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अक्तूबर, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

अपनी संपत्ति की देख-रेख और अपनी सुख-सुविधा तो आपको खुद देखनी होगी .

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अपनी संपत्ति की देख-रेख और अपनी सुख-सुविधा तो आपको खुद देखनी होगी . हमारे घर के पास अभी हाल ही में एक मकान बना है .अभी तो उसकी पुताई का काम होकर निबटा ही था कि क्या देखती हूँ कि उस पर एक किसी ''शादी विवाह ,पैम्फलेट आदि बनाना के विज्ञापन चिपक गया .बहुत अफ़सोस हो रहा था कि आखिर लोग मानते क्यों नहीं ?क्यूं नई दीवार पर पोस्टर लगाकर उसे गन्दा कर देते हैं ? यही नहीं हमारे घर से कुछ दूर एक आटा चक्की है और जब वह चलती है तो उसके चलने से आस-पास के सभी घरों में कुछ हिलने जैसा महसूस होता है .मुझे ये भी लगता है कि जब हमारे घर के पास रूकती कोई कार हमारे सिर में दर्द कर देती है तब क्या चक्की का चलना आस-पास वालों के लिए सिर दर्द नहीं है ?फिर वे क्यूं कोई कार्यवाही नहीं करते ? मेरे इन सभी प्रश्नों के उत्तर मेरी बहन मुझे देती है कि पहले तो लोग जानते ही नहीं कि उनके इस सम्बन्ध में भी कोई अधिकार हैं और दुसरे ये कि लोग कानूनी कार्यवाही के चक्कर में पड़ना ही नहीं चाहते क्योंकि ये बहुत लम्बी व् खर्चीली हैं किन्तु ये तो समस्या का समाधान नहीं है इस तरह तो हम हर जगह अपने को झुकने पर मजबूर कर देते हैं औ

नैना साहनी हत्याकांड -उच्चतम न्यायालय अपने निर्णय पर पुनर्विचार करे .

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तंदूर कांड : सुशील शर्मा की फांसी उम्रकैद में तब्दील Updated on: Tue, 08 Oct 2013 10:26 PM (IST) नई दिल्ली [माला दीक्षित]। पत्नी नैना साहनी की हत्या कर उसका शव तंदूर में जलाने वाले दिल्ली युवक कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सुशील शर्मा की मौत की सजा सुप्रीम कोर्ट ने उम्रकैद में बदल दी। करीब 18 साल से जेल में बंद सुशील की सजा-ए-मौत जरूर माफ हुई है, लेकिन उसे ताउम्र अब कालकोठरी में गुजारनी होगी। पढ़ें:  तंदूर कांड में सुप्रीम कोर्ट का फैसला सुरक्षित नैना दिल्ली युवक कांग्रेस की महिला शाखा की महासचिव भी थी। अवैध संबंधों के शक में सुशील ने 2/3 जुलाई, 1995 की रात गोली मारकर उसकी हत्या कर दी थी। इसके बाद उसके शव को तंदूर में जलाने की कोशिश की थी। तंदूर कांड नाम से चर्चित इस मामले में सत्र अदालत और दिल्ली हाई कोर्ट ने सुशील के अपराध को जघन्यतम मानते हुए उसे मौत की सजा सुनाई थी। सुशील ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। मुख्य न्यायाधीश पी सतशिवम, न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई और न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की पीठ ने सुशील के मृत्युदंड को ताउम्र कैद में तब्दील करते हुए कहा, निसंदेह

नगर पालिका का अनिवार्य कर्तव्य है ये-

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नगर पालिका का अनिवार्य कर्तव्य है ये- उत्तर प्रदेश नगर पालिका अधिनियम -१९१६ के अधीन नगरपालिका के दो प्रकार के कर्तव्य उपबंधित किये गए हैं अर्थात अनिवार्य और वैवेकिक और नगर पालिकाओं द्वारा अपने अन्य कर्व्याओं के साथ साथ जिस एक कर्तव्य की सबसे ज्यादा अनदेखी की जाती है वह इसी अधिनियम की धारा ७ [६] में उल्लिखित है -धारा ७ [६] कहती है - ''धारा ७ के अंतर्गत यह उपबंध किया गया है कि प्रयेक नगर पालिका का यह कर्तव्य होगा कि वह नगर पालिका क्षेत्र के भीतर निम्नलिखित की समुचित व्यवस्था करे - [६] आवारा कुत्तों तथा खतरनाक पशुओं को परिरुद्ध करना ,हटाना या नष्ट करना ; और देखा जाये तो इस कर्तव्य के प्रति नगर पालिका ने अपनी आँखें मूँद रखी हैं और सभी का तो पूरी तरह से पता नहीं किन्तु कांधला नगर पालिका अपने इस कर्तव्य को पूरा करने में पूरी तरह से उपेक्षा कर रही है . अभी लगभग २ महीने पहले एक सामान्य रेस्तरा चलाने वाले ने जैसे सभी अपने सामान को थोडा बहुत बाहर की तरफ सजाकर रख लेते हैं रख लिया था कि दो सांड जो कि दिन भर यहाँ खुले घुमते हैं लड़ते लड़ते वहां आ पहुंचे और उन्हें देख वह जैसे ही अपना सामा