नामांतरण शुल्क वसूलना गलत -बॉम्बे हाईकोर्ट



      बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा है कि 

" किसी अधिवक्ता का नाम एक राज्य बार काउंसिल की सूची से दूसरे राज्य बार काउंसिल की सूची में स्थानांतरित करने पर कोई शुल्क वसूलना कानूनन गलत है।"

 न्यायालय ने इसे अधिवक्ता अधिनियम, 1961 की धारा 18 (1) के प्रावधानों के विपरीत ठहराया।

➡️ अधिवक्ता अधिनियम 1961 की धारा 18 (1)-

✒️ 18. एक राज्य की नामावली से दूसरे राज्य की नामावली में नाम का अन्तरण. 

(1) धारा 17 में किसी बात के होते हुए भी, कोई व्यक्ति, जिसका नाम किसी राज्य विधिज्ञ परिषद् की नामावली में अधिवक्ता के रूप में दर्ज है, अपना नाम उस राज्य विधिज्ञ परिषद् की नामावली से किसी अन्य राज्य विधिज्ञ परिषद् की नामावली में अन्तरित कराने के लिए, विहित रूप में, भारतीय विधिज्ञ परिषद् को आवेदन कर सकेगा और ऐसे आवेदन की प्राप्ति पर भारतीय विधिज्ञ परिषद् यह निदेश देगी कि ऐसे व्यक्ति का नाम, किसी फीस के सन्दाय के बिना, प्रथम वर्णित राज्य विधिज्ञ परिषद् की नामावली से हटा कर उस अन्य राज्य विधिज्ञ परिषद् की नामावली में दर्ज किया जाए और सम्बद्ध राज्य विधिज्ञ परिषद् ऐसे निदेश का अनुपालन करेगी :

 [ परन्तु जहां अन्तरण के लिए ऐसा कोई आवेदन ऐसे व्यक्ति द्वारा किया गया है जिसके विरुद्ध कोई अनुशासनिक कार्यवाही लम्बित है या जहां किसी अन्य कारण से भारतीय विधिज्ञ परिषद् को यह प्रतीत होता है कि अन्तरण के लिए आवेदन सद्भावपूर्वक नहीं किया गया है और अन्तरण नहीं किया जाना चाहिए वहां भारतीय विधिज्ञ परिषद् आवेदन करने वाले व्यक्ति को इस निमित्त अभ्यावेदन करने का अवसर देने के पश्चात् आवेदन नामन्जूर कर सकेगी।]

न्यायमूर्ति सुमन श्याम और न्यायमूर्ति श्याम सी. चांडक की खंडपीठ ने अधिवक्ता देवेंद्र नाथ त्रिपाठी की याचिका स्वीकार करते हुए बार काउंसिल ऑफ महाराष्ट्र एंड गोवा (BCMG) द्वारा 2014 में उत्तर प्रदेश बार काउंसिल से उनके नामांतरण पर ₹15,405 शुल्क वसूलने को अवैध घोषित किया।

➡️ संक्षेप में मामला-

याचिकाकर्ता अधिवक्ता देवेंद्र नाथ त्रिपाठी वर्ष 2003 में उत्तर प्रदेश राज्य बार काउंसिल में नामांकित हुए थे। बाद में वे मुंबई आ गए और 25 सितम्बर 2013 को अपना नामांतरण  बार काउंसिल ऑफ महाराष्ट्र एंड गोवा (BCMG) में कराने के लिए आवेदन किया। उनके अनुसार-

" अधिवक्ता अधिनियम की धारा 18 के अनुसार यह स्थानांतरण "बिना किसी शुल्क" के होना चाहिए."

इसके बावजूद बार काउंसिल ऑफ महाराष्ट्र एंड गोवा BCMG ने उनसे निम्न राशि वसूलीः-

✒️ ₹1,900 उत्तर प्रदेश बार काउंसिल को

✒️ ₹11,490 बार काउंसिल ऑफ महाराष्ट्र एंड गोवा  (BCMG) को

✒️ ₹2,015 बार काउंसिल ऑफ इंडिया को

अधिवक्ता देवेंद्र नाथ त्रिपाठी का आरोप था कि

" यह शुल्क BCMG के 26 सितम्बर 2010 के प्रस्ताव संख्या 112 के आधार पर लिया गया, जो कानून के विपरीत है। उन्होंने यह भी आपत्ति जताई कि शुल्क वर्ष 2003 से पिछली तिथि से गणना कर वसूला गया, जबकि वे उस अवधि में BCMG के सदस्य नहीं थे।"


✒️ याचिकाकर्ता अधिवक्ता देवेंद्र नाथ त्रिपाठी के तर्क--

 अधिवक्ता देवेंद्र नाथ त्रिपाठी ने गौरव कुमार बनाम भारत संघ (रिट याचिका (सी) सं. 352/2023) में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्णय का उल्लेख करते हुए कहा कि 

"राज्य बार काउंसिल और बार काउंसिल ऑफ इंडिया कोई ऐसा शुल्क नहीं वसूल सकती जो अधिनियम में निर्दिष्ट न हो। उनका कहना था कि धारा 18 (1) स्पष्ट रूप से नामांतरण शुल्क वसूली पर रोक लगाती है और परिषदों को ऐसा करने से रोका जाए।"

मूल याचिका में अधिवक्ता देवेंद्र नाथ त्रिपाठी ने वापसी, ब्याज और हर्जाना भी मांगा था, परंतु सुनवाई के दौरान वे केवल प्रार्थना “A” शुल्क वसूली की वैधता को चुनौती – तक सीमित रहे।

➡️ प्रतिवादी BCMG का पक्ष-

BCMG की ओर से अधिवक्ता ने कहा कि गौरव कुमार फैसले के मद्देनज़र परिषद को इस प्रार्थना पर कोई आपत्ति नहीं होगी, यदि आदेश का प्रभाव भावी (prospective) रूप से लागू किया जाए। बार काउंसिल ऑफ इंडिया की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ।

➡️ न्यायालय का निर्णय--

पीठ ने धारा 18 (1) का हवाला देते हुए कहा कि नामांतरण “बिना किसी शुल्क" के होना चाहिए।

गौरव कुमार मामले के सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के परिप्रेक्ष्य में न्यायालय ने कहा कि

 "बार काउंसिल केवल वही शुल्क वसूल सकती है जो अधिनियम की धारा 24(1)(f) मे स्पष्ट रूप से निर्धारित है, और अधिवक्ताओं पर अतिरिक्त शुल्क थोपना अनुचित है।"

न्यायालय ने माना कि 

"BCMG का 2010 का प्रस्ताव अधिनियम के प्रावधानों पर हावी नहीं हो सकता। इस प्रकार याचिकाकर्ता से लिया गया नामांतरण शुल्क "अवैध” है क्योंकि यह धारा 18 (1) का उल्लंघन करता है।"

➡️ निर्णय-

न्यायालय ने याचिका को प्रार्थना "A" तक स्वीकार करते हुए कहा कि 

"राज्य बार काउंसिलों के बीच नामांतरण शुल्क वसूलना अनुमन्य नहीं है। आदेश का प्रभाव भावी रहेगा क्योंकि याचिकाकर्ता ने वापसी या अन्य राहत की मांग नहीं की।"

मामले में किसी पक्ष को लागत नहीं दी गई।

आभार 🙏👇


प्रस्तुति 

शालिनी कौशिक 

एडवोकेट 

कैराना (शामली )

टिप्पणियाँ

  1. सराहनीय निर्णय किन्तु विचारणीय भी कि आखिर death claim, medical claim अधिवक्ता/ उसका परिवार कहां से वसूल करेगा

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    1. सहमत, पूर्ण जानकारी प्राप्त होने पर ब्लॉग पर अवश्य शेयर करूंगी, प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक धन्यवाद 🙏🙏

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