संदेश

सोशल मीडिया और अश्लील तस्वीरें -अपराध

चित्र
 गुजरात हाईकोर्ट द्वारा अभी हाल ही में उस पति पर ₹25,000 का जुर्माना लगाया गया, जिसने अपनी पत्नी की 'अश्लील' तस्वीरें और उनके साथ भद्दी टिप्पणियां व्हाट्सएप और इंस्टाग्राम पर अपलोड की थीं और उन्हें वायरल भी किया था।  इसके साथ ही जस्टिस हसमुख डी. सुथार की पीठ ने यह आदेश पारित करते हुए पति के खिलाफ दर्ज एफ आई आर और उसके बाद शुरू की गई सभी कार्यवाही यह देखते हुए रद्द कर दी गयी कि मामला दोनों पक्षों के बीच सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझा लिया गया है. आदेश पारित करते हुए जस्टिस हसमुख डी. सुथार ने कहा,  "...यद्यपि दोनों पक्षों के बीच विवाद सुलझ गया, लेकिन याचिकाकर्ता के आचरण को देखते हुए पति ने अपनी पत्नी की अश्लील तस्वीरें मांगी हैं। इतना ही नहीं, उसने इन तस्वीरों को सोशल मीडिया पर भी वायरल कर दिया, याचिकाकर्ता पर ₹25,000 का जुर्माना लगाया जाता है।"         इसके साथ ही जज ने जुर्माने की राशि एक सप्ताह के भीतर राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण में जमा किये जाने के निर्देश दिए।  प्रस्तुत मामले में पति पर सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66(ई) और 67 के साथ भारत...

दो वोटर आई डी कार्ड -कैसे हैँ अपराध?

चित्र
Shalini kaushik law classes  आज तेजस्वी यादव चर्चाओं मे बने हुए हैँ, इस बार चर्चाओं में रहने का कारण कोई राजनीतिक बयानबाजी नहीं है बल्कि एक ऐसा कार्य है जिसे देश की निष्पक्ष लोकतान्त्रिक प्रक्रिया को धक्का पहुंचाने के कारण गंभीर अपराध की श्रेणी मे रखा गया है. बिहार में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैँ और इधर बिहार की मुख्य विपक्षी पार्टी में से एक राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव के पास 2 वोटर आईडी कार्ड होने के मामले ने वहां की राजनीति को गर्मा दिया है। चुनाव आयोग ने इस मामले की जांच बैठाने का फैसला किया है.  ➡️  वोटर आई डी कार्ड का महत्व- वोटर आईडी कार्ड सिर्फ एक पहचान पत्र नहीं बल्कि एक अहम अधिकार है। चुनाव में वोट डालने के लिए इस दस्तावेज का आपके पास होना बहुत जरूरी है। वोटर आईडी कार्ड निर्वाचन आयोग द्वारा जारी किया जाता है। ➡️ एक मतदाता के दो वोटर आई डी कार्ड होना-   अगर एक मतदाता जानबूझकर या अनजाने में दो वोटर आईडी कार्ड अपने पास रखता है तो यह गंभीर अपराध है. यह निष्पक्ष लोकतांत्रिक प्रक्रिया को लेकर कई सवाल खड़े करता है। अगर कोई मतदाता जानबूझकर दो वोटर आईड...

कार में बैठकर वर्चुअल सुनवाई में पेश वकील पर ₹10,000 का जुर्माना -मध्य प्रदेश हाईकोर्ट )

चित्र
  मध्यप्रदेश हाईकोर्ट द्वारा एक वकील पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से चल रही अदालत की कार्यवाही में कार में बैठे-बैठे शामिल होने पर ₹10,000 का जुर्माना लगाया गया है. वकील के इस व्यवहार को न्यायिक गरिमा के खिलाफ बताते हुए अदालत ने इसे कोर्ट के प्रति अनादर बताया।  न्यायमूर्ति अतुल श्रीधरन और न्यायमूर्ति अनुराधा शुक्ला की खंडपीठ ने यह आदेश पारित करते हुए कहा कि " वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की सुविधा उन वकीलों के लिए दी गई है जो किसी वैध कारण से अदालत में शारीरिक रूप से उपस्थित नहीं हो सकते। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि पेशी की औपचारिकता को इस हद तक हल्का कर दिया जाए कि कोर्ट की गरिमा ही प्रभावित हो।" न्यायालय ने अपने आदेश में साफ तौर पर स्पष्ट किया कि " कार से पेश होना न केवल असंगत है बल्कि इससे यह प्रतीत होता है कि संबंधित वकील ने न्यायालय के प्रति उचित सम्मान नहीं दिखाया."       अद्यतन निर्णयों की जानकारी के लिए जुड़े रहिये कानूनी ज्ञान ब्लॉग से http://shalinikaushikadvocate.blogspot.com पर क्लिक कर  धन्यवाद 🙏🙏 आभार 🙏👇 प्रस्तुति  शालिनी कौशिक  एड...

कँगना को राहत नहीं -पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट

चित्र
  (कँगना को राहत नहीं-हाईकोर्ट) (Shalini kaushik law classes) पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा एक्ट्रेस और भारतीय जनता पार्टी (BJP) सांसद कंगना रनौत द्वारा 2021 के किसान आंदोलन पर की गई टिप्पणियों को लेकर दायर मानहानि के मामले में दायर समन आदेश रद्द करने से इनकार कर दिया गया। कँगना रणौत ने ट्विटर पर पोस्ट किया था कि एक बुजुर्ग महिला प्रदर्शनकारी महिंदर कौर को आंदोलन में भाग लेने के लिए पैसे दिए गए थे। जस्टिस त्रिभुवन दहिया ने कहा,  " कानून के प्रासंगिक प्रावधानों के आलोक में प्रारंभिक साक्ष्यों की जांच करके मामले के तथ्यों पर उचित विचार करने के बाद यह आदेश पारित किया गया। याचिकाकर्ता का यह तर्क मान्य नहीं है कि रीट्वीट उसने नहीं किया। " न्यायालय ने जोर देते हुए कहा कि  "ट्विटर कम्युनिकेशंस इंडिया प्राइवेट लिमिटेड (TCIPL) द्वारा यह रिपोर्ट प्राप्त न होना कि क्या कथित रीट्वीट याचिकाकर्ता द्वारा किया गया, CrPC की धारा 202 के तहत मजिस्ट्रेट के अधिकार क्षेत्र को छीनने का आधार नहीं हो सकता।"  न्यायालय ने माना कि  "रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की जा सकी, क्योंकि कंपनी www.t...

आपकी रील गैरकानूनी है

चित्र
 रील बनाना एक फैशन बन गया है आजकल. रील्स बनाने के नशे में आज युवा वर्ग तो इस कदर मदहोश है कि उसे यह भी नहीं दिखाई दे रहा है कि वह रील्स में कुछ गैरकानूनी काम भी धड़ल्ले से कर रहा है जिनके करने पर उसे जेल भी काटनी पड़ सकती है. तो चलिए आज वह क़ानून भी जान लीजिए जो गैरकानूनी रील बनाने वालों पर क़ानून के शिकंजे को कसता है. आज सोशल मीडिया में रील बनाकर नोट कमाने का प्रचलन जोरों पर है. नोट कमाने के लिए अधिक से अधिक व्यू बटोरने होते हैं और ये देखने में आया है कि सीधी साफ, सभ्य रील्स पर उतने व्यू नहीं होते जितने व्यू उलटी सीधी, अनाप शनाप हरकत वाली रील्स पर होते हैँ. इंस्टाग्राम, फेसबुक, यूट्यूब, ट्विटर, स्नैपचैट, व्हाट्सएप्प, टेलीग्राम जैसी सोशल नेटवर्किंग प्लेटफार्म पर रील्स के माध्यम से गाली-गलौज करते हुए या आपत्तिजनक तरीक़े से रील्स डालना वीडियो पोस्ट करना क्रिएटर्स के लिए केवल एक "ट्रेंड" या "फन कंटेंट" हो सकता है किन्तु यदि हम इसे क़ानून की दृष्टि से देखते हैँ तो यह कानूनन एक दंडनीय अपराध है। ➡️ आईटी एक्ट और बी एन एस में ये रील्स हैँ अपराध - वे रील्स जो समाज में अश्लीलता फै...

High Court has important power in marriage related disputes - Supreme Court

चित्र
     (  High Court has important power in marriage related disputes - Supreme Court )      विवाह संबंधी झगड़ों में दायर खासतौर पर उन विवाह संबंधी झगड़ों में दायर की गई एफ आई आर के संबंध में जिनमें अक्सर भारतीय दंड संहिता की धारा 498A, 323, 504, और 506 लगाई जाती हैं उन एफ आई आर रद्द करने के संबंध में महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अपूर्वा अरोरा बनाम उत्तर प्रदेश   राज्य मामले में स्पष्ट किया कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत हाईकोर्ट के पास वह शक्ति है कि वह ऐसी आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर सके जो केवल बदले की भावना या प्रताड़ना के उद्देश्य से की गई हो।       सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि- " अगर कोई एफ आई आर कानून का दुरुपयोग करते हुए दर्ज की गई हो, और उसका उद्देश्य न्याय नहीं बल्कि प्रतिशोध हो, तो हाईकोर्ट को आगे बढ़कर ऐसे मामलों को समाप्त कर देना चाहिए।" ➡️ धारा 482 दंड प्रक्रिया संहिता की शक्ति-       सुप्रीम कोर्ट के अनुसार दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत हाईकोर्ट को " अंतर्न...

रजिस्टर्ड वसीयत प्रमाणिक: सुप्रीम कोर्ट

चित्र
 सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (21 जुलाई) को दोहराया कि रजिस्टर्ड 'वसीयत' के उचित निष्पादन और प्रामाणिकता की धारणा होती है और सबूत का भार वसीयत को चुनौती देने वाले पक्ष पर होता है। ऐसा मानते हुए जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट का फैसला रद्द कर दिया, जिसमें विवादित भूमि में अपीलकर्ता/लासुम बाई का हिस्सा कम कर दिया गया था और रजिस्टर्ड वसीयत और मौखिक पारिवारिक समझौते के आधार पर उनका पूर्ण स्वामित्व बरकरार रखा। न्यायालय ने माना कि हाईकोर्ट ने अपने तर्क में गलती की और इस बात पर ज़ोर दिया कि रजिस्टर्ड वसीयत की प्रामाणिकता की प्रबल धारणा होती है। यह धारणा वर्तमान मामले में और भी पुष्ट हुई, क्योंकि प्रतिवादी ने यह स्वीकार किया था कि वसीयत पर उसके पिता के हस्ताक्षर थे, इसलिए उसने इसकी प्रामाणिकता पर कोई विवाद नहीं किया, खासकर तब जब वसीयत से न केवल अपीलकर्ता को बल्कि स्वयं प्रतिवादी और उसकी बहन को भी लाभ हुआ हो। Case Title: METPALLI LASUM BAI (SINCE DEAD) AND OTHERS VERSUS METAPALLI MUTHAIH(D) BY LRS. (https://hindi.livelaw.in/supreme-court/registered...