घुटने न टेके चुनाव आयोग .

आयोग नहीं लगाएगा बैन, बेरोकटोक जारी रहेंगे चुनाव पूर्व सर्वेक्षण

सरकार के अनुरोध को ठुकराया
अनुच्छेद ३२४ के अंतर्गत निर्वाचनों का निरीक्षण ,निर्देशन और नियंत्रण करने के लिए निर्वाचन आयोग की स्थापना की गयी है .निर्वाचन आयोग एक स्वतंत्र निकाय है और संविधान इस बात को सुनिश्चित करता है कि यह उच्चतम और उच्च न्यायालय की भांति कार्यपालिका के बिना किसी हस्तक्षेप के स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से अपने कार्यों को सम्पादित कर सके .
अनुच्छेद ३२४ के अनुसार निर्वाचन आयोग के निम्नलिखित कार्य होंगे -
[१] -संसद तथा राज्य विधानमंडलों के निर्वाचन के लिए निर्वाचन नामावली और राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति के पदों के निर्वाचनों का अधीक्षण ,निदेशन और नियंत्रण करना .
[२] -उक्त निर्वाचनों का सञ्चालन .
[३] -संसद तथा राज्य विधानमंडलों के निर्वाचन सम्बन्धी संदेहों और विवादों के निर्णय के लिए निर्वाचन अधिकरण की नियुक्ति करना .
[४] -संसद तथा राज्य विधानमंडलों के सदस्यों की अनहर्ताओं के प्रश्न पर राष्ट्रपति और राज्यपालों को परामर्श देना .
और ऐसा ही नहीं है चुनाव आयोग की चुनाव सम्बन्धी शक्तियां असीमित हैं मोहिंदर सिंह गिल बनाम मुख्य चुनाव आयोग ,ए.आई.आर.१९७८ एस.सी.८५१ में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि ''चुनाव आयोग को किसी स्थान के चुनाव को रद्द करने की शक्ति भी है .''
इस प्रकार निर्वाचन आयोग का कार्य निर्वाचन का सञ्चालन ,नियंत्रण ,निर्देशन ,निरीक्षण अर्थात निर्वाचन से जुडी सारी प्रक्रिया निर्वाचन आयोग के अधीन है ,सरकार का कार्य इसमें केवल चुनाव की तारीखों की घोषणा मात्र है .जब सरकार द्वारा चुनावों की तारीखों की घोषणा कर दी जाती है तब निर्वाचन आयोग चुनावों करने का कार्य प्रारम्भ करता है और उसे पूरा करता है ऐसे में चुनाव पूर्व सर्वेक्षण पर अपना बैन न लगाने का रुख रखना चुनाव आयोग द्वारा लोकतंत्र को अपने हिसाब से चलने और मोड़ने की इच्छा रखने वालों के सामने घुटने टेकना ही कहा जायेगा क्योंकि ये पहले ही स्पष्ट हो चुका है कि ये चुनाव पूर्व सर्वेक्षण सम्पूर्ण जनसंख्या के १% का भी प्रतिनिधित्व नहीं करते हाँ इतना अवश्य है कि ये अफवाहों के फ़ैलाने वालों को पूर्ण संरक्षण देते हैं क्योंकि भारतीय जनता उन अंधविश्वासियों में से है जो ''आसमान गिर रहा है ,आसमान गिर रहा है .''सुनकर भाग लेती है एक बार भी रूककर ये नहीं देखती कि आसमान अपनी जगह पर ही कायम है किन्तु जब तक वास्तविकता उसकी समझ में आती है तब तक स्थिति बेकाबू हो चुकी होती है और सिवाय अफ़सोस के और कुछ नहीं रहता .आज निर्वाचन आयोग इस सम्बन्ध में सरकार से कानून बनाने को कह रहा है और अपने को इससे अलग कर रहा है जबकि चुनाव सम्बन्धी संदेहों व् विवादों का निवारण करना चुनाव आयोग का काम है और अगर इन सर्वेक्षणों से उत्पन्न स्थिति से कोई विवाद व् संदेह उत्पन्न हो जाने पर कोई भी समर्थक किसी अन्य समर्थक के साथ कुछ गलत कर देता है तब चनाव आयोग उसे आचार संहिता का उल्लंघन मानकर कार्यवाही को बढ़ेगा किन्तु पहले ही उसपर काबू कर पाने की स्थिति में होते हुए भी संविधान द्वारा दिए गए अपने कर्त्तव्य से मुंह मोड़ रहा है ,जो कि सही नहीं है .निर्वाचन आयोग को अपने कर्त्तव्य का सही ढंग से निर्वहन करते हुए चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों पर रोक लगानी ही चाहिए .
शालिनी कौशिक
[कानूनी ज्ञान ]

टिप्पणियाँ

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (01-03-2014) को "'बोलते शब्द'' (चर्चा मंच-1568) पर भी है!
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    नवसम्वतसर २०७१ की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (31-03-2014) को "'बोलते शब्द'' (चर्चा मंच-1568) पर भी है!
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    नवसम्वतसर २०७१ की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. बहुत ही बेहतरीन जानकारी युक्त आलेख,धन्यबाद।

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  4. रोक तो लगनी चाहिए .. पर बिउल्ली के गले में घंटी कौन बंधे .. हर फायदे वाली पार्टी विरोध में खड़ी हो जाती है ...

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