परिवार न्यायालय में वाद मित्र (वकालत में) भाग - 2
परिवार न्यायालय में वाद मित्र (वकालत में) आमतौर पर उन स्थितियों में नियुक्त किया जाता है जहाँ किसी पक्षकार को अपनी कार्यवाही में प्रतिनिधित्व करने में सक्षम नहीं माना जाता है। यह व्यक्ति न्यायालय द्वारा नियुक्त किया जाता है और उसका काम यह सुनिश्चित करना होता है कि मामले में न्यायोचित रूप से विचार किया जाए, खासकर जब पक्षकार नाबालिग, मानसिक रूप से अस्वस्थ, या अन्य तरह से कार्यवाही में प्रभावी ढंग से भाग लेने में सक्षम न हो.
विस्तार से:
➡️ वाद मित्र की आवश्यकता:-
वाद मित्र की नियुक्ति तब की जाती है जब कोई पक्षकार (जैसे नाबालिग, मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति) अदालत में अपनी बात रखने में सक्षम नहीं होता है.
➡️ वाद मित्र का कार्य:-
वाद मित्र का काम यह सुनिश्चित करना है कि मामले को न्यायोचित रूप से विचार किया जाए और पक्षकार के हितों की रक्षा की जाए.
➡️ वाद मित्र की नियुक्ति:-
वाद मित्र को न्यायालय द्वारा नियुक्त किया जाता है, और यह आमतौर पर एक वकील या कोई अन्य कानूनी पेशेवर होता है, लेकिन कभी-कभी परिवार का सदस्य या अन्य उपयुक्त व्यक्ति भी इस भूमिका को निभा सकता है.
➡️ उदाहरण:-
यदि किसी बच्चे का माता-पिता के साथ विवाद है और बच्चा अपनी बात नहीं रख सकता, तो न्यायालय एक वाद मित्र नियुक्त कर सकता है जो बच्चे के हितों की रक्षा करे.
➡️ अन्य मामले:-
वाद मित्र को मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति के मामले में भी नियुक्त किया जा सकता है या किसी अन्य स्थिति में जहां एक पक्षकार को अदालत में प्रभावी ढंग से भाग लेने में सक्षम नहीं माना जाता है.
➡️ सुलह और समझौता:-
पारिवारिक न्यायालय वाद मित्र को सुलह और समझौते को बढ़ावा देने के लिए भी नियुक्त कर सकता है.
( साभार AI)
प्रस्तुति
शालिनी कौशिक
एडवोकेट
कैराना (शामली)
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