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मानवाधिकार व् कानून :क्या अपराधियों के लिए ही बने हैं ?

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मानवाधिकार व् कानून :क्या अपराधियों के लिए ही बने हैं ? Updated on: Tue, 29 Jan 2013 02:28 PM (IST) ।[दैनिक जागरण से साभार ]  आज सारा विश्व मानवाधिकार की राह पर चल रहा है और समस्त विश्व का फौजदारी कानून सबूतों से अपराध साबित होने की राह पर ,भले ही जिन्हें मानव अधिकार दिए जा रहे हैं वे उन्हें पाने के अधिकारी हों या न हों ,भले ही वे सबूत कैसे भी जुटाएं जाएँ इस पर ध्यान देने की कोई ज़रुरत कहीं दिखाई ही नहीं दे रही .दोनों ही स्थितियों का फायदा जितना अपराध करने वाले उठा रहे हैं उतना कोई नहीं .कसाब को फांसी दी जाती है तो किसी को ये  याद नहीं रहता कि इस दरिन्दे ने किस दुर्दांत घटनाक्रम को अंजाम दिया था ?कितने लोगों को मौत के घाट उतारा था ?सभी की जुबान पर ''फांसी की जल्दबाजी ''ही सवाल बन जाती है और मानवीय अधिकार इस कदर हिलोरे  मारते  हैं कि एक बरगी सरकार  का यह कार्य गैर कानूनी लगने लगता है .    सबूत के सही होने पर हम सभी सवाल उठा सकते हैं और उन्हें स्वीकारने वाले कानून पर भी .अपराधी अपराध करता है और उसी समय अपने को कहीं और दिखा देता है और भारतीय कानून सा

इच्छा मृत्यु व् आत्महत्या :नियति व् मजबूरी

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इच्छा मृत्यु व् आत्महत्या :नियति व् मजबूरी अरुणा रामचंद्र शानबाग ,एक नर्स ,जिस पर हॉस्पिटल के एक सफाई कर्मचारी द्वारा दुष्कर्म की नीयत से बर्बर हमला किया गया जिसके कारण गला घुटने के कारण उसके मस्तिष्क को ऑक्सिजन  की आपूर्ति बंद हो गयी और उसका कार्टेक्स क्षतिग्रस्त हो गया ,ग्रीवा रज्जु में चोट के साथ ही मस्तिष्क नलिकाओं में भी चोट पहुंची और फलस्वरूप एक जिंदगी जिसे न केवल अपने लिए बल्कि इस समाज देश के लिए सेवा के नए आयाम स्थापित करने थे स्वयं सेवा कराने के लिए मुंबई के के.ई.एम्.अस्पताल के बिस्तर पर पसर गयी और ३६ साल से वहीँ टुकुर टुकुर जिंदगी के दिन गिन रही है .पिंकी वीरानी ,जिसने अरुणा की दर्दनाक कहानी अपनी पुस्तक में बयां की ,ने उसकी जिंदगी को संविधान के अनुच्छेद २१ के अंतर्गत जीवन के अधिकार में मिले सम्मान से जीने के हक़ के अनुरूप नहीं माना .और उसके लिए ''इच्छा मृत्यु ''की मांग की ,जिसे सर्वोच्च नयायालय के न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू और न्यायमूर्ति ज्ञान सुधा मिश्रा ने सिरे से ख़ारिज कर दिया .अपने १४१ पन्नों के फैसले में न्यायालय ने कहा -

कई ब्लोगर्स भी फंस सकते हैं मानहानि में .......

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Smriti Irani sends legal notice to Sanjay Nirupam over 'slur' on TV, BJP to boycott him कई ब्लोगर्स भी फंस सकते हैं मानहानि  में ....... कांग्रेस सांसद संजय निरुपम  द्वारा भाजपा युवा नेत्री स्मृति ईरानी को असभ्य टिप्पणी को लेकर ईरानी ने उन्हें मानहानि के मामले में कानूनी नोटिस भेज है ये तो सभी जानते हैं पर ये नहीं जानते कि बहुत से ब्लोगर्स भी इसमें फंस सकते हैं वो कैसे इसके लिए आइये जानते हैं भारतीय दंड सहिंता की धारा ४९९ को - धारा ४९९-मानहानि-जो कोई बोले गए या पढ़े जाने के लिए आशयित शब्दों द्वारा ,या संकेतों द्वारा ,या ऐसे दृश्य रूप्णों  द्वारा किसी व्यक्ति के बारे में कोई लांछन इस आशय से लगाता या प्रकशित करता है कि ऐसे लांछन से ऐसे व्यक्ति की ख्याति की अपहानि की जाये या यह जानते हुए या विश्वास करने का कारण रखते हुए लगाता या प्रकाशित करता है कि ऐसे लांछन से ऐसे व्यक्ति की ख्याति की अपहानि होगी ,ऐतस्मिन पश्चात् अपवादित दशाओं के सिवाय उसके बारे में कहा जाता है कि वह उस व्यक्ति की मानहानि करता है . स्पष्टीकरण १ -किसी मृत व्यक्ति को कोई लांछन लगाना मानहानि की कोटि में आ

@ट्वीटर कमाल खान :अफज़ल गुरु के अपराध का दंड जानें .

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@ट्वीटर कमाल खान :अफज़ल गुरु के अपराध का दंड जानें .   Afzal Guru From Wikipedia, the free encyclopedia Jump to: navigation , search Mohammad Afzal Guru , also as Afzal Guru , is a Jaish-e-Mohammad terrorist convicted of the December 2001 attack on the Indian Parliament and was sentenced to death by the Supreme Court of India in 2004. The sentence was scheduled to be carried out on 20 October 2006. Afzal was given a stay of execution and remains on death row. The case The attack was conducted jointly by the Lashkar-e-Toiba (LET) and the Jaish-e-Mohammad (JEM). Seven members of the security forces, including a female constable, were killed, as were the five still incompletely identified men who carried out the attack. Following were the charges against Afzal Guru: [1] Recovery of explosives from his place of hideout in Delhi. Conspiring to commit and knowingly facilitated the commission of a terrorist act or acts preparatory to terrorist act an