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...आखिर न्याय पर पुरुषों का भी हक़ है .

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दैनिक जनवाणी से साभार  [False dowry case? Man kills self Express news service  Posted: Feb 07, 2008 at 0321 hrs Lucknow, February 6  A 30-year-old man, Pushkar Singh, committed suicide by hanging himself from a ceiling fan at his home in Jankipuram area of Vikas Nagar, on Wednesday.In a suicide note, addressed to the Allahabad High Court, Singh alleges that he was framed in a dowry case by his wife Vinita and her relatives, due to which he had to spend time in judicial custody for four months. The Vikas Nagar police registered a case later in the day. “During the investigation, if we find it necessary to question Vinita, we will definitely record her statement,” said BP Singh, Station Officer, Vikas Nagar. Pleading innocence and holding his wife responsible for the extreme step he was taking, Singh’s note states: “I was sent to jail after a false dowry case was lodged against me by Vinita and her family, who had demanded Rs 14 lakh as a compensation. Neither my

भारतीय संविधान अपने उद्देश्य में असफल

न्यायाधिपति श्री सुब्बाराव के शब्दों में -''उद्देशिका किसी अधिनियम के मुख्य आदर्शों एवं आकांक्षाओं का उल्लेख करती है .'' इन री बेरुबारी यूनियन ,ए. आई.आर. १९६०, एस. सी. ८४५ में उच्चतम न्यायालय के अनुसार ,'' उद्देशिका संविधान निर्माताओं के विचारों को जानने की कुंजी है .'' संविधान की रचना के समय निर्माताओं का क्या उद्देश्य था या वे किन उच्चादर्शों की स्थापना भारतीय संविधान में करना चाहते थे ,इन सबको जानने का माध्यम उद्देशिका ही होती है .हमारे संविधान की उद्देशिका इस प्रकार है -     '' हम भारत के लोग , भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व संपन्न ,समाजवादी ,पंथ निरपेक्ष ,लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को -सामाजिक ,आर्थिक और राजनैतिक न्याय,विचार,अभिव्यक्ति ,विश्वास ,धर्म और उपासना की स्वतंत्रता ,प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख २६ नवम्बर १९४९ को एतत्द्वारा इस संविधान को अ

कन्या भ्रूणहत्या :सिर्फ शीघ्र सुनवाई हल नहीं

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उच्चतम न्यायालय की खंडपीठ का कन्याभ्रूण हत्या को लेकर सुनवाई का समय निश्चित करना और लिंग अनुपात में आ रही कमी को लेकर चिंता जताना सराहनीय पहल है .आज कन्या भ्रूण हत्या जोरों पर है और लिंग-जाँच पर कानूनी रूप से प्रतिबन्ध लगाया जाना और इसे अवैध व् गैरकानूनी घोषित किया जाना भी इसे नहीं रोक पाया है और उच्चतम न्यायालय को इसे लेकर सरकार से कहना पड़ गया है - 'Laws to stop female foeticide have failed': SC to Indian govt, states और ऐसा तब है जबकि भारत में इसे लेकर १९९४ से कानून है और प्रसवपूर्व लिंग जाँच पर सजा व् जुर्माने का प्रावधान है . पूर्व गर्भाधान और प्रसव पूर्व निदान तकनीक (PCPNDT) अधिनियम, 1994  भारत में  कन्या भ्रूण हत्या  और गिरते  लिंगानुपात  को रोकने रोकने के लिए  भारत की संसद  द्वारा पारित एक संघीय कानून  है। इस अधिनियम से प्रसव पूर्व लिंग निर्धारण पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। प्री-नेटल डायग्नोस्टिक टेक्निक ‘पीएनडीटी’ एक्ट 1996, के तहत जन्म से पूर्व शिशु के  लिंग  की जांच पर पाबंदी है। ऐसे में अल्ट्रासाउंड या अल्ट्रासोनोग्राफी कराने वाले जोड़े या करने वाले डाक्टर,

मुख़्तार अब्बास नकवी को मिला फायदा

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Naqvi gets 1-year jail term Union Minister of State for Parliamentary and Minority Affairs Mukhtar Abbas Naqvi was sentenced to a one-year jail term after he and 19 others were convicted by a Rampur court for breaching prohibitory orders in the run-up to the 2009 Lok Sabha election. The Minister was later granted bail. Judicial magistrate Manish Kumar pronounced Mr. Naqvi guilty under Sections 143 (unlawful assembly), 341 (wrongful restraint) and 342 (wrongful confinement) of the Indian Penal Code, Section 7 of the Criminal Law Amendment Act and Section 144 of the Cr.PC. केंद्रीय मंत्री मुख़्तार अब्बास नकवी को सजा भी हुई और हाथ की हाथ जमानत भी मिल गयी . भारतीय दंड संहिता की धारा १४३ संज्ञेय है और जमानतीय भी किन्तु इसमें ६ महीने के कारावास की सजा भी दोषी पाये जाने पर मिलती है . भारतीय दंड संहिता की धारा ३४१ संज्ञेय है और जमानतीय भी किन्तु इसमें भी दोषी पाये जाने पर १ महीने के कारावास की सजा का प्रावधान है . और भारतीय दंड संहिता की धारा ३४२ भी संज्ञेय है और जमानतीय भी

जनता को हाईकोर्ट बेंच दे

बेंच को लेकर वकीलों की तालाबंदी,कचहरी गेट पर दिया धरना ,इलाहाबाद बार का पुतला फूंका ,वकीलों से झड़पें ऐसी सुर्खियां समाचारपत्रों की १९७९ से बनती रही हैं और अभी आगे भी बनते रहने की सम्भावना स्वयं हमारी अच्छे दिन लाने वाली सरकार ने स्पष्ट कर दी है क्योंकि केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद के पत्र पर बेंच गठन के लिए बनी कमेटी को ही भंग कर दिया गया है .    पश्चिमी यूपी में हाईकोर्ट बेंच हमेशा से राजनैतिक कुचक्र का शिकार बनती रही है और किसी भी दल की सरकार आ जाये इस मुद्दे पर अपने वोट बैंक को बनाये रखने के लिए इसे ठन्डे बस्ते में डालती रही है और इसका शिकार बनती रही है यहाँ की जनता ,जिसे या तो अपने मुक़दमे को लड़ने के लिए अपने सारे कामकाज छोड़कर अपने घर से इतनी दूर कई दिनों के लिए जाना पड़ता है या फिर अपना मुकदमा लड़ने के विचार ही छोड़ देना पड़ता है .   वकील इस मुद्दे को लेकर जनता की लड़ाई लड़ रहे हैं और जनता इस बात से अभी तक या तो अनभिज्ञ है या कहें कि वह अपनी अनभिज्ञता  को छोड़ना ही नहीं चाहती जबकि यह हड़ताल उन्हें हर तरह से नुकसान पहुंचा रही है और वे रोज़ न्यायालयों के चक्कर काटते है औ

बेंच दो या हटो सरकारों

बेंच   को   लेकर   वकीलों   की   तालाबंदी , कचहरी   गेट   पर   दिया   धरना  , इलाहाबाद   बार   का   पुतला   फूंका  , वकीलों   से   झड़पें   ऐसी   सुर्खियां   समाचारपत्रों   की   १९७९   से   बनती   रही   हैं   और   अभी   आगे   भी   बनते   रहने   की   सम्भावना   स्वयं   हमारी   अच्छे   दिन   लाने   वाली   सरकार   ने   स्पष्ट   कर   दी   है   क्योंकि   केंद्रीय   मंत्री   रविशंकर   प्रसाद   के   पत्र   पर   बेंच   गठन   के   लिए   बनी   कमेटी   को   ही   भंग   कर   दिया   गया   है  .     पश्चिमी   यूपी   में   हाईकोर्ट   बेंच   हमेशा   से   राजनैतिक   कुचक्र   का   शिकार   बनती   रही   है   और   किसी   भी   दल   की   सरकार   आ   जाये   इस   मुद्दे   पर   अपने   वोट   बैंक   को   बनाये   रखने   के   लिए   इसे   ठन्डे   बस्ते   में   डालती   रही   है   और   इसका   शिकार   बनती   रही   है   यहाँ   की   जनता  , जिसे   या   तो   अपने   मुक़दमे   को   लड़ने   के   लिए   अपने   सारे   कामकाज   छोड़कर   अपने   घर   से   इतनी   दूर   कई   दिनों   के   लिए   जाना   पड़ता   है   या   फिर   अ