संवैधानिक मर्यादाओं का पालन करें कैग
संवैधानिक मर्यादाओं का पालन करें कैग
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आज उथल-पुथल का दौर है ,जो जहाँ है वह वहीँ से इस कार्य में संलग्न है सरकार ने महंगाई से ,भ्रष्टाचार से देश व् देशवासियों के जीवन में उथल-पुथल मचा दी है ,तो विपक्ष ने कभी कटाक्षों के तीर चलाकर ,कभी राहों में कांटे बिछाकर सरकार की नींद हराम कर दी है कभी जनता लोकपाल मुद्दे पर तो कभी दामिनी मुद्दे पर हमारे लोकतंत्र को आईना दिखा रही है तो कभी मीडिया बाल की खाल निकालकर तो कभी गड़े मुर्दे उखाड़कर हमारे नेताओं की असलियत सामने ला रही है.इसी क्रम में अब आगे आये हैं कैग ''अर्थात नियंत्रक -महालेखा -परीक्षक श्री विनोद राय ,इनके कार्य पर कुछ भी कहने से पहले जानते हैं संविधान में कैग की स्थिति .
कैग अर्थात नियंत्रक-महालेखा-परीक्षक की नियुक्ति संविधान के अनुच्छेद १४८ के अंतर्गत भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है .अनुच्छेद 149 में नियंत्रक-महालेखा-परीक्षक के कर्तव्य व् शक्तियां बताएं गए हैं
-अनुच्छेद १४९-नियंत्रक महालेखा परीक्षक उन कर्तव्यों का पालन और ऐसी शक्तियों का प्रयोग करेगा जो संसद निर्मित विधि के द्वारा या उसके अधीन विहित किये जाएँ .जब तक संसद ऐसी कोई विधि पारित नहीं कर देती है तब तक वह ऐसे कर्तव्यों का पालन और ऐसी शक्तियों का प्रयोग करेगा जो संविधान लागू होने के पूर्व भारत के महालेखा परीक्षक को प्राप्त थे .
इस प्रकार उसके दो प्रमुख कर्तव्य हैं -प्रथम ,एकाउंटेंट के रूप में वह भारत की संचित निधि में से निकली जाने वाली सभी रकमों पर नियंत्रण रखता है ;और दूसरे,ऑडिटर के रूप में वह संघ और राज्यों के सभी खर्चों की लेख परीक्षा करता है .वह संघ और राज्य के लेखों को ऐसे प्रारूप में रखेगा जो राष्ट्रपति भारत के नियंत्रक-महालेखा-परीक्षक की राय के पश्चात् विहित करे .
इस प्रकार संविधान के अनुच्छेद १४९ के अनुसार कैग का कार्य एक तरह से भारत की संचित निधि के नियंत्रण व् सरकार के एकाउंटेंट का ही है ,ऐसे पद पर रहते हुए श्री विनोद राय कहते हैं -कि कैग महज लेखाकार के रूप में संसद में रिपोर्ट पेश करने तक अपनी भूमिका सीमित नहीं रख सकता ,उसने इस भरोसे से अपने लिए एक नया रास्ता अख्तियार किया हैकि अंततः वह जनता के प्रति जवाबदेह है .उसे जनता को जागरूक करने व् खासकर प्राथमिक शिक्षा ,पेयजल ,ग्रामीण स्वास्थ्य ,प्रदूषण ,पर्यावरण जैसे सामाजिक मुद्दों पर उसकी प्रतिक्रिया जानने का हक़ है .
जनता के प्रति कैग विनोद राय जी की ये संवेदनशीलता सराहनीय व् आश्चर्यजनक है क्योंकि आमतौर पर ऐसे पदों पर बैठे अधिकारीगण जनता के साथ जिस तरह का व्यवहार करते हैं उसका वर्णन शब्दों में तो हो नहीं सकता .किन्तु यहाँ श्री विनोद राय जी से ये अपेक्षा नहीं की जाती कि वे जनता के प्रति इस तरह से अपनी जवाबदेही बनायें .यहाँ वे सरकारी सेवक है और अपने कर्तव्य के प्रति ईमानदारी ही उनकी कर्तव्यनिष्ठा को जाहिर करती है और करेगी भी .संवैधानिक पदों पर आसीन विभूतियों की कुछ मर्यादाएं होती है और इस पर कार्य कर रहे अधिकारी को हमारे संविधान ने वे अधिकार और कर्तव्य नहीं दिए जिनका प्रयोग व् पालन वे कर रहे हैं .वे सरकार के द्वारा किये जाने वाले खर्चे जो भारत की संचित निधि पर भारित हैं ,पर नियंत्रण रख सकते हैं और इस तरह जनता के पैसे का सदुपयोग कर सकते हैं इसके साथ ही वे उन खर्चों से सम्बंधित रिपोर्ट संसद में प्रस्तुत कर सरकार की मनमानी पर रोक लगा सकते हैं क्योंकि वहां जनता के लिए उपयोगी व् अनुपयोगी व्यय पर बहस के लिए सम्पूर्ण विपक्ष मौजूद है .वहां सरकार की जवाबदेही हमारे संविधान ने ही निश्चित की है और विपक्ष के कार्य को कैग द्वारा अपने हाथ में लेना विपक्ष के कार्य में अनाधिकार हस्तक्षेप ही कहा जायेगा .
साथ ही ,इस सम्बन्ध में उनका ये कदम इसलिए भी अधिक निंदनीय हो गया है क्योंकि उन्होंने इस अभिव्यक्ति के लिए विदेशी भूमि अमेरिका और विदेशी मंच हार्वर्ड कैनेडी स्कूल को चुना.इस कारण वे ''घर के भेदी''की भूमिका में आ जाते हैं जिन्होंने किया तो सब कुछ अपने देश व् देशवासियों के हित के लिए था किन्तु जिनके कारण उनके देश व् देशवासियों को हार का मुहं देखना पड़ा .हमारे अंदरूनी हालातों का विदेश में जाकर एक संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति का ये कदम मर्यादा का उल्लंघन है और उनकी संविधान के प्रति निष्ठा की जो शपथ उन्होंने नियुक्ति के समय ली उसके प्रति संदेह की स्थिति उत्पन्न करता है .यदि उन्हें वास्तव में जनता के प्रति जवाबदेह होना है तो अरविन्द केजरीवाल की तरह अपने को ऐसी मर्यादाओं की रस्सी से [उनके इस कदम के कारण ये उनका इन मर्यादाओं के प्रति यही भाव प्रतीत होता है ]जिनमे उनकी आत्मा बंधा हुआ महसूस करती है उससे उन्हें खुद को मुक्त कर लेना चाहिए और अरविन्द केजरीवाल के पद चिन्हों पर चलते हुए सरकार के उद्योगपतियों से ही नहीं ,माफियाओं से ,विपक्षी नेताओं से जिन जिन का भी खुलासा कर सकें ,दिलखोल कर करना चाहिए.
शालिनी कौशिक
[कानूनी ज्ञान ]
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आज उथल-पुथल का दौर है ,जो जहाँ है वह वहीँ से इस कार्य में संलग्न है सरकार ने महंगाई से ,भ्रष्टाचार से देश व् देशवासियों के जीवन में उथल-पुथल मचा दी है ,तो विपक्ष ने कभी कटाक्षों के तीर चलाकर ,कभी राहों में कांटे बिछाकर सरकार की नींद हराम कर दी है कभी जनता लोकपाल मुद्दे पर तो कभी दामिनी मुद्दे पर हमारे लोकतंत्र को आईना दिखा रही है तो कभी मीडिया बाल की खाल निकालकर तो कभी गड़े मुर्दे उखाड़कर हमारे नेताओं की असलियत सामने ला रही है.इसी क्रम में अब आगे आये हैं कैग ''अर्थात नियंत्रक -महालेखा -परीक्षक श्री विनोद राय ,इनके कार्य पर कुछ भी कहने से पहले जानते हैं संविधान में कैग की स्थिति .
कैग अर्थात नियंत्रक-महालेखा-परीक्षक की नियुक्ति संविधान के अनुच्छेद १४८ के अंतर्गत भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है .अनुच्छेद 149 में नियंत्रक-महालेखा-परीक्षक के कर्तव्य व् शक्तियां बताएं गए हैं
-अनुच्छेद १४९-नियंत्रक महालेखा परीक्षक उन कर्तव्यों का पालन और ऐसी शक्तियों का प्रयोग करेगा जो संसद निर्मित विधि के द्वारा या उसके अधीन विहित किये जाएँ .जब तक संसद ऐसी कोई विधि पारित नहीं कर देती है तब तक वह ऐसे कर्तव्यों का पालन और ऐसी शक्तियों का प्रयोग करेगा जो संविधान लागू होने के पूर्व भारत के महालेखा परीक्षक को प्राप्त थे .
इस प्रकार उसके दो प्रमुख कर्तव्य हैं -प्रथम ,एकाउंटेंट के रूप में वह भारत की संचित निधि में से निकली जाने वाली सभी रकमों पर नियंत्रण रखता है ;और दूसरे,ऑडिटर के रूप में वह संघ और राज्यों के सभी खर्चों की लेख परीक्षा करता है .वह संघ और राज्य के लेखों को ऐसे प्रारूप में रखेगा जो राष्ट्रपति भारत के नियंत्रक-महालेखा-परीक्षक की राय के पश्चात् विहित करे .
इस प्रकार संविधान के अनुच्छेद १४९ के अनुसार कैग का कार्य एक तरह से भारत की संचित निधि के नियंत्रण व् सरकार के एकाउंटेंट का ही है ,ऐसे पद पर रहते हुए श्री विनोद राय कहते हैं -कि कैग महज लेखाकार के रूप में संसद में रिपोर्ट पेश करने तक अपनी भूमिका सीमित नहीं रख सकता ,उसने इस भरोसे से अपने लिए एक नया रास्ता अख्तियार किया हैकि अंततः वह जनता के प्रति जवाबदेह है .उसे जनता को जागरूक करने व् खासकर प्राथमिक शिक्षा ,पेयजल ,ग्रामीण स्वास्थ्य ,प्रदूषण ,पर्यावरण जैसे सामाजिक मुद्दों पर उसकी प्रतिक्रिया जानने का हक़ है .
जनता के प्रति कैग विनोद राय जी की ये संवेदनशीलता सराहनीय व् आश्चर्यजनक है क्योंकि आमतौर पर ऐसे पदों पर बैठे अधिकारीगण जनता के साथ जिस तरह का व्यवहार करते हैं उसका वर्णन शब्दों में तो हो नहीं सकता .किन्तु यहाँ श्री विनोद राय जी से ये अपेक्षा नहीं की जाती कि वे जनता के प्रति इस तरह से अपनी जवाबदेही बनायें .यहाँ वे सरकारी सेवक है और अपने कर्तव्य के प्रति ईमानदारी ही उनकी कर्तव्यनिष्ठा को जाहिर करती है और करेगी भी .संवैधानिक पदों पर आसीन विभूतियों की कुछ मर्यादाएं होती है और इस पर कार्य कर रहे अधिकारी को हमारे संविधान ने वे अधिकार और कर्तव्य नहीं दिए जिनका प्रयोग व् पालन वे कर रहे हैं .वे सरकार के द्वारा किये जाने वाले खर्चे जो भारत की संचित निधि पर भारित हैं ,पर नियंत्रण रख सकते हैं और इस तरह जनता के पैसे का सदुपयोग कर सकते हैं इसके साथ ही वे उन खर्चों से सम्बंधित रिपोर्ट संसद में प्रस्तुत कर सरकार की मनमानी पर रोक लगा सकते हैं क्योंकि वहां जनता के लिए उपयोगी व् अनुपयोगी व्यय पर बहस के लिए सम्पूर्ण विपक्ष मौजूद है .वहां सरकार की जवाबदेही हमारे संविधान ने ही निश्चित की है और विपक्ष के कार्य को कैग द्वारा अपने हाथ में लेना विपक्ष के कार्य में अनाधिकार हस्तक्षेप ही कहा जायेगा .
साथ ही ,इस सम्बन्ध में उनका ये कदम इसलिए भी अधिक निंदनीय हो गया है क्योंकि उन्होंने इस अभिव्यक्ति के लिए विदेशी भूमि अमेरिका और विदेशी मंच हार्वर्ड कैनेडी स्कूल को चुना.इस कारण वे ''घर के भेदी''की भूमिका में आ जाते हैं जिन्होंने किया तो सब कुछ अपने देश व् देशवासियों के हित के लिए था किन्तु जिनके कारण उनके देश व् देशवासियों को हार का मुहं देखना पड़ा .हमारे अंदरूनी हालातों का विदेश में जाकर एक संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति का ये कदम मर्यादा का उल्लंघन है और उनकी संविधान के प्रति निष्ठा की जो शपथ उन्होंने नियुक्ति के समय ली उसके प्रति संदेह की स्थिति उत्पन्न करता है .यदि उन्हें वास्तव में जनता के प्रति जवाबदेह होना है तो अरविन्द केजरीवाल की तरह अपने को ऐसी मर्यादाओं की रस्सी से [उनके इस कदम के कारण ये उनका इन मर्यादाओं के प्रति यही भाव प्रतीत होता है ]जिनमे उनकी आत्मा बंधा हुआ महसूस करती है उससे उन्हें खुद को मुक्त कर लेना चाहिए और अरविन्द केजरीवाल के पद चिन्हों पर चलते हुए सरकार के उद्योगपतियों से ही नहीं ,माफियाओं से ,विपक्षी नेताओं से जिन जिन का भी खुलासा कर सकें ,दिलखोल कर करना चाहिए.
शालिनी कौशिक
[कानूनी ज्ञान ]
अच्छी जानकारी, आभार
जवाब देंहटाएंVicharniy Baat....
जवाब देंहटाएंशालिनी जी मेरी टिपण्णी यहाँ दिखाई नहीं दी जबकि मेरे से बाद वाली टिपण्णी यहाँ पर है इसका अर्थ यह हुआ कि आपने मेरी टिपण्णी को स्वीकृति नहीं दी !
जवाब देंहटाएंBahur achhi Jankari ... Abhar
जवाब देंहटाएंmeri nayi Rachna ...
http://ehsaasmere.blogspot.in/2013/02/blog-post_11.html
क्या किसी को टी एन शेषण से पहले के चुनाव आयुक्त नामक चिड़िया का नाम भी सुना था , क्या राष्ट्रपति कलाम जितना लोकप्रिय और सक्रिय राष्ट्रपति किसी ने देखा था , क्या उसके पहले के लोग सविधान के अंतर्गत थे और ये नहीं , नहीं उन्होंने बस अपने अपनी शक्तियों का सही प्रयोग किया था , इनके ऊपर भी अति सक्रियता और अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाने आदि आदि के आरोप लगे थे , वैसे ही कैग में अब विनोद राय कैग को मिले अधिकारों का सही प्रयोग कर रहे है जो उनके पूर्व के लोगो ने ठीक से नहीं किया था चुकी नेताओ को इसकी आदत नहीं है इसलिए उन्हें ये बुरा और गलत लग रहा है , वो एक सही मिसाल कायम कर रहे है , उम्मीद है आगे आने वाले भी उनकी तरह सही काम करेंगे सरकार किसी भी पार्टी की हो ।
सभी संस्थाओं को अपनी हद में रहना चाहिए-
जवाब देंहटाएंसंसद से सड़क तक -
आभार आदरेया ||
विनोद राय जी अगर अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी निभाते हुए सरकार या सरकार में सम्मिलित किसी व्यक्ति द्वारा राज कोष में संचित धन का दुरूपयोग होता देख पायें ,तो उनका कताब्य है कि वह इसे रिपोर्ट में दर्ज करे और जनता के प्रतिनिधियों के संज्ञान में लायें.
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