75 वर्षों में भी दोयम दर्जे पर हिन्दी
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक वादी द्वारा हिंदी में प्रस्तुतियाँ देने पर आपत्ति जताते हुए कहा कि अदालत की आधिकारिक भाषा अंग्रेजी है। जस्टिस ऋषिकेश रॉय और जस्टिस एसवीएन भट्टी की खंडपीठ इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें याचिकाकर्ता की पत्नी द्वारा याचिकाकर्ता के खिलाफ क्रूरता और दहेज मामले को बस्ती जिले से प्रयागराज स्थानांतरित करने की अनुमति दी गई थी। सुनवाई आरंभ होने पर याचिकाकर्ता ने हिंदी में अपनी प्रस्तुतियां देना शुरू किया । जब उन्होंने अदालत को इस मुद्दे और उच्च न्यायालय के आदेश के बारे में बताना समाप्त किया, तो जस्टिस रॉय ने उन्हें अदालत की भाषा के बारे में याद दिलाया। जस्टिस रॉय ने कहा, "इस अदालत में कार्यवाही अंग्रेजी में है। आप व्यक्तिगत रूप से उपस्थित हुए हैं, इसलिए हमने आपको बीच में नहीं रोका है ताकि आप जो कुछ भी कहना चाहते हैं वह कह सकें। यहां दो न्यायाधीश बैठे हैं और आपको यह सुनिश्चित किए बिना हिन्दी में इस तरीके से अपनी दलीलें देने की अनुमति नहीं दी जा सकती कि क्या न्यायालय आपको समझने में सक्षम है या नहीं।" इसके बाद, वादी अंग्रेजी में अपनी प्रस्तुतियाँ जारी रखने के लिए सहमत हो गया, और कार्यवाही तदनुसार फिर से शुरू हुई। अंततः, अदालत ने मामले को मध्यस्थता के लिए भेज दिया।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 में कहा गया है कि संघ की राजभाषा हिन्दी है और इसकी लिपि देवनागरी है. संघ के राजकीय कामों के लिए इस्तेमाल होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अंतरराष्ट्रीय रूप होगा. राष्ट्रपति, किसी खास शासकीय काम के लिए अंग्रेज़ी और देवनागरी के अलावा हिन्दी और भारतीय अंकों का इस्तेमाल करने का आदेश दे सकते हैं. साथ ही यह भी कहा गया है कि संसद, 15 साल के बाद भी अंग्रेज़ी और देवनागरी अंकों का इस्तेमाल कुछ खास कामों के लिए कर सकती है.
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 345 के मुताबिक, किसी राज्य का विधानमंडल, उस राज्य में बोली जाने वाली भाषाओं या हिन्दी को उस राज्य के सरकारी कामों के लिए अपना सकता है:
अनुच्छेद 345 के मुताबिक, राज्य का विधानमंडल, विधि के ज़रिए, किसी राज्य में बोली जाने वाली भाषाओं में से एक या ज़्यादा भाषाओं को या हिन्दी को सरकारी कामों के लिए अपना सकता है.
अनुच्छेद 345 के मुताबिक, जब तक राज्य का विधानमंडल, विधि के ज़रिए, अन्यथा प्रावधान न करे, तब तक राज्य के सरकारी कामों के लिए अंग्रेज़ी भाषा का इस्तेमाल जारी रहेगा.
अनुच्छेद 345 के मुताबिक, राज्य की विधायिका, अनुच्छेद 346 और 347 के प्रावधानों के तहत, किसी राज्य में हिन्दी या किसी और भाषा को या भाषाओं को सरकारी कामों के लिए अपना सकती है.
संविधान के अनुच्छेद 348 में यह प्रावधान है कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में सभी कार्यवाही अंग्रेजी में आयोजित की जानी चाहिए, जब तक कि संसद द्वारा अन्यथा प्रदान नहीं किया गया हो। यह राष्ट्रपति की पूर्व सहमति के साथ हाईकोर्ट की कार्यवाही में हिंदी या अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के उपयोग की अनुमति देता है, लेकिन यह सुप्रीम कोर्ट तक विस्तारित नहीं होता है। अनुच्छेद 348 के अनुसार, कानूनों और निर्णयों के आधिकारिक पाठ अंग्रेजी में होने चाहिए।
संविधान सभा ने 14 सितंबर, 1949 को लंबी चर्चा के बाद हिन्दी को भारत की राजभाषा घोषित किया था. इसकी याद में हर साल 14 सितंबर को हिन्दी दिवस मनाया जाता है इतने पर भी यह मात्र एक औपचारिकता बनकर ही रह गया है क्योंकि कहने के लिए हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है किन्तु हमारे संविधान में ही हिन्दी का दर्जा मात्र राजभाषा का है और क्योंकि सभ्य समाज की बोलचाल में, कामकाज में आज भी अँग्रेजी को ही ऊपर का स्थान मिला हुआ है ऐसे में माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा इस प्रकार की टिप्पणी का किया जाना हिन्दी भाषियों के हौसले पस्त करता है साथ ही देश में हिंदी को निचले स्तर की भाषा साबित करता है. हिन्दी भारतीय संविधान में राजभाषा का दर्जा पाने के 75 वर्षों में भी आज दोयम दर्जे की भाषा बनी हुई है और अंग्रेजों के लाइफ स्टाइल को गर्व से अपनाकर अपनी जीवन शैली चलाने वाले हाई फाई होने की ओर बढ़े जा रहे भारतीय समाज में हिंदी के लिए उच्चतम दरजे की आशा करना मात्र एक कल्पना ही कही जा सकती है.
शालिनी कौशिक
एडवोकेट
कैराना (शामली)
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