स्त्रीधन की वापसी पर इलाहाबाद हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय

 

       कृष्ण कुमार गुप्ता बनाम प्रीति गुप्ता केस पर महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि पति-पत्नी की संपत्तियों के वितरण, जिसमें 'स्त्रीधन' की वापसी भी शामिल है, उसका निर्धारण हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की कार्यवाही के अंतर्गत ही किया जाना चाहिए, न कि धारा 27 के तहत अलग से दिए गए आवेदन पर।
      जस्टिस अरिंदम सिन्हा और जस्टिस अवनीश सक्सेना की खंडपीठ ने कहा, 
'स्त्रीधन' की वापसी एक मुद्दा होना चाहिए, जिसे अधिनियम के तहत चल रही कार्यवाही के ट्रायल में तय किया जाए, न कि धारा 27 के तहत स्वतंत्र रूप से दिए गए आवेदन पर।"
     परिवार न्यायालय द्वारा अपीलकर्ता-पति को  उत्तरदायी-पत्नी को 'स्त्रीधन' की वापसी के रूप में 1054364/- रूपये अदा करने का निर्देश जारी किया गया था। दोनों पक्षकारों के बीच विवाह 1 मई, 2023 को भंग कर दिया गया था। पत्नी द्वारा अंतरिम भरण-पोषण के लिए दायर याचिका में पति ने कुल 7 लाख का भुगतान किया था। 
➡️ अपीलकर्ता पति के वकील ने कहा-

🌑 पति-पत्नी द्वारा स्वामित्व वाली संपत्तियों का वितरण केवल तलाक की डिक्री में ही किया जा सकता है और इस डिक्री में 'स्त्रीधन' को लेकर कोई निर्देश नहीं दिया गया था।
🌑 छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के निर्णय बबिता @ गायत्री बनाम मोडप्रसाद @ पिंटू को अपने पक्ष मे प्रस्तुत करते हुए अपील कर्ता पति ने कहा
 "जब तक अधिनियम के तहत कोई वैवाहिक कार्यवाही निर्णीत नहीं हो जाती, तब तक धारा 27 के अंतर्गत स्वतंत्र आवेदन स्वीकार्य नहीं है। यह प्रावधान मुकदमों की बहुलता से बचने और उसी कार्यवाही के अंतर्गत 'स्त्रीधन' की वापसी की याचिका की अनुमति देने के लिए है, जिसमें वैवाहिक विवाद कोर्ट के समक्ष लाया गया."

🌑 उत्तरदायी पत्नी के वकील की दलील-

      अपीलकर्ता पहले समीक्षा याचिका में असफल रहे और अब अपील कर रहे हैं जो स्वीकार्य नहीं है। यह भी कहा गया कि पत्नी अब निष्पादन कार्यवाही चला रही हैं।

➡️ न्यायालय का अवलोकन-

 प्रथन सूचना रिपोर्ट में आरोप लगाया गया था कि पति ने जबरदस्ती गहने ले लिए किन्तु कोर्ट ने पाया कि केवल साजिश के आरोप थे और पत्नी द्वारा स्वयं से की गई जिरह में कहा गया था कि घटना के समय पति मौजूद नहीं थे। कोर्ट ने यह भी कहा कि गहनों की रसीदों की फोटोकॉपी, जो पत्नी के माता-पिता ने दी थीं, उसको पति प्रमाणित नहीं कर सकते क्योंकि उन्होंने न तो मूल रसीद देखी और न ही लेन-देन के गवाह थे।

➡️ कोर्ट की टिप्पणी :-

 "एक दस्तावेज केवल उसके निर्माता द्वारा ही प्रमाणित किया जा सकता है, या वह व्यक्ति जो निर्माता को दस्तावेज बनाते और सौंपते हुए देखे।"

 इस पर कोर्ट ने पाया कि फैमिली कोर्ट ने बिना उचित आधार के आरोपों को स्वीकार कर लिया। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के निर्णय बबिता @ गायत्री बनाम मोडप्रसाद @ पिंटू से सहमति जताते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा,

 "धारा 25 केवल उस स्थिति में लागू होती है जब तलाक की डिक्री के बाद भरण-पोषण का निर्देश मांगा जाए। वहीं धारा 27 के अंतर्गत केवल उसी डिक्री में निर्देश दिए जा सकते हैं, जिसमें विवाह-विच्छेद किया गया हो और संपत्ति को लेकर आदेश जारी किया गया हो। 1 मई, 2023 की डिक्री में ऐसा कोई निर्देश नहीं दिया गया।"

      इस प्रकार इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा परिवार न्यायालय द्वारा किये गए 1054364/- रूपये के भुगतान का आदेश निरस्त कर दिया गया क्योंकि पत्नी को 7 लाख अंतरिम भरण-पोषण और 2,10,000 आंशिक निष्पादन के रूप में प्राप्त हो चुके थे। कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता की जीत के साथ निष्पादन कार्यवाही स्वतः समाप्त मानी जाएगी।


आभार

LiveLaw. Com 

प्रस्तुति
शालिनी कौशिक
एडवोकेट
कैराना (शामली)

टिप्पणियाँ

  1. सराहनीय निर्णय, प्रस्तुति हेतु हार्दिक धन्यवाद 🙏🙏

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    1. सहमत, प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक धन्यवाद 🙏🙏

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