सेल डीड रजिस्टर नहीं होने तक अचल संपत्ति का स्वामित्व ट्रांसफर नहीं होता : सुप्रीम कोर्ट

 संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम 1882 (Transfer of Property Act ) की धारा 54 का हवाला देते हुए जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस एनके सिंह की खंडपीठ ने कहा कि प्रावधान में कहा गया कि ट्रांसफर केवल रजिस्टर दस्तावेज के माध्यम से किया जा सकता है। प्रावधान में केवल शब्द का उपयोग यह दर्शाता है कि एक सौ रुपये या उससे अधिक मूल्य की मूर्त अचल संपत्ति के लिए बिक्री तभी वैध होती है, जब इसे रजिस्टर्ड दस्तावेज के माध्यम से निष्पादित किया जाता है।

न्यायालय ने कहा, "जहां सेल डीड के लिए रजिस्ट्रेशन की आवश्यकता होती है, वहां स्वामित्व तब तक ट्रांसफर नहीं होता, जब तक कि डीड रजिस्टर न हो जाए, भले ही कब्ज़ा ट्रांसफर हो जाए। ऐसे रजिस्ट्रेशन के बिना प्रतिफल का भुगतान किया जाए। अचल संपत्ति के लिए सेल डीड का रजिस्ट्रेशन ट्रांसफर को पूरा करने और मान्य करने के लिए आवश्यक है। जब तक रजिस्ट्रेशन प्रभावी नहीं होता स्वामित्व ट्रांसफर नहीं होता है।" बाबासाहेब धोंडीबा कुटे बनाम राधु विठोबा बार्डे 2024 लाइव लॉ (एससी) 225 के फैसले का संदर्भ दिया गया, जिसमें कहा गया कि "पंजीकरण अधिनियम, 2008 की धारा 17 के अनुसार सेल के माध्यम से ट्रांसफर केवल सेल डीड के रजिस्ट्रेशन के समय ही होगा।जब तक रजिस्ट्रेशन नहीं हो जाता कानून की नज़र में कोई ट्रांसफर नहीं होता। पीठ ने ये टिप्पणियां SARFAESI Act के संदर्भ में नीलामी क्रेता के पक्ष में नीलामी बिक्री को मंजूरी देते हुए कीं। एक पक्ष द्वारा आपत्ति उठाई गई, जिसने सुरक्षित संपत्ति के एक हिस्से पर कब्जे का दावा किया। पीठ ने इस आपत्ति यह कहते हुए खारिज कर दी कि आपत्तिकर्ता के पक्ष में कोई रजिस्टर सेल डीड नहीं था। वह बिक्री के लिए एक समझौते के आधार पर अधिकार का दावा कर रहा था जो अपंजीकृत था और एक सामान्य पावर ऑफ अटॉर्नी थी।

चूंकि समझौता अपंजीकृत था इसलिए न्यायालय ने पाया कि न तो बैंक और न ही नीलामी खरीदार उचित परिश्रम करने के बावजूद इसका पता लगा सकते थे। न्यायालय ने कहा, “प्रतिवादी नंबर 2 द्वारा सुरक्षित संपत्ति के तहखाने के स्वामित्व का दावा करने के लिए जिन सभी दस्तावेजों पर भरोसा किया गया, वे अपंजीकृत दस्तावेज हैं। संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम की धारा 54 के तहत वैध बिक्री की आवश्यकताओं को पूरा करने में विफल हैं। इस प्रकार प्रतिवादी नंबर 2 के पास सुरक्षित संपत्ति के तहखाने के स्वामित्व का दावा करने का कोई अधिकार नहीं था।” 

केस टाइटल: संजय शर्मा बनाम कोटक महिंद्रा बैंक लिमिटेड

प्रस्तुति 

शालिनी कौशिक

 एडवोकेट 


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