अमान्य विवाह में भी गुजारे भत्ते की हकदार पत्नी
सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के उस फैसले पर अपनी असहमति जताई, जिसमें एक महिला के खिलाफ महिला विरोधी भाषा का इस्तेमाल किया गया। उक्त महिला का विवाह अमान्य घोषित कर दिया गया, जिसमें उसे "अवैध पत्नी" या "वफादार रखैल" कहा गया।
न्यायालय ने टिप्पणी की, "भारत के संविधान की धारा 21 के तहत, प्रत्येक व्यक्ति को गरिमापूर्ण जीवन जीने का मौलिक अधिकार है। किसी महिला को "अवैध पत्नी" या "वफादार रखैल" कहना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उस महिला के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा। इन शब्दों का उपयोग करके किसी महिला का वर्णन करना हमारे संविधान के लोकाचार और आदर्शों के विरुद्ध है। कोई भी व्यक्ति ऐसी महिला का उल्लेख करते समय ऐसे विशेषणों का उपयोग नहीं कर सकता, जो अमान्य विवाह में पक्षकार है। दुर्भाग्य से, हम पाते हैं कि हाईकोर्ट की फुल बेंच के फैसले में ऐसी आपत्तिजनक भाषा का उपयोग किया गया। ऐसे शब्दों का प्रयोग स्त्री-द्वेषपूर्ण है। बॉम्बे हाईकोर्ट की फुल बेंच द्वारा बनाया गया कानून स्पष्ट रूप से सही नहीं है।
न्यायालय ने यह भी कहा कि ऐसे विशेषणों का प्रयोग हाईकोर्ट द्वारा अमान्य विवाह में पतियों के लिए नहीं किया गया। जस्टिस अभय एस. ओक, जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने यह टिप्पणी इस मुद्दे पर एक संदर्भ का उत्तर देते हुए की कि क्या पति-पत्नी हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (HMA) की धारा 25 के तहत स्थायी गुजारा भत्ता पाने के हकदार हैं, भले ही विवाह अमान्य घोषित कर दिया गया हो।
सन्दर्भ को सकारात्मक रूप से संबोधित करते हुए, न्यायालय ने माना कि HMA की धारा 11 के तहत विवाह अमान्य घोषित किए जाने के बाद भी पति-पत्नी को स्थायी गुजारा भत्ता दिया जा सकता है।
जस्टिस ओक द्वारा लिखित निर्णय में इस बिंदु पर जोर दिया गया। साथ ही बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा 2004 में भाऊसाहेब @ संधू पुत्र रागुजी मगर बनाम लीलाबाई पत्नी भाऊसाहेब मगर (एआईआर बॉम. 283 (एफबी)) में अपने निर्णय में इस्तेमाल की गई अपमानजनक और स्त्री-द्वेषी भाषा पर भी चिंता व्यक्त की गई। न्यायालय ने हाईकोर्ट द्वारा शून्य विवाह में महिला को "वफादार रखैल" और "अवैध पत्नी" के रूप में चित्रित करने पर अपनी निराशा व्यक्त की।
साथ ही हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने लैंगिक रूढ़िवादिता का मुकाबला करने पर पुस्तिका जारी की, जिसका उद्देश्य जजों और कानूनी समुदाय को महिलाओं के बारे में रूढ़िवादिता की पहचान करने, समझने और उसका मुकाबला करने में सहायता करना है। पुस्तिका में लैंगिक-अन्यायपूर्ण शब्दों की शब्दावली है और वैकल्पिक शब्दों या वाक्यांशों का सुझाव दिया गया, जिनका उपयोग याचिकाओं के साथ-साथ आदेशों और निर्णयों का मसौदा तैयार करते समय किया जा सकता है।
केस टाइटल: सुखदेव सिंह बनाम सुखबीर कौर
(live. Law. In से साभार)
प्रस्तुति
शालिनी कौशिक
एडवोकेट
कैराना (शामली)
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