तेजाबी मौत :दंड केवल फांसी

 Gujarat: Woman killed in acid attack for resisting sexual advances

 A 30-year-old woman was killed and her two children were critically injured in Umarvada here when a man along with two of his accomplices, hurled acid on them, police said today. The incident took place last night after the woman rejected sexual advances of accused Aslam Sheikh, following which Sheikh along with his friends barged into the victim's house and threw acid on her and her children, Assistant Commissioner of Police Naresh Kanzariya said.]

घटना सूरत [गुजरात ] की है यौन प्रताड़ना का विरोध करने वाली महिला पर आरोपियों ने तेजाब फैंक दिया जिससे उसकी मौत हो गयी और ये घटना कमज़ोरी न केवल हमारी प्रशासनिक व्यवस्था की ज़ाहिर करती है अपितु ज़ाहिर करती है हमारी कानूनी व्यवस्था की कमजोरी भी क्योंकि अभी हाल ही में हुए दंड विधि [ संशोधन] अधिनियम ,२०१३ में तेजाब सम्बंधित मामलों के लिए धारा ३२६ -क व् धारा ३२६-ख  अन्तः स्थापित की गयी हैं जिसमे धारा ३२६-क '' स्वेच्छ्या तेजाब ,इत्यादि के प्रयोग से घोर उपहति कारित करना  ''को ही अपने घेरे में लेती है जिसमे कारावास ,जो दस वर्ष से कम नहीं किन्तु जो आजीवन कारावास तक हो सकेगा और ज़ुर्माना जिसका भुगतान पीड़िता को किया जायेगा ......और धारा ३२६ -ख स्वेच्छ्या तेजाब फेंकने या फेंकने के प्रयत्न को ही अपने घेरे में लेती है जिसमे ५ वर्ष का कारावास ,किन्तु जो सात वर्ष तक का हो सकेगा और जुर्माने का दंड मिलेगा .इन दोनों ही धाराओं की व्यवस्था करते समय हमारे कानून विदों ने शायद इस तरह की घटना की कल्पना नहीं की होगी क्योंकि आज तक हुई अधिकांश घटनाओं में तेजाब पीड़िताओं की ज़िंदगी झुलसी है मौत नहीं किन्तु इस घटना ने तेजाब पीड़िता की ज़िंदगी ही नहीं मौत को भी झुलसा दिया और उसे मौत का शिकार बना दिया किन्तु अब कानून उन्हें ज्यादा से ज्यादा क्या देगा ३२६-क और ३०२ का अंतर्गत सजा जो कि फांसी हो भी सकती है और नहीं भी जबकि इस तरह के मामलों में निश्चित रूप से फांसी होनी चाहिए क्योंकि तेजाब ने यहाँ मात्र घोर उपहति नहीं कि वरन मौत दी है और इस सम्बन्ध में कानून को नयी व्यवस्थाएं भूतलक्षी संशोधन करते हुए लागू करनी ही होंगी .

शालिनी कौशिक 
      [कानूनी ज्ञान ]

टिप्पणियाँ

  1. स्री समस्या, फुटकर दुख नहीं, जड़ों में पुरुष वर्चस्व, सम्पत्ति के एकाधिपत्य की सदियों पुरानी बर्बता, वही विविध रूपों में मुखरित। आधी आबादी का दुख, मानव समाज की जड़ता, वहशीपन का सबसे बड़ा सुबूत.. आपने सूचना से वाकिफ कराया, कानूनी परामर्श भी, हार्दिक बधाई

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (24-11-2014) को "शुभ प्रभात-समाजवादी बग्घी पे आ रहा है " (चर्चा मंच 1807) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच के सभी पाठकों को
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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