असंवैधानिक को अपराध बनाता कानून - तीन तलाक
सायरा बानो केस पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने 2017 में तीन तलाक को गैर-कानूनी करार दिया था। अलग-अलग धर्मों वाले 5 जजों की बेंच ने 3-2 से फैसला सुनाते हुए सरकार से तीन तलाक पर छह महीने के अंदर कानून लाने को कहा था। दो जजों ने इसे असंवैधानिक कहा था, एक जज ने पाप बताया था। इसके बाद दो जजों ने इस पर संसद को कानून बनाने को कहा था।
इसी क्रम में सरकार ने इसके लिए कानून तैयार किया और लोकसभा में इसे पास कराया. राज्यसभा में संख्या बल कम होने के चलते इसे पास कराने में दिक्कत थी किन्तु विपक्ष के एकजुट न होने व सदन से बहिर्गमन के चलते तीन तलाक विधेयक मंगलवार को राज्यसभा में भी पास हो गया राज्यसभा में तीन तलाक विधेयक पर करीब चार घंटे चली बहस के बाद यह पारित हुआ। राष्ट्रपति की सहमति के बाद तीन तलाक का विधयेक कानून बन जाएगा।
*क्या हैं तीन तलाक विधेयक के प्रावधान
*तलाक-ए-बिद्दत यानी एक बार में तीन तलाक देना गैर कानूनी
*तीन तलाक संज्ञेय अपराध मानने का प्रावधान, यानी पुलिस बिना वारंट गिरफ्तार कर सकती है, लेकिन तब जब महिला खुद शिकायत करेगी
*खून या शादी के रिश्ते वाले सदस्यों के पास भी केस दर्ज करने का अधिकार
*पड़ोसी या कोई अनजान शख्स इस मामले में केस दर्ज नहीं कर सकता है
*मौखिक, लिखित, इलेक्ट्रॉनिक (एसएमएस, ईमेल, वॉट्सऐप) पर तलाक को अमान्य करार दिया गया
*आरोपी पति को तीन साल तक की सजा का प्रावधान
मजिस्ट्रेट आरोपी को जमानत दे सकता है
*आरोपी को जमानत तभी दी मिलेगी, जब पीड़ित महिला का पक्ष सुना जाएगा
*पीड़ित महिला के अनुरोध पर मजिस्ट्रेट समझौते की अनुमति दे सकता है
*पीड़ित महिला पति से गुजारा भत्ते का दावा कर सकती है
महिला को कितनी रकम दी जाए यह जज तय करेंगे
*पीड़ित महिला के नाबालिग बच्चे किसके पास रहेंगे इसका फैसला भी मजिस्ट्रेट ही करेगा
मुस्लिम महिलाओं की स्थिति को देखते हुए यह कहा जा रहा है कि अब उनकी स्थिति मजबूत होगी किन्तु अगर हम विधेयक की गहराई में जाते हैं तो साफ तौर पर पाते हैं कि ये मजबूती मुस्लिम विवाह को बुरी तरह से हिला देगी क्योंकि विपक्ष का विरोध जिस मुद्दे को लेकर था वह अब भी जस का तस है.
. विपक्षी दल कांग्रेस ने कहा कि एक बार में तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) को आपराधिक कृत्य बनाने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि इस प्रथा को उच्चतम न्यायालय ‘शून्य एवं अमान्य’ करार दे चुका है।
दूसरी तरफ जम्मू-कश्मीर की पूर्व सीएम महबूबा मुफ्ती ने कहा कि तीन तलाक को लेकर कानून बनाने की क्या जरूरत थी, जब सुप्रीम कोर्ट ने खुद ही इसे अवैध करार दिया है।
और ऐसा इसलिए क्योंकि साल 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने शायरा बानो केस में फैसला देते हुए तुरंत तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित कर दिया और जब कोई कार्य असंवैधानिक है तो वह किसी भी कानून द्वारा मान्य नहीं है ऐसे में उसके किए जाने पर क्या मान्यता मिलना या क्या अपराध हो जाना किन्तु केंद्र सरकार ने इस असंवैधानिकता को अपराध के दायरे में रखा और मुस्लिम परिवार को तोड़ने का और मुस्लिम महिलाओं के दर दर भटकने का पूरा इंतजाम कर दिया.
अब राष्ट्रपति की मंजूरी मिलते ही यह कानून बन जाएगा कि जैसे ही कोई मुस्लिम पति अपनी पत्नी को तलाक तलाक तलाक कहता है और मुस्लिम पत्नी इसकी शिकायत कर देती है तो यह एक संज्ञेय अपराध होगा और पुलिस मुस्लिम पति को बिना वारंट गिरफ्तार कर सकेगी और वह तीन साल की सज़ा के अधीन होगा मतलब ये कि उस मुस्लिम पत्नी को उसका पति तीन तलाक दे तो वह बेसहारा और वह इसकी शिकायत करे तो भी बेसहारा क्योंकि पति अगर जेल गया तो कौनसा पुलिस थाना या कौनसी कोर्ट उसके व उसके बच्चों के लिए रोटी कपड़ा मकान का इंतज़ाम कर रही है और उस पर जुमले ये कि
"राज्यसभा से तीन तलाक बिल पास होने पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि नारी गरिमा की रक्षा के लिए तीन तलाक बिल का पास होना जरूरी था।"
पीएम ने कहा कि तीन तलाक बिल का पास होना महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक बहुत बड़ा कदम है. तुष्टिकरण के नाम पर देश की करोड़ों माताओं-बहनों को उनके अधिकार से वंचित रखने का पाप किया गया. मुझे इस बात का गर्व है कि मुस्लिम महिलाओं को उनका हक देने का गौरव हमारी सरकार को प्राप्त हुआ है.पीएम ने कहा कि एक पुरातन और मध्यकालीन प्रथा आखिरकार इतिहास के कूड़ेदान तक ही सीमित हो गई है.
अब इन्हें कौन बताए कि महिला गरिमा व अस्मिता की रक्षा के लिए पहले ज़रूरी ये है कि उसका व उसके बच्चों का पेट भरा हो और वह अपने दम पर पारिवारिक रूप से सशक्त हो क्योंकि कोई भी लड़ाई तभी मजबूती से लडी जा सकती है जब वह मजबूत आधार से लडी जाए, फिर विवाह के बाद पत्नी का जीवन आधार पति ही होता है और तीन तलाक मुस्लिम पत्नी के जीवन में जो शून्यता उत्पन्न करता है वह शून्यता तो सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को अमान्य व असंवैधानिक घोषित करके ही भर दी थी केंद्र सरकार द्वारा तो तीन तलाक से मुस्लिम पति द्वारा खोदी गई खाई को और चौड़ी करने का ही काम किया गया है पाटने का नहीं और यह भारतीय संस्कृति के भी खिलाफ है क्योंकि भारतीय संस्कृति परिवार को बसाने मे विश्वास रखती है उजाड़ने मे नही और अब की यह केंद्र सरकार मुस्लिम पुरातन व मध्यकालीन प्रथा को कूड़ेदान मे सीमित करने के नाम पर मुस्लिम परिवार को ही कूड़ेदान में सीमित करने लग गई है. इसलिए अब मुस्लिम परिवार का स्थायित्व खुदा के ही भरोसे है.
शालिनी कौशिक एडवोकेट
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