेक्षा या इंकार साबित होने पर ,ऐसे व्यक्ति को ये निर्देश दे सकेगा कि वह अपनी ऐसी संतान को ऐसी मासिक दर पर जिसे मजिस्ट्रेट उचित समझे भरण पोषण मासिक भत्ता दे . और इसी कानून का अनुसरण  करते हुए  मुंबई हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति के यू चंडीवाल  न

कोई कानूनी विषमता नहीं ३०२ व् ३०४[बी ]आई.पी.सी.में

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कोई कानूनी विषमता नहीं ३०२ व् ३०४[बी ]आई.पी.सी.में  17 सितम्बर 2012 दैनिक जागरण में पृष्ठ २ पर माला दीक्षित ने एक दोषी की दलील दी है जिसमे दहेज़ हत्या के दोषी ने अपनी ओर से एक अहम् कानूनी मुद्दा उठाया है .दोषी की दलील है -     ' 'आई.पी.सी.की धारा ३०४ बी [दहेज़ हत्या ]और धारा ३०२ [हत्या ]में एक साथ मुकदमा  नहीं चलाया जा सकता .दोनों धाराओं में  बर्डन  ऑफ़ प्रूफ को लेकर कानूनी विषमता है जो दूर होनी चाहिए .''     धारा ३०२ ,जिसमे हत्या के लिए दंड का वर्णन है और धारा ३०४ बी आई.पी.सी.में दहेज़ मृत्यु का वर्णन है और जहाँ तक दोनों धाराओं में सबूत के भार की बात है तो दांडिक मामले  जिसमे धारा ३०२ आती   है में सबूत का भार अभियोजन पर है क्योंकि दांडिक मामलों में  न्यायालय  यह उपधारना करता है  कि अभियुक्त निर्दोष है अतः सबूत का भार अभियोजन पर है कि वह दोषी है .     दूसरी ओर दहेज़ मृत्यु के मामले में धरा ३०४-बी जो कि सन १९८६ में १९.११.८६ अधिनियम ४३ से   जोड़ी गयी ,में न्यायालय यह  उपधारना करेगा कि उस व्यक्ति ने दहेज़ मृत्यु कारित की है .         दहेज़ मृत्यु के विषय में धार

श्रमजीवी महिलाओं को लेकर कानूनी जागरूकता.

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श्रमजीवी महिलाओं को लेकर कानूनी जागरूकता.    आज यदि देखा जाये तो महिलाओं  के लिए घर से बाहर जाकर काम करना ज़रूरी हो गया है और इसका एक परिणाम तो ये हुआ है कि स्त्री सशक्तिकरण के कार्य बढ़ गए है और स्त्री का आगे बढ़ने में भी तेज़ी आई है किन्तु इसके दुष्परिणाम भी कम नहीं हुए हैं  जहाँ एक तरफ महिलाओं को कार्यस्थल के बाहर के लोगों से खतरा बना हुआ है वहीँ कार्यस्थल पर भी यौन शोषण को लेकर  उसे नित्य-प्रति नए खतरों का सामना करना पड़ता है . कानून में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर पहले भी काफी सतर्कता बरती गयी हैं किन्तु फिर भी इन घटनाओं पर अंकुश लगाया जाना संभव  नहीं हो पाया है.इस सम्बन्ध में उच्चतम न्यायालय का ''विशाखा बनाम राजस्थान राज्य ए.आई.आर.१९९७ एस.सी.सी.३०११ ''का निर्णय विशेष महत्व रखता है इस केस में सुप्रीम कोर्ट के तीन न्यायाधीशों की खंडपीठ ने महिलाओं के प्रति काम के स्थान में होने वाले यौन उत्पीडन को रोकने के लिए  विस्तृत मार्गदर्शक सिद्धांत विहित किये हैं .न्यायालय ने यह कहा ''कि देश की वर्तमान सिविल विधियाँ या अपराधिक विधियाँ काम के स्थान पर महिलाओं

प्रोन्नति में आरक्षण :सरकार झुकना छोड़े

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प्रोन्नति में आरक्षण :सरकार  झुकना  छोड़े    [गूगल  से  साभार ] '' सियासत  को लहू पीने  की लत है,     वर्ना मुल्क में सब खैरियत है .''        ये पंक्तियाँ  अक्षरश:  खरी  उतरती हैं सियासत पर  ,जिस आरक्षण को दुर्बल व्यक्तियों को सशक्त व्यक्तियों से  बचाकर पदों की उपलब्धता  सुनिश्चित करने के लिए  लागू  किया गया था . जिसका  मुख्य  उद्देश्य  आर्थिक , सामाजिक , शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े  लोगों को देश की  मुख्य  धारा  में लाना था उसे  सियासत  ने  सत्ता  बनाये  रखने  के लिए '' वोट '' की  राजनीति में  तब्दील   कर  दिया .      सरकारी नौकरियों में प्रोन्नति में आरक्षण इलाहाबाद उच्च  न्यायालय    ने ख़ारिज कर दिया था .इसी  साल अप्रैल  में उच्चतम  न्यायालय ने उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जाति व  अनुसूचित जनजाति के कर्मचारियों को प्रोन्नति में आरक्षण देने के पूर्ववर्ती  मायावती  सरकार के  निर्णय  को ख़ारिज कर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को बरक़रार रखा और अखिलेश यादव सरकार ने इस फैसले पर  फ़ौरन अमल   के निर्देश दिए थे  किन्तु वोट कि राजनीति इतनी अहम्

ऑनर किलिंग:सजा-ए-मौत की दरकार नहीं

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ऑनर किलिंग:सजा-ए-मौत की दरकार नहीं  ''प्रेम''जिसके विषय में शायद आज तक सबसे ज्यादा लिखा गया होगा,कहा गया होगा ,कबीर दास भी कह गए- ''ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होए'' देवल आशीष कहते हैं- ''प्यार कर्म ,प्यार धर्म प्यार प्रभु नाम है.''       प्रेम जहाँ एक ओर कवियों ,लेखकों की लेखनी का प्रिय विषय रहा है वहीँ समाज में सभ्यता की राह में कांटे की तरह महसूस किया गया है और इसी कारण प्रेमी जनों को अधिकांशतया प्रेम की कीमत बलिदान के रूप में चुकानी पड़ी है  किन्तु प्रेम की भी एक सीमा होती है और जो प्रेम सीमाओं में मर्यादाओं में बंधा हो उसे बहुत सी बार सम्मान सहित स्वीकृति भी मिली है ,किन्तु आज प्रेम का एक अनोखा रूप सामने आ रहा है और इसकी परिणिति कभी भी समाज की स्वीकृति हो ही नहीं सकती क्योंकि प्रेम का यह रूप मात्र वासना का परिचायक है   इसमें प्रेम शब्द की पवित्रता का कोई स्थान नहीं है और इस प्रेम को कथित प्रेमी-प्रेमिका के परिजन कभी भी स्वीकार नहीं कर सकते और इसके कारण उनकी भावनाएं इस कदर उत्तेजना का रूप ले लेती हैं जिसे ''ऑनर