तलाकशुदा पत्नी अविवाहित रहने पर भी भरण-पोषण की हकदार: सुप्रीम कोर्ट
29 मई 2025 को माननीय उच्चतम न्यायालय ने राखी साधुखान बनाम राजा साधुखान, सिविल अपील संख्या 10209/2024 में भरण पोषण को लेकर एक बहुत ही महत्वपूर्ण निर्णय दिया है.
➡️ केस का निर्णय-
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने राखी साधुखान बनाम राजा साधुखान मामले में फैसला सुनाया, जिसमें विवाह के अपूरणीय रूप से टूटने के बाद पत्नी को दिए गए गुजारा भत्ते की मात्रा को चुनौती देने वाली अपील पर फैसला सुनाया गया।सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में पत्नी को दिए जाने वाले स्थायी गुजारा भत्ते की रकम को बढ़ाकर ₹50,000 प्रति माह कर दिया, जिससे विवाह के दौरान पत्नी का जो जीवन स्तर रहा है उसी जीवन स्तर के साथ उसका जीवन स्तर सुनिश्चित किया जा सके जिससे उसका भविष्य उचित रूप से सुरक्षित रहे। यह गुजारा भत्ता कलकत्ता हाईकोर्ट द्वारा पहले दी गई राशि से लगभग दोगुना है। कोर्ट ने कहा कि :-
"अपीलकर्ता-पत्नी अविवाहित रही और स्वतंत्र रूप से रह रही है। इसलिए वह उस स्तर के भरण-पोषण की हकदार है, जो विवाह के दौरान उसके जीवन स्तर को दर्शाता है और जो उसके भविष्य को उचित रूप से सुरक्षित करता है।"
➡️ केस का विवरण-
🌑 1997 में विवाहित पति पत्नी के 1998 में उनका एक बेटा पैदा हुआ और वे 2008 में अलग अलग हो गए.हाईकोर्ट ने मानसिक क्रूरता तथा विवाह के अपूरणीय विघटन के आधार पर तलाक का आदेश दिया तथा स्थायी गुजारा भत्ता ₹20,000 प्रति माह निर्धारित किया, जो हर तीन वर्ष में 5% की वृद्धि के अधीन था। इससे असंतुष्ट होकर पत्नी ने गुजारा भत्ता बढ़ाने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में यह कहते हुए सिविल अपील की कि उसके पति की वित्तीय स्थिति को देखते हुए यह राशि अपर्याप्त है।
🌑 सुनवाई के दौरान पत्नी ने तर्क दिया कि कोलकाता में होटल प्रबंधन संस्थान में कार्यरत पति की मासिक शुद्ध आय ₹1.64 लाख है। पत्नी ने कहा कि दिया गया गुजारा भत्ता विवाह के दौरान उसके जीवन स्तर से मेल खाने के लिए बहुत कम है तथा वर्तमान जीवन-यापन लागत को प्रतिबिंबित नहीं करता है।
🌑 पति ने तर्क दिया कि अब उसकी दूसरी पत्नी है, उसके आश्रय में एक बड़ा परिवार है जिसमें वृद्ध माता-पिता का भरण-पोषण करने सहित उसके पास पर्याप्त वित्तीय दायित्व हैं।
🌑 पति पत्नी दोनों के अनुसार उनका बेटा अब 26 साल का हो गया है और आर्थिक रूप से स्वतंत्र है।
उपरोक्त सभी तर्को पर विचार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा:
“प्रतिवादी-पति की आय, वित्तीय खुलासे और पिछली कमाई यह स्थापित करती है कि वह अधिक राशि का भुगतान करने की स्थिति में है। अपीलकर्ता-पत्नी भरण-पोषण के उस स्तर की हकदार है, जो विवाह के दौरान उसके जीवन स्तर को दर्शाता है और जो उसके भविष्य को उचित रूप से सुरक्षित करता है।”
न्यायालय ने महंगाई के दबाव और पत्नी के अपने एकमात्र वित्तीय समर्थन के रूप में भरण-पोषण पर निरंतर निर्भरता को ध्यान में रखते हुए हर दो साल में 5% की वृद्धि के अधीन गुजारा भत्ता बढ़ाकर ₹50,000 प्रति माह कर दिया.
बेटे के संबंध में व्यवस्था करते हुए खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि चूंकि वह अब वयस्क है, इसलिए अनिवार्य भरण-पोषण की आवश्यकता नहीं होगी। हालांकि, पिता चाहें तो शिक्षा या अन्य उचित खर्चों में स्वेच्छा से सहायता कर सकते हैं। न्यायालय ने इस बात पर भी जोर दिया कि बेटे के उत्तराधिकार अधिकार अप्रभावित रहते हैं। लागू कानूनों के तहत उनका पीछा किया जा सकता है।
आभार 🙏👇
प्रस्तुति
शालिनी कौशिक
एडवोकेट
कैराना (शामली )
गलत निर्णय है, पत्नी को वह जीवन स्तर पति के साथ रहकर ही मिलता है, अब जब वह पति के साथ नहीं रहती, उसका कोई काम नहीं करती तो फिर वह उस जीवन स्तर की हकदार कैसे हो गई, निर्णय पर पुनर्विचार होना चाहिए.
जवाब देंहटाएंसहमत, टिप्पणी हेतु हार्दिक धन्यवाद 🙏🙏
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