अमर उजाला दैनिक समाचारपत्र भारतीय दंड संहिता-१८६० के अधीन दोषी
अमर उजाला हिंदी दैनिक समाचारपत्र का पृष्ठ -२ पर आज प्रकाशित एक समाचार भारतीय दंड संहिता -१८६० के अधीन उसे अर्थात अमर उजाला को कानून के उल्लंघन का दोषी बनाने हेतु पर्याप्त है जिस पर अमर उजाला ने एक दुष्कर्म पीड़िता , जो कि विक्षिप्त है और उसके परिजनों द्वारा उसके दुष्कर्म के बाद बेड़ियों से बांधकर रखी गयी है,से सम्बंधित समाचार को सचित्र प्रकाशित किया है-
जिसके मुद्रण या प्रकाशन के सम्बन्ध में भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत कई पाबंदियां लगायी गयी हैं जो इस प्रकार हैं -
भारतीय दंड संहिता की धारा २२८-क कहती है -
[१] - जो कोई किसी नाम या अन्य बात को ,जिससे किसी ऐसे व्यक्ति की [ जिसे इस धारा में इसके पश्चात पीड़ित व्यक्ति कहा गया है ] पहचान हो सकती है , जिसके विरुद्ध धारा ३७६ , धारा ३७६-क ,धारा ३७६-ख , या धारा ३७६-घ के अधीन किसी अपराध का किया जाना अभिकथित है या किया गया पाया गया है , मुद्रित या प्रकाशित करेगा वह दोनों में किसी भांति के कारावास से , जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी , दण्डित किया जायेगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा ;
[२] - उपधारा [१] की किसी भी बात का विस्तार किसी नाम या अन्य बात के मुद्रण या प्रकाशन पर , यदि उससे पीड़ित व्यक्ति की पहचान हो सकती है ,तब नहीं होता है जब ऐसा मुद्रण या प्रकाशन -
[क] -पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी के या ऐसे अपराध का अन्वेषण करने वाले पुलिस अधिकारी के , जो ऐसे अन्वेषण के प्रयोजन के लिए सद्भावपूर्वक कार्य करता है , द्वारा या उसके लिखित आदेश के अधीन किया जाता है ; या
[ख]- पीड़ित व्यक्ति द्वारा या उसके लिखित प्राधिकार से किया जाता है ; या
[ग] - जहाँ पीड़ित व्यक्ति की मृत्यु हो चुकी है अथवा वह अवयस्क या विकृतचित्त है वहां , पीड़ित व्यक्ति के निकट सम्बन्धी द्वारा या उसके लिखित प्राधिकार से , किया जाता है ;
परन्तु निकट सम्बन्धी द्वारा कोई ऐसा प्राधिकार किसी मान्यता प्राप्त कल्याण संस्था या संगठन के अध्यक्ष या सचिव को ,चाहे उसका जो भी नाम हो , भिन्न किसी व्यक्ति को नहीं दिया जायेगा .
स्पष्टीकरण -इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए , ''मान्यता प्राप्त कल्याण संस्था या संगठन '' से केंद्रीय या राज्य सरकार द्वारा इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए मान्यता प्राप्त कोई समाज कल्याण संस्था या संगठन अभिप्रेत है .
[३] -जो कोई उपधारा [१] में निर्दिष्ट किसी अपराध की बाबत किसी न्यायालय के समक्ष किसी कार्यवाही के सम्बन्ध में कोई बात , उस न्यायालय की पूर्व अनुज्ञा के बिना मुद्रित या प्रकाशित करेगा , वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से , जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी दण्डित किया जायेगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा .
स्पष्टीकरण -किसी उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय के निर्णय का मुद्रण या प्रकाशन इस धारा के अर्थ में अपराध की कोटि में नहीं आता है .
इस प्रकार अमर उजाला द्वारा दुष्कर्म पीड़िता विक्षिप्त बेटी के समाचार को सचित्र प्रकाशित किया जाना कहीं से भी यह आभास नहीं देता कि उसे ऐसी कोई अनुमति मिल चुकी थी या उसने ऐसी अनुमति की प्राप्ति के लिए कोई यत्न कर उस बेटी के हित या उसके प्रति सद्भाव रखते हुए यह समाचार सचित्र प्रकाशित किया .साफ तौर पर यह आज की रेटिंग पत्रकारिता है जो अपने समाचारपत्र को ज्यादा रेटिंग दिलाने के लिए ऐसे समाचारों को अपने अख़बार में प्रकाशित करने जैसे कार्य की ओर आज की पत्रकारिता को बढ़ा देती है और नहीं देखती कि इस तरह के समाचार पहले से ही दुःख से घिरे पीड़ित व् उसके परिजनों पर कितनी भारी पड़ती है जिसे ध्यान में रखते हुए ही कानून द्वारा इस पर रोक लगायी गयी है .ऐसी पत्रकारिता पर रोक के लिए यह आवश्यक है कि अमर उजाला के इस कृत्य को ध्यान में रखते हुए उसपर अति शीघ्र कानूनी कार्यवाही की जाये .
शालिनी कौशिक
[कानूनी ज्ञान ]
samachar patr ko kanoon ka palan karna chahiye vishesh kar aise samvedansheel vishyon me .
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