@ट्वीटर कमाल खान :अफज़ल गुरु के अपराध का दंड जानें .

@ट्वीटर कमाल खान :अफज़ल गुरु के अपराध का दंड जानें .

 

Afzal Guru

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Mohammad Afzal Guru, also as Afzal Guru, is a Jaish-e-Mohammad terrorist convicted of the December 2001 attack on the Indian Parliament and was sentenced to death by the Supreme Court of India in 2004. The sentence was scheduled to be carried out on 20 October 2006. Afzal was given a stay of execution and remains on death row.

The case

The attack was conducted jointly by the Lashkar-e-Toiba (LET) and the Jaish-e-Mohammad (JEM). Seven members of the security forces, including a female constable, were killed, as were the five still incompletely identified men who carried out the attack.
Following were the charges against Afzal Guru:[1]
  • Recovery of explosives from his place of hideout in Delhi.
  • Conspiring to commit and knowingly facilitated the commission of a terrorist act or acts preparatory to terrorist act and also voluntarily harboured and concealed the deceased terrorists knowing that such persons were terrorists and were the members of the Jaish-e-Mohammad, a banned terrorist organisation, which is involved in acts of terrorism and hence committed an offence punishable Under Section 3(3) (4) and (5) of Prevention of Terrorist Activities Act.
  • Possession of INR 10 Lakhs given to him by the terrorists who were killed by the police when they had attacked the Parliament of India.
He was arrested on December 12, 2001 along with Shaukat and later on explosives were found from their hideout in Delhi. Eighty witnesses were examined for the prosecution and ten were examined for defense. The judgment mentions:
"The incident, which resulted in heavy casualties, has shaken the entire nation and the collective conscience of the society will be satisfied if the capital punishment is awarded to the offender."[4]
On December 19, 2001 he made a confession of the offenses which was recorded and was signed by him. He also confirmed having made the confessional statement without any threat or pressure.[5]
He was convicted for the offences under Sections 121, 121A, 122, Section 120B read with Sections 302 & 307 read with Section 120B IPC, sub-Sections (2), (3) & (5) of Section 1, 3(4), 4(b)of POTA and Sections 3 & 4 of Explosive Substances Act. He was also sentenced to life imprisonment on as many as eight counts under the provisions of IPC, POTA and Explosive Substances Act in addition to varying amounts of fine.[6]
An appeal was made to the Delhi High Court but after going through the case and taking in consideration various authorities and precedents, the Court found that the conviction of Afzal Guru was safe and hence his appeal was dismissed.[1][  विकीपीडिया से साभार ]
 १३ दिसंबर २०१२ जब देश संसद पर हमले की घटना के ११वे वर्ष के मौके पर अपने वीर शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा था तब ट्विटर पर किसी कमाल खान की ट्वीट देखी- 
''कुछ दिन पहले एक वकील ने मुझे बताया था कि अफज़ल गुरु को फाँसी देना तकनीकी रूप से गलत है क्योंकि वह हमले में सीधे तौर पर शामिल नहीं था .भारतीय कानून के मुताबिक उसे सिर्फ उम्र कैद ही दी जा सकती है .''
  अब यदि उनके कथनानुसार हम उनके मामले का अवलोकन करते हैं तो उन पर लगायी गयी धाराएँ ,जो कि भारतीय दंड विधान के अंतर्गत हैं-
१-धारा १२१-भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध करना या युद्ध करने का प्रयत्न करना या युद्ध करने का दुष्प्रेरण करना .
२-धारा १२१अ -धारा १२१ द्वारा दंडनीय अपराधों को करने का षड्यंत्र
३-धारा १२२-भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध करने के आशय से आयुध आदि संग्रह करना .
४-धारा १२०-बी आपराधिक षड्यंत्र का दंड
५-धारा ३०२-हत्या के लिए दंड .
६-धारा ३०७ -हत्या करने का प्रयत्न .

   इन धाराओं में धारा १२१ की पूरी जानकारी ही कमाल खान व् उनके वकील साहब  के लिए ये जानने को पर्याप्त है कि अफज़ल गुरु को जो फाँसी की सजा भारतीय कानून के अनुसार देने की बात है वह न केवल कानूनी रूप से बल्कि उन्ही के शब्दों में ''तकनीकी रूप से''भी सही है .
    '' धारा १२१ कहती है -जो कोई भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध करेगा ,या ऐसा युद्ध करने का प्रयत्न करेगा या ऐसा युद्ध करने का दुष्प्रेरण करेगा ,वह मृत्यु या आजीवन कारावास से दण्डित किया जायेगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा .''

  इस धारा के प्रयोजन के लिए ''युद्ध से आशय सरकार के विरुद्ध विद्रोह ,विप्लव या आक्रमण से है जिसमे शीत युद्ध का भी समावेश है .मगन लाल बनाम सम्राट ए.आई आर.१९४६ ,नागपुर १२६ के वाद में ये अभिनिर्धारित किया गया कि यदि बहुत बड़ी संख्या में लोग भीड़ के रूप में एकत्रित होकर सरकार के विरुद्ध उठ खड़े हों और किसी सार्वजनिक उद्देश्य की पूर्ति के लिए हिंसा पर उतर आयें तो उनका ये कृत्य राज्य के विरुद्ध युद्ध करना कहा जायेगा .''
     इस प्रकार संसद पर हमले की कार्यवाही को भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध माना जायेगा और कमाल खान के वकील साहब के अनुसार अफज़ल गुरु सीधे तौर पर हमले में शामिल नहीं था तो उन्हें ध्यान देना होगा कि ये धारा युद्ध करने के लिए दुष्प्रेरण करने वाले को भी मृत्यु से दण्डित करने की बात कहती है और दुष्प्रेरण -
   धारा १०७ के अनुसार [१]उकसाने की क्रिया द्वारा [२]षड्यंत्र में सम्मिलित होकर[३]आशय पूर्वक सहायता करने द्वारा होता है .और -
     धारा १०८ दुष्प्रेरक के बारे में बताती हुई कहती है कि -''षड्यंत्र द्वारा दुष्प्रेरण का अपराध करने के लिए   यह आवश्यक नहीं है कि दुष्प्रेरक उस अपराध को करने वाले व्यक्ति के साथ मिलकर उस अपराध की योजना बनाये .यह पर्याप्त है कि वह उस षड्यंत्र में सम्मिलित हो जिसके अनुसरण में वह अपराध किया जाता है .''
 उपरोक्त धाराओं के अध्ययन द्वारा अफज़ल गुरु की फाँसी के बारे में कमाल खान  वकील साहब की जानकारी दुरुस्त कर सकते है .वैसे भारतीय न्यायालयों ने उन्हें फाँसी दी है तो कानूनन सही ही दी होगी .इस तरह की बातें न्यायालयों के कानूनी ज्ञान व् अमल पर ऊँगली उठाती हैं जो कि न्यायालयों की अवमानना के अंतर्गत दंडनीय भी हो सकती हैं  अफ़ज़ल गुरु की फाँसी अब केवल राष्ट्रपति जी की स्वीकृति की राह तक रही है .जिस दिन राष्ट्रपति जी के हस्ताक्षर अफज़ल गुरु की फांसी की स्वीकृति पर हो जायेंगे ये सारे  कुतर्क अफज़ल के साथ ही फाँसी चढ़ जायेंगे .
       शालिनी कौशिक
               [कानूनी ज्ञान ]


  

टिप्पणियाँ

  1. बहुत बढ़िया शालिनी जी।इस पोस्ट को अरुंधति राय को भी पढाना चाहिए।

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  2. बहुत से पाकिस्तानी परस्त लोग हैं देश में..
    अफजल गुरु का जो कृत्य है वो फांसी से कम नहीं है। उसे भी फांसी पर लटकाया ही जाना चाहिए।

    अच्छी जानकारी

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  3. माननीय न्यायालय ने उसको फांसी दी है तो कोई शक कि बात ही नहीं है ये तो वो लोग सवाल उठा रहें हैं जो पाकिस्तानपरस्त हैं !!

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  4. नहीं नहीं जल्दी नहीं, इक मौका दो और ।

    माना पाक-परस्त हैं, पर करिए ये गौर ।

    पर करिए ये गौर, पुन: हमला हो जाए ।

    करे सुरक्षा कर्म, आठ दस जन मर जाए ।
    साथ मरें दस-बीस, रीस जिनपर है भारी ।

    इन्तजार कर मित्र, कटे जब पारी पारी ।।

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  5. बहुत बढ़िया तर्क का संचालन किया गया है क़ानून समर्थित विधि से .आभार .

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  6. अरे आप किस कमाल खान की ट्वीट की बात कर रही हैं जो सिर्फ और सिर्फ गाली देना या अभद्र ,अश्लील बाते ही लिखते हैं ट्वीट पर उनको ये सब लिखने में मजा आता है ,रही आपकी बात शत प्रतिशत सही है

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  7. जितनी देर होती जाएगी,बकवास बढ़ती रहेगी। जल्दी काम तमाम हो तो विराम लगे तमाम आशंकाओँ पर।

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  8. कुछ मामलों को जल्द अज जल्द निबटाना चाहए जो किसी मुल्क की सुरक्षा और अम्नोअज्मत के साथ जुड़े हैं..

    जवाब देंहटाएं

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