मोहपाश को छोड़ सही रास्ता दिखाएँ .
मोहपाश को छोड़ सही रास्ता दिखाएँ .
जुबैर अहमद अपने ब्लॉग ''बी.बी.सी ''में लिखते हैं कि राजेश खन्ना जी को शायद तनहाइयाँ मर गयी .तन्हाई शायद यही तन्हाई उनकी जिंदगी में अनीता आडवानी के साथ लिव -इन- रिलेशन के रूप में गुज़र रही थी न केवल फिल्मो में बल्कि आज सभी जगह देश हो या विदेश शहर हो या गाँव अपनों के साथ छोड़ने पर बड़ी उम्र के लोग तनहाइयों में जीवन गुज़ारने को विवश हैं और उनमे से कितने ही ये रास्ता अपनाने लगे हैं जिसकी शायद उन्होंने उम्र के आरंभिक दौर में आलोचना की होगी.
अभी हाल ही में शामली [उत्तर प्रदेश ]में ओम प्रकाश -गसिया प्रकरण चर्चा में रहा .बेटों ने बाप की वृद्धावस्था में देखभाल नहीं की और एक अन्य महिला ने जब सेवा -सुश्रुषा की तो उसे अपनी पेंशन जो स्वतंत्रता सेनानी के रूप में उन्हें मिलती है ,दिलाने के लिए उन्होंने कोर्ट-मैरिज की सोची ये समाचार फैलते ही बेटों के आराम में खलल पड़ा और उन्होंने इसे रोकने को एडी चोटी का जोर लगा दिया .हाल ये है कि प्रतिष्ठा व् जायदाद बच्चों के लिए बूढ़े माँ-बाप से ऊपर स्थान रखते हैं और जब प्रतिष्ठा पर आंच आती है या जायदाद छिनने की नौबत आती है तब उन्हें बूढ़े माँ-बाप की याद आती है और तब ये कथित युवा पीढ़ी उन्हें ''सठिया गए हैं ''जैसे तमगों से नवाजने लगती है .
बच्चों का माँ-बाप के प्रति ये रवैय्या बड़ों को ऐसी परिस्थिति में डाल देता है कि वे गहरे अवसाद के शिकार हो जाते हैं .अपने बच्चों के प्रति मोह को वे छोड़ नहीं पाते और उनके तकलीफ देह व्यवहार को ये सोच कर ''कि जिंदगी दो चार दिन की है ''सहते रहते हैं .
फिल्मे समाज का आईना हैं .चाहे अवतार हो या बागवान दोनों में बच्चों के व्यवहार ने माँ बाप को त्रस्त किया है किन्तु उनमे जो आदर्श दिखाया गया है वही हमारे समाज के बुजुर्गों को अपनाना होगा उनमे बच्चों के व्यवहार से माँ बाप को टूटते नहीं दिखाया बल्कि उन्हें सबक सिखाते हुए दिखाया गया है .उनमे दिखाया गया है कि ऐसे में माँ बाप को बच्चो के प्रति क्या व्यवहार अपनाना चाहिए.
जो माँ बाप अपने बच्चों को पाल पोस कर बड़ा करते हैं उन्हें जिंदगी जीने लायक बनाते हैं उन्हें अपने को अपने बच्चों के सामने लाचार बनने की कोई ज़रुरत नहीं है .अवतार व् बागवान में तो फ़िल्मी माँ बाप है जो कोई कार्य करते हैं और उन्हें सफलता मिल जाती है असलियत में ऐसा बिरलों के साथ ही होता है इसलिए ऐसे में बच्चों को सबक सिखाने के लिए कानून भी माता पिता का साथ देता है
जुबैर अहमद अपने ब्लॉग ''बी.बी.सी ''में लिखते हैं कि राजेश खन्ना जी को शायद तनहाइयाँ मर गयी .तन्हाई शायद यही तन्हाई उनकी जिंदगी में अनीता आडवानी के साथ लिव -इन- रिलेशन के रूप में गुज़र रही थी न केवल फिल्मो में बल्कि आज सभी जगह देश हो या विदेश शहर हो या गाँव अपनों के साथ छोड़ने पर बड़ी उम्र के लोग तनहाइयों में जीवन गुज़ारने को विवश हैं और उनमे से कितने ही ये रास्ता अपनाने लगे हैं जिसकी शायद उन्होंने उम्र के आरंभिक दौर में आलोचना की होगी.
अभी हाल ही में शामली [उत्तर प्रदेश ]में ओम प्रकाश -गसिया प्रकरण चर्चा में रहा .बेटों ने बाप की वृद्धावस्था में देखभाल नहीं की और एक अन्य महिला ने जब सेवा -सुश्रुषा की तो उसे अपनी पेंशन जो स्वतंत्रता सेनानी के रूप में उन्हें मिलती है ,दिलाने के लिए उन्होंने कोर्ट-मैरिज की सोची ये समाचार फैलते ही बेटों के आराम में खलल पड़ा और उन्होंने इसे रोकने को एडी चोटी का जोर लगा दिया .हाल ये है कि प्रतिष्ठा व् जायदाद बच्चों के लिए बूढ़े माँ-बाप से ऊपर स्थान रखते हैं और जब प्रतिष्ठा पर आंच आती है या जायदाद छिनने की नौबत आती है तब उन्हें बूढ़े माँ-बाप की याद आती है और तब ये कथित युवा पीढ़ी उन्हें ''सठिया गए हैं ''जैसे तमगों से नवाजने लगती है .
बच्चों का माँ-बाप के प्रति ये रवैय्या बड़ों को ऐसी परिस्थिति में डाल देता है कि वे गहरे अवसाद के शिकार हो जाते हैं .अपने बच्चों के प्रति मोह को वे छोड़ नहीं पाते और उनके तकलीफ देह व्यवहार को ये सोच कर ''कि जिंदगी दो चार दिन की है ''सहते रहते हैं .
फिल्मे समाज का आईना हैं .चाहे अवतार हो या बागवान दोनों में बच्चों के व्यवहार ने माँ बाप को त्रस्त किया है किन्तु उनमे जो आदर्श दिखाया गया है वही हमारे समाज के बुजुर्गों को अपनाना होगा उनमे बच्चों के व्यवहार से माँ बाप को टूटते नहीं दिखाया बल्कि उन्हें सबक सिखाते हुए दिखाया गया है .उनमे दिखाया गया है कि ऐसे में माँ बाप को बच्चो के प्रति क्या व्यवहार अपनाना चाहिए.
जो माँ बाप अपने बच्चों को पाल पोस कर बड़ा करते हैं उन्हें जिंदगी जीने लायक बनाते हैं उन्हें अपने को अपने बच्चों के सामने लाचार बनने की कोई ज़रुरत नहीं है .अवतार व् बागवान में तो फ़िल्मी माँ बाप है जो कोई कार्य करते हैं और उन्हें सफलता मिल जाती है असलियत में ऐसा बिरलों के साथ ही होता है इसलिए ऐसे में बच्चों को सबक सिखाने के लिए कानून भी माता पिता का साथ देता है
दंड
प्रक्रिया सहिंता की धारा १२५ में पत्नी ,संतान और माता पिता के लिए
भरण-पोषण के लिए आदेश दिया गया है . धारा १२५[१] कहती है कि यदि पर्याप्त
साधनों वाला कोई व्यक्ति -
''[घ]अपने पिता या माता का ,जो अपना भरण पोषण करने में असमर्थ हैं,भरण
पोषण करने की उपेक्षा करता है ,या भरण पोषण करने से इंकार करता है तो प्रथम
वर्ग मजिस्ट्रेट ऐसी उपेक्षा या इंकार साबित हो जाने पर ऐसे व्यक्ति को ये
निर्देश दे सकेगा कि वह अपने पिता या माता के भरण पोषण के लिए ऐसी मासिक
दर पर ,जिसे मजिस्ट्रेट ठीक समझे ,भरण पोषण मासिक भत्ता दे .''
बालन
नायर बनाम भवानी अम्मा वेलाम्मा और अन्य ए .आई .आर १९८७ केरल ११० में केरल
उच्च न्यायालय ने कहा है कि धारा १२५ विपत्ति में पड़े पिता के लिए भी भरण
पोषण की व्यवस्था करता है और यह संविधान के अनुच्छेद १५[३] एवं 39 के अनुकूल है .
डॉ.श्रीमती विजय मनोहर अरबत बनाम कांशी राम राजाराम सवाई और अन्य ए.आई.आर.
१९८७ एस.सी.११०० में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अपने माता पिता का भरण
पोषण करने का दायित्व न केवल पुत्रों का है अपितु अविवाहित पुत्रियों का भी
है .
इस
प्रकार कानून ने भी वृद्ध माता पिता की सहायता के लिए व्यवस्था की है
किन्तु इस सहायता से लाभ उठाना और उपेक्षित व्यवहार कर घर परिवार समाज में
अव्यवस्था फ़ैलाने वाले बच्चों को सीधे रास्ते पर लाने का कार्य तो उन
वृद्ध माता पिता को स्वयं ही करना होगा .संतान मोहपाश में बंधे इन लोगों को
अपने बच्चों को सही रास्ते पर लाने का दायित्व स्वयं ही निभाना होगा
ताकि आगे आने वाले बच्चों के लिए ये एक ऐसा सबक बने जिसे नज़रंदाज़ कर अपने
कर्तव्य को भूलने की गलती कोई भूल से भी न करे .
शालिनी कौशिक
[कानूनी ज्ञान ]
वाह!
जवाब देंहटाएंआपकी यह प्रविष्टि कल दिनांक 04-03-2013 को सोमवारीय चर्चा : चर्चामंच-1173 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
BILKUL SAHI KAHA HAI
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंमेरी नई रचना
आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
पृथिवी (कौन सुनेगा मेरा दर्द ) ?
ये कैसी मोहब्बत है
पक्ष दोनो हैं कभी कभी मां बाप की गलतियो की सजा उनकी औलाद भुगतती है पर कोर्ट के आदेश से कोई इज्जत नही करेगा । हां ना होने से कुछ कानून हो ये बेहतर है
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंदिनांक 06/03/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!
सही कहा आपने | मैं आपसे सहमत हूँ |
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने | मैं आप से सहमत हूँ |
जवाब देंहटाएंAchhi jankari bhara lekh,aaj ke nalayak bachhon ko sabak sikhane ke liye aisa hona jaroori hae
जवाब देंहटाएंआपकी बात से सहमत हूं ...
जवाब देंहटाएंबच्चे जीते जी माँ बाप की कद्र न करें तो माँ बाप को भी चाहिए की अगर अपना रास्ता खोज लिया है तो उसी के हिसाब से चलें ...
सही तथ्य व जानकारी उपलब्ध कराई गयी है ...
जवाब देंहटाएं@ शालिनी कौशिक जी, आपकी बात से सहमत हूं ...लेकिन आप जहाँ भी किसी केस का संदर्भ देती है यदि उसका लिंक भी दे दिया करें. जिससे कोई उसका लाभ ले सकें. केसों के नाम देने केसों को खोज लेना आम आदमी के बस की बात नहीं. यदि आप क़ानूनी ज्ञान द्वारा जागरूकता फैलाना चाहती है तो लिंक और कुछ अलग सा देने का भी प्रयास करें. अलग का अर्थ है कि किसी ऐसी संस्थाओं और वकीलों के नाम आदि जो ऐसे केसों को सेवा भाव से लड़ते हो या लड़ने में मदद करते हैं. मैं आज भी ऐसे अनेकों मामले जानता हूँ जो अपने बेटों और बेटियों के खिलाफ कोर्ट में नहीं जाना चाहते है, क्योकि हमारे यहाँ पर न्याय व्यवस्था सुस्त है और न्याय प्राप्त करना बहुत कठिन होता है. यहाँ पर अदालतें सिर्फ "अन्याय" के सिवाय कुछ नहीं दे पाती है. यदि बच्चे जीते जी माँ बाप की कद्र न करें तो माँ बाप को भी चाहिए की अगर अपना रास्ता खोज लिया है तो उसी के हिसाब से चलें ..https://www.facebook.com/sirfiraa जिसकी लाठी उसी की भैंस-अंधा कानून http://rksirfiraa.blogspot.in/2012/09/blog-post.html
जवाब देंहटाएंहोली मुबारक
जवाब देंहटाएंअभी 'प्रहलाद' नहीं हुआ है अर्थात प्रजा का आह्लाद नहीं हुआ है.आह्लाद -खुशी -प्रसन्नता जनता को नसीब नहीं है.करों के भार से ,अपहरण -बलात्कार से,चोरी-डकैती ,लूट-मार से,जनता त्राही-त्राही कर रही है.आज फिर आवश्यकता है -'वराह अवतार' की .वराह=वर+अह =वर यानि अच्छा और अह यानी दिन .इस प्रकार वराह अवतार का मतलब है अच्छा दिन -समय आना.जब जनता जागरूक हो जाती है तो अच्छा समय (दिन) आता है और तभी 'प्रहलाद' का जन्म होता है अर्थात प्रजा का आह्लाद होता है =प्रजा की खुशी होती है.ऐसा होने पर ही हिरण्याक्ष तथा हिरण्य कश्यप का अंत हो जाता है अर्थात शोषण और उत्पीडन समाप्त हो जाता है.