यू पी में अधिवक्ता खतरे में



हापुड़ में प्रियंका त्यागी एडवोकेट के साथ पुलिस प्रशासन द्वारा बदसलूकी और उसके बाद हापुड़ बार एसोसिएशन के अधिवक्ताओं के शांति पूर्ण धरने पर सी ओ हापुड़ द्वारा बर्बरता पूर्वक लाठी चार्ज करना, साथ ही, महिला अधिवक्ताओं को भी लाठी चार्ज के घेरे में लेना जिसमें दो दर्जन से अधिक अधिवक्ताओं का गम्भीर रूप से घायल होना, इसे लेकर पूरे यू पी के अधिवक्ताओं की कलमबंद हड़ताल और ठीक हड़ताल के दिन हापुड़ से सटे हुए गाजियाबाद में 35 वर्षीय अधिवक्ता मोनू चौधरी की गोली मारकर हत्या उत्तर प्रदेश में अधिवक्ताओं की असुरक्षित स्थिति दिखाने के लिए पर्याप्त है और अधिवक्ता सुरक्षा कानून की जरूरत की पुरजोर वक़ालत कर रही है. 

       वकीलों की सुरक्षा के लिए बार काउंसिल ऑफ इंडिया प्रतिबद्ध है और इसीलिए अधिवक्ता सुरक्षा कानून के ड्राफ़्ट को बीसीआई ने मंजूरी दे दी थी . बीसीआई ने इस ऐक्ट का प्रारूप तैयार कर सभी राज्यों की बार काउंसिल को भेजा था और उनसे सुझाव और संशोधन के लिए राय मांगी थी और फिर बिना किसी संशोधन के ही ऐक्ट के मसौदे को मंजूरी दे दी गयी. एडवोकेट प्रोटेक्शन बिल की रूपरेखा और ड्राफ़्ट बार काउंसिल ऑफ इंडिया की सात सदस्यीय कमेटी ने तैयार किया और इसकी 16 धाराओं में वकील तथा उसके परिवार के सदस्यों को किसी प्रकार की क्षति और चोट पहुंचाने की धमकी देना, किसी भी सूचना को जबरन उजागर करने का दबाव देना, पुलिस अथवा किसी अन्य पदाधिकारी से दबाव दिलवाना, वकीलों को किसी केस में पैरवी करने से रोकना, वकील की संपत्ति को नुकसान पहुंचाना, किसी वकील के खिलाफ अपमानजनक शब्द का इस्तेमाल करना जैसे कार्यों को अपराध की श्रेणी में रखा गया और ये सभी अपराध गैर जमानती अपराध रखने का प्रावधान किया गया. ऐसे अपराध के लिए 6 माह से 5 वर्ष की सजा के साथ साथ दस लाख रुपये जुर्माना लगाने का भी प्रावधान रखा गया जिसके लिए पुलिस को 30 दिनों के भीतर अनुसंधान पूरा किया जाना जरूरी किया गया , जिसकी सुनवाई जिला एवं सत्र न्यायाधीश /अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश करेंगे. वकील को सुरक्षा के लिए हाई कोर्ट में आवेदन देने का प्रावधान और हाई कोर्ट वकील के आचरण सहित अन्य तथ्यों की जांच कर जरूरत पड़ने पर स्टेट बार काउंसिल तथा बीसीआई से जानकारी लेकर सुरक्षा देने के बारे में आदेश जारी करने का प्रावधान रखा गया लेकिन किसी केस में अभियुक्त वकील पर यह कानून लागू नहीं होगा यह भी निश्चित किया गय. 

    आज  तक भी एडवोकेट प्रोटेक्शन ऐक्ट लागू नहीं किये जाने का खामियाजा उत्तर प्रदेश के अधिवक्ताओं को लगातार भुगतना पड़ रहा है और ऐक्ट के न होने के नकारात्मक असर वकीलों को नजर आते जा रहे हैं. लगातार ऐक्ट लागू किए जाने की मांग उत्तर प्रदेश में तहसील बार एसोसिएशन से लेकर बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश द्वारा की जा रही है, किंतु उत्तर प्रदेश सरकार के कानों पर जूँ तक नहीं रेंग रही है. अब लगातार हो रही अधिवक्ताओं की हत्या को देखते हुए यही सवाल उठ रहा है कि क्या वेस्ट यू पी में हाई कोर्ट खंडपीठ की तरह ही अधिवक्ताओं की सुरक्षा को भी ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है?  

    उत्तर प्रदेश के समस्त अधिवक्ताओं की ओर से विनम्र निवेदन है कि उत्तर प्रदेश सरकार तुरंत एडवोकेट प्रोटेक्शन ऐक्ट के लागू किए जाने के लिए कदम उठाए. 

   
शालिनी कौशिक 
एडवोकेट
कैराना (शामली) 

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