पहले अपराध साबित हो जस्टिस गांगुली का तब इस्तीफा

पहले अपराध साबित हो जस्टिस गांगुली का तब इस्तीफा


I am not resigning, says Justice AK Ganguly, indicted in sexual harassment case
महिला सशक्तिकरण का दौर चल रहा है किन्तु क्या इसका साफ तौर पर यह मतलब लगा लेना चाहिए कि पुरुष के अशक्त होने का दौर आरम्भ हो चुका है ?क्या वास्तव में महिला तभी सशक्त हो सकती है जब पुरुष अशक्त हो फिर क्यूँ ये कहा जाता है कि ये दोनों एक ही रथ के दो पहिये हैं ?
आज हर ओर स्त्री पर हो रहे अन्यायों को लेकर ही विरोध के झंडे बुलंद किये जा रहे हैं ,होने भी चाहियें ,स्त्री आरम्भ से लेकर आज तक शोषण का शिकार रही है किन्तु इसका मतलब यह नहीं कि मात्र वही शोषण पीड़ित है ,शोषण तो पुरुषों का भी होता आया है .जैसे पुरुषों ने महिलाओं का शोषण किया वैसे ही महिलाओं ने भी पुरुषों को नहीं बख्शा .सूपर्णखा भी एक नारी थी जिसने अपनी दुर्भावना के पूरी न होने पर सम्पूर्ण लंका को युद्ध की विभीषिका में धकेल दिया .नारी जाति में आज भी ऐसी कलंक कथा मौजूद हैं जो कानून का दुरूपयोग कर कभी पुरुष को कभी दहेज़ में कभी छेड़छाड़ में तो कभी बलात्कार के मिथ्या आरोप में फंसा रही हैं मैं नहीं कहती कि जो आरोप अभी हाल ही में प्रतिष्ठित शख्सियतों पर लगाये गए हैं वे दुर्भावना से प्रेरित होकर लगाये गए हैं किन्तु कानून सबूतों और गवाहों के बयानों पर आगे की कार्यवाही करता है और उसके बाद ही किसी निर्णय पर पहुँचता है .
अभी हाल ही में हुए दो मामले प्रतिष्ठित व्यक्तियों से जुड़े हैं ,तरुण तेजपाल के मामले में तो मामला तरुण तेजपाल द्वारा अपने अपराध की स्वीकारोक्ति करने पर लगभग सुलझ गया किन्तु जस्टिस गांगुली पर लगे आरोप और तीन सदस्यीय पैनल की रिपोर्ट उनकी अपराध में संलिप्तता साबित नहीं करती और जब तक यह संलिप्तता साबित न हो या जस्टिस गांगुली स्वयं अपना अपराध स्वीकार न कर लें उन्हें अपराधी मानना और पश्चिमी बंगाल के मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष पद से उनका इस्तीफा मांगना गलत है .

लोकसभा में गूंजा जस्टिस गांगुली का मामला

इस तरह तो कोई भी किसी पर आरोप लगा दे और स्वयं के नारी होने का लाभ उठाते हुए पुरुष को शर्मसार कर दे यह गलत ही कहा जाना चाहिए .मात्र आरोप किसी को अपराधी नहीं बनाता और पहले भी ऐसे मामले आये हैं जिसमे साजिश करके सही लोगों से उनके पद छीने गए हैं इसलिए सही जाँच ज़रूरी है .
और सबसे बड़ी बात यह कि यदि स्त्री को सम्मान से जीने का अधिकार है तो पुरुष को भी गरिमामय वातावरण अपने सही आचरण पर मिलना ही चाहिए क्योंकि यदि सारी नारी पतिव्रता नहीं हैं तो सभी पुरुष भी तो कलंकित नहीं हैं .इसलिए अपराध साबित होने से पहले इस्तीफे की मांग किया जाना व्यर्थ का प्रलाप है और यह बंद होना चाहिए .
शालिनी कौशिक

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मृतक का आश्रित :अनुकम्पा नियुक्ति

वसीयत और मरणोपरांत वसीयत

हिन्दू विधवा पुनर्विवाह बाद भी उत्ताधिकारी