परिवार न्यायालय में वाद मित्र - भाग 1



परिवार न्यायालय में वाद मित्र (Next Friend or Guardian Ad Litem) एक ऐसा व्यक्ति होता है जिसे न्यायालय द्वारा या उसकी अनुमति से वाद के पक्ष में काम करने के लिए नियुक्त किया जाता है, खासकर तब जब वाद दायर करने वाला नाबालिग हो या उसकी कानूनी क्षमता के अभाव के कारण वह वाद का प्रतिनिधित्व करने में सक्षम न हो. 

➡️ वाद मित्र की आवश्यकता-

जब कोई व्यक्ति नाबालिग हो, कानूनी रूप से अयोग्य हो, या अन्य कारणों से वाद का प्रतिनिधित्व करने में असमर्थ हो, तब वाद मित्र की आवश्यकता होती है.

➡️ वाद मित्र की नियुक्ति-

न्यायालय वाद मित्र की नियुक्ति करता है, जो वाद के पक्ष में वाद की कार्यवाही में भाग लेता है.

➡️ वाद मित्र के कार्य-

वाद मित्र का कार्य वादी के सर्वोत्तम हित में वाद का प्रतिनिधित्व करना है, और यह सुनिश्चित करना है कि वाद की कार्यवाही ठीक से और निष्पक्ष रूप से आगे बढ़े.

➡️ नाबालिग के मामले में-

यदि वाद मित्र नाबालिग के लिए नियुक्त किया गया है, तो उसका मुख्य कार्य नाबालिग के हितों की रक्षा करना है और वाद में उसका प्रतिनिधित्व करना है, जैसे कि एक संरक्षक या अभिभावक.

➡️ सक्षम पक्षकार के मामले में - 

यदि पक्षकार सक्षम है, तो वाद मित्र की आवश्यकता नहीं होती है, और वह अपने आप में मुकदमा चला सकता है.

➡️ मैकेंजी मित्र-

मैकेंजी मित्र, जो न्यायालय की अनुमति के साथ वाद के पक्ष में कार्य करता है, एक मित्र, परिवार का सदस्य, या एक स्वैच्छिक संगठन का सदस्य हो सकता है.

( AI से साभार)

प्रस्तुति 

शालिनी कौशिक 

एडवोकेट 

कैराना (शामली) 

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