नहीं ये नहीं हो सकता ........

नहीं ये नहीं हो सकता ........

Supreme Court says gay sex illegal, govt hints at legislative route


सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए ११ दिसंबर को भारतीय दंड सहिंता की धारा ३७७ को जायज़ ठहराया और समलैंगिक सम्बन्धों को अपराध .भारतीय दंड सहिंता की धारा ३७७ जिसमे कहा गया है कि -
''जो कोई किसी पुरुष ,स्त्री या जीव-जंतु के साथ प्रकृति की व्यवस्था के विरुद्ध स्वेच्छया इन्द्रिय भोग करेगा ,वह आजीवन कारावास से ,या दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी ,दण्डित किया जायेगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा .''
इस प्रकार यह एक ऐसा सम्भोग को अपराध घोषित करता है जो कि एक पुरुष दुसरे पुरुष के साथ ,एक स्त्री दूसरी स्त्री के साथ या एक पुरुष या स्त्री किसी पशु या जीव-जंतु के साथ गठित करता है .
और हद है कि जिस निर्णय की सर्वत्र तारीफ होनी चाहिए वह आलोचना का शिकार हो रहा है .
लोक व्यवस्था वह मुख्य प्रतिबन्ध है जिसे बनाये रखने के लिए नागरिकों के मूल अधिकारों में स्वतंत्रता के अधिकारों पर प्रतिबन्ध लगाया जा सकता है फिर ऐसे कृत्य को यदि विधायिका द्वारा या जनता के एक वर्ग के समर्थन द्वारा कानूनी जामा पहनाया जाने लगा तो लोक व्यवस्था की तो सोचना ही बेकार है .यह तो साफ तौर पर संविधान के अनुच्छेद २१ में प्राप्त ''प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण ''का मूल अधिकार छीनना है .
प्रकृति पुरुष मनु ने अपने शरीर से ही शतरूपा की उत्पत्ति की और उससे विवाह रचाया उद्देश्य था सृष्टि विस्तार किन्तु यह जो समलैंगिक सम्बन्धों के समर्थन का ढोल पीटा जा रहा है इसका उद्देश्य क्या है एक मात्र यही कि जो समलैंगिक है वे शांतिपूर्वक रहे और जो जैसा मन में आयें करते रहें किसी को कोई आपति नहीं होगी किन्तु यह सम्भव नहीं है और वह भी सामान्य जनता के बीचो बीच और इस तरह के समर्थन द्वारा सामान्य जनता को निरपराध होते हुए भी ऐसी दशा भुगतने के लिए तैयार किया जा रहा है जिससे मात्र व्यभिचार ही फैलेगा . दूरदर्शन पर प्रसारित चर्चा के एक कार्यक्रम में एक फादर का कहना था कि इस तरह के सम्बन्ध में भी दोनों अभियुक्त एक पुरुष बनता है और एक स्त्री ........और ये ही विश्व में एड्स के प्रसार का सबसे बड़ा कारण है .
आम तौर पर लड़के का लड़के के साथ फिरना और लड़की के साथ लड़की का फिरना कोई गलत नज़रों से नहीं देखता और न ही आम तौर पर ऐसा होता है किन्तु इस तरह से इनकी हरकतों को कानूनी सुरक्षा दिया जाना सबके वही हाल करने वाला है जो ''कल हो न हो '' फ़िल्म में अमन और रोहित की हरकतें देख कांता बेन के हो रहे थे क्योंकि आज मीडिया अपने प्रचार के लिए और नेता वोट के हथियार के लिए हमारे समाज को फ़िल्मी बनाने में जुटे हैं .
शालिनी कौशिक
[कानूनी ज्ञान ]

टिप्पणियाँ

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शुक्रवार (13-12-13) को "मजबूरी गाती है" (चर्चा मंच : अंक-1460) पर भी है!
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बहोत सही कहा है आपने. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले की तारीफ ही होनी चाहिए. हद तो तब हो गयी जब इस देश की शासक पार्टी जो की आये दिन महात्मा गांधीजी का हवाला देकर अपनी राजकीय रोटी सेंकते है उन्ही के शीर्ष नेता सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले की आलोचना करते है.

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  3. नेक काम में देर कैसी ज़नाब।

    वैयक्तिक सामाजिक समस्या को कानूनी दायरे से बाहर ही रखा जाए। अध्यादेश लाया जा रहा है। समलिंगी वोट जो कराये सो कम।

    एक समाज वैज्ञानिक मुद्दे सशक्त मौज़ू पोस्ट। सारा किस्सा वोट का है। समलिंगी वोट का। समलिंगी मतदान का।

    एक ही मुद्दा है समलिंगी यौनाचार

    श्री राहुल गांधी ,श्रीमती सोनियाजी ,श्री चिदंबरम ,श्री कपिल सिब्बल साहब इस ओर निदर्शन की

    पहल करें।

    लगता है टाइम्स आफ इंडिया के सम्पादक मंडल में कोई विकृत दिमाग की शख्शियत बैठी है जो कांग्रेस को वोट कबाड़ने के समलैंगिक नुस्खे बतला रही है। अब भारत की पहचान ये समलैंगिक यौन व्यवहार ही बनेगा। आखिर एक बहुत बड़ी कोंस्टीट्यूएंसी है समलिंगी वोट। यूथ के वोट जुगाड़ का नायाब रामबाण नुस्खा है समलिंगिक यौन उच्छृंखलता। नौज़वानों के वोट कबाड़ने के लिए क्यों न चोरी चकोरी डकैती को भी अपराध मुक्त घोषित कर दिया जाए। बलात्कार को भी आखिर अंतिम लक्ष्य तो यौन तृप्ति ही है बलात्कार की भी। उन्हें वोट से मतलब है साधनों की शुचिता से नहीं। ये गांधियों की संकर ब्रीड है।

    अब न मुद्रा प्रसार कोई मुद्दा है जबकि नवंबर की तिमाही में वह ११. २४ फीसद के पार चला गया है ,न देश के सामने आतंकवाद की समस्या है न कोई सीमा विवाद न नक्सलवाद ,न कोई कोयला मुद्दा है न कोई और खुला -खेल -भ्रष्टाचारी ,न राष्ट्रीय सुरक्षा कोई मुद्दा है।

    राष्ट्र के सामने एक ही ज्वलंत समस्या और मुद्दा है समलिंगियों को प्राप्त मानवाधिकार परसनल स्पेस। भले वे किसी पशु को अपने यौन बाड़े में बंद कर लें। पशुओं के साथ यौन व्यभिचार को भी वैध घोषित कर दिया जाए अध्यादेश तो आ ही रहा है उसे और व्यापक बनाया जाए। निशाना चूक न जाए।

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  4. चुनावों में बुरी तरह पिटी कांग्रेस को एक मुद्दा तो मिला। चुनावों का मूल आधार तो वोट है और वोटों पर इस समय दबदबा नौजवानों का है। तो ऐसे में नौजवानों का वोट हासिल करने के लिए यदि समलैंगिकों को समर्थन दिया जाता है तो कांग्रेस के लिए यह घाटे का सौदा नहीं है और खासकर तब जब टाइम्स आफ इंडिया जैसे प्रतिष्ठित अखबार के सम्पादक -मंडल का कोई व्यक्ति ऐसा परामर्श और प्रेरणा दे रहा हो। उनका सुझाव बहुत बढ़िया है। सोना तो सोना है ,चाहे कीचड़ या मल में क्यों न पड़ा हो उसे उठा ही लेना चाहिए। हर समझदार आदमी यही करता है। कांग्रेस में कोई समझदारों की कमी नहीं है।

    सचमुच की समझ होना और राजनीतिक दृष्टि से समझ होना ये दो अलग बातें हैं। लोग तो सार्वजनिक जीवन में कपड़े पहन कर आते हैं पर टाइम्स आफ इंडिया के सम्पादक ने तो सारे कपड़े उतार दिए हैं । हो सकता है कि उन्होंने अपने सम्पादकीय में कहीं व्यंग्य छिपा रखा हो पर उन्हें ये नहीं पता है कि कांग्रेसी तो शुरू से ही नंगे हैं। खद्दर भी कोई कपड़ा होता है क्या?आदमी नंगा होने पर आ जाए तो खद्दर तो क्या पूरा कंबल भी नंगेपन को ढ़क नहीं सकता। टाइम्स आफ इंडिआ के सम्पादक को यह नहीं पता है कि यदि वह अपना सुझाव न भी देता तो भी कांग्रेस के नंगनाथ क्या चुप बैठ रहते। अभी तो चार ही सामने आये हैं। एक एक करके सभी चालीस चोर सामने आयेंगें। समलैंगिक होना कोई अपराध थोड़ी न है.वोट मिलेंगे तो चोरी और डकैती को भी अपराधों से बाहर किया जा सकता है। शरीर अपना है जो कुछ चाहे करें। उम्मीद तो यह भी है कि कांग्रेसी केवल सिद्धांत तक सीमित नहीं रहेंगे। खुद भी प्रक्टिकल करेंगे। आगे बढ़कर निदर्शन करेंगे।

    विज्ञान तो ऐसे किसी सिद्धांत को नहीं मानता जो प्रयोग में खरा न उतरता हो फिर समलिंगी घर्षण के तो कई क्षेत्र हैं। अनेकों प्रयोग हो सकते हैं। फिर कांग्रेस में विचारकों और विज्ञानियों की कोई कमी है क्या जो टाइम्स आफ इंडिया का सम्पादक श्रेय लेना चाहता है।लोगों को विश्वास है कि कांग्रेसी नाहक में उस सम्पादक को श्रेय नहीं दे सकते।


    नहीं ये नहीं हो सकता ..

    Supreme Court says gay sex illegal, govt hints at legislative route सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए ११ दिसंबर को भारतीय दंड सहिंता की धारा ३७७ को जायज़ ठहराया और समलैंगिक सम्बन्धों को अपराध .भारतीय दंड सहिंता की धारा ३७७ जिसमे कहा गया है कि - ''जो कोई किसी पुरुष ,स्त्री या जीव-जंतु के साथ प्रकृति की व्यवस्था के विरुद्ध स्वेच्छया इन्द्रिय भोग करेगा ,वह आजीवन कारावास से ,या दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी ,दण्डित किया जायेगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा ....
    कानूनी ज्ञान पर Shalini Kaushik

    मौज़ू सवाल उठाये हैं आपने धार्मिक इतिहास और परम्परा के आलोक में।

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