नये संशोधन पर तलाक की दूसरी याचिका स्वीकार्य -इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि
" एक ही आधार पर तलाक की याचिका खारिज होने पर भी, हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 के तहत दूसरे आधार पर तलाक की याचिका दायर करने में कोई रोक नहीं है।"
जस्टिस मनीष कुमार निगम ने कहा—
“हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 के तहत किसी एक आधार पर याचिका का निर्णय, दूसरे आधार पर तलाक की याचिका दायर करने पर रोक नहीं लगाता। यदि पहली याचिका खारिज होने के बाद भी पक्षकार को दूसरी याचिका दायर करने की अनुमति मिलती है, तो संशोधन के माध्यम से नए आधार जोड़ने में कोई बाधा नहीं है।”
अदालत ने कहा कि
"तलाक याचिकाओं में आधार बदलने या जोड़ने की अनुमति दी जा सकती है ताकि कई बार एक ही मामले में कार्यवाही न करनी पड़े।"
➡️ मामले का संक्षेप-
✒️ पति-प्रतिवादी ने फैमिली कोर्ट, हमीरपुर में धारा 13 हिन्दू विवाह अधिनियम के तहत तलाक की याचिका दायर की। पत्नी ने अपने लिखित उत्तर में आरोपों को खारिज किया। इसके बाद कोर्ट ने मुद्दे तैयार किए। बाद में पति ने आधार बदलने के लिए संशोधन आवेदन दायर किया, जिसे पत्नी ने विरोध किया। कोर्ट ने यह संशोधन स्वीकार कर लिया.
✒️ पत्नी ने चुनौती दी कि मुद्दे तैयार होने के बाद संशोधन आवेदन स्वीकार नहीं किया जा सकता। उनका तर्क था कि पहली याचिका में परित्याग और क्रूरता का आरोप लगाया गया था, अब बाद में अनैतिकता को आधार के रूप में नहीं जोड़ा जा सकता।
कोर्ट ने कहा कि
"आदेश VI नियम 17 सिविल प्रक्रिया संहिता के तहत ऐसा कोई पूर्ण प्रतिबंध नहीं है कि मुद्दे तैयार होने के बाद संशोधन आवेदन नहीं किया जा सकता। संशोधन आवेदन तब अनुमति दी जा सकती है जब यह पार्टियों के बीच न्यायपूर्ण निपटान के लिए आवश्यक हो।"
कोर्ट ने कहा कि
"अगर संशोधन का उद्देश्य नई कार्रवाई का आधार जोड़ना है, जिसके लिए नई याचिका दायर की जा सकती है, तो इसे अनुमति दी जा सकती है ताकि कई बार मुकदमेबाजी से बचा जा सके।"
सुप्रीम कोर्ट के Mohinder Kumar Mehra vs Roop Rani Mehra के मामले का हवाला देते हुए न्यायमूर्ति निगम ने कहा कि
"तकनीकी रूप से मुकदमे की सुनवाई तब शुरू होती है जब वादी के साक्ष्य की तिथि तय होती है। इस मामले में अभी साक्ष्य शुरू नहीं हुए थे, केवल मुद्दे तय किए गए थे।"
कोर्ट ने देखा कि
" फैमिली कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि संशोधन आवेदन में बताई गई जानकारी वादी को याचिका दायर करने के बाद पता चली, इसलिए संशोधन स्वीकार किया जा सकता है। "
अदालत ने कहा—
“अगर मुकदमे के दौरान किसी पक्षकार को कुछ नए तथ्य पता चलते हैं और यह विवादित मुद्दों का सही समाधान करने के लिए जरूरी हो, तो Order VI Rule 17 C.P.C. के तहत संशोधन आवेदन स्वीकार किया जा सकता है, भले ही मुकदमे की सुनवाई शुरू हो चुकी हो।”
कोर्ट ने आगे कहा कि
" धारा 13 के तहत एक से अधिक आधार पर तलाक की याचिका दायर करने में कोई रोक नहीं है। इसलिए संशोधन के माध्यम से नया आधार जोड़ना कानून के अनुसार निषिद्ध नहीं है। अदालत ने माना कि यह संशोधन नया आधार नहीं जोड़ रहा बल्कि पहले से लिए गए क्रूरता के आधार को और स्पष्ट कर रहा है. "
इसलिए पत्नी की याचिका खारिज कर दी और फैमिली कोर्ट के संशोधन आदेश को बनाए रखा.
आभार 🙏👇
प्रस्तुति
शालिनी कौशिक
एडवोकेट
कैराना (शामली)
Nice judgement 👍
जवाब देंहटाएंThanks to comment 🙏🙏
हटाएंVery nice judgment 👍
जवाब देंहटाएंThanks to comment 🙏🙏
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