अप्राकृतिक यौन संबंध बलात्कार नहीं - इलाहाबाद हाई कोर्ट
( Shalini Kaushik Law Classes-2.0)
एक महत्वपूर्ण निर्णय में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि किसी व्यक्ति द्वारा अपनी पत्नी के साथ उसकी सहमति के बिना अप्राकृतिक यौन संबंध बनाना, भले ही वह 18 वर्ष से अधिक की हो, बल्कि यह भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 377 के तहत दंडनीय होगा। साथ ही कोर्ट ने कहा कि हालांकि यह IPC की धारा 375 के अनुसार बलात्कार नहीं हो सकता।
पीठ ने अपने आदेश में कहा, "यह स्पष्ट है कि लिंग-योनि संभोग के अलावा शारीरिक संबंध अधिकांश महिलाओं के लिए सेक्स का स्वाभाविक तरीका नहीं है, इसलिए पति द्वारा अपनी पत्नी के साथ भी उसकी सहमति के बिना ऐसा नहीं किया जा सकता है।"
जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल की पीठ ने इस प्रकार मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के निर्णयों से असहमति जताई, जिसमें किसी व्यक्ति द्वारा अपनी पत्नी के साथ अप्राकृतिक यौन संबंध बनाना, भले ही उसकी सहमति के बिना, IPC की धारा 377 के तहत अपराध नहीं माना गया।मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का उक्त दृष्टिकोण इस तर्क से उपजा है कि चूंकि किसी पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के साथ इस तरह के 'अप्राकृतिक' यौन संबंध को IPC की धारा 375 के तहत बलात्कार के रूप में दंडनीय नहीं बनाया गया है, इसलिए यह IPC की धारा 377 के तहत भी अपराध नहीं होगा।
न्यायालय ने कहा - “यह न्यायालय मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के उपरोक्त तर्क से सम्मानपूर्वक असहमत है, क्योंकि एक पत्नी 18 वर्ष से अधिक की हो सकती है, लेकिन एक व्यक्तिगत पहचान के रूप में उसके पास यौन अभिविन्यास के लिए एक विकल्प है जिसे संरक्षित किया जाना चाहिए। केवल इसलिए कि वह एक पुरुष की पत्नी है, अप्राकृतिक यौन संबंध के खिलाफ सहमति न देने के उसके मौलिक अधिकार को नहीं छीना जा सकता है। एक महिला को पत्नी होने के बावजूद भी विशेष यौन अभिविन्यास और गरिमा का व्यक्तिगत अधिकार है।”
हालांकि, इलाहाबाद हाईकोर्ट का निर्णय 1 जुलाई, 2024 को या उसके बाद किए गए कृत्यों पर लागू नहीं हो सकता है, जिस दिन भारतीय न्याय संहिता (BNS) लागू हुई, क्योंकि BNS में बिना सहमति के "अप्राकृतिक" यौन कृत्यों को दंडित करने के प्रावधान शामिल नहीं हैं।
इलाहाबाद हाईकोर्ट मुख्य रूप से इमरान खान उर्फ अशोक रत्न की याचिका पर विचार कर रहा था, जिसने IPC की धारा 498-ए, 323, 504, 506, 377 और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3/4 के तहत उसके खिलाफ दर्ज मामले को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का रुख किया था।
मुख्य रूप से उसके वकील ने तर्क दिया कि उसकी पत्नी द्वारा FIR काफी देरी से दर्ज की गई और IPC की धारा 377 के तहत कोई अपराध नहीं बनता, क्योंकि आवेदक और प्रतिवादी नंबर 1 पति-पत्नी हैं।
दूसरी ओर, राज्य और पत्नी के वकीलों ने यह कहते हुए याचिका का विरोध किया कि आवेदक के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला बनता है। दोनों पक्षकारों की दलीलें सुनने के बाद न्यायालय ने इस सवाल की जांच की कि क्या पति द्वारा अपनी पत्नी की इच्छा के विरुद्ध उसके साथ शारीरिक संबंध बनाना IPC की धारा 377 के तहत अपराध माना जाएगा।
न्यायालय ने नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ 2018 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के निष्कर्षों का हवाला देते हुए कहा कि यद्यपि मौखिक सेक्स या गुदा मैथुन जैसे शारीरिक संबंध समाज के एक बड़े हिस्से के लिए अप्राकृतिक हो सकते हैं, लेकिन फिर भी यह LGBTQIA+ समुदाय के अल्पसंख्यक समूह का स्वाभाविक रुझान है। इस प्रकार, यदि संभोग जानबूझकर किया जाता है तो यह बलात्कार का अपराध नहीं होगा।
एकल जज ने आगे कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने आगे स्पष्ट किया है कि यदि व्यक्तियों के बीच शारीरिक संबंध का कोई भी कार्य उनमें से किसी की सहमति के बिना किया जाता है तो यह IPC की धारा 377 के तहत दंडनीय होगा। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के आदेश का पालन करते हुए हाईकोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि लिंग-योनि संभोग के अलावा पति द्वारा शारीरिक संबंध, जो कि अधिकांश महिलाओं के लिए सेक्स का स्वाभाविक अभिविन्यास नहीं है, उसकी सहमति के बिना IPC की धारा 377 के तहत अपराध माना जाएगा।
उपर्युक्त चर्चा के मद्देनजर, न्यायालय ने आवेदक के वकील की इस दलील को खारिज कर दिया कि आवेदक के खिलाफ IPC की धारा 377 के तहत कोई अपराध नहीं बनता। पीठ ने यह भी ध्यान में रखा कि पति के खिलाफ दहेज की मांग के लिए क्रूरता और उत्पीड़न का एक विशिष्ट आरोप है। साथ ही उसकी पत्नी की इच्छा के विरुद्ध उसके साथ अप्राकृतिक शारीरिक संबंध बनाने का भी आरोप है। इसलिए न्यायालय ने याचिकाकर्ता के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला पाते हुए उसकी याचिका खारिज कर दी।
केस टाइटल- इमरान खान @ अशोक रत्न बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य 2025 लाइव लॉ (एबी) 164
आभार -
प्रस्तुति
शालिनी कौशिक
एडवोकेट
कैराना (शामली)
Thanks
जवाब देंहटाएंआभार 🙏🙏
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