दंड प्रक्रिया संहिता की धारा १५४ कड़ाई से लागू हो .
न्याय में देरी अन्याय है { justice delayed is justice denied } न्याय के क्षेत्र में प्रयोग की जाने वाली लोकप्रिय सूक्ति है इसका भावार्थ यह है कि यदि किसी को न्याय मिल जाता है किन्तु इसमें बहुत अधिक देरी हो गयी है तो ऐसे न्याय की कोई सार्थकता नहीं होती . यह सिद्धांत ही ''द्रुत गति से न्याय के सिद्धांत का अधिकार'' का आधार है.यह मुहावरा न्यायिक सुधार के समर्थकों का प्रमुख हथियार है किन्तु न्यायिक सुधार की राह पर चलते हुए भी कोई ऊँगली इसकी धारा १५४ की सार्थकता पर नहीं उठाई जा रही है जो आज न्याय की राह में एक बहुत बड़ा रोड़ा कही जा सकती है . दंड प्रक्रिया संहिता की धारा १५४ संज्ञेय मामलों में इत्तिला से सम्बंधित है .धारा १५४ कहती है - *१- संज्ञेय अपराध किये जाने से सम्बंधित प्रत्येक इत्तिला ,यदि पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को मौखिक रूप से दी गयी हो तो उसके द्वारा या उसके निदेशाधीन लेखबद्ध कर ली जाएगी और इत्तिला देने वाले को पढ़कर सुनाई जाएगी और प्रत्येक ऐसी इत्तिला पर ,चाहे वह लिखित रूप में दी गयी हो या पूर्वोक्त रूप में लेखबद्ध की गयी हो ,उस व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षर क...