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विवाह संबंधी झगड़ों में हाई कोर्ट के पास अहम शक्ति --सुप्रीम कोर्ट

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           विवाह संबंधी झगड़ों में दायर खासतौर पर उन विवाह संबंधी झगड़ों में दायर की गई एफ आई आर के संबंध में जिनमें अक्सर भारतीय दंड संहिता की धारा 498A, 323, 504, और 506 लगाई जाती हैं उन एफ आई आर रद्द करने के संबंध में महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अपूर्वा अरोरा बनाम राज्य उत्तर प्रदेश मामले में स्पष्ट किया कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत हाईकोर्ट के पास वह शक्ति है कि वह ऐसी आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर सके जो केवल बदले की भावना या प्रताड़ना के उद्देश्य से की गई हो।       सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि- " अगर कोई एफ आई आर कानून का दुरुपयोग करते हुए दर्ज की गई हो, और उसका उद्देश्य न्याय नहीं बल्कि प्रतिशोध हो, तो हाईकोर्ट को आगे बढ़कर ऐसे मामलों को समाप्त कर देना चाहिए।" ➡️ धारा 482 दंड प्रक्रिया संहिता की शक्ति-       सुप्रीम कोर्ट के अनुसार दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत हाईकोर्ट को " अंतर्निहित शक्तियां " दी गई हैं। यह शक्तियां असीम नहीं हैं,किन्तु इन्हें तब अवश्य उपयोग में लाया ज...

रजिस्टर्ड वसीयत प्रमाणिक: सुप्रीम कोर्ट

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 सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (21 जुलाई) को दोहराया कि रजिस्टर्ड 'वसीयत' के उचित निष्पादन और प्रामाणिकता की धारणा होती है और सबूत का भार वसीयत को चुनौती देने वाले पक्ष पर होता है। ऐसा मानते हुए जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट का फैसला रद्द कर दिया, जिसमें विवादित भूमि में अपीलकर्ता/लासुम बाई का हिस्सा कम कर दिया गया था और रजिस्टर्ड वसीयत और मौखिक पारिवारिक समझौते के आधार पर उनका पूर्ण स्वामित्व बरकरार रखा। न्यायालय ने माना कि हाईकोर्ट ने अपने तर्क में गलती की और इस बात पर ज़ोर दिया कि रजिस्टर्ड वसीयत की प्रामाणिकता की प्रबल धारणा होती है। यह धारणा वर्तमान मामले में और भी पुष्ट हुई, क्योंकि प्रतिवादी ने यह स्वीकार किया था कि वसीयत पर उसके पिता के हस्ताक्षर थे, इसलिए उसने इसकी प्रामाणिकता पर कोई विवाद नहीं किया, खासकर तब जब वसीयत से न केवल अपीलकर्ता को बल्कि स्वयं प्रतिवादी और उसकी बहन को भी लाभ हुआ हो। Case Title: METPALLI LASUM BAI (SINCE DEAD) AND OTHERS VERSUS METAPALLI MUTHAIH(D) BY LRS. (https://hindi.livelaw.in/supreme-court/registered...

Every Advocate is lawyer but Lawyer only Lawyer

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  आप एक एडवोकेट (Advocate) तब बन सकते हैं जब आप लॉ की डिग्री पूरी करने के बाद, बार काउंसिल में रजिस्टर हो जाते है और आपको कोर्ट में केस लड़ने की अनुमति मिल जाती है. एडवोकेट, लॉयर से अलग होता है क्योंकि लॉयर सिर्फ कानूनी सलाह दे सकता है, जबकि एडवोकेट कोर्ट में केस लड़ सकता है और अपने क्लाइंट का प्रतिनिधित्व कर सकता है.  ➡️ एडवोकेट बनने की प्रक्रिया:  1️⃣ एलएलबी की डिग्री: सबसे पहले, किसी मान्यता प्राप्त लॉ कॉलेज से 3 या 5 साल की एलएलबी (बैचलर्स ऑफ लॉ) की डिग्री प्राप्त करना आवश्यक है.  2️⃣ बार काउंसिल में रजिस्ट्रेशन: एलएलबी पूरी करने के बाद, आपको अपने राज्य की बार काउंसिल में रजिस्टर कराना होगा.  3️⃣. ऑल इंडिया बार एग्जामिनेशन (AIBE):  पहले आपको लॉ की डिग्री प्राप्त करने के बाद केवल संबंधित राज्य की बार काउंसिल मे एनरोलमेंट कराना होता था किन्तु अब 2010 से बार काउंसिल में रजिस्ट्रेशन के बाद, आपको रजिस्ट्रेशन के दो साल के अंदर ऑल इंडिया बार एग्जामिनेशन (AIBE) भी पास करना होता है.  4️⃣. प्रेक्टिस का प्रमाण पत्र:(COP-certificate of practice)   20...

गुजारा भत्ता -अहम फैसला

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रजनीश बनाम नेहा (Rajnish vs Neha) का मामला 2021 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुनाया गया एक महत्वपूर्ण फैसला है, जो भरण-पोषण (maintenance) के मामलों से संबंधित है। इस फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने भरण-पोषण के मामलों में दिशा-निर्देश जारी किए, जिससे अदालतों को यह सुनिश्चित करने में मदद मिल सके कि भरण-पोषण के मामलों का तेजी से और कुशलता से निपटारा हो।  रजनीश बनाम नेहा मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने माना कि भरण-पोषण के मामलों में, अदालतों को कुछ बातों पर विचार करना चाहिए, जैसे: 🌑 पति और पत्नी दोनों की वित्तीय स्थिति (financial position)।  🌑 भरण-पोषण की राशि तय करते समय, पति की आय और देनदारियों (liabilities) पर विचार किया जाना चाहिए।  🌑 भरण-पोषण का आदेश देते समय, अदालतों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आदेश उचित और न्यायसंगत हो। 🌑 भरण-पोषण के मामलों का निपटारा यथासंभव शीघ्रता से किया जाना चाहिए। यह फैसला भरण-पोषण के मामलों में अदालतों को एकरूपता लाने और यह सुनिश्चित करने में मदद करता है कि पीड़ितों को उचित और समय पर न्याय मिले। सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया कि भरण-पोषण के मा...

सिर्फ आर्य समाज मंदिर का प्रमाणपत्र विवाह का वैध सबूत नहीं : हाईकोर्ट

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इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बैंच की एकल पीठ ने महिला के अनुकंपा नियुक्ति के मामले में दिए अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि " सिर्फ आर्य समाज मंदिर का प्रमाणपत्र विवाह का वैध सबूत नहीं माना जाएगा।" इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि  "महज स्टांप पेपर पर पति-पत्नी के बीच तलाक नहीं हो सकता है।" न्यायमूर्ति मनीष माथुर की एकल पीठ ने  ये कहते हुए कोर्ट ने महिला की अनुकंपा नियुक्ति पाने की याचिका खारिज कर दी। ➡️ क्या था मामला -  मौजूदा मामले में महिला ने अपने पति की मृत्यु के बाद उसकी जगह खुद को अनुकंपा नियुक्ति प्रदान करने का दावा किया, जिसे उसके पति की नौकरी के विभाग कृषि विभाग ने बीते 5 अप्रैल को खारिज कर दिया। अपने दावे को खारिज करने के आदेश को महिला ने हाईकोर्ट में चुनौती दी ।जिसमें महिला का कहना था कि कृषि विभाग में कार्यरत व्यक्ति के साथ, उसकी पहली पत्नी से कथित तलाक होने के बाद 2021 में महिला ने आर्य समाज मंदिर में विवाह किया था। इसके साथ ही महिला ने कोर्ट के समक्ष ये बात भी रखी कि उसके द्वारा इस संबंध में जरूरी दस्तावेज भी कोर्ट में पेश किए गए और आर्य समाज मंदिर से...

Cooling Period Alert- 498A की FIR में दो महीने तक नहीं होगी गिरफ्तारी

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परिवार कल्याण समिति (FWC) की स्थापना के संबंध में इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा निर्धारित सुरक्षा उपायों का समर्थन करते हुए वैवाहिक विवादों में भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498A (क्रूरता अपराध) के दुरूपयोग को रोकने के लिए निर्देश जारी कर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा निर्धारित दिशानिर्देश प्रभावी रहेंगे और प्राधिकारियों द्वारा उनका क्रियान्वयन किया जाना चाहिए।  चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की खंडपीठ ने आदेश दिया: "इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा 13.06.2022 के आपराधिक पुनर्विचार संख्या 1126/2022 के विवादित निर्णय में अनुच्छेद 32 से 38 के अनुसार, 'भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए के दुरुपयोग से बचाव के लिए परिवार कल्याण समितियों के गठन' के संबंध में तैयार किए गए दिशानिर्देश प्रभावी रहेंगे और उपयुक्त प्राधिकारियों द्वारा उनका क्रियान्वयन किया जाएगा।"  ➡️ इलाहाबाद हाई कोर्ट 2022 निर्णय- इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा अपने 2022 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट के सोशल एक्शन फोरम फॉर मानव अधिकार बनाम भारत संघ 2018 (10) एससीसी 443 मामले में दिए गए फै...

होटलों को रजिस्ट्रेशन और लाइसेंस दिखाना होगा -सुप्रीम कोर्ट

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खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन विभाग (एफएसडीए) ने कांवड़ यात्रा मार्ग पर दुकानों पर नाम लिखने के मामले में नई रणनीति अपनाते हुए दुकानों पर दुकानदारों के नाम लिखने के बजाय दुकान का नाम लिखे जाने के आदेश पारित किये गए। जिस संबंध में व्यक्तिगत तौर पर जानने के लिए एप से जानकारी प्राप्त करने के लिए खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन विभाग (एफएसडीए) ने प्रपत्र जारी किया.  पहले प्रदेश में कांवड़ यात्रा मार्ग की दुकानों पर दुकानदार के नाम लिखने की बात कही गई किन्तु एफएसडीए के एक्ट में इसका कोई प्रावधान न मिलने पर विभाग ने नई रणनीति अपनाते हुए ग्राहक संतुष्टि फीडबैक प्रपत्र तैयार किया और तैयार प्रपत्र को हर दुकानदार को अपनी दुकान पर लगाना अनिवार्य कर दिया .इस प्रपत्र में टोल फ्री नंबर और फूड सेफ्टी कनेक्ट एप के तहत क्यूआर कोड लगा था। क्यू आर कोड को स्कैन करते ही ग्राहक इस पर पूरा विवरण देख सकते हैँ। QR कोड को स्कैन करते ही दुकानदार के नाम से ही अन्य सभी विवरण भी सामने आ जाने थे.     उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकारों द्वारा कांवड़ यात्रा मार्ग पर भोजन विक्रेताओं को अपने बैनरों पर QR Co...

पिता की मृत्यु के बाद मां ही बच्चे की प्राकृतिक अभिभावक-बॉम्बे हाई कोर्ट

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  एक मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा- " हिंदू अल्पसंख्यक और संरक्षकता अधिनियम, 1956 की धारा 6 के तहत वैधानिक योजना, यह प्रदान करती है कि मां पिता के बाद प्राकृतिक अभिभावक बन जाती है, और कानून उसे प्राथमिकता देता है जब तक कि यह साबित न हो जाए कि वह अयोग्य है" न्यायालय ने आगे कहा-  "धारा 6 (a) में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि अविवाहित लड़की के मामले में, पिता और उसके बाद, मां नाबालिग की प्राकृतिक अभिभावक है , कानूनी रूप से बोलते हुए, नाबालिग लड़की को मां की हिरासत में दिया जाना चाहिए जब तक कि यह स्थापित न हो जाए कि उसके पास नाबालिग के कल्याण को सुरक्षित करने के लिए प्रतिकूल हित या अक्षमता है।" न्यायालय ने कहा कि  " नाबालिग का कल्याण सर्वोच्च विचार है, हालांकि विशेष विधियों के प्रावधान माता-पिता या अभिभावकों के अधिकारों को नियंत्रित करते हैं। "  न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि " केवल इसलिए कि दादा-दादी ने कुछ वर्षों तक बच्चे का पालन-पोषण किया था, उन्हें प्राकृतिक अभिभावक पर बेहतर अधिकार नहीं देता है। यह देखा गया है कि केवल इसलिए कि दादा-दादी या अन्य रिश...

घर के सामने वाहन -BNS में अपराध

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 घर के सामने वाहन खड़ा करना, विशेष रूप से यदि यह सार्वजनिक सड़क या किसी और के प्रवेश द्वार को बाधित करता है, तो यह भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत दंडनीय अपराध हो सकता है. विशेष रूप से, IPC/BNS की धारा 268/270, 283/285, और 339/126 का उल्लंघन हो सकता है.  ➡️ सार्वजनिक मार्ग में बाधा: यदि कोई वाहन किसी सार्वजनिक मार्ग या सड़क पर इस तरह से खड़ा किया जाता है कि वह दूसरों के लिए बाधा उत्पन्न करता है, तो यह IPC की धारा 283 के तहत अपराध है, जो सार्वजनिक मार्ग में बाधा डालने से संबंधित है. ➡️ धारा 283 भारतीय दंड संहिता जो अब भारतीय न्याय संहिता में हो गई है धारा 285,जो कहती है कि - ✒️ 285. लोक मार्ग या नौपरिवहन पथ में संकट या बाधा. - जो कोई किसी कार्य को करके या अपने कब्जे में की, या अपने भार-साधन के अधीन किसी संपत्ति की व्यवस्था करने का लोप करने के द्वारा, किसी लोकमार्ग या नौपरिवहन के लोक पथ में किसी व्यक्ति को संकट, बाधा या क्षति कारित करेगा वह जुर्माने से, जो पांच हजार रुपए तक का हो सकेगा, दण्डित किया जाएगा। ➡️ गलत तरीके से रोकना: यदि कोई वाहन इस तरह से खड़ा किया जाता है कि वह किसी ...

किरायेदार जर्जर इमारत को गिराने का विरोध नहीं कर सकता -इलाहाबाद हाईकोर्ट

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                इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि  "किरायेदार जर्जर इमारत को गिराने का विरोध नहीं कर सकता।" कोर्ट ने कहा कि " जीवन की सुरक्षा उत्तर प्रदेश शहरी परिसर किरायेदारी विनियमन अधिनियम 2021 के तहत व्यक्तियों के व्यक्तिगत अधिकारों से अधिक महत्वपूर्ण है।"     इस टिप्पणी के साथ कोर्ट ने भवन गिराने की अनुमति दे दी है। न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार मिश्र एवं न्यायमूर्ति जयंत बनर्जी की खंडपीठ द्वारा यह टिप्पणी अलीगढ़ निवासी अशोक कुमार गुप्ता की याचिका को स्वीकार करते हुए दी गई. न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार मिश्र एवं न्यायमूर्ति जयंत बनर्जी की खंडपीठ ने कहा कि " किरायेदार भवन के शीघ्र विध्वंस पर आपत्ति करने के हकदार नहीं होंगे। खासकर तब, जब अधिकारियों ने संबंधित परिसर का निरीक्षण किया हो और उसे ध्वस्त करना अनिवार्य माना हो। भवन के जीर्ण-शीर्ण होने और व्यक्तियों के जीवन को खतरा उत्पन्न करने के कारण व्यक्तियों के जीवन की सुरक्षा के लिए अधिनियम 1959 के तहत लागू योजना को व्यक्तिगत लोगों के किरायेदारी अधिकारों की ...

सुप्रीम कोर्ट ने आदिवासी महिलाओं को पुरुषों के समान दिया उत्तराधिकार का अधिकार,

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 अपने हाल ही के एक निर्णय में उच्चतम न्यायालय ने आदिवासी महिलाओं को पुरुषों के समान उत्तराधिकार के अधिकार प्रदान करने का ऐतिहासिक फैसला सुनाया है. राम चरण एवं अन्य बनाम सुखराम एवं अन्य के उत्तराधिकार से संबंधित विवाद में आदिवासी परिवार की महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा - "कि महिलाओं को उत्तराधिकार से वंचित करना अनुचित और भेदभावपूर्ण है। न्यायालय ने कहा कि यद्यपि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम अनुसूचित जनजातियों पर लागू नहीं होता, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि आदिवासी महिलाएं स्वतः ही उत्तराधिकार से वंचित हो जाती हैं। न्यायालय ने आगे कहा कि यह देखा जाना चाहिए कि क्या कोई प्रचलित प्रथा मौजूद है, जो पैतृक संपत्ति में महिला आदिवासी हिस्सेदारी के अधिकार को प्रतिबंधित करती है।"        प्रस्तुत मामले में पक्षकार ऐसी किसी प्रथा का अस्तित्व स्थापित नहीं कर सके, जिसमें महिलाओं को उत्तराधिकार से वंचित किया गया हो। न्यायालय ने कहा,   " रीति-रिवाज भी समय के बंधन में नहीं रह सकते। दूसरों को रीति-रिवाजों की शरण लेने या उनके पीछे छिपकर दूसरों को उन...

पति-पत्नी की निजता व्यक्तिगत मामलों मे सीमित अधिकार -सुप्रीम कोर्ट

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सुप्रीम कोर्ट के हाल ही में दिए गए निर्णय के अनुसार अब पति-पत्नी के बीच हुई निजी फोन कॉल की रिकॉर्डिंग को भी पारिवारिक अदालतों में सबूत के तौर पर पेश किया जा सकेगा। पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने अपने फैसले में ऐसी रिकॉर्डिंग्स को निजता के अधिकार का हनन मानते हुए सबूत के तौर पर इस्तेमाल करने पर रोक लगा थी, जिसे उच्चतम न्यायालय द्वारा ख़ारिज कर दिया गया है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा- " कि जब पति-पत्नी के बीच ही कोई कानूनी विवाद हो, तो ऐसी कॉल रिकॉर्डिंग को निजता का उल्लंघन नहीं माना जाएगा। अदालत ने कहा कि निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार (Right to Fair Trial) के तहत, जो संविधान के अनुच्छेद 21 का हिस्सा है, किसी भी पक्ष को अपने केस को साबित करने के लिए प्रासंगिक सबूत पेश करने की अनुमति है." महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि फैमिली कोर्ट द्वारा अपने आदेश में इन रिकॉर्डिंग्स को सबूत के तौर पर स्वीकार गया था.सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय के साथ ही फैमिली कोर्ट का वह आदेश फिर से लागू हो गया है. ➡️ मौजूदा मामला-      यह मामला एक पारिवारिक अदालत से शुरू हुआ था, जहाँ एक पक्ष ने अपने जीवनसाथ...

काँवडियों के लिए शामली पुलिस आधार आदि के साथ नो ऑब्जेक्शन भी करें जरुरी

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  ( SHALINI KAUSHIK LAW CLASSES ) शामली जिले में प्रशासन द्वारा काँवड़ियों के लिए सख्त निर्देश जारी किये गए हैँ. कांवड़ यात्रा के दौरान गलत लोगों और कांवड़ियों पर पुलिस और प्रशासन की पैनी नजर रहेगी. हरियाणा सीमा से आने वाले काँवड़ियों को अपने पहचान पत्र साथ रखने होंगे. बिना आधार, पैन, डीएल या आईडी के यात्रा की अनुमति नहीं दी जाएगी. सुरक्षा एजेंसियो से प्राप्त सुरक्षा अलर्ट के चलते यह सख्ती बरती जा रही है. प्रशासन ने साफ कहा है कि कोई भी संदिग्ध व्यक्ति या नशेड़ी कांवड़ यात्रा में शामिल नहीं होना चाहिए. इसके लिए हर वह व्यक्ति जो काँवड लेने जा रहा है या लेकर आ रहा है तो उसे कांवड़ के साथ अपने पास निम्न से कोई दस्तावेज साथ रखने होंगे- ✒️ आधार कार्ड,  ✒️पैन कार्ड,  ✒️ड्राइविंग लाइसेंस या  ✒️कोई वैध पहचान पत्र .       जिनके पास ये पहचान पत्र नहीं होंगे, उन्हें यात्रा में शामिल नहीं होने दिया जाएगा. ➡️ प्रशासन काँवड यात्रा और काँवड़ियों के सुरक्षा के लिए सतर्क-   गलत मंशा वाले व्यक्ति को कांवड़ यात्रा में शामिल होने से रोकने के लिए खासकर गलत लोगों को र...

कांवड़ यात्रा मार्ग पर भोजनालयों पर QR Code लगाने के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती

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  उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकारों द्वारा कांवड़ यात्रा मार्ग पर भोजन विक्रेताओं को अपने बैनरों पर QR Code स्टिकर प्रदर्शित करने के निर्देश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में आवेदन दायर किया गया। इन निर्देशों में तीर्थयात्रियों को मालिकों की जानकारी प्राप्त करने में मदद मिलेगी।  आवेदन में उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड राज्यों में कांवड़ यात्रा मार्गों पर भोजन विक्रेताओं के स्वामित्व/कर्मचारी की पहचान सार्वजनिक करने की आवश्यकता वाले या उसे सुविधाजनक बनाने वाले सभी निर्देशों पर रोक लगाने की मांग की गई. यह तर्क दिया गया कि  "ये निर्देश पिछले साल सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित अंतरिम आदेश के विपरीत हैं, जिसमें कहा गया कि विक्रेताओं को अपनी पहचान उजागर करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। आवेदक प्रोफेसर अपूर्वानंद ने तर्क दिया कि न्यायालय का आदेश दरकिनार करने के लिए सरकारी अधिकारियों ने इस वर्ष नए निर्देश जारी किए हैं, जिसमें कांवड़ यात्रा मार्ग पर सभी भोजनालयों पर QR Code प्रदर्शित करना अनिवार्य किया गया, जिससे मालिकों के नाम और पहचान का पता चलता है। आवेदक ने तर्क दिया कि इस निर्देश के पीछे...

डी एन ए टेस्ट -कोर्ट पिता के चरित्र और सम्मान को भी महत्व दें.

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     डी एन ए टेस्ट आज की फैमिली कोर्ट प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है, एक तरफ जहाँ पितृत्व की अभिस्वीकृति के लिए डीएनए टेस्ट जरुरी हो जाता है वहीं कोर्ट द्वारा बच्चे का हित देखते हुए डीएनए टेस्ट का आदेश बहुत ही सीमित मामलों में दिया जाता है. उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री स्व एन डी तिवारी के अवैध संबंधो से पैदा पुत्र रोहित शेखर ने जब कोर्ट में डीएनए टेस्ट के लिए याचिका लगाई तो कोर्ट ने बेटे की ही मांग को देखते हुए डीएनए टेस्ट का आदेश दिया और डीएनए टेस्ट के माध्यम से रोहित शेखर ने अपना अधिकार प्राप्त किया, किन्तु अधिकांश मामलों में जहाँ पिता डीएनए टेस्ट की मांग करते हैं वहां कोर्ट इस मांग को बच्चे का हित देखते हुए लगभग ठुकरा देती है. इसी मुद्दे पर अभी हाल ही में बॉम्बे हाईकोर्ट ने SKP बनाम KSP (रिट याचिका 3499/2020) में कहा- " कि यदि किसी बच्चे की मां उसके पितृत्व की जांच के लिए डीएनए टेस्ट कराने के लिए सहमत भी हो तब भी कोर्ट को बच्चे के अधिकारों का संरक्षक (Custodian) बनकर उसके हितों पर विचार करना आवश्यक है। कोर्ट को टेस्ट के पक्ष और विपक्ष दोनों पहलुओं का मू...

बेटी अब खेती की भी मालिक होगी

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बेटियों के अधिकारों लिए आरम्भ से लेकर आज तक बहुत से संघर्ष किये गए और बहुत से फैसले लिए गए. उन सभी को देखते हुए 2005 में हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम में जो बदलाव का निर्णय देश के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिया गया उसे मील का पत्थर, यदि कहा जाये तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी.      माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा 2005 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में एक महत्वपूर्ण बदलाव किया गया। जिसके अंतर्गत बेटियों को पिता की पैतृक संपत्ति में बराबर का हिस्सा देने का प्रावधान किया गया। इससे पहले बेटियों को शादी के बाद पिता की सम्पत्ति में अधिकार प्राप्त नहीं होता था. किन्तु अब बेटी को विवाह के बाद भी बेटे जितना हक सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रदान कर दिया गया है. ➡️ अब खेती पर भी बेटियों का अधिकार-  खेती की जमीन पर बेटियों का कोई अधिकार नहीं होता था. भारत के कई राज्यों में खेती की जमीन में बेटियों को अधिकार नहीं दिया जाता था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 2020 और फिर 2024 में बेटियों को खेती की जमीन में भी बेटों के बराबर हिस्सा प्राप्त करने का अधिकार दे दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को भी...

शिवभक्तों के काँवड व्रत की रक्षा के लिए सनातन धर्म है तैयार --हर हर महादेव 🚩

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( अब प्रपत्र देगा दुकान और दुकानदार की पूरी जानकारी-shalini kaushik law classes ) 11 जुलाई से श्रावण मास आरम्भ हो रहा है, हर साल की तरह शिव भक्त कांवड में गंगाजल भरकर लाने के लिए हरिद्वार पहुँचने आरम्भ हो गए हैं, हरियाणा, राजस्थान के कांवडिये और खुद उत्तर प्रदेश के निवासी लाखों की संख्या में हर साल काँवड लेकर उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों से गुजरते हैं जिनमें मुजफ्फरनगर, शामली प्रमुख हैँ. कांवड लाने वाले शिवभक्तों की सेवा और स्वागत के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी के निर्देशों पर प्रशासन ने सड़कों पर सफाई कार्य और राहत शिविरों की व्यवस्था करनी आरम्भ कर दी है.कुछ अराजक तत्वों के द्वारा कांवड यात्रा में विघ्न उपस्थित करने के प्रयासों को देखते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी द्वारा वर्ष 2024 में भी काँवड मार्ग की दुकानों पर दुकानदारों का नाम लिखना अनिवार्य किया था और यही निर्देश इस वर्ष भी सरकार द्वारा जारी किये गए हैँ.  किन्तु अभी प्राप्त नई जानकारी के अनुसार खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन विभाग (एफएसडीए) ने कांवड़ यात्रा मार्ग पर दुकानों पर नाम ल...

सीता-सूर्पनखा और रावण-राम का भेद समझना होगा न्यायालयों को

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  एक आईटी फर्म में काम करने वाले और अपनी पत्नी से तलाक के मुकदमे से गुजर रहे अतुल सुभाष ने दिसंबर में  आत्महत्या कर ली। उन्होंने अपनी पत्नी और ससुराल वालों पर उत्पीड़न और कथित तौर पर झूठे मामलों में फंसाने का आरोप लगाया। यह मामला राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में रहा। अतुल सुभाष द्वारा अपने 24 पेज के सुसाइड नोट और 81 मिनट के वीडियो में आरोप लगाया कि पत्नी निकिता सिंघानिया को 40 हजार रुपये महीना गुजारा भत्ता के तौर पर देने के बावजूद, पत्नी और उसके परिवार वाले सभी केस खत्म करने के लिए 3 करोड़ रुपये की रकम मांग रहे थे. साथ ही, बच्चे से मिलने के लिए 30 लाख रुपये की डिमांड की जा रही थी.    अतुल सुभाष के बाद और भी कुछ मामलों में पति पत्नी और उसके परिजनों द्वारा क़ानून के भेदभाव पूर्ण रवैयै और लगभग पत्नी के ही पक्ष को महत्व देने के कारण आत्महत्या के लिए विवश हो रहे हैं, ऐसे में, ये प्रश्न तो उठना स्वाभाविक ही है कि  🌑 महत्वपूर्ण प्रश्न:-     "क्या पति से तलाक ले लेने, पति के प्रति किसी भी दाम्पत्य कर्तव्य का निर्वहन न करने के बावजूद पत्नी क़ानून के इस उदार ...

ये नहीं किया तो मकान मालिक पर ₹5000 का जुर्माना तय

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1 जुलाई 2025 से भारत में मकान मालिकों के लिए अपनी सम्पत्ति किराये पर देने के संबंध में नया नियम लागू होने जा रहा है, जिसके तहत यदि मकान मालिक बिना ई-स्टाम्प रेंट एग्रीमेंट के मकान किराए पर देता है तो उस पर ₹5,000 का जुर्माना लगाया जाएगा। इस नियम का उद्देश्य किराएदारों के हितों की रक्षा करना और रेंट एग्रीमेंट की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाना है। ➡️ ई-स्टाम्प रेंट एग्रीमेंट के फायदे- ई-स्टाम्प रेंट एग्रीमेंट का उपयोग किराएदार और मकान मालिक दोनों के लिए फायदेमंद है। कानूनी सुरक्षा प्रदान करने के साथ साथ यह विवादों को भी कम करता है।ई- स्टाम्प का महत्व यह भी है कि यह सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज होता है, जिससे किसी भी विवाद की स्थिति में इसे सबूत के रूप में पेश किया जा सकता है। ✒️ ई स्टाम्प से कानूनी सुरक्षा मिलती है. ✒️ ई स्टाम्प से विवादों का समाधान आसानी से हो जाता है. ✒️ ई स्टाम्प सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज होता है. ✒️ ई स्टाम्प किराएदार के अधिकारों की रक्षाकरता है. ✒️ ई स्टाम्प मकान मालिक की जिम्मेदारियों का निर्धारण भी करता है. ➡️ बिना ई-स्टाम्प रेंट एग्रीमेंट जुर्माने का प्रावधान- बिना ई-स्टा...