व्हाट्सएप्प चैट सबूत क़े रूप में मान्य -मध्य प्रदेश हाई कोर्ट


(व्हाट्सएप्प चैट सबूत के रूप में मान्य-मध्य प्रदेश हाई कोर्ट)

व्हाट्सएप्प चैट को मध्य प्रदेश हाई कोर्ट द्वारा एक महत्वपूर्ण निर्णय में पति को अपनी पत्नी क़े व्यभिचार को साबित करने क़े लिए परिवार न्यायालय के समक्ष मान्य सबूत क़े रूप में प्रस्तुत करने की इज़ाज़त दी गई. जबकि फैमिली कोर्ट ने पति को सबूत के तौर पर पत्नी के व्हाट्सएप चैट को पेश करने पर रोक लगा दी थी।

   मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के जस्टिस आशीष श्रोती की एकल पीठ ने कहा-

" कि यदि यह माना जाता है कि फैमिली कोर्ट के सामने पेश किए जाने वाले सबूत को गोपनीयता के अधिकार के उल्लंघन की आपत्ति के आधार पर बाहर रखा जाना चाहिए, तो धारा 14 के प्रावधान निरर्थक हो जाएंगे।कोर्ट ने कहा कि यह ध्यान में रखना चाहिए कि फैमिली कोर्ट की स्थापना ऐसे मामलों से निपटने के लिए की गई है जो अनिवार्य रूप से संवेदनशील हैं। जैसे- विवाह विच्छेद, वैवाहिक अधिकारों की बहाली, बच्चों की वैधता, संरक्षकता, हिरासत और नाबालिगों तक पहुंच से संबंधित व्यक्तिगत विवाद।इसलिए यह आसानी से अनुमान लगाया जा सकता है कि फैमिली कोर्ट के समक्ष आने वाले अधिकांश मामलों में जिस सबूत को पेश करने की मांग की जाती है, वह मुकदमा करने वाले पक्षों के निजी मामलों से संबंधित होगा। यदि धारा 14 को ऐसे सबूतों पर पूरी तरह लागू नहीं माना जाता है जो किसी व्यक्ति के निजता के अधिकार पर अतिक्रमण करता है तो न केवल धारा 14 बल्कि फैमिली कोर्ट के गठन का उद्देश्य ही विफल हो जाएगा।"

➡️ विवादस्पद मामले के तथ्य-

2016 में विवाहित दम्पत्ति के विवाहेतर संबंधों से 2017 में एक बच्ची का जन्म हुआ। पति ने क्रूरता के आधार पर हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 के तहत तलाक के लिए मुकदमा दायर किया। जिसमें उसने पत्नी पर क्रूरता के साथ व्यभिचार का भी आरोप लगाया। व्यभिचार साबित करने के लिए पत्नी की किसी तीसरे व्यक्ति के साथ व्हाट्सएप चैट के संबंध में विशेष दलीलें दी। 

➡️ पति की दलील -

पति ने दलील दी कि पत्नी के फोन में इंस्टॉल किए गए एक खास एप्लीकेशन के जरिए उसके फोन की वॉट्सऐप चैटिंग अपने आप उसके फोन पर फॉरवर्ड हो जाती है। इससे पता चलता है कि पत्नी का किसी तीसरे व्यक्ति के साथ विवाहेतर संबंध है। जब मुकदमें में पति की ओर से सबूत पेश करने की बारी आई तो उसने वॉट्सऐप चैट दिखाने की मांग की। पत्नी के वकील के आपत्ति जताने पर पति के वकील ने दलील दी कि पति द्वारा पेश किए गए व्हाट्सएप चैट पत्नी की ओर से व्यभिचार के आरोप को स्थापित करने के लिए प्रासंगिक हैं। फैमिली कोर्ट अधिनियम की धारा 14 पर भरोसा करते हुए वकील ने दलील दी कि फैमिली कोर्ट के निर्णय के लिए प्रासंगिक सामग्री को सबूत के रूप में लेने के लिए सक्षम है। भले ही ऐसा सबूत भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत अस्वीकार्य हो।

➡️ पत्नी की दलील-

    पत्नी के वकील ने दलील दी कि पति द्वारा पत्नी की सहमति के बिना उसके मोबाइल में एप्लीकेशन इंस्टॉल करना गैरकानूनी है और इससे उसकी निजता के अधिकार का उल्लंघन होता है। पत्नी के वकील का कहना था कि चूंकि सबूत अवैध तरीकों से एकत्र किए गए हैं, इसलिए पति को ऐसे सबूतों पर भरोसा करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। ऐसे सबूत को सबूत के तौर पर स्वीकार नहीं किया जा सकता। उन्होंने आगे कहा कि पति द्वारा एकत्र किए गए सबूत सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 43, 66 और 72 का उल्लंघन करते हैं।

➡️ मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में कार्यवाही-

पति की याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने आर.एम. मलकानी बनाम महाराष्ट्र राज्य में सर्वोच्च न्यायालय  के निर्णय का हवाला दिया। इसमें न्यायालय भारतीय दंड संहिता की धारा 161 और 385 के तहत दंडनीय अपराधों से जुड़े एक आपराधिक मामले में अवैध तरीकों से प्राप्त टेप रिकॉर्ड की गई बातचीत को स्वीकार्यता से निपट रहा था। कोर्ट ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने अनुचित साधनों से प्राप्त सामग्री को सबूत के रूप में स्वीकार करने की अनुमति दी। प्रासंगिक रूप से यह एक ऐसा मामला था जहां सबूत के सख्त नियम लागू थे और फैमिली कोर्ट अधिनियम की धारा 14 जैसा कोई प्रावधान उपलब्ध नहीं था।

      कोर्ट ने कहा कि इस निर्णय का बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य (एनसीटी दिल्ली) बनाम नवजोत संधू के मामले में (2005)11 एससीसी 600 में पालन किया। इसके अलावा शारदा, पुट्टस्वामी और सहारा इंडिया (सुप्रा) का हवाला देते हुए कोर्ट ने जोर देकर कहा कि यद्यपि निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी गई है, लेकिन यह निरपेक्ष नहीं है और अपवादों और सीमाओं के अधीन है।

इस प्रकार मध्य हाई कोर्ट ने माना कि फैमिली कोर्ट के समक्ष सबूत की स्वीकार्यता के लिए एकमात्र परीक्षण फैमिली कोर्ट अधिनियम की धारा 14 के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए मामले के संबंध में इसकी प्रासंगिकता है।

➡️ परिवार न्यायालय अधिनियम की धारा 14- 

भारत में पारिवारिक न्यायालय अधिनियम, 1984 की धारा 14 पारिवारिक न्यायालय की कार्यवाही में साक्ष्य की स्वीकार्यता से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि पारिवारिक न्यायालय किसी भी रिपोर्ट, कथन, दस्तावेज़, सूचना या मामले को साक्ष्य के रूप में स्वीकार कर सकता है, जो न्यायालय की राय में, विवाद से प्रभावी ढंग से निपटने में उसकी मदद करेगा, भले ही उसे भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 के तहत प्रासंगिक या स्वीकार्य न माना जाए।   

सरल शब्दों में, यह खंड पारिवारिक न्यायालयों को अन्य न्यायालयों में सामान्यतः अनुमत साक्ष्य की तुलना में व्यापक श्रेणी के साक्ष्य पर विचार करने की सुविधा देता है। इसका मतलब यह है कि पारिवारिक न्यायालय रिपोर्ट, बयान, दस्तावेज और अन्य जानकारी जैसी चीज़ों पर विचार कर सकते हैं जो साक्ष्य के मानक नियमों के तहत सख्ती से स्वीकार्य नहीं हो सकती हैं, जब तक कि न्यायालय का मानना ​​है कि यह पारिवारिक विवाद को सुलझाने में मददगार होगा।   

➡️ साक्ष्य का व्यापक दायरा:

धारा 14 पारिवारिक न्यायालयों को साक्ष्य का मूल्यांकन करते समय भारतीय साक्ष्य अधिनियम के सख्त नियमों से परे जाने का अधिकार देती है।   

➡️ सहायता पर ध्यान केंद्रित करें:

अदालत के लिए प्राथमिक विचारणीय बिंदु यह है कि क्या साक्ष्य विवाद को सुलझाने में सहायक होगा, न कि यह कि क्या वह साक्ष्य अधिनियम का सख्ती से पालन करता है।   

➡️ न्यायालय का विवेक:

धारा 14 के अंतर्गत साक्ष्य स्वीकार करने का निर्णय पारिवारिक न्यायालय पर निर्भर करता है, जिसके पास यह निर्णय लेने का विवेकाधिकार है कि क्या प्रासंगिक और सहायक है।   

        इस प्रकार धारा 14 और आर.एम. मलकानी बनाम महाराष्ट्र राज्य में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का अनुसरण करते हुए मध्य प्रदेश हाई कोर्ट द्वारा व्हाट्सएप्प चैट पति को अपनी पत्नी क़े व्यभिचार को साबित करने क़े लिए परिवार न्यायालय के समक्ष मान्य सबूत क़े रूप में प्रस्तुत करने की इज़ाज़त देने का महत्वपूर्ण निर्णय पारित किया गया.

प्रस्तुति 

शालिनी कौशिक 

एडवोकेट 

कैराना (शामली )

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