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वसीयत और मरणोपरांत वसीयत

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     वसीयत एक ऐसा अभिलेख जिसके माध्यम से व्यक्ति अपनी मृत्यु के बाद अपनी संपत्ति की व्यवस्था करता है .भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 3  में वसीयत अर्थात इच्छापत्र की परिभाषा इस प्रकार है -  ''वसीयत का अर्थ वसीयतकर्ता का अपनी संपत्ति के सम्बन्ध में अपने अभिप्राय का कानूनी प्रख्यापन है जिसे वह अपनी मृत्यु के पश्चात् लागू किये जाने की इच्छा रखता है .''      वसीयत वह अभिलेख है जिसे आदमी अपने जीवन में कई बार कर सकता है किन्तु वह लागू तभी होती है जब उसे करने वाला आदमी मर जाता है .एक आदमी अपनी संपत्ति की कई बार वसीयत कर सकता है किन्तु जो वसीयत उसके जीवन में सबसे बाद की होती है वही महत्वपूर्ण होती है.       वसीयत का पंजीकरण ज़रूरी नहीं है किन्तु वसीयत की प्रमाणिकता को बढ़ाने के लिए इसका रजिस्ट्रेशन करा लिया जाता है और रजिस्ट्रेशन अधिनियम 1908  की धारा 27  के अनुसार - '' विल एतस्मिन पश्चात् उपबंधित रीति से किसी भी समय रजिस्ट्रीकरण के लिए उपस्थापित या निक्षिप्त की जा सकेगी .''       इच्छापत्र सादे कागज पर लिखा जाता है और इसके लिए स्टाम्प नहीं लगता है क्योंकि ये

मार पति को और तब भी ले भरण पोषण

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  पति द्वारा क्रूरता से तो सभी वाकिफ हैं और उसके परिणाम में पति को सजा ही सजा मिलती है किन्तु आनंद में तो पत्नी है जो क्रूरता भी करती है तो भी सजा की भागी नहीं होती उसकी सजा मात्र इतनी कि उसके पति को उससे तलाक मिल सकता है किन्तु नारी-पुरुष समानता के इस युग में पारिवारिक संबंधों के मामले में पुरुष समानता की स्थिति में नहीं है .      2016  [1 ] D .N .R .[D .O .C .-11 ]17 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि हिन्दू विवाह अधिनियम 1955  की धारा 13  के अंतर्गत क्रूरता के आधार पर पति भी अपनी पत्नी से तलाक ले सकता है .        इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उपरोक्त वाद में पत्नी द्वारा पति के विरूद्ध कई दाण्डिक एवं सिविल प्रकरणों का दाखिल किया जाना क्रूरता माना और इस आधार पर पति को पत्नी से तलाक लेने का अधिकारी मानते हुए कहा कि ऐसी क्रूरता के आधार पर तलाक की डिक्री पारित की जा सकती है ,साथ ही यह भी कहा कि ऐसे में यदि तलाक की डिक्री पारित की जाती है तो पति को पत्नी को स्थायी निर्वाह व्यय देना होगा .इस तरह इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने तलाक की डिक्री के विरूद्ध अपील को ख़ारिज किया लेकिन पति को निर्देशित कि

महिला और मुस्लिम विधि

विधि भारती -शोध पत्रिका में प्रकाशित भारतीय संविधान की राजभाषा हिंदी है और देश में हिंदी भाषी राज्यों या क्षेत्रों की बहुलता है भारत में निम्न राज्य हिंदी भाषी क्षेत्रों में आते हैं -बिहार ,छत्तीसगढ़ ,दिल्ली ,हरियाणा ,हिमाचल प्रदेश ,झारखण्ड ,मध्य-प्रदेश ,राजस्थान ,उत्तर प्रदेश व् उत्तराखंड ,इसी के साथ-साथ भारतीय संविधान का अनुच्छेद १४ सभी नागरिकों को समानता का अधिकार भी देता है जिसके चलते भारत का हर नागरिक समान है ,उसके साथ धार्मिक आधार पर कोई भी भेदभाव नहीं किया जाता है किन्तु भारत के संविधान का यह मौलिक अधिकार सभी धर्मों के व्यक्तिगत मामलों में मौन हैं और इसी लिए धर्मों के अंदरूनी भेदभाव पर इसका कोई प्रभाव नहीं है ,हिन्दू हो या मुस्लिम ,इन धर्मों में व्यक्तिगत रूप से कौनसी जाति को ऊँचा समझा जाता है और कौनसी जाति को नीचे इन पर हमारा संविधान मौन है ,ऐसे ही इन धर्मों में नारी की क्या स्थिति है इस पर भी संविधान का कोई अंकुश नहीं है वह केवल स्वतन्त्र रूप से नारी को अधिकार देकर इन धर्मों के बाहर उसकी स्थिति सुदृढ़ करने की कोशिश कर सकता है धर्मों को यह आदेश नहीं दे सकता कि ये भी उसे निरपेक्ष

अधिवक्ता फिर सत्ता में शीर्ष पर

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      6 अगस्त 2022 को देश के 14 वें उपराष्ट्रपति के रूप में जगदीप धनखड़ जी का चयन मात्र एक राजनीतिज्ञ, एक किसान पुत्र की ही जीत नहीं है बल्कि यह एक बार फिर अधिवक्ता समुदाय का भारतीय राजनीति में दखल और प्रभाव दिखा गया है यह चुनाव इसलिए भी महत्वपूर्ण रहा कि इसमें जीत या हार किसी की भी होती किन्तु पद के लिए चुना एक अधिवक्ता ही जाता.            धनखड़ का जन्म 18 मई 1951 को राजस्थान राज्य के झुंझुनू जिले के एक छोटे से गाँव 'किठाना' में जाट के घर हुआ था। उनकी प्राथमिक शिक्षा किठाना गांव के स्कूल में हुई। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा सैनिक स्कूल, चित्तौड़गढ़ से पूरी की और फिर राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। स्कूली शिक्षा के बाद जगदीप धनखड़ ने राजस्थान के प्रतिष्ठित महाराज कॉलेज जयपुर में ग्रेजुएशन की पढ़ाई के लिए एडमिशन लिया. यहां से उन्होंने फिजिक्स में BSE की डिग्री ली| साल 1978  में उन्होंने जयपुर विश्वविद्यालय में एलएलबी कोर्स में एडमिशन लिया। कानून की डिग्री लेने के लेने बाद जगदीप धनखड़ ने वकालत शुरू कर दी और साल 1990 में जगदीप धनखड़ को राजस्थान हाईकोर्

खंडपीठ वेस्ट यू पी में आएगी......

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   एजाज रहमानी ने कहा है कि -  अभी से पाँव के छाले न देखो,  अभी यारों सफर की इब्तदा है.  वेस्ट यू पी में हाई कोर्ट बेंच की मांग करते करते वकीलों को 4 दशक से ऊपर हो गए हैं किन्तु आंदोलन कभी वर्तमान रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह जी के पूर्व में दिए गए बयान के समर्थन, कभी पंजाब के राज्यपाल रहे श्री वीरेन्द्र वर्मा जी के समर्थन के बयान से ऊपर की सफलता अर्जित नहीं कर पाया और फिर अब तो प्रचंड बहुमत वाली भाजपा सरकार के केंद्रीय कानून मंत्री श्री किरण रिजूजू ने साफ कर दिया है कि उनके पास वेस्ट यू पी में हाई कोर्ट खंडपीठ के लिए कोई प्रस्ताव ही नहीं है.         इस आंदोलन की सफलता के लिए बार एसोसिएशन कैराना के अधिवक्ताओं ने बाबू कौशल प्रसाद एडवोकेट जी के नेतृत्व में 1989 में कॉंग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद जी का सफल घेराव किया और इसी सफलता के कारण तत्कालीन विधायक मुनव्वर हसन के समर्थकों द्वारा कैराना के अधिवक्ताओं पर हमले किए गए, उनके चेंबर तोड़े गए, वेस्ट यू पी के अधिवक्ताओं द्वारा कई कई महीनों तक हड़ताल की गई, शनिवार की हड़ताल वेस्ट यू पी में हाई कोर्ट बेंच के लिए लगातार जारी है किन्तु परिणाम ढाक

पश्चिमी उत्तर प्रदेश केंद्रीय संघर्ष समिति की कमजोरी उजागर

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गुरुवार को कानून और न्याय मंत्रालय ने राज्यसभा को सूचित किया कि भारत में किसी भी उच्च न्यायालय की कोई नई पीठ स्थापित करने का कोई प्रस्ताव नहीं है।   डॉ समसित पत्र (सांसद) ने निम्नलिखित प्रश्न पूछे: क्या कानून और न्याय मंत्री यह बताने की कृपा करेंगे कि: (क) पिछले पांच वर्षों के दौरान भारत में न्यायालयों के लिए स्थापित नई न्यायपीठों का विवरण; (बी) वर्तमान में सरकार के पास लंबित नई पीठों की स्थापना के प्रस्ताव: और (ग) भारत में एक न्यायालय के लिए एक नई पीठ स्थापित करने की प्रक्रिया? श्री किरेन रिजिजू का उत्तर: (ए) से (सी): पिछले पांच वर्षों के दौरान, जलपाईगुड़ी में कलकत्ता उच्च न्यायालय की एक सर्किट बेंच की स्थापना 07.02.2019 से की गई थी। उच्च न्यायालय की खंडपीठों की स्थापना जसवंत सिंह आयोग द्वारा की गई सिफारिशों और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सुनाए गए निर्णय के अनुसार की जाती है। जिसमें एक पूर्ण प्रस्ताव पर विचार करने के बाद आवश्यक व्यय और आधारभूत सुविधाएं प्रदान करना है और संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को दिन–प्रतिदिन प्रशासन की देखभाल करने की आवश्यकता है। इसके बाद प्रस्ताव पर सं

योगी जी कैराना में स्थापित करें जनपद न्यायालय शामली

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       2011 में 28 सितंबर को शामली जिले का सृजन किया गया. तब उसमें केवल शामली और कैराना तहसील शामिल थी. इससे पहले शामली और कैराना तहसील मुजफ्फरनगर जनपद के अंतर्गत आती थी. कुछ समय बाद शामली जिले में ऊन तहसील बनने के बाद अब शामली जिले के अंतर्गत तीन तहसील कार्यरत हैं. 2018 के अगस्त तक शामली जिले का कानूनी कार्य मुजफ्फरनगर जिले के अंतर्गत ही कार्यान्वित रहा किन्तु अगस्त 2018 में शामली जिले की कोर्ट शामली जिले में जगह का चयन न हो पाने के कारण कैराना में आ गई और इसे नाम दिया गया -" जिला एवं सत्र न्यायालय शामली स्थित कैराना. "         2018 से अब तक मतलब जुलाई 2022 तक शामली जिले के मुख्यालय से लगभग 12 किलोमीटर दूर जिला जज की कोर्ट के लिए जगह का चयन हो जाने के बाद शासन द्वारा 51 एकड़ भूमि जिला न्यायालय कार्यालय और आवासीय भवनों के लिए आवंटित की गयी थी, जिसमें चाहरदीवारी के निर्माण के लिए 4 करोड़ की धन राशि अवमुक्त की गई थी जिससे अब तक केवल बाउंड्रीवाल का ही निर्माण हो पाया है. उच्च न्यायालय इलाहाबाद द्वारा जिला न्यायालय कार्यालय और आवासीय भवनों के निर्माण के लिए 295 करोड़ रुपये का एस्

बीसीआई विचार करे

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  आश्चर्य है कि व्यापारी वर्ग सरकार से स्वयं के लिए विधान परिषद की सीट मांग सकता है, सांसद, विधायक की तरह वीआईपी का दर्जा मांग सकता है, हर शहर में एक चौक का नाम व्यापार शक्ति चौक करने की मांग कर सकता है और विद्धान कहे जाने वाले और देश की आजादी से लेकर आज तक देश को सर्वोत्कृष्ट विकास की राह पर पहुंचाने वाले अधिवक्ताओं का समुदाय अपने वर्चस्व और सम्मान को लेकर खामोशी अख्तियार कर रहा है. अब आए दिन वकीलों की हड़ताल को रोकने को लेकर माननीय सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट द्वारा नई से नई कार्यवाहियों की तैयारियां की जा रही हैं और इस पर भी बीसीआई खामोश रहता है. कोविड-19 के ख़तरनाक दौर में अधिवक्ताओं के आर्थिक सहयोग हेतु कोई मांग नहीं रखता है और वह भी उस स्थिति में जब अधिवक्ता वक़ालत के अलावा कोई अन्य व्यवसाय कर ही नहीं सकते. क्यूँ आज का अधिवक्ता समुदाय खामोश हो गया है? क्या आज वकीलों ने सरकार के इस तानाशाही रवैये को अपनी नियति मानकर स्वीकार कर लिया है. इस पर माननीय बीसीआई द्वारा विचार किया जाना जरूरी है और वकीलों का मनोबल ऊंचा करने और सम्मान कायम रखने के लिए देश स्तरीय सम्मेलन और आंदोलन की राह पर आ

कचहरी को बाजार न बनाया जाए

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  22 अप्रैल 2022 को सोनीपत कोर्ट परिसर में दिनदहाड़े गवाह वेद प्रकाश की हत्या हो जाती है और कहा जाता है कि हत्यारे पेशेवर नहीं थे, सतर्क होता तो बच सकती थी वेद प्रकाश की जान.       ऐसा नहीं है कि न्यायालय परिसर में यह कोई पहली घटना हो. उत्तर प्रदेश में तो ये घटनाएं आम हैं. कभी शाहजहांपुर में अधिवक्ता की हत्या हो जाती है तो कभी गोरखपुर में दुष्कर्म आरोपी की, गाजियाबाद में कचहरी में कड़ी सुरक्षा के बावजूद वाहनों की चोरी हो जाती हैं किन्तु दो चार दिन महीने सुरक्षा मजबूत कर कचहरी फिर वापस लौट आती है लापरवाही की तरफ, किसी अगली घटना के इंतजार में.      देखा जाए तो कचहरी न्याय पाने का एक केंद्र है और वहां न्यायाधीशों, वकीलों, मुन्शी, न्यायालयों के कर्मचारियों, स्टाम्प वेंडर्स, बैनामा लेखकों आदि न्यायालय कार्य करने वाले और वकीलों के कार्य करने वालों का और कचहरी में आने जाने वालों के चाय नाश्ते आदि का प्रबंध करने वालों का होना एक अनिवार्य आवश्यकता है किन्तु कचहरी में भीख मांगने वालों का आना, मेवे आदि बेचने वालों का आना, कान साफ करने वालों का आना कचहरी को सामान्य बाजार की श्रेणी में ला देता है औ

वकीलों का ड्रेस कोड

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  प्रत्येक पेशे का एक निश्चित ड्रेस कोड होता है जो एक पेशे से जुड़े हुए लोगों की पहचान से गहरा ताल्लुक रखता है. यही ड्रेस कोड आम जनता में सफेद शर्ट, नेक बैंड और काले कोट पहने व्यक्ति के लिए तुरंत कानूनी पेशे से जुड़े व्यक्तित्व का परिचय देता है. जहां यह ड्रेस कोड अधिवक्ताओं को आम जनता में " ऑफिसर ऑफ द कोर्ट" के रूप में पहचान देता है वहीं यह ड्रेस कोड अधिवक्ताओं में आत्मविश्वास और अनुशासन को भी जन्म देता है.          यह काली और सफेद पोशाक, जो कानूनी पेशेवरों द्वारा पहनी जाती है, इस ड्रेस कोड के विकास का इतिहास मध्य युग का है जब वकीलों को बैरिस्टर, सॉलिसिटर, अधिवक्ता या पार्षद के रूप में भी जाना जाता था, तब उनका ड्रेस कोड जजों के समान था.            भारत में कानूनी व्यवस्था का आरम्भ ब्रिटेन द्वारा किया गया और क्योंकि जब भारत में कानूनी व्यवस्था का आरम्भ हुआ, भारत पर अंग्रेजों का शासन था तो अधिवक्ताओं की ड्रेस पर भी ब्रिटेन की व्यवस्था हावी होनी अवश्यंभावी थी. तब से लेकर अब तक बहुत से परिवर्तन होते रहे और अब भारत में वकीलों का ड्रेस कोड अधिवक्ता अधिनियम 1961 के तहत बार काउंसिल ऑ

कैराना स्थित जनपद न्यायालय ही हो शामली जनपद का मुख्य न्यायालय

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          2011 में 28 सितंबर को शामली जिले का सृजन किया गया. तब उसमें केवल शामली और कैराना तहसील शामिल थी. इससे पहले शामली और कैराना तहसील मुजफ्फरनगर जनपद के अंतर्गत आती थी. कुछ समय बाद शामली जिले में ऊन तहसील बनने के बाद अब शामली जिले के अंतर्गत तीन तहसील कार्यरत हैं. 2018 के अगस्त तक शामली जिले का कानूनी कार्य मुजफ्फरनगर जिले के अंतर्गत ही कार्यान्वित रहा किन्तु अगस्त 2018 में शामली जिले की कोर्ट शामली जिले में जगह का चयन न हो पाने के कारण कैराना में आ गई और इसे नाम दिया गया -" जिला एवं सत्र न्यायालय शामली स्थित कैराना. "         2018 से अब तक मतलब मार्च 2022 तक शामली जिले के मुख्यालय से लगभग 12 किलोमीटर दूर जिला जज की कोर्ट के लिए जगह का चयन हो जाने के बाद केवल बाउंड्रीवाल का ही निर्माण हो पाया है और शामली जिले में केवल तहसील स्तर का ही कार्य सम्पन्न हो रहा है. जिसे देखते हुए कहा जा सकता है कि वहां कानूनी विभाग लगभग शून्यता की स्थिति में है और वहां जिला जज की कोर्ट की स्थापना के साथ साथ मुंसिफ कोर्ट से लेकर जिला जज की कोर्ट की स्थापना करने के लिए बहुत बड़े स्तर का कार्य सम

खंडपीठ /चेंबर /आर्थिक मदद /आरक्षण वकीलों को कुछ तो दें योगी जी

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       माननीय योगी आदित्यनाथ जी ने आज उत्तर प्रदेश के दूसरी बार मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण की है. जहां एक ओर योगी आदित्यनाथ जी ने अपने पिछले कार्यकाल में पुलिस और प्रशासन का बेहतर तरीके से इस्तेमाल करते हुए आपराधिक तत्वों को उत्तर प्रदेश में जेल के सींखचों में डालने का कार्य सफलतापूर्वक किया है वहीं न्याय के पैरोकार अधिवक्ताओं के प्रति उपेक्षापूर्ण रवैया योगी सरकार द्वारा अख्तियार किया गया है. योगी आदित्यनाथ जी के माध्यम से सभी के लिए घोषणाएं की जा रही हैं किन्तु वकीलों को लेकर अभी तक किसी मदद का आश्वासन सामने नहीं आया है. अतः देश औेर दुनिया की कोरोना कालीन उपजी विषम परिस्थितियों को देखते हुए मेरा योगी जी से निम्न निवेदन है - 1 - यह कि जूनियर अधिवक्ताओं के लिए आर्थिक सहायता हेतु कुछ राशि सरकार द्वारा घोषित की जाए और कुछ निश्चित धनराशि इस बीमारी के कारण अपने परिजन को खो चुके वकील के परिवार को दिए जाने की जल्द घोषणा की जाए. 2- यह कि रोजगार की समस्या को लेकर देखते हुए आज बड़ी संख्या में युवाओं द्वारा वक़ालत को अपने व्यवसाय के रूप में अपनाया जा रहा है किन्तु कचहरी में जूनियर वकीलों क

खंडपीठ नहीं तो वोट नहीं

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  मुर्दा लोहे को औजार बनाने वाले अपने आँसू को हथियार बनाने वाले हमको बेकार समझते हैं सियासत दां मग़र हम हैं इस मुल्क की सरकार बनाने वाले             सत्य और सही उद्घोषित हैं ये पंक्तियाँ वेस्ट यू पी के अधिवक्ताओं की दशा की. यू पी में विधानसभा चुनावों का दौर चल रहा है, कहीं लड़की, कहीं किसान, कहीं महंगाई - बेरोजगारी, कहीं जाट - मुसलमान, कहीं दलित कहीं व्यापारी तो कहीं मथुरा कहीं काशी का शोर है किन्तु अगर कहीं दबा हुआ है तो वह है लगभग 4 दशक से पश्चिमी यू पी के अधिवक्ताओं द्वारा की जा रही हाई कोर्ट खंडपीठ की मांग का मुद्दा, जिसे लेकर माननीय सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया, इलाहाबाद हाई कोर्ट, बार काउंसिल ऑफ इंडिया बार बार वकीलों की हड़ताल से परेशानी पर टिप्पणियों द्वारा जता भी चुके हैं. हाई कोर्ट अपने फैसलों में जिक्र करते हैं कि पिछले 35 साल से शनिवार को अदालत कार्यवाही का बहिष्कार करके विरोध करने का सिलसिला रहा है.             वकीलों की हड़ताल से कोर्टस, वादकारी, कर्मचारी सब परेशान हैं किन्तु वकीलों की परेशानी किसी को भी दिखाई नहीं देती, जो न्याय का पैरोकार होने के कारण न्याय अंतिम व्यक्ति तक,