घरेलू हिंसा मामले हाई कोर्ट में रद्द -सुप्रीम कोर्ट
घरेलू हिंसा मामले हाई कोर्ट में रद्द-सुप्रीम कोर्ट shalini kaushik law classes
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में घरेलू हिंसा मामलों से जूझ रहे पीड़ितों के लिए फैसला सुनाया हैं कि घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 की धारा 12 के तहत दर्ज शिकायतों को हाईकोर्ट दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 482 ( अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 528) के अंतर्गत रद्द कर सकता है।
दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 482 जो कि अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 528 ( जो कि उच्च न्यायालय की अन्तर्निहित शक्तियों की व्यावृत्ति से संबंधित है)हो गई है, में कहा गया है कि-
" इस संहिता की कोई बात उच्च न्यायालय की ऐसे आदेश देने की अन्तर्निहित शक्ति को सीमित या प्रभावित करने वाली न समझी जाएगी जैसे इस संहिता के अधीन किसी आदेश को प्रभावी करने के लिए या किसी न्यायालय की कार्यवाही का दुरुपयोग निवारित करने के लिए या किसी अन्य प्रकार से न्याय के उद्देश्यों की प्राप्ति सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक हो.
निर्णय देते समय जस्टिस ए.एस. ओक और जस्टिस उज्जल भुयान की खंडपीठ ने कहा कि इस शक्ति का प्रयोग बहुत सावधानी और विवेक से किया जाना चाहिए, क्योंकि घरेलू हिंसा अधिनियम एक सामाजिक कल्याणकारी कानून है।
कोर्ट ने कहा, "सिर्फ तभी हस्तक्षेप करें जब कोई गंभीर अन्याय या कानूनी गलती हो।" जस्टिस ओक के अनुसार वे 2016 में बॉम्बे हाईकोर्ट के उस फैसले का हिस्सा थे, जिसमें कहा गया कि घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 की कार्यवाही दंड प्रकिया संहिता की धारा 482 के अंतर्गत रद्द नहीं की जा सकती। हालांकि, बाद में उसी हाईकोर्ट की फुल बेंच ने इसे गलत बताया।
जस्टिस ओक ने कहा, "जजों के लिए भी सीखने की प्रक्रिया लगातार चलती रहती है। हम अपनी गलतियों को सुधारने के लिए बाध्य हैं।”
➡️ घरेलू हिंसा अधिनियम (DV Act) की धारा 12--
यह बताती है कि कोई भी पीड़ित व्यक्ति, संरक्षण अधिकारी या कोई अन्य व्यक्ति मजिस्ट्रेट के समक्ष आवेदन प्रस्तुत कर सकता है, जिसमें एक या एक से अधिक अनुतोष (relief) की मांग की गई हो।
➡️ धारा 12 में आवेदन:-
कोई भी पीड़ित व्यक्ति, संरक्षण अधिकारी या पीड़ित की ओर से कोई अन्य व्यक्ति, घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत एक या एक से अधिक अनुतोष (जैसे कि भरण-पोषण, निवास का अधिकार, संपत्ति का अधिकार, आदि) की मांग करते हुए मजिस्ट्रेट के समक्ष आवेदन दे सकता है.
➡️ आवेदन का संबंध-
मजिस्ट्रेट को आवेदन प्रस्तुत करने के लिए, पीड़ित व्यक्ति को किसी भी घरेलू हिंसा की घटना के बारे में संरक्षण अधिकारी को सूचना देनी चाहिए।
➡️ आवेदन की सुनवाई:-
मजिस्ट्रेट को आवेदन मिलने के तीन दिनों के भीतर सुनवाई की तारीख निर्धारित करनी होगी.
➡️ आवेदन पर निर्णय:-
मजिस्ट्रेट को आवेदन पर सुनवाई के बाद 60 दिनों के भीतर निर्णय देना होगा.
➡️ आवेदन पर अनुतोष (relief):-
अनुतोष में घरेलू हिंसा के कारण हुए नुकसान के लिए प्रतिकर (compensation) या नुकसान की भरपाई शामिल हो सकती है.
➡️ आवेदन पर आदेश:-
मजिस्ट्रेट द्वारा पारित आदेश में, पीड़ित को आवश्यक राहत प्रदान की जाएगी, जैसे कि भरण-पोषण का भुगतान, निवास का अधिकार, या संपत्ति का अधिकार.
अब क्यूंकि माननीय उच्चतम न्यायालय के अनुसार घरेलू हिंसा अधिनियम एक सामाजिक कल्याणकारी कानून है ऐसे में ये निर्णय देकर उच्चतम न्यायालय द्वारा हाई कोर्ट को संदिग्ध घरेलू हिंसा के मामलों को रद्द करने की शक्ति प्रदान की गई है.
हमें निर्णय की जानकारी लाइव लॉ से प्राप्त हुई है हम इसके लिए लाइव लॉ का आभार व्यक्त करते हैँ. निर्णय का लिंक ये है
https://hindi.livelaw.in/supreme-court/protection-of-women-from-domestic-violence-act-2005-section-528-bnss-section-482-crpc-292657
प्रस्तुति
शालिनी कौशिक
एडवोकेट
कैराना (शामली)
पीड़ित पतियों के लिए यह बहुत बड़ी राहत है, सार्थक जानकारी शेयर करने के लिए धन्यवाद 🙏🙏
जवाब देंहटाएंसराहना हेतु आभार 🙏🙏
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