कानूनन भी नारी बेवकूफ कमजोर ,पर क्या वास्तव में ?
नारी की कोमल काया व् कोमल मन को हमारे समाज में नारी की कमजोरी व् बेवकूफी कह लें या काम दिमाग के रूप में वर्णित किये जाते हैं .नारी को लेकर तो यहाँ तक कहा जाता है कि इसका दिमाग घुटनों में होता है और नारी की यही शारीरिक व् मानसिक स्थिति है जो उसे पुरुष सत्ता के समक्ष झुके रहने को मजबूर कर देती है लेकिन ऐसा नहीं है कि केवल हमारे समाज की नज़रों में ही नारी कमजोर व् बेवकूफ है बल्कि हमारा कानून भी उसे इसी श्रेणी में रखता है और कानून की नज़रें दिखाने को भारतीय दंड संहिता की ये धाराएं हमारे सामने हैं -
*धारा 493 -हर पुरुष जो किसी स्त्री को ,जो विधि पूर्वक उससे विवाहित न हो ,प्रवंचना से यह विश्वास कारित करेगा कि वह विधिपूर्वक उससे विवाहित है और इस विश्वास में उस स्त्री का अपने साथ सहवास या मैथुन कारित करेगा ,वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से ,जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी ,दण्डित किया जायेगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा .
*धारा 497 -जो कोई ऐसे व्यक्ति के साथ ,जो कि किसी अन्य पुरुष की पत्नी है ,और जिसका किसी अन्य पुरुष की पत्नी होना वह जानता है या विश्वास करने का कारण रखता है ,उस पुरुष की सम्मति या मौनानुकूलता के बिना ऐसा मैथुन करेगा जो बलात्संग के अपराध की कोटि में नहीं आता ,वह जारकर्म के अपराध का दोषी होगा ,और दोनों में से किसी भांति के कारावास से ,जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी ,या जुर्माने से ,या दोनों से दण्डित किया जायेगा .ऐसे मामले में पत्नी दुष्प्रेरक के रूप में दंडनीय नहीं होगी .
*धारा 498 - जो कोई किसी स्त्री को ,जो किसी अन्य पुरुष की पत्नी है ,और जिसका किसी अन्य पुरुष की पत्नी होना वह जानता है या विश्वास करने का कारण रखता है ,उस पुरुष के पास से ,या किसी ऐसे व्यक्ति के पास से ,जो उस पुरुष की ओर से उसकी देखरेख करता है ,इस आशय से ले जायेगा या फुसलाकर ले जायेगा कि वह किसी व्यक्ति के साथ आयुक्त सम्भोग करे या इस आशय से ऐसी किसी स्त्री को छिपायेगा या निरुद्ध करेगा ,वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी ,या जुर्माने से ,या दोनों से दण्डित किया जायेगा .
इस प्रकार उपरोक्त तीनों धाराओं के अवलोकन से साफ स्पष्ट है कि नारी बेवकूफ है क्योंकि दिमाग में कम होगी तभी तो कोई उसे फुसला लेगा और ये हमारा कानून भी मानता है ,यही नहीं वह स्वयं के दम पर नहीं रह सकती हमेशा किसी न किसी की देखरेख या संरक्षण में ही रहती है कभी बाप की तो कभी पति की और कभी बेटे की और ये सब न हों तो किसी अन्य पुरुष की और ये भी इन धाराओं के अनुसार हमारा कानून मानता है .हम सब आये दिन समाचार पत्रों में एक समाचार पढ़ते ही रहते हैं कि शादी का झांसा देकर फलां आदमी फलां औरत के साथ दुष्कर्म करता रहा अगर विचार करें तो ये झांसा क्या मायने रखता है जब जो कम शादी के बाद ही वैध है उसे करने को कोई नारी शादी से पहले तैयार कैसे हो गयी और जब तैयार हो गयी तो झांसा क्या सहमति ही तो कही जाएगी या फिर औरत की कमअक्ल .ऐसे ही धोखे से किसी नारी को यह दिखाना कि कोई पुरुष उससे विवाहित है यह भी कैसे संभव है ऐसा तो नहीं है कि शादी कोई ऐसा काम है जो अकेले में होता है .हर कोई अपनी शादी से पहले अपने समाज में विधि पूर्वक होने वाले इस संस्कार में शामिल होता ही रहता है फिर शादी का धोखा ,बात जंचती नहीं ,केवल एक बात जंचती है और वह यह कि कोई पुरुष पहले से विवाहित है और वह दूसरा विवाह धोखे से कर ले ,ये संभव है क्योंकि जैसे नारी के शरीर पर विवाह के चिन्ह सिन्दूर ,मंगल सूत्र व् बिछुए होते हैं ऐसे पुरुषों के शरीर पर कोई चिन्ह नहीं होते .
पर धीरे धीरे हमारी सुप्रीम कोर्ट नारी-पुरुष भेदभाव को लेकर लगता है जागरूक हो रही है क्यूंकि अभी केरल के रहने वाले जोसेफ शाइनी की जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कोर्ट विचार करेगा कि शादीशुदा महिला के परपुरुष से सम्बन्ध बनाने में सिर्फ पुरुष ही दोषी क्यों ,महिला क्यों नहीं ?
सवाल समानता का हो तो समानता होनी भी तो चाहिए .जब एक अपराध दो लोग मिलकर कर रहे हैं तो उन्हें सजा भी बराबर मिलनी चाहिए इसमें पुरुष स्त्री का भेदभाव नहीं होना चाहिए और सुप्रीम कोर्ट के अनुसार समाज तरक्की कर रहा है और नारी पुरुषों से आगे ही बढ़ रही हैं फिर अपराध के मामले में भेदभाव कर बराबर के अपराध पर दोनों को बराबर की सजा मिलनी ही चाहिए .कानून में समयानुकूल परिवर्तन अब हो ही जाना चाहिए न केवल यौन दुर्व्यवहार के मामलों में अपितु वैवाहिक सभी मामलों में क्यूंकि कानून की नारी के प्रति कोमल दृष्टि सही और हर प्रकार से सही पुरुषों पर बहुत भारी पड़ रही है क्यूंकि शादी होते ही पुरुष अगर नारी के मालिक हो जाते हैं तो कानूनन नारी भी पुरुषों की सारी सम्पदा की मालिक हो जाती है और दहेज़ कानून के सात वर्ष का सहारा लेकर व् धरा 498 -क का सहारा लेकर शादी के एकदम बाद पति व् उसके घरवालों को अपने चंगुल में ले लेती है और मनचाहा वसूलती है क्यूंकि एक सही आदमी जेल जाने से डरता है और समाज में अपनी बदनामी के दंश से बचने के लिए वह सब कुछ करता है जो वह चाहती है किन्तु कानून उसकी कोमल मूर्ती व् कमजोर बुद्धि को ही अपने आगे रखती है जिसे बेचारा पुरुष झेलता है और लखनऊ के पुष्कर के समान फांसी पर झूलने को मजबूर हो जाता है इसलिए कानून को भी अपनी सोच बदलनी होगी और इस कोमल काया और कम दिमाग के परिवर्तन की गति आंकलित करनी होगी और इसके अनुसार कानून में नयी व्यवस्थाएं भी .
*धारा 493 -हर पुरुष जो किसी स्त्री को ,जो विधि पूर्वक उससे विवाहित न हो ,प्रवंचना से यह विश्वास कारित करेगा कि वह विधिपूर्वक उससे विवाहित है और इस विश्वास में उस स्त्री का अपने साथ सहवास या मैथुन कारित करेगा ,वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से ,जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी ,दण्डित किया जायेगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा .
*धारा 497 -जो कोई ऐसे व्यक्ति के साथ ,जो कि किसी अन्य पुरुष की पत्नी है ,और जिसका किसी अन्य पुरुष की पत्नी होना वह जानता है या विश्वास करने का कारण रखता है ,उस पुरुष की सम्मति या मौनानुकूलता के बिना ऐसा मैथुन करेगा जो बलात्संग के अपराध की कोटि में नहीं आता ,वह जारकर्म के अपराध का दोषी होगा ,और दोनों में से किसी भांति के कारावास से ,जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी ,या जुर्माने से ,या दोनों से दण्डित किया जायेगा .ऐसे मामले में पत्नी दुष्प्रेरक के रूप में दंडनीय नहीं होगी .
*धारा 498 - जो कोई किसी स्त्री को ,जो किसी अन्य पुरुष की पत्नी है ,और जिसका किसी अन्य पुरुष की पत्नी होना वह जानता है या विश्वास करने का कारण रखता है ,उस पुरुष के पास से ,या किसी ऐसे व्यक्ति के पास से ,जो उस पुरुष की ओर से उसकी देखरेख करता है ,इस आशय से ले जायेगा या फुसलाकर ले जायेगा कि वह किसी व्यक्ति के साथ आयुक्त सम्भोग करे या इस आशय से ऐसी किसी स्त्री को छिपायेगा या निरुद्ध करेगा ,वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी ,या जुर्माने से ,या दोनों से दण्डित किया जायेगा .
इस प्रकार उपरोक्त तीनों धाराओं के अवलोकन से साफ स्पष्ट है कि नारी बेवकूफ है क्योंकि दिमाग में कम होगी तभी तो कोई उसे फुसला लेगा और ये हमारा कानून भी मानता है ,यही नहीं वह स्वयं के दम पर नहीं रह सकती हमेशा किसी न किसी की देखरेख या संरक्षण में ही रहती है कभी बाप की तो कभी पति की और कभी बेटे की और ये सब न हों तो किसी अन्य पुरुष की और ये भी इन धाराओं के अनुसार हमारा कानून मानता है .हम सब आये दिन समाचार पत्रों में एक समाचार पढ़ते ही रहते हैं कि शादी का झांसा देकर फलां आदमी फलां औरत के साथ दुष्कर्म करता रहा अगर विचार करें तो ये झांसा क्या मायने रखता है जब जो कम शादी के बाद ही वैध है उसे करने को कोई नारी शादी से पहले तैयार कैसे हो गयी और जब तैयार हो गयी तो झांसा क्या सहमति ही तो कही जाएगी या फिर औरत की कमअक्ल .ऐसे ही धोखे से किसी नारी को यह दिखाना कि कोई पुरुष उससे विवाहित है यह भी कैसे संभव है ऐसा तो नहीं है कि शादी कोई ऐसा काम है जो अकेले में होता है .हर कोई अपनी शादी से पहले अपने समाज में विधि पूर्वक होने वाले इस संस्कार में शामिल होता ही रहता है फिर शादी का धोखा ,बात जंचती नहीं ,केवल एक बात जंचती है और वह यह कि कोई पुरुष पहले से विवाहित है और वह दूसरा विवाह धोखे से कर ले ,ये संभव है क्योंकि जैसे नारी के शरीर पर विवाह के चिन्ह सिन्दूर ,मंगल सूत्र व् बिछुए होते हैं ऐसे पुरुषों के शरीर पर कोई चिन्ह नहीं होते .
पर धीरे धीरे हमारी सुप्रीम कोर्ट नारी-पुरुष भेदभाव को लेकर लगता है जागरूक हो रही है क्यूंकि अभी केरल के रहने वाले जोसेफ शाइनी की जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कोर्ट विचार करेगा कि शादीशुदा महिला के परपुरुष से सम्बन्ध बनाने में सिर्फ पुरुष ही दोषी क्यों ,महिला क्यों नहीं ?
सवाल समानता का हो तो समानता होनी भी तो चाहिए .जब एक अपराध दो लोग मिलकर कर रहे हैं तो उन्हें सजा भी बराबर मिलनी चाहिए इसमें पुरुष स्त्री का भेदभाव नहीं होना चाहिए और सुप्रीम कोर्ट के अनुसार समाज तरक्की कर रहा है और नारी पुरुषों से आगे ही बढ़ रही हैं फिर अपराध के मामले में भेदभाव कर बराबर के अपराध पर दोनों को बराबर की सजा मिलनी ही चाहिए .कानून में समयानुकूल परिवर्तन अब हो ही जाना चाहिए न केवल यौन दुर्व्यवहार के मामलों में अपितु वैवाहिक सभी मामलों में क्यूंकि कानून की नारी के प्रति कोमल दृष्टि सही और हर प्रकार से सही पुरुषों पर बहुत भारी पड़ रही है क्यूंकि शादी होते ही पुरुष अगर नारी के मालिक हो जाते हैं तो कानूनन नारी भी पुरुषों की सारी सम्पदा की मालिक हो जाती है और दहेज़ कानून के सात वर्ष का सहारा लेकर व् धरा 498 -क का सहारा लेकर शादी के एकदम बाद पति व् उसके घरवालों को अपने चंगुल में ले लेती है और मनचाहा वसूलती है क्यूंकि एक सही आदमी जेल जाने से डरता है और समाज में अपनी बदनामी के दंश से बचने के लिए वह सब कुछ करता है जो वह चाहती है किन्तु कानून उसकी कोमल मूर्ती व् कमजोर बुद्धि को ही अपने आगे रखती है जिसे बेचारा पुरुष झेलता है और लखनऊ के पुष्कर के समान फांसी पर झूलने को मजबूर हो जाता है इसलिए कानून को भी अपनी सोच बदलनी होगी और इस कोमल काया और कम दिमाग के परिवर्तन की गति आंकलित करनी होगी और इसके अनुसार कानून में नयी व्यवस्थाएं भी .
शालिनी कौशिक
[कानूनी ज्ञान ]
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