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अमान्य विवाह में भी गुजारे भत्ते की हकदार पत्नी

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सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के उस फैसले पर अपनी असहमति जताई, जिसमें एक महिला के खिलाफ महिला विरोधी भाषा का इस्तेमाल किया गया। उक्त महिला का विवाह अमान्य घोषित कर दिया गया, जिसमें उसे "अवैध पत्नी" या "वफादार रखैल" कहा गया।  न्यायालय ने टिप्पणी की, "भारत के संविधान की धारा 21 के तहत, प्रत्येक व्यक्ति को गरिमापूर्ण जीवन जीने का मौलिक अधिकार है। किसी महिला को "अवैध पत्नी" या "वफादार रखैल" कहना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उस महिला के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा। इन शब्दों का उपयोग करके किसी महिला का वर्णन करना हमारे संविधान के लोकाचार और आदर्शों के विरुद्ध है। कोई भी व्यक्ति ऐसी महिला का उल्लेख करते समय ऐसे विशेषणों का उपयोग नहीं कर सकता, जो अमान्य विवाह में पक्षकार है। दुर्भाग्य से, हम पाते हैं कि हाईकोर्ट की फुल बेंच के फैसले में ऐसी आपत्तिजनक भाषा का उपयोग किया गया। ऐसे शब्दों का प्रयोग स्त्री-द्वेषपूर्ण है। बॉम्बे हाईकोर्ट की फुल बेंच द्वारा बनाया गया कानून स्पष्ट रूप से सही नहीं है।  न्यायालय ने यह भी कहा कि ऐसे विशेषणों का ...

सेल डीड रजिस्टर नहीं होने तक अचल संपत्ति का स्वामित्व ट्रांसफर नहीं होता : सुप्रीम कोर्ट

 संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम 1882 (Transfer of Property Act ) की धारा 54 का हवाला देते हुए जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस एनके सिंह की खंडपीठ ने कहा कि प्रावधान में कहा गया कि ट्रांसफर केवल रजिस्टर दस्तावेज के माध्यम से किया जा सकता है। प्रावधान में केवल शब्द का उपयोग यह दर्शाता है कि एक सौ रुपये या उससे अधिक मूल्य की मूर्त अचल संपत्ति के लिए बिक्री तभी वैध होती है, जब इसे रजिस्टर्ड दस्तावेज के माध्यम से निष्पादित किया जाता है। न्यायालय ने कहा, "जहां सेल डीड के लिए रजिस्ट्रेशन की आवश्यकता होती है, वहां स्वामित्व तब तक ट्रांसफर नहीं होता, जब तक कि डीड रजिस्टर न हो जाए, भले ही कब्ज़ा ट्रांसफर हो जाए। ऐसे रजिस्ट्रेशन के बिना प्रतिफल का भुगतान किया जाए। अचल संपत्ति के लिए सेल डीड का रजिस्ट्रेशन ट्रांसफर को पूरा करने और मान्य करने के लिए आवश्यक है। जब तक रजिस्ट्रेशन प्रभावी नहीं होता स्वामित्व ट्रांसफर नहीं होता है।" बाबासाहेब धोंडीबा कुटे बनाम राधु विठोबा बार्डे 2024 लाइव लॉ (एससी) 225 के फैसले का संदर्भ दिया गया, जिसमें कहा गया कि "पंजीकरण अधिनियम, 2008 की धारा 17 के अनुसार स...

पत्नी पति की संपत्ति नहीं - इलाहाबाद हाई कोर्ट

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              इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक मामले में कहा कि पतियों के लिए विक्टोरियन युग की पुरानी मानसिकता को त्यागने और यह समझने का समय आ गया है कि पत्नी का शरीर, निजता और अधिकार उसके अपने हैं और पति के नियंत्रण या स्वामित्व के अधीन नहीं हैं। जस्टिस विनोद दिवाकर की पीठ ने कहा कि पत्नी पति का विस्तार नहीं है, बल्कि एक ऐसी व्यक्ति है, जिसके अपने अधिकार, इच्छाएं और एजेंसी है। उसकी शारीरिक स्वायत्तता और निजता का सम्मान करना न केवल एक कानूनी दायित्व है, बल्कि वास्तव में समान संबंध को बढ़ावा देने के लिए पति की नैतिक अनिवार्यता भी है। “पत्नी का शरीर उसकी खुद की संपत्ति है, और उसकी सहमति उसके व्यक्तिगत और अंतरंग जीवन के सभी पहलुओं में सर्वोपरि है। पति की भूमिका स्वामी या मालिक की नहीं बल्कि एक समान भागीदार की है, जो उसकी स्वायत्तता और व्यक्तित्व का सम्मान करने के लिए बाध्य है। इन अधिकारों को नियंत्रित करने या उनका उल्लंघन करने का प्रयास - चाहे जबरदस्ती, दुर्व्यवहार या अंतरंग विवरणों को बिना सहमति के साझा करने के माध्यम से हो- विश्वास और वैधता का घोर उल...