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मुस्लिम विधि और महिला -

विधि भारती -शोध पत्रिका में प्रकाशित भारतीय संविधान की राजभाषा हिंदी है और देश में हिंदी भाषी राज्यों या क्षेत्रों की बहुलता है भारत में निम्न राज्य हिंदी भाषी क्षेत्रों में आते हैं -बिहार ,छत्तीसगढ़ ,दिल्ली ,हरियाणा ,हिमाचल प्रदेश ,झारखण्ड ,मध्य-प्रदेश ,राजस्थान ,उत्तर प्रदेश व् उत्तराखंड ,इसी के साथ-साथ भारतीय संविधान का अनुच्छेद १४ सभी नागरिकों को समानता का अधिकार भी देता है जिसके चलते भारत का हर नागरिक समान है ,उसके साथ धार्मिक आधार पर कोई भी भेदभाव नहीं किया जाता है किन्तु भारत के संविधान का यह मौलिक अधिकार सभी धर्मों के व्यक्तिगत मामलों में मौन हैं और इसी लिए धर्मों के अंदरूनी भेदभाव पर इसका कोई प्रभाव नहीं है ,हिन्दू हो या मुस्लिम ,इन धर्मों में व्यक्तिगत रूप से कौनसी जाति को ऊँचा समझा जाता है और कौनसी जाति को नीचे इन पर हमारा संविधान मौन है ,ऐसे ही इन धर्मों में नारी की क्या स्थिति है इस पर भी संविधान का कोई अंकुश नहीं है वह केवल स्वतन्त्र रूप से नारी को अधिकार देकर इन धर्मों के बाहर उसकी स्थिति सुदृढ़ करने की कोशिश कर सकता है धर्मों को यह आदेश नहीं दे सकता कि ये भी उसे निरपेक

भरण-पोषण अधिकार और अविवाहित बेटी

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दंड प्रक्रिया सहिंता १९७३ की धारा १२५ [१] के अनुसार ''यदि पर्याप्त साधनों वाला कोई व्यक्ति - ............................................................................................................................................... [ग] -अपने धर्मज या अधर्मज संतान का [जो विवाहित पुत्री  नहीं है ],जिसने वयस्कता प्राप्त कर ली है ,जहाँ  ऐसी संतान किसी शारीरिक या मानसिक असामान्यता या क्षति के कारण अपना भरण -पोषण करने में असमर्थ है ,.......... ........................................................................................................................................................ भरण पोषण करने की उपेक्षा करता है  या भरण पोषण करने से इंकार करता है तो प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट ,ऐसी उपेक्षा या इंकार साबित होने पर ,ऐसे व्यक्ति को ये निर्देश दे सकेगा कि वह अपनी ऐसी संतान को ऐसी मासिक दर पर जिसे मजिस्ट्रेट उचित समझे भरण पोषण मासिक भत्ता दे . और इसी कानून का अनुसरण  करते हुए   मुंबई हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति के यू चंडीवाल  ने बहरीन में रहने वाले एक व्यक्ति

--------- खाप पंचायतों के फरमान गैरकानूनी'

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सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, 'वयस्क जोड़े की शादी के खिलाफ खाप पंचायतों के फरमान गैरकानूनी' नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को खाप पंचायत को लेकर बड़ा फैसला दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने खाप पंचायतों को झटका देते हुए कहा कि शादी को लेकर खाप पंचायतों के फरमान गैरकानूनी हैं। अगर दो बालिग अपनी मर्जी से शादी कर रहे हैं तो कोई भी इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने आगे यह भी कहा है कि जब तक केंद्र सरकार इस मसले पर कानून नहीं लाती तब तक यह आदेश प्रभावी रहेगा।  चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यों की बेंच में जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ भी थे। इस पीठ ने अपने फैसले में कहा कि, ऑनर किलिंग पर लॉ कमीशन की सिफारिशों पर विचार हो रहा है। जब तक नए कानून नहीं बन जाते तब तक मौजूदा आधार भी ही कार्रवाई होगी। बता दें कि अभी तक ऑनर किलिंग के मामलों में आईपीसी की धारा के तहत ही कार्रवाई होती है।  कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि, एक बालिग लड़का और लड़की आपसी सहमति से शादी कर सकते हैं। उनके इस फैसले पर ना ही खाप पंचायत, परिजन और ना ही समाज सवाल

नारी नहीं है बेचारी -महिला दिवस विशेष

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       दुष्कर्म आज ही नहीं सदियों से नारी जीवन के लिए त्रासदी रहा है .कभी इक्का-दुक्का ही सुनाई पड़ने वाली ये घटनाएँ आज सूचना-संचार क्रांति के कारण एक सुनामी की तरह नज़र आ रही हैं और नारी जीवन पर बरपाये कहर का वास्तविक परिदृश्य दिखा रही हैं . भारतीय दंड सहिंता में दुष्कर्म ये है - भारतीय दंड संहिता १८६० का अध्याय १६ का उप-अध्याय ''यौन अपराध ''से सम्बंधित है जिसमे धारा ३७५ कहती है- [ I.P.C. ] Central Government Act Section 375 in The Indian Penal Code, 1860 375. Rape.-- A man is said to commit" rape" who, except in the case hereinafter excepted, has sexual intercourse with a woman under circumstances falling under any of the six following descriptions:- First.- Against her will. Secondly.- Without her consent. Thirdly.- With her consent, when her consent has been obtained by putting her or any person in whom she is interested in fear of death or of hurt. Fourthly.- With her consent, when the man knows that he is not her husband, and that

मिथ्या वाद भी दंडनीय

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          आजकल जहाँ एक तरफ न्यायालयों की धीमी प्रक्रिया को देखते हुए लोगों द्वारा अपना अधिकार छोड़कर न्यायालयीन वादों को समझौतों द्वारा निपटने के प्रयास जारी हैं वहीँ कितने ही मामलों में न्यायालयों में अपनी अनुचित मांगें मनवाने को झूठे वाद दायर करने की भी एक परंपरा सी चल पड़ी है ,ऐसे मामलों में भारतीय दंड संहिता की धारा 182  दंड का प्रावधान करती है ,धारा 182 भारतीय दंड संहिता में कहा गया है - -धारा 182  -जो कोई किसी लोक सेवक को कोई ऐसी इत्तिला ,जिसके मिथ्या होने का उसे ज्ञान या विश्वास है ,इस आशय से देगा कि वहयह  उस लोक सेवक को प्रेरित करे या यह सम्भाव्य जानते हुए देगा कि वह उसको तद्द्वारा प्रेरित करेगा कि वह लोक सेवक - [क]-कोई ऐसी बात करे या करने का लोप करे ,जिसे वह लोक सेवक ,यदि उसे उस सम्बन्ध में ,जिसके बारे में ऐसी इत्तिला दी गयी है ,तथ्यों की सही स्थिति का पता होता तो न करता या करने का लोप न करता ,अथवा [ख]-ऐसे लोक सेवक की विधिपूर्ण शक्ति का उपयोग करे जिस उपयोग से किसी व्यक्ति को क्षति या क्षोभ हो ,     वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी य

एक मजबूत साक्ष्य -मृत्युकालीन कथन

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साक्ष्य अधिनियम की धारा 32 में वे दशाएं बताई गयी हैं जिनमे उस व्यक्ति द्वारा सुसंगत तथ्य का किया गया कथन सुसंगत है जो मर गया है या मिल नहीं सकता इत्यादि ,और ऐसे में जो सबसे महत्वपूर्ण है वह है धारा 32  [1 ]  जो कि मृत्यु के कारण से सम्बंधित है ,इसमें कहा गया है - ''जबकि वह कथन किसी व्यक्ति द्वारा अपनी मृत्यु के कारण के बारे में या उस संव्यवहार की किसी परिस्थिति के बारे में किया गया है जिसके फलस्वरूप उसकी मृत्यु हुई ,तब उन मामलों में ,जिनमे उस व्यक्ति की मृत्यु का कारण प्रश्नगत हो ,       ऐसे कथन सुसंगत हैं ,चाहे उस व्यक्ति को जिसने उन्हें किया है उस समय जब वे किये गए थे मृत्यु की प्रत्याशङ्का थी या नहीं और चाहे उस कार्यवाही की ,जिसमे उस व्यक्ति की मृत्यु का कारण प्रश्नगत होता है ,प्रकृति कैसी ही क्यों न हो, -एम् सर्वना उर्फ़ के डी सर्वना बनाम कर्नाटक राज्य 2012  क्रि, ला, ज;3877 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है -कि मृत्युकालीन कथन किसी व्यक्ति के द्वारा उस प्रक्रम पर जब उसकी मृत्यु की गंभीर आशंका हो अथवा उसके जीवित बचने की कोई सम्भावना न हो ,किया गया अंतिम कथन है ,ऐसे समय पर यह

कानून है तब भी

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     लड़की की शादी और उसमे दहेज़ एक बहुत बड़ी समस्या है जिसके निबटारे के लिए देश में बहुत सख्त कानून बना है .जो इस प्रकार है - दहेज निषेध अधिनियम, 1 9 61 में धारा 3 दहेज देने या लेने के लिए दंड-1  (1) ] यदि कोई व्यक्ति, इस अधिनियम के प्रारंभ होने के बाद, दहेज देने या लेने पर ले जाता है या लेता है, तो उसे दंडित किया जाएगा [एक अवधि के कारावास के साथ जो 3 से कम नहीं होगा [पांच वर्ष, और ठीक से जो पन्द्रह हजार रूपए से कम या इस तरह दहेज के मूल्य की राशि, जो भी अधिक हो, नहीं होगा: -1 [(1)] यदि कोई व्यक्ति, इस अधिनियम के प्रारंभ होने के बाद, देता है या लेता है दहेज देने या लेने से, वह दंडनीय होगा [एक पद के लिए कारावास के साथ जो 3 वर्ष से कम नहीं होगा, और जुर्माने के साथ पंद्रह हजार रुपये से कम नहीं होगा या इस तरह के दहेज के मूल्य की राशि, जो भी अधिक है] \: "बशर्ते न्यायालय, फैसले में दर्ज किए जाने के लिए पर्याप्त और विशेष कारणों के लिए, 4 [पांच साल] से कम अवधि के लिए कारावास की सजा को लागू कर सकता है।] [5] ([2] उप-धारा (1) के संबंध में या इसके संबंध में लागू होंगे- 1 [(2) उप-धारा (1)