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यू पी में बिना अनुमति दीवारों पर पोस्टर लगाना गैरकानूनी

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      उत्तर प्रदेश में दीवारों पर बिना अनुमति के पोस्टर लगाना गैरकानूनी है. इस मामले में कार्रवाई की जा सकती है और जुर्माना भी लगाया जा सकता है.  ➡️ इस संबंध में लागू क़ानून- ✒️ दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 151 के तहत शिकायत दर्ज कराई जा सकती है. यह धारा किसी भी व्यक्ति को "सार्वजनिक शांति भंग करने" या "किसी अन्य व्यक्ति को डराने-धमकाने" के लिए दंडनीय बनाती है.  ✒️ भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 427 के तहत शिकायत दर्ज कराई जा सकती है. यह धारा "किसी भी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने" या "किसी भी संपत्ति पर कब्जा करने" के लिए दंडनीय बनाती है.  ✒️ संपत्ति बदरंग अधिनियम के तहत सार्वजनिक स्थानों या दीवारों की खूबसूरती को नष्ट करने वाले किसी भी व्यक्ति के खिलाफ सज़ा का प्रावधान है.  ✒️ अगर कोई व्यक्ति दीवार पर बिना अनुमति के पोस्टर लगाता है, तो उसके ख़िलाफ़ कार्रवाई की जा सकती है. इसके लिए, नगर निगम की टीम जुर्माना लगाती है और उस दीवार को दोबारा पेंट भी कराती है. प्रस्तुति  शालिनी कौशिक  एडवोकेट  कैराना (शामली )

मुस्लिम महिला तलाक के बाद भी CrPC की धारा 125 के तहत पति से भरण-पोषण की हकदार-पटना हाईकोर्ट

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 पटना हाईकोर्ट ने कहा है कि  "एक मुस्लिम महिला तलाक के बाद भी धारा 125 CrPC के तहत अपने पति से भरण-पोषण (maintenance) मांग सकती है, अगर तलाक के बाद इद्दत अवधि में उसके भविष्य के लिए पति ने “उचित और न्यायसंगत प्रावधान” नहीं किया। " जस्टिस जितेंद्र कुमार ने फैमिली कोर्ट के आदेश को सही ठहराया, जिसमें एक मुस्लिम पुरुष को अपनी पत्नी को महीने ₹7,000 देने का निर्देश दिया गया था। पति ने दलील दी थी कि  "उनकी शादी आपसी सहमति (mubarat) से खत्म हो गई थी, " लेकिन कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया। ➡️ मामला संक्षेप में- पत्नी ने आरोप लगाया कि  " शादी के तुरंत बाद पति की क्रूरता के कारण उसे अपने माता-पिता के घर लौटना पड़ा। उसने कोई आय न होने का हवाला देते हुए ₹15,000 प्रति माह की मांग की। उसने बताया कि उसका पति विदेश में काम करता है और लगभग ₹1 लाख प्रति माह कमाता है। " पति ने क्रूरता के आरोप को खारिज किया और कहा कि " शादी 2013 में मुबारत (आपसी तलाक) से खत्म हो गई थी। उसने दावा किया कि उसने पहले ही ₹1,00,000 की राशि एलिमनी, दीन मोहर और इद्दत खर्च के रूप में दे दी है।" ...

एडवोकेट रजिस्ट्रेशन कराना है बार कौंसिल ऑफ़ उत्तर प्रदेश में

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   बार कौंसिल ऑफ़ उत्तर प्रदेश द्वारा आजकल बहुत बड़ी संख्या में एडवोकेट रजिस्ट्रेशन इंटरव्यू लिए जा रहे हैँ. पिछले साल सुप्रीम कोर्ट द्वारा एडवोकेट रजिस्ट्रेशन की फीस घटाए जाने के बाद से तेजी से एडवोकेट रजिस्ट्रेशन का कार्य बढ़ा है क्योंकि न्यायालयों मे वही लॉयर प्रेक्टिस कर सकते हैं जो संबंधित राज्य की बार कौंसिल मे एडवोकेट के रूप में रजिस्टर्ड हों. तो आज हम आपको बताने जा रहे हैँ, बार कौंसिल ऑफ़ उत्तर प्रदेश में एडवोकेट रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया- ✒️ सबसे पहले आप बार कौंसिल ऑफ़ उत्तर प्रदेश की आधिकारिक वेबसाइट upbarcouncil.com पर जाइये, जिसे आप गूगल के एड्रेस बार में search कर सकते हैँ- ✒️ जब आप गूगल के एड्रेस बार में बार कौंसिल ऑफ़ उत्तर प्रदेश की आधिकारिक वेबसाइट को खोल लेते हैँ तो उसमें लेफ्ट साइड मे शीर्ष पर लाल रंग मे PRINT REGISTRATION FORM लिखा हुआ दिखेगा, आप उससे फॉर्म प्रिंट कीजिए और फॉर्म भर लीजिए, अगर फॉर्म भरने में कोई दिक्कत आती हैँ तो कमेंट सेक्शन में सूचित करें, हम आपकी समस्या का समाधान अवश्य करेंगे. अब देखिए आपको फॉर्म के साथ क्या क्या संलग्न करना है- 1️⃣ Provisional...

2020 में COP नम्बर प्राप्त सभी अधिवक्ताओं की सूचनार्थ

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  बार कॉन्सिल ऑफ़ उत्तर प्रदेश द्वारा 2020 में जिन अधिवक्ताओं को COP नंबर जारी किये गए हैं , वे सभी अधिवक्ता COP re-issue form जल्द से जल्द सभी वांछित डाक्यूमेंट्स के साथ बार कॉन्सिल ऑफ़ उत्तर प्रदेश के आधिकारिक पते पर या माननीय चेयरमेन सर के पते पर भेज दें, ताकि वे समय से COP re-issue प्रक्रिया में सम्मिलित हो सकें और उन्हें विलम्ब शुल्क का भुगतान न करना पड़े. आपके COP कार्ड की एक्सपायरी date I-d कार्ड के पीछे लिखी है, आप वहां देखिये और निम्न फॉर्म के साथ निम्नलिखित डाक्यूमेंट्स संलग्न कर उपरोक्त पते पर भेज दीजिये 🙏🙏 🌑 *5 वकालत नामों की कॉपी *आधार कार्ड की कॉपी *250 रुपये का ड्राफ़्ट - BCUP CERTIFICATE AND PRACTICE VARIFICATION के नाम *हाई स्कूल से लेकर ENROLLMENT, COP की कॉपी तक के documents की कॉपी self attested  * तीन फोटो कोट एन्ड टाई में -2 फोटो फॉर्म पर चिपकाने हैँ - एक envelope में attach करना है फॉर्म पर.  * सभी signature full name के साथ, initial नहीं 🌑 वकालत नामों की फोटो कॉपी लगेंगी और 2021,2022,2023,2024,2025 की एक एक कॉपी लगेगी. द्वारा  शालिनी कौशिक ...

वक्फ संशोधन--पूरे क़ानून पर रोक लगाने से इंकार-सुप्रीम कोर्ट

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सुप्रीम कोर्ट ने 14 सितंबर 2025 को वक्फ संशोधन याचिका की सुनवाई करते हुए कहा कि  "किसी भी कानून को असंवैधानिक मानना बहुत दुर्लभ मामलों में ही किया जाता है। "  मौजूदा याचिका में पूरे वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 को चुनौती दी गई थी, लेकिन असली विवाद कुछ खास धाराओं पर था। याचिका की सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने पूरे कानून पर रोक लगाने से इनकार किया है, लेकिन कुछ धाराओं पर रोक लगाई है जो निम्न हैं- 🌑 धारा 3(r): पाँच साल तक "इस्लाम का पालन" करने की शर्त नियम बने बिना मनमाना इस्तेमाल हो सकती है, इसलिए रोकी गई. 🌑 धारा 2(c) का प्रावधान : वक्फ संपत्ति को वक्फ संपत्ति न मानने वाला प्रावधान रोका गया। 🌑 धारा 3C: कलेक्टर को वक्फ संपत्ति के अधिकार तय करने का अधिकार देना गलत है। जब तक अदालत फैसला नहीं करती, संपत्ति के अधिकार प्रभावित नहीं होंगे और वक्फ को बेदखल नहीं किया जाएगा। 🌑 ग़ैर-मुस्लिम सदस्य : वक्फ बोर्ड में ग़ैर-मुस्लिम सदस्य 4 से ज़्यादा और राज्य स्तर पर 3 से ज़्यादा नहीं होंगे।  🌑 धारा 23: पदेन अधिकारी (Ex-officio) मुस्लिम समुदाय से ही होना चाहिए। आभार 🙏👇 प्रस्तु...

व्हाट्सएप या ई-मेल से नोटिस भेजना वैध नहीं--सुप्रीम कोर्ट

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सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया था कि वे पुलिस को सीआरपीसी की धारा 41ए या बीएनएसएस की धारा 35 के तहत नोटिस भेजने के लिए केवल वहीं तरीके अपनाने का निर्देश दें, जिनकी कानून के तहत अनुमति हो। व्हाट्सएप या अन्य इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से नोटिस भेजना सीआरपीसी और बीएनएसएस के तहत तय की गई विधियों का विकल्प नहीं हो सकता। सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालयों के रजिस्ट्रार जनरल और सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को तीन हफ्ते के भीतर अनुपालन सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था।  🌑 अब एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि  " दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) या भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) के तहत व्हाट्सएप और ईमेल से नोटिस भेजना वैध नहीं है। " सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा राज्य की ओर से अपने जनवरी 2025 के आदेश में संशोधन की मांग वाली याचिका खारिज कर दी। 🌑 जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस नोंग्मीकापम कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि  " हम खुद यह विश्वास दिलाने में असमर्थ हैं कि ई-मेल और व्हाट्सएप जैसे इलेक्ट्रॉनिक संचार ...

आरोपी की नीयत वैवाहिक संबंधों के संबंध में महत्वपूर्ण- सुप्रीम कोर्ट

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सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि   "शादी का वादा करने के बाद आपसी सहमति से बने यौन संबंध, और शुरुआत से ही बुरी नीयत से झूठा वादा करके बनाए गए यौन संबंध — दोनों में फर्क है।" कोर्ट ने कहा,  "बलात्कार और सहमति से बने यौन संबंधों में स्पष्ट अंतर है। जब मामला शादी के वादे का हो, तो अदालत को यह बहुत सावधानी से देखना होगा कि आरोपी सच में पीड़िता से शादी करना चाहता था या फिर उसकी नीयत शुरू से ही गलत थी और उसने केवल अपनी वासना की पूर्ति के लिए झूठा वादा किया था। बाद वाली स्थिति धोखाधड़ी या छल के दायरे में आती है।" जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने विवाह के झूठे बहाने पर बलात्कार के मामले में मजिस्ट्रेट द्वारा आरोपी को भेजे गए समन को रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा कि-  "इस बात का कोई सबूत नहीं है कि आरोपी की नीयत शुरू से ही गलत थी। शिकायत में यह सामने आया था कि दोनों का रिश्ता कई वर्षों (2010–2014) तक चला, पीड़िता के परिवार से भी मुलाकात हुई और शादी को लेकर पुलिस की मौजूदगी में आश्वासन भी दिए गए।"  कोर्ट ने फिर कहा कि  "ये परिस्थितियाँ य...