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मोदी सरकार :जीने का अधिकार दे मरने का नहीं!

धारा 309 -भारतीय दंड संहिता ,एक ऐसी धारा जो अपराध सफल होने को दण्डित न करके अपराध की असफलता को दण्डित करती है .यह धारा कहती है-         '' जो कोई आत्महत्या करने का प्रयत्न करेगा और उस अपराध को करने के लिए कोई कार्य करेगा ,वह सादा कारावास से ,जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से ,या दोनों से दण्डित किया जायेगा .''   और इस धारा की यही प्रकृति हमेशा से विवादास्पद रही है और इसीलिए उच्चतम न्यायालय ने पी.रथिनम् नागभूषण पटनायिक बनाम भारत संघ ए .आई .आर .१९९४ एस.सी.१८४४  के वाद में दिए गए अपने ऐतिहासिक निर्णय में दंड विधि का मानवीयकरण करते हुए अभिकथन किया है कि-   ''व्यक्ति को मरने का अधिकार प्राप्त है .'' इस वाद में दिए गए निर्णय में उच्चतम न्यायालय ने इसे संविधान के अनुच्छेद २१ के अंतर्गत व्यक्ति को प्राप्त वैयक्तिक स्वतंत्रता का अतिक्रमण मानते हुए इस धारा को दंड विधि से विलोपित किये जाने को कहा .विद्वान न्यायाधीशों ने धारा ३०९ के प्रावधानों को क्रूरतापूर्ण एवं अनुचित बताते हुए कहा कि इसके परिणामस्वरुप व्यक्ति को दोहरा दंड भुगतना पड़ता है .प्र

साध्वी निरंजन ज्योति -दण्डित होने योग्य

खाद्य एवं प्रसंस्करण राज्य मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति के अमर्यादित बोल संसद के दोनों सदनों में कोहराम मचाते हैं और राजनीतिक कार्यप्रणाली के रूप में विपक्ष् उन पर कार्यवाही चाहता है ,उनका इस्तीफा चाहता है और उन पर एफ.आई.आर. दर्ज़ करने की अपेक्षा रखता है और सत्ता वही पुराने ढंग में घुटने टेके खड़ी रहती है . अपने मंत्री के माफ़ी मांगने को आधार बना उनका बचाव करती है जबकि साध्वी निरंजन ज्योति ने जो कुछ कहा वह सामान्य नहीं था .भारतीय कानून की दृष्टि में अपराध था .वे दिल्ली की एक जनसभा के दौरान लोगों को ''रामजादे-हरामजादे में से एक को चुनने को कहती हैं ''   वे कहती हैं -''कि दिल्ली विधानसभा चुनावों में मतदाताओं को तय करना है कि वह रामजादों की सरकार बनायेंगें या हरामजादों की .''राम के नाम पर ६ दिसंबर १९९२ की उथल-पुथल आज भी भारतीय जनमानस के मन से नहीं उतर पाई है और २२ वर्ष बाद फिर ये देश को उसी रंग में रंगने को उतर रहे हैं और ऐसे में इनके वेंकैय्या नायडू निरंजन ज्योति के माफ़ी मांगने को पर्याप्त कह मामले को रफा-दफा करने की कोशिश कर रहे हैं जबकि यह सीधे तौर पर