इच्छा मृत्यु व् आत्महत्या



इच्छा मृत्यु व् आत्महत्या :नियति व् मजबूरी



Suicide  : Young woman sitting on railroadhospital bedDisappointed : Side view of a frustrated young Indian man. Isolated against white background.
अरुणा रामचंद्र शानबाग ,एक नर्स ,जिस पर हॉस्पिटल के एक सफाई कर्मचारी द्वारा दुष्कर्म की नीयत से बर्बर हमला किया गया जिसके कारण गला घुटने के कारण उसके मस्तिष्क को ऑक्सिजन  की आपूर्ति बंद हो गयी और उसका कार्टेक्स क्षतिग्रस्त हो गया ,ग्रीवा रज्जु में चोट के साथ ही मस्तिष्क नलिकाओं में भी चोट पहुंची और फलस्वरूप एक जिंदगी जिसे न केवल अपने लिए बल्कि इस समाज देश के लिए सेवा के नए आयाम स्थापित करने थे स्वयं सेवा कराने के लिए मुंबई के के.ई.एम्.अस्पताल के बिस्तर पर पसर गयी और ३६ साल से वहीँ टुकुर टुकुर जिंदगी के दिन गिन रही है .पिंकी वीरानी ,जिसने अरुणा की दर्दनाक  कहानी अपनी पुस्तक में बयां की ,ने उसकी जिंदगी को संविधान के अनुच्छेद २१ के अंतर्गत जीवन के अधिकार में मिले सम्मान से जीने के हक़ के अनुरूप नहीं माना .और उसके लिए ''इच्छा मृत्यु ''की मांग की ,जिसे सर्वोच्च  न्यायालय के न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू और न्यायमूर्ति ज्ञान सुधा मिश्रा ने सिरे से ख़ारिज कर दिया .अपने १४१ पन्नों के फैसले में न्यायालय ने कहा -
''देश में इच्छा मृत्यु पर कोई कानून नहीं है .जब तक संसद कानून नहीं बनाती है ,न्यायालय का फैसला पैसिव व् एक्टिव यूथनेसिया के तहत लागू रहेगा .देश में एक्टिव यूथनेसिया गैर कानूनी है लेकिन विशेष परिस्थितियों में पैसिव यूथनेसिया की इज़ाज़त  दी जा सकती है .भविष्य में हाईकोर्ट द्वारा तीन प्रमुख डाक्टरों की राय लेने और सरकार व् मरीज के करीबी रिश्तेदारों की राय जानने के बाद पैसिव यूथनेसिया की मंजूरी दे सकेगा .''
पैसिव व् एक्टिव यूथनेसिया -यूनान में इच्छा मृत्यु [यूथनेसिया ]को [गुड   डेथ]यानि अच्छी मौत कहा जाता था .यूथनेसिया मूलतः यूनानी शब्द है इसका अर्थ इयू अच्छी ,थानातोस मृत्यु से होता है .इच्छा मृत्यु वह है जब कोई मरीज अपने लिए मृत्यु खुद मांगता  है ,मर्सी किलिंग वह है जब कोई अन्य मरीज के लिए मृत्यु  की गुहार लगाता है .
भारत  में इच्छा मृत्यु अवैधानिक है क्योंकि आत्महत्या का प्रयास भारतीय दंड विधान आई.पी.सी.की धारा ३०९ के अंतर्गत अपराध है .धारा ३०९ आई.पी.सी. कहती है -
''जो कोई आत्महत्या करने का प्रयत्न करेगा और उस अपराध के करने के लिए कोई कार्य करेगा ,वह सदा कारावास से ,जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से दण्डित किया जायेगा .''
और जहाँ तक मर्सी किलिंग की बात है भारतीय दंड विधान धारा ३०४ के अंतर्गत इसे भी अपराध मानता है .धारा ३०४ कहती है -
''जो कोई ऐसा आपराधिक मानव वध करेगा ,जो हत्या की कोटि में नहीं आता है ,यदि वह कार्य जिसके द्वारा मृत्यु कारित की गयी है ,मृत्यु या ऐसी शारीरिक क्षति ,जिससे मृत्यु होना संभाव्य है ,कारित करने के आशय से किया जाये ,तो वह आजीवन कारावास से ,या दोनों में से किसी भांति के कारावास से ,जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी ,दण्डित किया जायेगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा .
अथवा यदि वह कार्य इस ज्ञान के साथ कि उससे मृत्यु कारित करना सम्भाव्य है ,किन्तु मृत्यु या ऐसी शारीरिक क्षति ,जिससे मृत्यु कारित करना संभाव्य है ,कारित करने के आशय के बिना किया जाये ,तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी ,या जुर्माने से ,या दोनों से दण्डित किया जायेगा .''
इस प्रकार भारतीय दंड विधान मर्सी किलिंग को धारा ३०४ के अंतर्गत सदोष हत्या का अपराध मानता है और इसकी मंजूरी नहीं देता है .
इस प्रकार विशेष परिस्थितियों में यदि कोई मरीज मरणासन्न  है ,उसकी हालत में सुधार की कोई गुंजाईश नहीं है तो उच्चतम न्यायालय के निर्णय के अनुसार पैसिव यूथनेसिया की मंजूरी दी जा सकती है जिसके अनुसरण में मरीज को सिर्फ जीवन रक्षक प्रणाली से हटाया जा सकता है जिसके हटाने से उसकी मृत्यु संभव हो सके किन्तु भारतीय कानून एक्टिव यूथनेसिया को मंजूरी नहीं देता है जिसमे मरणासन्न मरीज को मरने  में प्रत्यक्ष सहयोग दिया जाता है यानि डाक्टरों की मौजूदगी में रोगी को मारने के लिए ड्रग्स या जहरीले इंजेक्शन दिए जाते हैं .
और ऐसे में यदि हम विचार करें तो आत्महत्या के प्रयास को अपराध की श्रेणी से अलग करना एक्टिव यूथनेसिया की श्रेणी में ही आ जायेगा क्योंकि जिस व्यक्ति के मन में जीने की इच्छा ख़त्म हो रही है उसे निराशा के रोगी के रूप में मरणासन्न मरीज की श्रेणी में रखा जा सकता है और ऐसे में माना जा सकता है कि वह सही निर्णय नहीं ले सकता है और ऐसे में देश का कानून यदि ऐसे  प्रयास को अपराध की श्रेणी में नहीं रखता  है तो देश में एक्टिव यूथनेसिया को मंजूरी देने जैसा ही हो जायेगा .
इस प्रकार इच्छा मृत्यु व् आत्महत्या का अधिकार का वही अंतर है जो पैसिव व् एक्टिव युथनेसिया का है और देश के कानून का इनके प्रति अपनाया गया दृष्टिकोण भी इच्छा मृत्यु या मरने की नियति की मांग पर विचार कर उसकी मंजूरी दे सकता है आत्महत्या या मजबूरी गले में डालने की नहीं .
शालिनी कौशिक

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