एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट देगा वकीलों को सुरक्षा?

 


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    अब एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट अगर लागू हो भी गया तो वकीलों को शायद ही कोई प्रोटेक्शन मिल पाएगा और यह स्थिति उभर रही है तब से जब से अधिवक्ताओं के रजिस्ट्रेशन के नए नियम आए हैं जिनमे अभ्यर्थी का पुलिस वेरीफिकेशन सम्बन्धित बार काउंसिल द्वारा अनिवार्य बना दिया गया है.

एक साल पहले हापुड़ में महिला अधिवक्ता और उनके पिता के खिलाफ फर्जी मुकदमा दर्ज किए जाने के विरोध में जाम लगा रहे वकीलों पर पुलिस द्वारा लाठीचार्ज किया गया. इससे पहले महिला अधिवक्ता के साथ बीच सड़क पर सिपाही द्वारा अभद्रता और छेड़छाड़ की गई। जिसके बाद पूरे यू पी में दो सप्ताह से ज्यादा चली वकीलों की हड़ताल की यूपी बार कौंसिल अध्यक्ष श्री शिव किशोर गौड़ एडवोकेट जी ने वापसी की घोषणा की। उनके द्वारा बताया गया कि अधिवक्ताओं की मांगें मान ली गई, दोषी पुलिस कर्मियों के निलंबन और तबादले करने, आंदोलन के दौरान वकीलों पर हुए मुकदमें वापस लेने, चोटिल अधिवक्ताओं को मुआवजा दिलाने, एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट यूपी में लागू करने और प्रदेश के प्रत्येक जिले में वकीलों के लिए शिकायत सेल बनाने संबंधी मांगे सरकार ने स्वीकार की.

      इस पूरे मामले में सबसे अहम फैसला एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट पूरे यू पी में लागू किए जाने की मांग सरकार द्वारा माने जाने की खुशी थी, जिसे देखते हुए वकीलों ने अपनी हड़ताल वापस ली थी. वकीलों द्वारा एक लम्बे समय से एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट की मांग की जा रही है और उसका एक मुख्य कारण पुलिस प्रशासन और वकीलों के मध्य के मतभेद हैं जो ज्यादातर पुलिस द्वारा वकीलों के साथ किए जाने वाली अभद्रता पर उभरकर सामने आते ही रहते हैं. 

      इसका ताजा उदाहरण अभी हाल ही में गुजरात हाई कोर्ट का एक निर्णय भी है. जिसमें वकील को लात मारने वाले पीआई पर गुजरात हाई कोर्ट ने 3 लाख रुपये का जुर्माना लगाया. जज ने कहा- एक लात कितनी महंगी है, ये पुलिस इंस्पेक्टर को याद रहना चाहिए

. प्राप्त जानकारी के अनुसार - सूरत के डिंडोली में एडवोकेट हिरेन नाई अपने दोस्तों के साथ कार में थे। तभी डिंडोली पुलिस स्टेशन के पीआई एचजे सोलंकी बिना कुछ पूछे गालियां देते हुए उन्हें सीधे लात मारने लगा था। वहीं, जब एडवोकेट शिकायत दर्ज कराने पुलिस थाने पहुंचे तो पुलिस ने पीआई के खिलाफ शिकायत दर्ज करने से इनकार कर दिया । इस पर एडवोकेट को हाईकोर्ट में अर्जी लगानी पड़ी और तब जाकर उसे पुलिस की अवैध कार्रवाई किए जाने पर न्याय मिला. 

        हमारी न्याय व्यवस्था में पुलिस प्रशासन का क्या स्थान है यह हमारे कानून स्वयं ही अधिनियमित कर देते हैं. भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 की धारा 23(1) ही कहती हैं कि किसी पुलिस अधिकारी से की गई संस्वीकृति किसी अपराध के अभियुक्त व्यक्ति के विरुद्ध साबित नहीं की जाएगी, कानूनी रूप से ही अविश्वसनीय स्तर पर रखे गए पुलिस प्रशासन द्वारा विधि स्नातकों की अधिवक्ता के रूप में रजिस्ट्रेशन के लिए निर्भरता वकीलों को पुलिस प्रशासन द्वारा दबाने की कोशिश है जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है. रजिस्ट्रेशन के लिए विधि स्नातक अपनी कानूनी स्थिति को लेकर शपथ पत्र देते हैं जिसे कानून में भी मान्यता प्राप्त है और बार काउंसिल के सदस्य विद्वान अधिवक्ता भी जांच कर उचित निर्णय लेने में सक्षम हैं. पुलिस प्रशासन के हाथ में अधिवक्ताओं का भविष्य वेरीफिकेशन हेतु सौंप देना, भारतीय न्याय व्यवस्था के लिए खतरे के रूप में ही लिया जा सकता है. 

     अब यह खुद ही एक गहन विचार विमर्श का विषय है कि जिस पुलिस प्रशासन पर वकील स्वयं के अधिवक्ता के रूप में रजिस्ट्रेशन के लिए आश्रित होंगे, उस पुलिस प्रशासन के वकीलों के साथ किसी भी अन्याय पूर्ण कार्य को लेकर वे क्या आवाज उठाएंगे? क्या कर पाएंगे अब एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट को लेकर? जिसकी मांग की एक मुख्य वज़ह पुलिस प्रशासन द्वारा अधिवक्ताओं के अवैध उत्पीड़न से कानूनी सुरक्षा भी है. 

शालिनी कौशिक एडवोकेट 

कैराना (शामली) 

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