पति-पत्नी की निजता व्यक्तिगत मामलों मे सीमित अधिकार -सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट के हाल ही में दिए गए निर्णय के अनुसार अब पति-पत्नी के बीच हुई निजी फोन कॉल की रिकॉर्डिंग को भी पारिवारिक अदालतों में सबूत के तौर पर पेश किया जा सकेगा। पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने अपने फैसले में ऐसी रिकॉर्डिंग्स को निजता के अधिकार का हनन मानते हुए सबूत के तौर पर इस्तेमाल करने पर रोक लगा थी, जिसे उच्चतम न्यायालय द्वारा ख़ारिज कर दिया गया है.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा-
" कि जब पति-पत्नी के बीच ही कोई कानूनी विवाद हो, तो ऐसी कॉल रिकॉर्डिंग को निजता का उल्लंघन नहीं माना जाएगा। अदालत ने कहा कि निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार (Right to Fair Trial) के तहत, जो संविधान के अनुच्छेद 21 का हिस्सा है, किसी भी पक्ष को अपने केस को साबित करने के लिए प्रासंगिक सबूत पेश करने की अनुमति है."
महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि फैमिली कोर्ट द्वारा अपने आदेश में इन रिकॉर्डिंग्स को सबूत के तौर पर स्वीकार गया था.सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय के साथ ही फैमिली कोर्ट का वह आदेश फिर से लागू हो गया है.
➡️ मौजूदा मामला-
यह मामला एक पारिवारिक अदालत से शुरू हुआ था, जहाँ एक पक्ष ने अपने जीवनसाथी द्वारा किए गए क्रूरतापूर्ण व्यवहार को साबित करने के लिए दोनों के बीच हुई फोन पर बातचीत की रिकॉर्डिंग पेश की थी। फैमिली कोर्ट ने इसे सबूत के तौर पर स्वीकार कर लिया था। जिसे दूसरे पक्ष द्वारा पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी. हाई कोर्ट में यह दलील दी गई कि इस तरह छिपकर बातचीत रिकॉर्ड करना ‘निजता के अधिकार’ (Right to Privacy) का सीधा उल्लंघन है।
➡️ हाई कोर्ट का फैसला-
हाई कोर्ट ने इस तरह की रिकॉर्डिंग को अवैध माना और फैसला सुनाया कि ऐसी रिकॉर्डिंग अवैध है और इसे सबूत के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
➡️ सुप्रीम कोर्ट ने पलटा हाई कोर्ट का फैसला-
सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए कानून के कई महत्वपूर्ण पहलुओं पर प्रकाश डाला:
✒️ निजता का अधिकार सीमित अधिकार:-
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि निजता का अधिकार एक मौलिक अधिकार है, लेकिन यह असीमित नहीं है। कानूनी कार्यवाही के संदर्भ में इस पर उचित प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।
✒️साक्ष्य अधिनियम की धारा 122:
सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम (Indian Evidence Act), 1872 की धारा 122 का विशेष रूप से उल्लेख किया। यह धारा पति-पत्नी के बीच के संवाद को विशेषाधिकार देती है, जिसका अर्थ है कि किसी भी पति या पत्नी को यह बताने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता कि उनके जीवनसाथी ने उनसे क्या कहा। लेकिन, इस धारा में एक महत्वपूर्ण अपवाद भी है यह नियम तब लागू नहीं होता जब पति-पत्नी के बीच ही कोई मुकदमा चल रहा हो। सुप्रीम कोर्ट ने इसी अपवाद को अपने फैसले का आधार बनाया।
✒️ निष्पक्ष सुनवाई का अधिकारः
अदालत ने जोर देकर कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत हर व्यक्ति को निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार है। यदि किसी पक्ष को अपने मामले से जुड़ा महत्वपूर्ण सबूत पेश करने से रोका जाता है, तो यह उसके निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार का हनन होगा।
➡️ मील का पत्थर साबित होगा यह फैसला-
✒️ सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का असर देश भर में लाखों की संख्या में चल रहे पारिवारिक और वैवाहिक मामलों पर पड़ेगा।
✒️ अब क्रूरता, तलाक, या अन्य वैवाहिक विवादों में कॉल रिकॉर्डिंग को एक महत्वपूर्ण सबूत के तौर पर पेश करना आसान हो जाएगा।
✒️ पारिवारिक अदालतों को अब यह स्पष्ट दिशा-निर्देश मिल गया है कि ऐसे सबूतों को स्वीकार किया जा सकता है।
हालांकि, रिकॉर्डिंग की प्रामाणिकता और विश्वसनीयता अभी भी जाँच के दायरे में ही रहेगी, यह फैसला पति-पत्नी के बीच निजता के अधिकार और न्याय पाने के अधिकार के बीच एक महत्वपूर्ण संतुलन स्थापित करता है, जिससे आने वाले समय में वैवाहिक मामलों की सुनवाई की दिशा तय होगी।
Case no. - SLP(C) No. 21195/2021
Case Title - Vibhor Garg v. नेहा
आभार 🙏👇
प्रस्तुति
शालिनी कौशिक
एडवोकेट
कैराना (शामली )
बिल्कुल सही निर्णय दिया है माननीय उच्चतम न्यायालय ने, शेयर करने के लिए धन्यवाद 🙏🙏
जवाब देंहटाएंसहमत, प्रतिक्रिया हेतु आभार 🙏🙏
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