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मिथ्या वाद भी दंडनीय

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          आजकल जहाँ एक तरफ न्यायालयों की धीमी प्रक्रिया को देखते हुए लोगों द्वारा अपना अधिकार छोड़कर न्यायालयीन वादों को समझौतों द्वारा निपटने के प्रयास जारी हैं वहीँ कितने ही मामलों में न्यायालयों में अपनी अनुचित मांगें मनवाने को झूठे वाद दायर करने की भी एक परंपरा सी चल पड़ी है ,ऐसे मामलों में भारतीय दंड संहिता की धारा 182  दंड का प्रावधान करती है ,धारा 182 भारतीय दंड संहिता में कहा गया है - -धारा 182  -जो कोई किसी लोक सेवक को कोई ऐसी इत्तिला ,जिसके मिथ्या होने का उसे ज्ञान या विश्वास है ,इस आशय से देगा कि वहयह  उस लोक सेवक को प्रेरित करे या यह सम्भाव्य जानते हुए देगा कि वह उसको तद्द्वारा प्रेरित करेगा कि वह लोक सेवक - [क]-कोई ऐसी बात करे या करने का लोप करे ,जिसे वह लोक सेवक ,यदि उसे उस सम्बन्ध में ,जिसके बारे में ऐसी इत्तिला दी गयी है ,तथ्यों की सही स्थिति का पता होता तो न करता या करने का लोप न करता ,अथवा [ख]-ऐसे लोक सेवक की विधिपूर्ण शक्ति का उपयोग करे जिस उपयोग से किसी व्यक्ति को क्षति या क्षोभ हो ,     वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी य

एक मजबूत साक्ष्य -मृत्युकालीन कथन

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साक्ष्य अधिनियम की धारा 32 में वे दशाएं बताई गयी हैं जिनमे उस व्यक्ति द्वारा सुसंगत तथ्य का किया गया कथन सुसंगत है जो मर गया है या मिल नहीं सकता इत्यादि ,और ऐसे में जो सबसे महत्वपूर्ण है वह है धारा 32  [1 ]  जो कि मृत्यु के कारण से सम्बंधित है ,इसमें कहा गया है - ''जबकि वह कथन किसी व्यक्ति द्वारा अपनी मृत्यु के कारण के बारे में या उस संव्यवहार की किसी परिस्थिति के बारे में किया गया है जिसके फलस्वरूप उसकी मृत्यु हुई ,तब उन मामलों में ,जिनमे उस व्यक्ति की मृत्यु का कारण प्रश्नगत हो ,       ऐसे कथन सुसंगत हैं ,चाहे उस व्यक्ति को जिसने उन्हें किया है उस समय जब वे किये गए थे मृत्यु की प्रत्याशङ्का थी या नहीं और चाहे उस कार्यवाही की ,जिसमे उस व्यक्ति की मृत्यु का कारण प्रश्नगत होता है ,प्रकृति कैसी ही क्यों न हो, -एम् सर्वना उर्फ़ के डी सर्वना बनाम कर्नाटक राज्य 2012  क्रि, ला, ज;3877 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है -कि मृत्युकालीन कथन किसी व्यक्ति के द्वारा उस प्रक्रम पर जब उसकी मृत्यु की गंभीर आशंका हो अथवा उसके जीवित बचने की कोई सम्भावना न हो ,किया गया अंतिम कथन है ,ऐसे समय पर यह