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क्या पुरुषों को सम्मान से जीने का अधिकार नहीं ?

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[False dowry case? Man kills self Express news service  Posted: Feb 07, 2008 at 0321 hrs Lucknow, February 6  A 30-year-old man, Pushkar Singh, committed suicide by hanging himself from a ceiling fan at his home in Jankipuram area of Vikas Nagar, on Wednesday.In a suicide note, addressed to the Allahabad High Court, Singh alleges that he was framed in a dowry case by his wife Vinita and her relatives, due to which he had to spend time in judicial custody for four months. The Vikas Nagar police registered a case later in the day. “During the investigation, if we find it necessary to question Vinita, we will definitely record her statement,” said BP Singh, Station Officer, Vikas Nagar. Pleading innocence and holding his wife responsible for the extreme step he was taking, Singh’s note states: “I was sent to jail after a false dowry case was lodged against me by Vinita and her family, who had demanded Rs 14 lakh as a compensation. Neither my father nor I had seen ...

उपभोक्ता हित के लिए तहसील स्तर पर पीठ आवश्यक

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उपभोक्ताओं के हितों के संरक्षण के लिए संसद ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम १९८६ पारित किया है .इस अधिनियम के अंतर्गत स्थापित निकाय अर्ध न्यायिक हैं और इनमे उपचार पाने की प्रक्रिया बहुत सरल व् कम खर्चीली है .इनमे वकील करने की भी आवश्यकता नहीं है .उपभोक्ता व्यक्तिगत रूप से अपना परिवाद प्रस्तुत कर सकता है .यहाँ कोर्ट फीस भी नहीं लगती है .इस अधिनियम के कार्यान्वयन के लिए २० लाख तक के मामले जिला स्तर के उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग में ,२० लाख से ऊपर व् एक करोड़ से नीचे के मामले राज्य आयोग में व् एक करोड़ से ऊपर के मामले राष्ट्रीय आयोग में विचारित किये जाते हैं . इस सबके बावजूद एक सबसे बड़ी कमी जो इस कानून को बनाते समय संसद ने की है वह यह है कि इसमें उपभोक्ता को अपने हितों के लिए सबसे निचली कोर्ट जिला स्तर पर उपलब्ध है और जिसमे आवेदन करने पर उपभोक्ता की दैनिक जीवन चर्या और यात्रा का कष्ट और व्यय उसे इन न्यायालयों में अपनी समस्या के लिए आवेदन करने से एक हद तक रोक देता है और वह हानि सहन कर आगे की परेशानी सोच मन मारकर घर ही बैठ जाता है और यही इस कानून की सफलता में सबसे बड़ी बाधा है .संसद को जिल...

ये है नगर पालिका का अनिवार्य कर्तव्य

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उत्तर प्रदेश नगर पालिका अधिनियम -१९१६ के अधीन नगरपालिका के दो प्रकार के कर्तव्य उपबंधित किये गए हैं अर्थात अनिवार्य और वैवेकिक और नगर पालिकाओं द्वारा अपने अन्य कर्व्याओं के साथ साथ जिस एक कर्तव्य की सबसे ज्यादा अनदेखी की जाती है वह इसी अधिनियम की धारा ७ [६] में उल्लिखित है -धारा ७ [६] कहती है - ''धारा ७ के अंतर्गत यह उपबंध किया गया है कि प्रयेक नगर पालिका का यह कर्तव्य होगा कि वह नगर पालिका क्षेत्र के भीतर निम्नलिखित की समुचित व्यवस्था करे - [६] आवारा कुत्तों तथा खतरनाक पशुओं को परिरुद्ध करना ,हटाना या नष्ट करना ; और देखा जाये तो इस कर्तव्य के प्रति नगर पालिका ने अपनी आँखें मूँद रखी हैं और सभी का तो पूरी तरह से पता नहीं किन्तु कांधला नगर पालिका अपने इस कर्तव्य को पूरा करने में पूरी तरह से उपेक्षा कर रही है . अभी लगभग २ महीने पहले एक सामान्य रेस्तरा चलाने वाले ने जैसे सभी अपने सामान को थोडा बहुत बाहर की तरफ सजाकर रख लेते हैं रख लिया था कि दो सांड जो कि दिन भर यहाँ खुले घुमते हैं लड़ते लड़ते वहां आ पहुंचे और उन्हें देख वह जैसे ही अपना सामान बचाने लगा कि वह उनके पैरों के नीचे आ गय...

ये भी बलात्कार है -धारा ३७५ [४]

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शादी के नाम पर सहमत‌ि से बने शारीरिक संबंध रेप नहीं   भारतीय दंड संहिता की धारा ३७५ की ६ भांति की परिस्थितियों में से चौथी में कहा गया है कि वह पुरुष बलात्संग करता है - *जो उस स्त्री की सम्मति से ,जबकि वह पुरुष यह जानता है कि वह उस स्त्री का पति नहीं है और उस स्त्री ने सम्मति इसलिए दी है कि वह यह विश्वास करती है कि वह ऐसा पुरुष है जिससे वह विधि पूर्वक विवाहित है या विवाहित होने का विश्वास करती है ; और यहाँ अदालत ने लगभग ऐसे ही मामले में शादी के नाम पर सहमति से बने शारीरिक संबंधों को रेप नहीं माना .आखिर क्यूँ अदालत हर बार लिखी लिखाई परिभाषा में ही उलझकर रह जाती है और उसका परिणाम यह होता है कि अपराधी उसका लाभ उठाकर आसानी से छूट जाता है .सब जानते हैं कि लड़कियां भोली होती हैं और उन्हें बहकाना या बहलाना आसान होता है ऐसे में इस परिभाषा में यह भी यदि यह भी सम्मिलित माना जाये कि विवाह का झांसा देकर सहमति से बनाये गए सम्बन्ध रेप हैं तो यह कानूनी रूप से न्याय के अंतर्गत ही आएगा क्योंकि एक हद तक ये सच्चाई भी है और न्याय के लिए आवश्यक भी .वैसे भी पुरुष सत्तात्मक समाज में पुरुष के लिए व...

संविधान का पालन करें राज्यपाल

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राजभवन में बैठेंगे BJP नेता, बीएल जोशी का इस्तीफा      केंद्र की तरह राज्यों में प्रशासन का स्वरुप संसदात्मक है .कार्यपालिका का प्रधान एक संवैधानिक प्रधान होता है जिसे मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करना होता है .भारतीय संविधान के अनुच्छेद १५३ में राज्यपाल के पद का उपबंध किया गया है जिसके अनुसार प्रत्येक राज्य में एक राज्यपाल होगा .दो या दो से अधिक राज्यों के लिए एक ही राज्यपाल हो सकता है .यही नहीं अनुच्छेद १५६ में राज्यपाल की पदावधि के विषय में भी उपबंध किया गया है और जिसमे साफ तौर पर कहा गया है कि राज्यपाल राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यन्त अपना पद धारण करेगा .सामान्य  रूप से राज्यपाल का कार्यकाल ५ वर्ष होता है किन्तु राष्ट्रपति किसी भी समय राज्यपाल को उसके पद से हटा सकता है और इस मामले में राष्ट्रपति केंद्रीय मंत्रिमंडल के परामर्श के अनुसार कार्य करता है क्योंकि उसकी नियुक्ति न तो प्रत्यक्ष मतदान के माध्यम से होती है  और न विशेष रूप से राष्ट्रपति के लिए गठित निर्वाचक मंडल द्वारा ,जो अप्रत्यक्ष रूप से राष्ट्रपति का निर्वाचन करता है .यह केंद्र सरकार द्वारा नामांक...

यह संविदा असम्यक असर से उत्प्रेरित

कोई भी संविदा तभी विधिमान्य है जब उसके लिए सम्मति स्वतंत्र रूप से दी गयी हो परन्तु सम्मति स्वतंत्र कब होती है इस सम्बन्ध में प्रावधान भारतीय संविदा अधिनियम की धारा १४ में दिए गए हैं धारा के अनुसार सम्मति स्वतंत्र तब कही जाती है जब वह निम्लिखित ढंग से न प्राप्त की गयी हो - [१] प्रपीड़न [coercion ] [धारा १५ ] [२[ असम्यक असर [undue influence ][धारा १६ ] [३] कपट [fraud ][धारा १७] [४] दुर्व्यपदेशन [misrepresentation ][धारा १८] [५] भूल [mistake ][धारा १९ ] मुझसे एक ब्लॉगर महोदय ने ये सवाल पूछा है - मेरी नानी जो एक 65 साल की महिला है उसके तीन भाइयो ने ये कहके की कोर्ट का काम है आना जाना पड़ेगा हम तुमको तुम्हारे हिस्से का देते रहेंगे करके साइन ले लिए और फिर पैसा देने से मुकर गए बहुत परेशानी में  है ये लोग ...... 2 साल से ज्यादा हो गए जिला कोर्ट का चक्कर लगते तहसीलदार घुमाते रहता है ... शायद पैसे खिलाइये है इनको .. कोई तरीका बताइये मैम जिससे इनको इनका हक़ मिले   संपत्ति का अधिकार -५  पर सामग्री निकालें  |  हटाएं  |  अनचाहा atul soni इस शिक...