पारिवारिक निपटान आलेख और मानस जायसवाल

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पूर्व आलेख ' 'मेमोरेंडम ऑफ़ फॅमिली सेटलमेंट-पारिवारिक निपटान के ज्ञापन का महत्व '' को लेकर पाठकों की उत्साहवर्धक टिप्पणी प्राप्त हुई लेकिन इसके साथ ही एक पाठक ''श्री मानस जायसवाल'' जी के तो कई प्रश्न थे जिनके निवारण हेतु मैं एक नयी  पोस्ट आप सभी से साझा कर रही हूँ .पहले श्री मानस जायसवाल जी की टिप्पणी-
बहुत ही उपयोगी लेख|
लेकिन क्या ऐसे "जुबानी खानदानी बंटवारे का यादाश्तनामा" लिखित में बनने के बाद इसको लागू कराने की कोई समयसीमा होती है ??
क्या इसे रजिस्टर्ड कराना ज़रूरी है?
क्या इसमें सभी सम्पतियों का हवाला होना ज़रूरी है?
इस नाम के अग्रीमेंट को हम "Family Settlement" कहेंगे या "Family Partition Deed"
तो आप सभी की जानकारी के लिए बता दूँ कि बहुत सी बार घर में अपनेआप हिस्से बांटकर रहना आरम्भ कर देते हैं तब बाद में ये याद रहे कि हमने क्या बाँटा है इसे एक कागज पर लिख लेते हैं ये कागज सादा  भी हो तो कोई फर्क नहीं पड़ता पर इस पर घर से बाहर के कम से कम दो लोगों के हस्ताक्षर होने चाहियें और इस पर सभी हिस्सेदारों के हस्ताक्षर भी होने चाहिए साथ ही जो संपत्ति जैसे-जैसे बांटी गयी है उसका विवरण उसके कब्जेदार के नाम से होना चाहिए .
ये एक याददाश्त पत्र है और मेरे पिछले आलेख के अनुसार उच्चतम न्यायालय व् इलाहाबाद उच्चन्यायालय ने भी इसे रजिस्टर्ड कराने से मुक्ति प्रदान की है ,हाँ अगर हम पहले कागज लिखित में तैयार करते हैं और तब घर बांटते हैं तब उसका रजिस्ट्रेशन आवश्यक है .
और याददाश्त पत्र के लागू कराने की कोई समय सीमा नहीं होती क्योंकि इसके लिखने से पहले ही उन परिस्थतियों जन्म ले चुकी होती हैं और इसे पारिवारिक बंटवारा कहेंगे अर्थात ''FAMILY SETTLEMENT ''
शालिनी कौशिक
[कानूनी ज्ञान ]

टिप्पणियाँ

  1. धन्यवाद शालिनी जी, अभी भी एक सवाल बाकी है | अपने वाद के अनुसार पूछता हूँ|
    पाकिस्तान से विस्थापित होकर आए 3 भाई एक नए शहर में बस गए| उन्होंने खुली नीलामी में अलग अलग कई संपतियां प्राप्त की, जो सभी 33x3 वर्ष की लीज पर प्राप्त हुई| इनमें से 2 भाइयों ने साझे नाम से भी 2-3 संपतियां प्राप्त की| अधिकतर प्लाट इन्होने शुरू के 12-15 सालों में विक्रय कर दिए|
    इन दो भाइयों में से एक ने अपने तन्हा नाम से प्राप्त एक प्लाट में अपने परिवार के साथ रिहाईश शुरू की, और दुसरे को भी उसके एक भाग में रहने के लिए बुला लिया (जिसे लाइसेंस का नाम दिया गया) | दुसरे भाई की मृत्यु १९७३ में हो गई (पर उसकी विधवा के नाम लाइसेंस जारी रहा) और उसके बाद २०१५ तक जारी रहा| इस बीच पहले भाई, दुसरे भाई की पत्नी और उसके पुत्रों की भी मृत्यु हो चुकी थी (लेकिन लाइसेंस जारी रहा)|
    उक्त प्लाट की पहले ३३ वर्ष की लीज 1989 में समाप्त होने बाद दोबारा नहीं बड़ी| २०१२ में सरकार की फ्री होल्ड नीति आने पर पहले भाई की पत्नी ने अपने उत्तराधिकार के कारण व नगरनिगम के कर निर्धारण रजिस्टर में अपना नाम दर्ज होने के कारण उक्त प्लाट को अपने हक में फ्रीहोल्ड करने का आवेदन किया| जिसपर दुसरे भाई के बेटे की पत्नी ने आपति करते हुए अपना प्रतिआवेदन किया| इस प्रतिआवेद्न के में उन्होंने एक “जबानी खानदानी बंटवारे का यादाश्तनामा” नामक दस्तावेज को अपने आवेदन का आधार बनाया| इसके बाद पहले भाई की पत्नी ने अपने वकील के माध्यम से दुसरे भाई के परिवार की रिहाईश का लाइसेंस निरस्त कर दिया (यहाँ गौरतलब बात यह है की लाइसेंस जैसी कोई भी बात कभी भी लिखित में नहीं हुई थी) और कोर्ट में कोर्ट में बेदखली एवं हर्जाने का वाद दाखिल कर दिया|
    उक्त दस्तावेज में 1964 में बंटवारा तय होना खा गया है व दस्तावेज 1977 में तैयार हुआ है जिसमें पहले भाई के साइन व दुसरे भाई की पत्नी का अंगूठा है| बतौर गवाह उक्त दोनों भाइयों के बड़े तीसरे भाई व दुसरे भाई की साले के साइन हैं|
    हालांकि यह भाई कभी भी संयुक्त परिवार में नहीं रहे हैं |
    आपका मार्गदर्शन चाहिए | सधन्यवाद |

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